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फीचर

हम सुरक्षित तो सुरक्षित हमारा परिवार
11 March 2020
वक्त के साथ सम्हल के चलना पड़ता है। जैसे-जैसे आप पर जिम्मेदारी बढ़ती जाती है, वैसे-वैसे आप जिम्मेदार होते जाते हैं। आपको अपनों और अपनी सुरक्षा की चिंता होने लगती है कि मैं नहीं तो मेरे बच्चों का क्या होगा? इसलिये आप खुद अपने आप को सुरक्षित रखने का प्रयास करते रहते हैं और करना भी चाहिये। हम सुरक्षित तो हमारा परिवार सुरक्षित।
हम बात कर रहे हैं, आप सुरक्षित कैसे रहेंगे? आज सड़क पर चलना दूभर हो गया है, लेकिन आप सड़क सुरक्षा नियमों को अपनाकर जिम्मेदार नागरिक बन सकते हैं और अपने आप को सुरक्षित कर अपने परिवार को सुरक्षा दे सकते हैं।
काल के गाल में समाना का सबसे सटीक उदाहरण है सड़क/वाहन दुर्घटना, जो हमेशा असामयिक मृत्यु का कारण बनती है। इसके कई कारण हो सकते हैं, लेकिन सड़क/वाहन दुर्घटना एक ऐसा उदाहरण है, जिसे हम सड़क सुरक्षा के नियमों का पालन कर रोक सकते हैं, लेकिन कई बार अपने परिवार का ख्याल नहीं रखकर सड़क सुरक्षा नियमों की उपेक्षा करते हैं।
वक्त के साथ बदलाव जरूरी है। पहले के समय, न तो इतने वाहन थे और न ही इतने लोग। आज सड़कों पर लोगों से ज्यादा वाहन हैं। इसलिये हमें अपनी सुरक्षा के लिये सड़क सुरक्षा के छोटे-छोटे नियमों का पालन करना आवश्यक होता है। सड़क सुरक्षा के नियमों को धीरे-धीरे भी अपनाना शुरू कर दें तो वे आदत में आ जाते हैं और आप एवं आपका परिवार सुरक्षित हो जाता है।
इसका दूसरा फायदा यह भी होता है कि यातायात पुलिस-जाँच के समय आपका जो समय अनावश्यक व्यर्थ जाता है, वो भी बच सकता है। इसलिये भी सड़क सुरक्षा के नियमों का पालन करना चाहिये। एक बात यह भी है कि सड़क सुरक्षा के नियमों को आपको खुद से अपनाना पड़ेगा, तभी आप सुरक्षित होंगे। यह कोई जोर-जबरदस्ती से अपनाने वाली चीज नहीं है, नहीं तो आप इसे हमेशा बोझ ही समझेंगे।
हम सोच भी नहीं सकते सड़क/वाहन दुर्घटना इतनी भयावह होती है कि हम या हमारे परिजन दुर्घटना के बाद सड़क एवं अस्पताल में जिंदा लाश की तरह हो जाते हैं। कई उदाहरण अखबारों में पढ़ने को मिलते हैं कि माता-पिता ने बेटे की मृत्यु के बाद उसके अंगदान किये। यह दिल को दहलाने वाली खबर होती है। मुझे भी कुछ दिनों पहले अंगदान सम्मान समारोह में जाने का मौका मिला। उस सम्मान समारोह में कोई भी खुशी से सम्मान नहीं ले रहा था, लेकिन वे सबके प्रेरणा-स्त्रोत बने। समारोह में सभी की आँखें नम (गमगीन) थी। ऐसी ही एक खबर पढ़ी थी कि सड़क दुर्घटना में बेटे के सिर में चोट लगने के बाद उसकी मृत्यु हुई। पिता ने उसकी तेरहवीं के दिन लोगों को जागरूक करने के उद्देश्य से हेलमेट का वितरण किया। वे समाज में एक उदाहरण बने, लेकिन दिल पर पत्थर रखकर उन्होंने यह कार्य किया होगा, उन्हें प्रणाम।
सड़क पर चलना भी आपकी सोच-समझ की परीक्षा होती है। सड़क पर वाहन चलाने में आपके ज्ञान-चक्षु खुल जाते हैं। हम सड़क का उपयोग विभिन्न साधनों के माध्यम से परिवहन के लिये करते हैं। साईकिल, मोटरसाइकिल, कार, बस, ऑटो रिक्शा के साथ सड़क पर हम पैदल भी चलते हैं। इसलिये हमें सभी का ध्यान रख कर वाहन चलाना चाहिये।
हाँ सबसे बड़ी बात यह है कि आप ये सोच के वाहन चलाये कि सब नौसिखिये हैं। हमें सबको बचा के चलना है। हम गलती करे या नहीं करे सामने वाला गलती कर सकता है और थोड़ा सा भी गलत अनुमान दुर्घटना का कारण बन सकता है।
पदयात्रियों को अधिकतर देखा है कि वे ट्रेफिक सिग्नल के समय यातायात में बाधा बनते हैं। कभी-कभी तो वे वाहन चालक की दृष्टि से दूर होते हैं और एक दम से प्रकट हो जाते हैं। इसलिये पैदल यात्री भी यातायात संकेतों का पालन करें और सुरक्षित रहे। कभी भी एक हाथ से वाहन न चलाये। दोनों हाथों का उपयोग कर ही वाहन चलायें। वाहनों पर करतब नहीं दिखाये। उच्च गति पर नहीं मुड़े। सामने वाले वाहन से सुरक्षित दूरी बनाकर चलने में भी भलाई है।
अनियंत्रित जेब्रा क्रॉसिंग पर पहले पैदल यात्रियों को सड़क पार करने दें। सीट-बेल्ट का प्रयोग दुर्घटना के दौरान मौत की सम्‍भावना को 60 प्रतिशत तक घटाता है। दुर्घटना की रोकथाम के लिये यातायात नियमों और चिन्हों का पालन करे। सड़क पर परेशानी व दुर्घटना से बचने के लिये वाहन को दुरुस्त रखें। वाहन चलाते समय मोबाइल फोन का उपयोग न करें। अपने सिर की सलामती के लिये उच्च गुणवत्ता वाला हेलमेट पहने। इससे चोट की सम्भावनाओं को 70 प्रतिशत तक घटाया जा सकता है।
सड़क का सबके साथ सहभाग करे। दूसरों का भी ध्यान रखे। सड़क पर क्रोध/रोष न करें। नम्र रहे। जिम्मेदार बने.... शराब पीकर वाहन नहीं चलाये।

aaयातायात नियम आपकी सुरक्षा के लिये उन्हें बोझ न समझें


5 February 2019

नियम, कायदे, कानून आपकी सुरक्षा के लिये बनाये गये हैं। इनका पालन करना सुनिश्चित करना होगा। कब तक पुलिस या बुद्धिजीवी आपको समझाइश देते रहेंगे। आपको खुद को अपनी और अपने परिवार की चिन्ता करनी होगी। इसके लिये आपको सड़क सुरक्षा संबंधी यातायात के नियमों का पालन करना होगा। इनको बोझ समझकर अनदेखी करना घातक सिद्ध हो सकता है। सड़क हादसे में होने वाली मौतों की संख्या लगातार बढती जा रही है। इसके लिये दूसरों को नहीं अपने आप को ही बदलकर जिम्मेदार नागरिक बनना होगा। जिससे की आपका पूरा परिवार सुख, शांति से जी सके और चालान के पैसों को बचाकर घर-गृहस्थी की जरूरत पूरी करे। सड़क पर चलने के कई नियम हैं जिनका पालन करना बहुत जरूरी है। इसी प्रकार जाने-अनजाने कई गलतियाँ भी सड़क पर होती हैं, उन्हें भी दूर करना होगा। इसमें एक है सड़क पर रैली, धरना-प्रदर्शन, बारात और धार्मिक यात्रा निकालना आदि। इसके पीछे का कारण यह है कि आये दिन इन गतिविधियों के होने से बीमार, गंभीर घायल या किसी महत्वपूर्ण काम के लिये निकला व्यक्ति अनायास ही भीड़-भाड़ और जाम में फँसता है। यहाँ तक कि बीमार तथा गंभीर घायल व्यक्ति का समय से इलाज न होने के कारण वह अपनी जान गवां देता है। तो क्या.. आपको क्या फर्क पड़ता है। यह मत सोचिये, इसका शिकार कभी आप स्वयं, परिवार या आपके मित्र-सगे-संबंधी भी हो सकते हैं। तब जरूर फर्क पड़ेगा न! सड़क पर बहुत कुछ नहीं होना चाहिये। उनमें से एक है होर्डिंग। देखने में आता है कि चौराहे हो या मोड़, जगह-जगह होर्डिंग रखने की होड़-सी चली है। इसके कारण विजिबिलिटी नहीं होती और वाहन एक-दूसरे से टकराने का भय हमेश बना रहता है। इस पर भी बहुत गंभीरता से विचार कर ध्यान देने की जरूरत है। साथ ही चौराहे पर लगे होर्डिंग से सिग्नल नहीं दिखते, इससे भी दुर्घटना होने का खतरा बना रहता है। इस ओर भी ध्यान देने की जरूरत है। और जल्दी किस बात की यह आज तक नहीं समझ में आया। गाड़ी को एक नियत और सधी गति में चलाने से आप भी सुरक्षित हैं और आपका वाहन भी। जहाँ दोपहिया वाहनों पर ओवर लोडिंग और मोबाइल पर बात करना सड़क दुर्घटना को आमंत्रित करता है। वहीं चार पहिया वाहनों में सीट बेल्ट लगाने से दुर्घटनाओं में होने वाली मृत्यु से बचा जा सकता है। सड़क दुर्घटनाओं के विभिन्न कारणों में से एक शराब पीकर वाहन चलाना भी है। चालक को स्वयं सावधानी से वाहन का उपयोग करना चाहिये। जरूरी है कि लंबी दूरी की सड़क यात्रा से बचा जाये। अत्यंत आवश्यक होने पर ही यह यात्रा की जाना चाहिये। प्राय: देखने में यह आता है कि नागरिक लंबी दूरी की यात्रा के समय ड्रायवर का सहारा लेते हैं और लंबे समय लगातार बिना रुके वाहन चलवाते हैं। ऐसे समय वाहन चालक को आराम देने की जरूरत है। रात के समय तो सफर करने से बचना ही चाहिये, क्योंकि राष्ट्रीय और राजकीय राजमार्ग पर अधिकांश दुर्घटनाएँ वाहन चालक को नींद का झोंका आने के कारण हुई पायी गयीं। अधिकतम 70-80 किलोमीटर प्रति घंटे की रफ्तार से ज्यादा वाहनों की गति नहीं रखने में ही समझदारी है। अत्यधिक बारिश, कोहरा और खराब मौसम होने की स्थिति में सड़क मार्ग यात्रा से बचा जाना चाहिये। अगर किसी कार्यक्रम में जाने के लिये आप निकले हैं, तो नियत समय से पहले यात्रा शुरू करना चाहिये, जिससे हड़बड़ी में तेज वाहन-चालन से बचा जा सके। कभी-कभी ओवर टेक करना भी मृत्यु का कारण बनता है। इससे बचने के लिये वाहन चालक को धैर्य रखना आवश्यक है। ग्रामीण क्षेत्रों में हेलमेट के प्रति लोगों को जागरूक करना बेहद जरूरी है। इसी प्रकार ट्रेक्टर-ट्राली वालों के लिये अभियान चलाकर उनके ट्रालों के पीछे रेडियम लगाने की आवश्यकता है। इससे रात में विजिबिलिटी बनने से दुर्घटनाओं को रोका जा सकता है। इसी प्रकार अधिकतर देखने में आता है कि हाई-वे पर पड़ने वाले ग्रामीण क्षेत्र के नागरिक गलत दिशा में वाहन चलाकर एक दम से बड़े वाहनों के सामने आकर मृत्यु को आमंत्रित कर लेते हैं। लोगों को यातायात के प्रति जागरूक करने और सड़क सुरक्षा के उद्देश्य से 4 से 10 फरवरी तक 30वाँ राष्ट्रीय सड़क सुरक्षा सप्ताह मनाया जा रहा है। सप्ताह के दौरान प्रदेश में सड़क सुरक्षा संबंधी विभिन्न कार्यक्रम आयोजित कर नागरिकों को जागरूक किया जा रहा है। आसान है, सड़क सुरक्षा के नियमों का पालन कर असामयिक मृत्यु से बचा जा सकता है। सड़क सुरक्षा सप्ताह का उद्देश्य भी यही है कि हमारी, आपकी और दूसरों की भी जान बच सके।
(लेखक सहायक संचालक, जनसम्पर्क और मध्यप्रदेश राज्य सड़क सुरक्षा क्रियान्वयन समिति में नोडल अधिकारी हैं)


aaमध्यप्रदेश ने अपनाया प्रधानमंत्री श्री मोदी का सूत्र


30 Jun 2018


"सिंचाई क्षेत्र के नाम रहा जून माह"
हाल ही में मध्यप्रदेश के राजस्थान से लगे एक पिछड़े माने जाने वाले राजगढ़ जिले में सिंचाई परियोजना के लोकार्पण के लिए प्रधानमंत्री श्री नरेन्द्र मोदी पधारे। उन्होंने मोहनपुरा वृहद सिंचाई परियोजना का लोकार्पण किया। इस परियोजना को रिकार्ड समय में पूरा किया गया है। मोहनपुरा परियोजना का कार्य दिसम्बर 2014 में प्रारंभ कर फरवरी 2018 में पूर्ण किया गया। यह प्रधानमंत्री जी के लिए भी ताज्जुब की बात थी। उन्होंने अपने भ्रमण में मध्ययप्रदेश की सिंचाई क्षेत्र की तस्वीर का जायजा लिया। मोहनपुरा परियोजना इलाके का कायापलट करने वाली योजना है। राजगढ़ जिले में बहुत जल्दी कुंडालिया परियोजना भी प्रारंभ होने वाली है। सम्पूर्ण मध्यप्रदेश में सिंचाई परियोजनाओं की बदौलत तस्वीर और तकदीर बदल रही है। मुख्यमंत्री श्री शिवराजसिंह चौहान ने किसानों के हित के लिए सिंचाई क्षेत्र को समृद्ध बनाने पर लगातार ध्यान दिया है। मध्यप्रदेश को निरंतर कृषि कर्मण अवार्ड प्राप्त होने की एक प्रमुख वजह राज्य में अच्छी सिंचाई सुविधाओं का उपलब्ध होना है। जल संसाधन विभाग दिन-प्रतिदिन सिंचाई क्षमता में वृद्धि के लिए कार्य कर रहा है। बीते 14 वर्ष में सात हेक्टेयर से 40 लाख हेक्टेयर तक सिंचाई रकबे का विस्तार करने के बाद मध्यप्रदेश 80 लाख हेक्टेयर के लक्ष्य की ओर कदम बढ़ा चुका है। प्रधानमंत्री जी के संकल्प हर खेत को पानी और "पर ड्राप मोर क्राप" के सूत्र के अनुसार मध्यप्रदेश में हर खेत को पानी को पानी देने के उद्देश्य से सारे संसाधन, सारी ताकत जनता का साथ लेकर झोंक दी गई है। इसके साथ ही अब पूर्व की क्षमता से मध्यप्रदेश में दुगने क्षेत्र में सिंचाई के लक्ष्य को प्राप्त किया जा रहा है। मध्यप्रदेश का सिंचाई क्षेत्र बढ़ा है। प्रति हेक्टेयर लागत भी उतनी ही रही हमारी परियोजनाओं में 3 से 4 लाख प्रति हेक्टेयर के भीतर आ रही, जिसमें बांध की लागत, पुनर्वास, किसान के खेत तक एक हेक्टेयर तक पानी पहुंचाने की पूरी लागत शामिल है। बेहतर सिंचाई सुविधा के कारण मध्यप्रदेश को पाँच वर्ष से "कृषि कर्मण अवार्ड" प्राप्त करने में कामयाबी मिली है।
"दॉब युक्त सिंचाई पद्धति बनेगी वरदान"
मप्र के राजगढ़ जिले में मोहनपुरा सिंचाई परियोजना की विशेषता यह है कि यहाँ दॉब युक्त पाईप सिंचाई पद्धति का प्रयोग किया जा रहा है। मध्यप्रदेश पूरे देश में दॉब युक्त सिंचाई पद्धति के प्रयोग में आगे है। इस पद्धति के तहत देश के करीब एक चौथाई क्षेत्र में सिर्फ मध्यप्रदेश में कार्य हो रहा है। कृषकों को उनके खेतों तक समुचित जल पहुँचाने के लिए दाबयुक्त सिंचाई प्रणाली का निर्माण किया गया है। इससे उपलब्ध जल से अधिक क्षेत्र में सिंचाई संभव होती है। जलाशय से जल उदवहन कर जमीन के अंदर पाईप लाइन बिछाकर किसानों के खेत (एक हेक्टेयर चक) तक उच्च दाब पर जल प्रदाय करने का कार्य सूक्ष्म सिंचाई के लक्ष्य को पूरा करेगा। प्रदेश के जल संसाधन और जनसम्पर्क मंत्री डॉ. नरोत्तम मिश्र का मानना है कि यह परियोजना राजगढ़ को रेगिस्तान बनने से रोकेगी। परियोजना के कियान्वयन से संपूर्ण क्षेत्र की वास्तव में कायापलट हो जाएगी। एक बड़े सकारात्मक परिवर्तन के साक्षी वे सभी लोग होंगे जिन्होंने वर्षों से इस इलाके में सिंचाई और पीने के पानी की किल्लत देखी है। जल संसाधन मंत्री डॉ. नरोत्तम मिश्र ने गत दो वर्ष से विभाग के वरिष्ठ अधिकारियों के साथ इस परियोजना की अनेक बार समीक्षा की। मोहनपुरा सिंचाई परियोजना श्रेष्ठ पुनर्वास का एक उदाहरण है। बांध की पूर्ण भराव क्षमता पर डूब क्षेत्र 7056.718 हेक्टेयर है एवं इससे 55 ग्राम प्रभावित हुए। डूब क्षेत्र में 22 ग्राम की आबादी पूर्णत: एवं 5 ग्राम आं‍शिक रूप से प्रभावित है जिनके विस्थापन एवं पुनर्वास का कार्य पूर्ण हो गया है। नए स्थान पर विस्थापित ग्रामवासी रहने लगे हैं और पूर्व की तुलना में बेहतर परिवेश एवं सुविधाओं का लाभ ले रहे हैं। वैसे भी मध्यप्रदेश सरकार ने योजनाओं से विस्थापित लोगों को आवश्यकतानुसार जरूरी सुविधाएं देकर भली-भांति नई जगह पर बसने में पूरी मदद की है। मध्यप्रदेश में प्रथम बार वर्ष 1977 में सिंचाई की बड़ी-बड़ी परियोजनाओं का कार्य प्रारंभ किया गया। विन्ध्याचल की बाणसागर परियोजना का शिलान्यास 14 मई 1978 को मोरारजी देसाई तत्कालीन प्रधानमंत्री ने किया था। इसी तरह बुंदेलखंड अंचल की बरियारपुर परियोजना का शिलान्यास 13 फरवरी 1978 को किया गया। महाकौशल अंचल में भी बावनथड़ी परियोजना का शिलान्यास नवंबर 1978 में श्री वीरेन्द्र कुमार सखलेचा और महाराष्ट्र के तत्कालीन मुख्यमंत्री शरद पवार ने नवंबर 1978 में किया। इसके पश्चात वर्ष 2004 में सिंचाई के क्षेत्र पर सरकार ने विशेष ध्यान दिया। कृषि कैबिनेट बनाई गई। सौ दिवसीय कार्ययोजना भी बनाई गई। संकल्प के ज़रिये सिंचाई के लक्ष्य निर्धारित किये गये। मध्यप्रदेश में किसान महापंचायत के ज़रिये किसानों की समस्याओं का आकलन किया गया। मंथन के ज़रिये अधिकारियों से चर्चा करके नियमों को सरल बनाया गया। इसका परिणाम है कि मध्यप्रदेश आज सिंचाई के क्षेत्र की प्रगति में देश में सबसे आगे है। मालवा की माही परियोजना, ग्वालियर की सिंध परियोजना, बुंदेलखंड की बरियारपुर परियोजना, विन्ध्याचल की बाणसागर एवं महान परियोजना, बालाघाट की बावनथड़ी परियोजना, छिंदवाड़ा की पेंच परियोजना को पूर्ण कराकर सिंचाई प्रारंभ की गई है। गांधी सागर बांध से 5 किलोमीटर अंडरग्राउंड नहर बनाकर मंदसौर जिले के भानपुरा, गरोठ में इस वर्ष से सिंचाई प्रारंभ की गई है। मध्यप्रदेश में इस वर्ष नवनिर्मित 5 बड़े बांध,


किसान संकट में आंदोलन की नहीं समाधान की दरकार


7 Jun 2018

भारतीय समजा में कुछ श्रेष्ठ परम्पराएं रही हंै। कहते हैं कि यज्ञोपवीत के तीन धागे देखकर देवराज इन्द्र ऐरावत हाथी से उतर कर विप्रदेव को प्रणाम करते थे। बदलते परिवेश में आज सामाजिक प्राथमिकताओं में विप्र देव कहां पर है यह कुछ दिनों से समाज को आंदोलित कर रहा है। इसी तरह अन्नदाता किसान ने समाज के संगोपन का जो दायित्व संभाला पीढ़ी दर पीढ़ी व्यवसाय तो चल रहा है लेकिन अन्नदाता किसान आर्थिक सर्वेक्षण अनुसार किसान परिवार की मासिक औसत आय 6426रू. है। जिसमें खेती से होने वाली आमदनी 3081रू. माह है। इससे लगभग नब्बे प्रतिशत किसान, खेतिहर गरीबी में गुजारा कर रहे हैं। शादी, विवाह उत्सव तभी कर पाता है जब उसे कर्ज मिलता है और उस कर्ज का ब्याज चुकाना उसके लिए टेढ़ी खीर है। लिहाजा ऋणग्रस्त जीवन बिताना उसका शौक नहीं लाचारी है। किसान के उत्पाद का बढ़ा हुआ मूल्य दिये जाने का जब मामला सुप्रीम कोर्ट में पहुंचा तब पूर्ववर्ती केंद्र सरकार ने मूल्य बढ़ाने में अपनी लाचारी बताते हुए कहा था कि मूल्य वृद्धि से बाजार में विकृति पैदा होने की आशंका है। महंगाई न बढ़े और उद्योगों के लिए कच्चा माल सुगमता से मिलता रहे इसलिए मूल्यों में स्थिरता लाजमी है। इसके अलावा सरकार विश्व स्पर्धा और विश्व व्यापार संगठन की शर्तों की भी पाबन्द है। बाजारवादी व्यवस्था में किसान का चेहरा ओझल कर दिया गया। बाजार व्यवस्था में समरथ को नहीं दोष भुलाई की कहावत चरितार्थ होती है। बाजार में विकृति पैदा न हो इसका मतलब किसान का लूट का शिकार बना रहना उसकी नियति है। खेती के साथ कुछ विरोधाभास भी जुड़े हैं। जब रबी और खरीफ फसल पक जाती है और उत्पादन की पूर्ति मांग से अधिक हो जाती है किसान को उसका लागत मूल्य मिलना भी परेशानी हो जाती है। किसान के बारे में राजनैतिक दलों का रवैया सियासी रहा है। उनने किसानों की व्यथा पर आंसू बहाकर वोट हासिल किये लेकिन धरातल पर अपेक्षित कुछ की नहीं किया। संसद और विधानसभाओं में किसान की बदहाली पर आंसू बहाने का रिवाज चल पड़ा लेकिन किसी दल ने किसान की त्रासद स्थिति पर विचार करने के लिए संसद और विधानसभा का विशेष अधिवेशन बुलाने की मांग नहीं की। पहली जून से किसानों के समर्थन में देश के सवा सौ राजनैतिक दलों संगठनों ने आंदोलन का ऐलान किया। टनों दूध और सब्जियां सड़कों पर उड़ेल दी गयी लेकिन सियासत के अलावा ठोस पहल का संकेत नहीं दिया। सियासी उग्रता ही इस बात का सबूत देती है कि जो दल और संगठन आज किसानों के रहबर बनकर सुर्खियां बटोर रहे है। उनके जेहन में किसान की समस्या के समाधान का कोई रोड मैप तक नहीं है। नब्बे के दशक में अटलजी की सरकार बनी थी। श्री राजनाथ सिंह कृषि मंत्री थे। उन्होंने किसानों के कर्जग्रस्त होने पर बहस आरंभ की और खेती के कर्ज पर सस्ते ब्याज का सोच आरंभ हुआ बाद में अटलबिहारी वाजपेयी ने किसान आयोग बनाने के प्रस्ताव को आगे बढ़ाया और 2004 में डाॅ. स्वामीनाथन आयोग का गठन हुआ। डाॅ. स्वामीनाथन आयोग ने 2006 में अपनी रिपोर्ट केन्द्र सरकार को सौंप दी। अटल सरकार का अवसान हो चुका था। डाॅ. मनमोहन सिंह सरकार ने रिपोर्ट को ठंडे बस्तें में डाल दिया। 2014 में जब लोकसभा चुनाव हुए भाजपा चुनाव अभियान समिति के शिल्पकार श्री नरेन्द्र मोदी ने ऐलान किया कि किसानों के हित में स्वामीनाथन आयोग की सिफारिशों पर अमल होगा। किसान को फसल की लागत पर 50 प्रतिशत लाभांश मिलाकर समर्थन मूल्य दिया जायेगा। श्री नरेन्द्रमोदी सरकार ने इसे अमली जामा पहनाते हुए 2022 तक किसान की आय दोगुना करने की व्यूह रचना भी की है। सवाल उठता है कि राजनैतिक दल ने 2004 से 2014 तक किसान के हित में अंगडाई तक नहीं ली वह आज किसान के संकट के लिए मोदी सरकार पर ठीकरा किस आधार पर फोड़ सकती है। किसान आंदोलन की आड़ में किसान के कंधे पर बंदूक रखकर भारतीय जनता पार्टी को निशाना बनाना कहां तक न्याय संगत है। दरअसल किसान का आर्थिक संकट तीन दशक पुराना है। इस दरम्यान तीन लाख से अधिक किसान आत्महत्या कर चुके है। साबित है कि कांग्रेस अपने सिर का पाप दूसरों के माथे पर डालकर सियासत कर रही है। पचपन साल तक देश पर एक छत्र राज करने वाली कांग्रेस नरेन्द्र मोदी से 4 साल का हिसाब मांग रही है। यह कहां तक उचित है ? ध्यान देने की बात है कि कृषि केन्द्र और राज्य दोनों का विषय है। कांग्रेस बार बार किसानों में मतिभ्रम फैला रही है और कर्ज माफ करने के लिए दबाव बना रही है, लेकिन देश में अर्थशास्त्रियों, कृषिविदों के गले कर्ज माफी की मांग उतर नहीं रही है। उनका कहना है कि किसान की त्रासदी का सबसे बड़ा कारण उन्हें उनकी फसल का वाजिब मूल्य न मिल पाना है। जिस पर मोदी सरकार ने स्पष्ट नीति की घोषणा के साथ अमल आरंभ कर दिया है और फसल की लागत में किसान उसके परिवार तक के श्रम की गणना कर अर्थशास्त्र को विकास के पक्ष में ला दिया है। देश में सिंचाई क्रांति तेज हुई है। मोदी सरकार ने अपने 2018-19 के बजट में ही लागत मूल्य पर 50 प्रतिशत लाभांश देने की घोषणा की है। यूरिया को नीम कोटेड बनाकर यहां यूरिया का संकट समाप्त कर दिया है, वही किसान को मिलने वाली सब्सिडी उसके खाते में जमा करने का पुख्ता इंतजाम कर दिया है। इससे संकेत मिलता है कि 2022 तक किसान की आय दोगुना हो जायेगी और किसान याचक की मुद्रा में मुक्त होकर अपने पैरों पर खड़ा होगा। जहां तक किसान की खुशहाली का सवाल है, कोई भी दल किसान परस्ती से मंुह नहीं मोड़ता, लेकिन वास्तविक उपाय करने का श्रेय भारतीय जनसंघ को ही दिया जायेगा। भारतीय जनता पार्टी की सरकारों ने अपने सूबों में किसानों को विविध प्रकार के प्रोत्साहन दिए। ताजा उदाहरण मध्यप्रदेश है, जहां कृषि कर्मण सम्मान से मध्यप्रदेश पांच बार नवाजा जा चुका है। समर्थन मूल्य पर बोनस, बाजार में मंदी आने पर मूल्य स्थिरीकरण कोष से मदद, भावांतर भुगतान योजना, डिफाल्टर किसानों को जीरो प्रतिशत ब्याज की पात्रता दिलाने के लिए समाधान योजना का श्रेय मध्यप्रदेश और मुख्यमंत्री श्री शिवराजसिंह चैहान को ही है। श्री नरेन्द्र मोदी सरकार ने काश्तकारों को प्रोत्साहन साधन सुविधाएं देकर देश की कृषि विकास दर 4 प्रतिशत पहंुचायी है। सवाल उठता है कि सिर्फ कृषि उत्पादन बढ़ने से किसान की आय तो नहीं बढ़ रही है। इससे किसान को क्या लाभ हुआ। देश की खाद्य सुरक्षा मजबूत हुई है। किसान के आर्थिक सशक्तिकरण की अपेक्षा पूरी की जाना चाहिए। नरेन्द्र मोदी सरकार के किसान हित में किए जा रहे सात सूत्रीय कार्यक्रम पर अमल से वांछित लाभ की उम्मीद बंधी है। इस कार्यक्रम में खेत की मिट्टी की सेहत का हर वर्ष परीक्षण हो रहा है, इससे खाद के उपयोग में मितव्ययिता बढी है। फसल को पहंुचने वाली क्षति को रोकने के लिए फसल बीमा, मंडियों, ग्रामों में गोदाम, कोल्ड स्टोरेज की श्रृंखला का निर्माण स्टोरेज में फसल रखने पर किसान को कर्ज की व्यवस्था, ग्रामों में निवेश कर खाद्य प्रसंस्करण उद्योग की इकाईयों की स्थापना पर भरपूर सब्सिडी, प्रोत्साहन, मार्गदर्शन, फसल का मूल्य संवर्धन, राष्ट्रीय कृषि बाजार और मंडी को जोड़ने पर कार्य किया जा रहा है। किसान क्रेडिट कार्ड की तरह पशुपालकों को भी पशुपालन क्रेडिट कार्ड देकर उनकी साख सुविधा सुनिश्चित कर दी गयी है। कृषि के पूरक उद्योगों को लाभकारी बनाने का महत्वाकांक्षी कार्यक्रम हाथ में लिया जा चुका है। किसान आज आंदोलित है। आक्रोश में है। लेकिन उसे आंदोलन की नहीं समाधान की आवश्यकता है जिसकी राह बन चुकी है। श्री नरेन्द्र मोदी की नीतियों के अमल की चर्चा हो रही है। इससे समय चक्र घूमा है। कहा जाता था कि किसानों की चर्चा खूब होती है, लेकिन नीति निर्धारण में किसान कहांॅ रहता है। केन्द्र और मध्यप्रदेश सरकार ने इस स्थिति को पलट दिया है। मोदी जी ने अन्नदाता सुखी भव कहा था। लगता है वह समय दूर नहीं है। देश में पंचायत से पार्लियामेंट तक किसान का हित चिंतन की धुरी बन चुका है। गांव, गरीब, किसान, मजदूर सरकारों के नियोजन का केंद्र बिन्दु बन चुके हैं। आने वाले समय में जनादेश भी उसी को मिलेगा जो इनका संवर्धन करेगा।


aaविचार के बाद आकार में बदलता आनंद विभाग


31 January 2018

भारतीय मनीषा प्रारम्भ से ही विश्वास प्रकट करती रही है कि सृष्टि के रचयिता ने इसे आनन्द के लिये रचा है। ऋग्वेद कहता है कि - सब नाचते और हँसते हुए प्रकाश की दिशा में आगे बढ़ें
"प्राच्यो अगाम नृतये हसाय"
आज आंनद की अलग-अलग व्याख्याएँ और स्वरूप होते हैं, परन्तु समग्र रूप में आनंद के मूल में मानसिक संतोष, शारीरिक स्वस्थता, भावनात्मक उन्नति और प्रसन्नता है। यह अलहदा है कि किसे-किस काम में और अनुभूति में आनंद आता है। किसी के लिये परमार्थ आनंद का बॉयस है, तो किसी के लिये सुख- समृद्धि का। मध्यप्रदेश के मुख्यमंत्री श्री शिवराजसिंह चौहान का मानना है कि राज्य का पूर्ण विकास नागरिकों की मानसिक, शारीरिक, भावनात्मक उन्नति और प्रसन्नता से ही संभव है। अत: नागरिकों को ऐसी विधियाँ और उपकरण उपलब्ध करवाने होंगे, जो उनके लिए आनंद का कारक बनें। विकास का मापदण्ड मूल्य आधारित होने के साथ नागरिकों के आनंद की पहचान करने वाला भी होना चाहिए। अपनी इस अवधारणा को साकार करने के लिए भौतिक प्रगति के पैमाने से आगे बढ़कर मुख्यमंत्री ने 6 अगस्त 2016 को आनंद विभाग का गठन किया। यह विभाग बनाने वाला मध्यप्रदेश देश में पहला राज्य है। आनंदक सवाल यह था कि विभाग कैसे और क्या करे कि नागरिकों के जीवन में आनंद का समावेश हो। बहुतों को तो यह विचार ही अजब-गजब लगा कि आनंद और सरकार का क्या मेल ! आज जब मुख्यमंत्री के विचार ने आकार लेना शुरू कर दिया है तो यह जाहिर है कि असंभव कुछ नहीं है। इच्छाशक्ति होनी चाहिये सद्विचार को मूर्तरूप देने की। आनंदक अपने अन्य सामान्य कार्यकलापों के अलावा राज्य आनंद संस्थान की गतिविधियों में शामिल होने के लिये स्व-प्रेरणा से तैयार स्वयंसवेक है। ये लोग समय-समय पर प्रशिक्षण कार्यक्रम में भाग लेकर प्रशिक्षण लेते हैं और उसके अनुरूप कार्य करते हैं। आनंदक का काम यह है कि वे अपने कृतित्व तथा विचारों से दूसरों के लिए सकारात्मक उदाहरण बने और अन्य व्यक्तियों को भी आंनद की गतिविधियों में भाग लेने के लिए प्रेरित करें। यदि कोई शासकीय सेवक स्वयं को आनंदक के रूप में पंजीकृत कराता है तो उसकी प्रशिक्षण कार्यक्रमों में उपस्थिति शासकीय कार्य के अंतर्गत मानी जाती है। स्वयंसेवी लोगों को "आनंदक" के रूप में राज्य आनंद संस्थान की वेबसाइट www.anandsansthanmp.in पर पंजीयन कराने की सुविधा है। अब तक 44 हजार से अधिक स्वयंसेवक स्वेच्छा से आनंदक बने हैं। अल्प विराम अल्प विराम गतिविधि से शासकीय विभाग के अधिकारियों/कर्मचारियों के जीवन में सकारात्मक सोच का विकास किया जा रहा है। कहा जाता है कि आनंद की अनुभूति का हम पीछा नहीं कर सकते, आनंद तो स्वत: हमारे हृदय में ही रहता है। इस गतिविधि का रोमांच इस खोज में ही है कि अपने आपको आनन्द की कसौटी पर कसकर देखा जाये। अपने प्रत्येक कर्म को आनन्दपूर्ण बनाया जाये। शासकीय अधिकारियों/ कर्मचारियों को इसका अनुभव कराते हुए इस मार्ग पर सतत रूप से चलने के लिए उन्हें प्रेरित करने हेतु इस गतिविधि की 2 शुरूआत की गई है। अब तक इस गतिविधि में 166 तक इस गतिविधि में 166 आनंदम सहयोगियों को प्रशिचित किया जाकर 780 अल्पविराम कार्यक्रम किये जा चुके हैं।
आनन्दम्
"आनंदम" गतिविधि में उपयुक्त सार्वजनिक स्थलों पर एक स्थल चुनकर, न्यूनतम सुविधा के उपयोग के सामान को छोड़ने तथा उस सामान की जिसे जरूरत हो, वहाँ से नि:शुल्क तथा बिना किसी से पूछे ले जाने की, स्वतंत्रता होती है। सभी 51 जिलों में 172 निर्धारित स्थान पर यह गतिविधि संचालित हो रही है।
आनंद उत्सव
इसमें शासकीय तथा अशासकीय संस्थाओं के जरिये ऐसी गतिविधियों का संचालन किया जाता है जो प्रदेशवासियों को परिपूर्ण जीवन की कला सिखा सकेंगी, जिससे उनके जीवन में आनंद की अनुभूति हो सके। पिछले साल 14 से 21 जनवरी को प्रदेश के ग्रामीण क्षेत्रों में 7600 स्थान पर आनंद उत्सव मनाये गये। इस वर्ष भी 14 से 28 जनवरी के बीच ग्रामीण/नगरीय क्षेत्रों में आनंद उत्सव आयोजित हुए हैं।
आनंद कैलेण्डर
"आनंद कैलेण्डर" तैयार किया गया है। हिन्दी और अंग्रेजी भाषा में प्रकाशित इस कैलेण्डर का लोकार्पण श्री दलाई लामा ने 19 मार्च 2017 को किया। यह कैलेण्डर जीवन में सकारात्मक सोच को विकसित करते हुए आंतरिक प्रसन्नता और आनंद की अनूभूति प्राप्ति का रास्ता सुझाता है। कैलेण्डर में अप्रैल से दिसम्बर तक कृतज्ञता, खेल, अल्पविराम, मदद, सीखना, संबंध, स्वीकार्यता, लक्ष्य , जागरूकता जैसे विषयों को शामिल कर के अंतिम तीन माह में आनंद की इन सभी 9 धाराओं के संगम के लिए निरंतर अभ्यास का अनुरोध किया गया है।
आनंद शिविर
शासकीय और अशासकीय आनंदकों को परिपूर्ण जीवन जीने की विधा सिखाने तथा उनमें सकारात्मकता विकसित करने के लिए राज्य आनंद संस्थान द्वारा "आनंद शिविर" लगाये जा रहे हैं। इसके लिये वर्तमान में आर्ट ऑफ लिविंग -बैंगलुरू, एनिशिएटिव ऑफ चेंज-पूणे और ईशा फाउण्डेशन-कोयम्बटूर से एमओयू किया गया है। आनंद शिविरों में अब तक 135 शासकीय सेवक भाग ले चुके हैं।
आनंद रिसर्च फैलोशिप
राज्य आनंद संस्थान अकादमिक शैक्षणिक और अन्य संस्थाओं में "आनंद एवं खुशहाली" विषय पर शोध तथा अध्ययन को प्रोत्साहित करने के लिए आनंद अनुसंधान प्रोजेक्ट, आनंद फैलोशिप, आनंद शोध पुरस्कार और आनंद प्रोजेक्ट पुरस्कार प्रारंभ कर रहा है। प्रत्येक अनुसंधान प्रोजेक्ट के लिये अधिकतम रूपये 10 लाख की सहायता दी जायेगी। फैलोशिप के लिये चयनित व्यक्ति को सालाना 3 लाख रूपये तक की सहायता दी जायेगी। उच्च शैक्षणिक संस्थाओं में आनंद विषय पर शोध तथा प्रोजेक्ट कार्य को बढ़ावा देने के लिये पुरस्कार राशि और प्रमाण-पत्र देने की व्यवस्था की गई है।
आनंद क्लब
3 इस क्लब की परिकल्पना इस विचार पर आधारित है कि समाज में स्वयं सेवियों के समूह आनंदमयी जीवन जीने का कौशल पहले खुद सीखें, उसे अपने जीवन में उतारे और फिर उसका प्रसार अपने आस-पास के जीवन में करें। अब तक 266 आनंद क्लब्स ने कार्य शुरू कर दिया है।
हैप्पीनेस इंडेक्स
राज्य आनंद संस्थान ने आई.आई.टी. खड़गपुर के साथ आनंद के पैमानों की पहचान, लोगों को आनंदित करने की विधियों और उपकरणों के विकास के लिये अनुबंध किया है। हैप्पीनेस इंडेक्स की गणना के लिए आईआईटी खड़गपुर ने मध्यप्रदेश के दस जिलों के तीन-तीन सर्वेयर को प्रशिक्षण देकर प्राथमिक सर्वे शुरू कर दिया है।
ऑनलाईन वीडियो कोर्स
इस कोर्स का हिन्दी में अनुवाद और रूपांतरण का कार्य किया जा रहा है। इंडियन स्कूल आफ बिज़नेस हैदराबाद द्वारा संचालित ''A life of happiness and fulfilment'' वीडियो कोर्स के प्रदेश में भी संचालन की पहल की गई है। इस कोर्स में विविध क्षेत्र जैसे साईक्लोजी, न्यूरोसांइस तथा बिहेवियरल डिसिज़न थ्योरी के माध्यम से व्यवहारिक तथा जाँची- परखी विधियों से जीवन में खुशहाली और आनंद प्राप्त करने की विधियाँ बताई गई हैं।
सीएसआर फंड
अप्रवासी भारतीय उद्योगपति श्री एस.आर. रेखी ने कार्पोरेट-सोशल रेस्पान्सबिलिटी के अंर्तगत राज्य आनंद संस्थान को एक लाख डॉलर देने की सहमति दी है। श्री रेखी से राज्‍य आनंद संस्थान को प्रथम किश्त के रूप में 6 लाख रूपये का योगदान मिल चुका है। इस राशि से जबलपुर में एक हैप्पीनेस सेंटर खोला जायेगा।
आनंद सभा
स्कूल तथा कॉलेजों के विद्यार्थियों को सशक्त और परिपूर्ण जीवन कला सिखाने तथा आंतरिक क्षमता विकसित करने के लिए आनंद सभाएँ भी शुरू की गयी हैं। शैक्षणिक संस्थाओं को ऐसे मॉड्यूल उपलब्ध करवाये जा रहे हैं जिनसे विद्यार्थी ऐसी क्रियाओं में भाग लेंगे, जो उनके जीवन में संतुलन लाने में सहायक होंगी।


aaस्व-सहायता समूहों के जरिए महिला स्वावलम्बन की नींव रखता मध्यप्रदेश


16 December 2017

प्रदेश में महिला सशक्तिकरण की दिशा में राज्य सरकार ने मुख्यमंत्री शिवराजसिंह चौहान के नेतृत्व में व्यापक और प्रभावी पहल की है। मुख्यमंत्री श्री चौहान का मानना है कि आर्थिक स्वावलम्बन से ही महिला सशक्तिकरण का मार्ग प्रशस्त होता है। महिलाओं में उद्यमिता और कौशल के जो नैसर्गिक गुण होते हैं उससे महिलाएँ सहजता से आर्थिक स्वावलम्बन के लक्ष्य को प्राप्त कर लेती हैं। मुख्यमंत्री की इसी भावना के अनुरूप प्रदेश के 43 जिलों के 271 विकासखण्डों में मध्यप्रदेश दीनदयाल अंत्योदय योजना-राज्य ग्रामीण आजीविका मिशन पर अमल किया जा रहा है। शेष 42 विकासखण्डों में गैर-सघन रूप से जिला पंचायतों के जरिए मिशन पर अमल हो रहा है। मध्यप्रदेश राज्य महिला वित्त एवं विकास निगम द्वारा भ्री प्रदेश में "तेजस्विनी" ग्रामीण महिला सशक्तिकरण कार्यक्रम चलाया जा रहा है। वर्ष 2007 से प्रदेश के छ: जिलों डिंडौरी, मण्डला, बालाघाट, पन्ना, छतरपुर और टीकमगढ़ में आरंभ यह कार्यक्रम वर्ष 2018- 19 तक जारी रहेगा।
आजीविका मिशन की प्रमुख उपलब्धियाँ
मिशन के जरिए अब तक लगभग 23 लाख 28 हजार परिवारों को 2 लाख से ज्यादा स्व- सहायता समूह से जोड़ा जा चुका है। आज की स्थिति में करीब डेढ़ लाख से अधिक समूह सदस्य एक लाख से अधिक आय अर्जित कर रहे हैं। करीब 17 हजार ग्राम संगठन बनाये गये हैं, जिनमें एक लाख 18 हजार समूहों की सदस्यता है। साथ ही 346 संकुल-स्तरीय संगठन भी बनाये जा चुके हैं। विभिन्न जिलों में 31 सामुदायिक प्रशिक्षण केन्द्र संचालित हैं। स्व-सहायता समूहों की बुक-कीपिंग के लिये करीब 92 हजार बुक-कीपर्स प्रशिक्षित किये गये हैं। कम्युनिटी मोबलाइजेशन एवं कृषि गतिविधियों को बढ़ावा देने के उद्देश्य से लगभग 24 हजार समुदाय स्रोत व्यक्तियों का चिन्हांकन कर प्रशिक्षण दिया गया है। लगभग 6 लाख 27 हजार ग्रामीण बेरोजगार युवाओं को रोजगारोन्मुखी प्रशिक्षण, रोजगार मेला और आरसेटी के जरिए रोजगार के अवसर सुलभ कराये गये हैं। समूहों से जुड़े 35 हजार से ज्यादा हितग्राही मुख्यमंत्री आर्थिक कल्याण और मुख्यमंत्री स्व-रोजगार योजना से लाभान्वित हुए हैं। बैंकों से करीब रुपये 1911 करोड़ के बैंक ऋणों से 1,51,438 स्व-सहायता समूह लाभान्वित हुए हैं। समूहों का लेन-देन सरल करने की दृष्टि से 215 बैंक सखी एवं 374 बैंक बिजनेस करस्पॉन्डेंट प्रशिक्षित होकर कार्यशील हैं। प्रदेश के 24 जिलों में समुदाय आधारित बीमा सुरक्षा संस्थान गठित कर 81 हजार 647 सदस्य जोड़े जा चुके हैं। मिशन द्वारा लगभग 5,000 महिलाओं को कम लागत की कृषि एवं जैविक कृषि के संबंध में प्रशिक्षित किया गया है। आज यह महिलाएँ न सिर्फ प्रदेश, बल्कि देश के अन्य प्रांतों यथा हरियाणा, उत्तरप्रदेश में भी कृषि कार्य में ग्रामीणों को सशक्त कर रही हैं। मिशन की सबसे बड़ी उपलब्धि 14 लाख 48 हजार 940 परिवारों को आजीविका गतिविधियों से जोड़ना है। स्व-सहायता समूहों द्वारा उत्पादित सब्जियों एवं अन्य उत्पादों की बिक्री के लिये 442 आजीविका फ्रेश संचालित हैं। समूहों से जुड़े करीब डेढ़ लाख हितग्राहियों ने खरीफ सीजन में एसआरआई पद्धति से धान की फसल बोई, जिससे उत्पादन में लगभग दोगुना वृद्धि दर्ज हुई। मिशन के दायरे में करीब पौने आठ लाख आजीविका पोषण-वाटिका (किचन-गार्डन) तैयार की गई हैं। करीब 6 लाख हितग्राहियों ने जैविक खेती को अपनाने के उद्देश्य से बर्मी पिट और नाडेप बनाये हैं। समूहों के माध्यम से 3 लाख 90 हजार से ज्यादा किसान व्यावसायिक सब्जी उत्पादन और 89 हजार से ज्यादा परिवार दुग्ध उत्पादन से जुड़ गये हैं। कुल डेढ़ लाख परिवारों ने आजीविका गतिविधियों का संवर्धन किया है। आज की स्थिति में मिशन से जुड़े स्व-सहायता समूहों की करीब 12 हजार महिलाओं द्वारा परिसंघों के जरिये अथवा स्वतंत्र रूप से परिधान तैयार किये जा रहे हैं। वर्तमान में मिशन की 159 सेनेट्री नेपकिन इकाइयों से समूहों की 5,608 महिलाएँ जुड़ी हैं। सवा पाँच सौ अगरबत्ती उत्पादन केन्द्रों से 4,713 और साबुन निर्माण से 2,877 समूह सदस्य लाभान्वित हो रहे हैं। बीस जिलों के 65 विकासखण्डों में समूह सदस्यों द्वारा गुड़, मूंगफली, चिक्की आदि का निर्माण किया जा रहा है। हथकरघा कार्य से भी 1236 हितग्राही जुड़े हैं।
समूहों के वित्त पोषण की पहल
मिशन से जुड़े समूहों की संस्थागत क्षमताओं एवं वित्तीय प्रबंधन को मजबूत करने तथा सदस्यों की छोटी-मोटी आवश्यताओं की पूर्ति के लिये ग्रेडिंग के बाद प्रत्येक समूह को 10 से 15 हजार तक की राशि‍ रिवाल्विंग फण्ड से दी जाती है। समूह की गरीब सदस्यों की जरूरतों के लिये पूँजी की उपलब्धता सामुदायिक संगठन/सामुदायिक निवेश निधि से सुनिश्चित की जाती है। यह राशि उपलब्धता के आधार पर ग्राम संगठन के 50 प्रतिशत समूहों को संख्या के मान से दी जाती है। एक आपदा कोष भी संचालित है, जिसका उपयोग अति गरीब वर्गों के व्यक्तियों एवं परिवारों को आने वाली आपदाओं का सामना करने में मदद के लिये किया जाता है।
मिशन के कार्यों का सम्मान एवं सराहना
मिशन में गठित 3 सर्वश्रेष्ठ समूह एवं एक ग्राम संगठन को केन्द्रीय ग्रामीण विकास मंत्रालय द्वारा सम्मानित किया गया है। राष्ट्रीय आरसेटी दिवस पर भारत सरकार ने मिशन को स्व-रोजगार के क्षेत्र में उत्कृष्ट कार्य के लिये पुरस्कृत किया है। इसी वर्ष मिशन अन्य प्रदेशों की तुलना में आजीविका गतिविधियों के बेहतर संचालन के लिये राष्ट्रीय-स्तर पर पुरस्कृत हुआ है। मिशन के अंतर्गत 37 उत्पादक कम्पनियाँ कार्यरत हैं। इनमें 29 कृषि आधारित, 4 दुग्ध और 4 मुर्गी-पालन से संबंधित हैं। बाड़ी विकास कार्यक्रम में बड़वानी में राजपुर, श्योपुर में कराहल एवं डिण्डोरी जिले के समनापुर में पाँच-पाँच सौ हितग्राही के साथ बाड़ी विकसित की गई है। अब तक प्रदेश में कुल 4,500 बाड़ी विकसित की जा चुकी हैं। विलेज टु कन्ज्युमर ऑनलाइन शॉप, डिजिटल प्लेटफार्म पर भी समूह के उत्पाद उपलब्ध हैं।
महिला सशक्तिकरण की सार्थक पहल -तेजस्विनी
इस कार्यक्रम का उद्देश्य मजबूत और निरन्तरता वाले महिला स्व-सहायता समूहों तथा उनकी शीर्ष संस्थाओं का गठन व विकास करना, इन समूहों और संस्थाओं को सूक्ष्म वित्तीय सुविधाओं से जोड़ना और समूहों को बेहतर आजीविका के अवसर तलाशने तथा इनका उपयोग करने के लिये योग्य बनाना है। कार्यक्रम का एक और उद्देश्य समूहों को सामाजिक समानता, न्याय और विकास की गतिविधियों के लिये सशक्त करना भी है। जैसे शिक्षा और स्वास्थ्य का प्रबन्धन करना, कड़ी मजदूरी में कमी लाना, पंचायत में पूर्ण भागीदारी देना और महिलाओं के विरुद्ध हिंसा और अपराध को समाप्त करना। तेजस्विनी योजना के पाँच प्रमुख घटक हैं - सामुदायिक संस्था विकास, सूक्ष्म वित्त सेवाएँ, आजीविका व उद्यमिता और विकास, महिला सशक्तिकरण, सामाजिक न्याय एवं समानता और प्रोग्राम प्रबन्धन।
कार्यक्रम से दो लाख से अधिक महिलाएँ आर्थिक गतिविधियों से जुड़ीं
छ: जिलों में चलाये जा रहे इस कार्यक्रम में वर्ष 2016 -17 तक 16 हजार 261 महिला स्व-सहायता समूहों का गठन हो चुका है। इन समूहों से जुड़कर 2 लाख 05 हजार 644 महिलाएँ लाभ पा रही हैं। कार्यक्रम के तहत इन छ: जिलों में प्रत्येक ग्राम में चार से पाँच स्व-सहायता समूहों को मिलाकर एक ग्राम स्तरीय समितियाँ भी गठित की गई है। सभी छ: जिलों में वर्ष 2016-17 तक 2,682 गाँवों में कुल  2,629 ग्राम स्तरीय समितियाँ कार्यरत है। स्व-सहायता समूहों की शीर्ष संस्थाओं के रूप में साठ स्थानों पर साठ फेडरेशन (परिसंघ) भी गठित किये गये हैं। प्रत्येक फेडरेशन में तीन से साढ़े तीन हजार तक महिला सदस्य हैं। फेडरेशन स्वतंत्र रूप से स्व-सहायता समूहों के गठन, सुदृढ़ीकरण और ग्रेडिंग का कार्य कर रहे हैं। फेडरेशन के सदस्यों को इसके लिये विधिवत प्रशिक्षित किया जाता है।
संयुक्त राष्ट्र संघ में बजा कार्यक्रम के नवाचार का डंका
डिण्डोरी जिले में कोदो-कुटकी जैसे मोटे अनाज के स्व-सहायता समूह के माध्यम से विपणन के प्रभावी प्रबन्धन से जनजातीय आबादी वाले इलाकों में जीविकोपार्जन  का जो नवाचार तेजस्विनी योजना से आरम्भ हुआ था उसकी व्यापक चर्चा रही। महिला सशक्तिकरण पर संयुक्त राष्ट्र संघ मुख्यालय न्यूयार्क में जब वैश्विक समागम हुआ तो डिण्डोरी की तेजस्विनी स्व-सहायता समूह की श्रीमती रेखा पन्द्राम को न्यूयॉर्क आमंत्रित किया गया। संयुक्त राष्ट्र संघ की इस प्रस्तुति से तेजस्विनी स्व-सहायता समूह को अन्तर्राष्ट्रीय पहचान मिली।


aaअंगदीय स्थिरता के प्रतीक शिवराज


29 November 2017

मैंने कभी किसी की प्रशस्ति में कुछ नहीं लिखा लेकिन मध्य्प्रदेश के जिस मुख्यमंत्री से मै बारह साल में एक बार भी नहीं मिला उसके स्थायित्व को प्रणाम करना चाहता हूँ .मध्य्प्रदेश के मुख्यमंत्री श्री शिवराज सिंह प्रदेश के पहले ऐसे मुख्यमंत्री हैं जो इतना लंबा कार्यकाल निर्विघ्न रूप से पूरा कर पाए.अविभाजित मध्यप्रदेश में भी स्थायित्व की ऐसी कोई दूसरी मिसाल नजर नहीं आती . आज के गुणा-भाक के सियासी दौर में लगातार एक ही पद पर बारह साल तक बने रहना अपने आप में एक बड़ी उपलब्धि और हैरानी का विषय है. यूं तो देश में 25 साल तक एक ही पद पर बने रहने वाले मुख्यमंत्री भी हुए हैं किन्तु मध्यप्रदेश जैसे प्रदेश में ये एक अजूबा ही है .बड़े-बड़े पुरोधा यहां ऐसा कीर्तिमान स्थापित नहीं कर सके .इसके पीछे शिवराज का संगठन,सत्ता और जनता के बीच बनाया गया तालमेल ही हो सकता है . शिवराज सिंह से मै तब मिला था जब वे केवल सांसद थे ,ग्वालियर में भाजपा की राष्ट्रीय कार्यसमिति की बैठक में वे सपत्नीक आये थे . शिवराज सिंह मध्यप्रदेश की बागडोर सम्हालेंगे ये किसी ने शायद शिवराज सिंह ने भी नहीं सोचा था लेकिन वे अचानक प्रकट हुए और राजगद्दी के वारिस बन गए .मध्यप्रदेश में भाजपा को सत्ता रूढ़ करने वाली सुश्री उमाभारती को वनवास मिला और उनके उत्तराधिकारी बने बाबूलाल गौर को भी अल्पकाल में सत्ताच्युत होना पड़ा .इन दोनों के बाद विकल्प बनाकर मध्यप्रदेश भेजे गए शिवराज सिंह चौहान ने एक बार सत्ता की बागडोर सम्हाली तो फिर कभी नहीं छोड़ी . पिछले बारह वर्ष में शिवराज सिंह के हाथों से सत्ता की लगाम निकलते हुए दिखाई दी लेकिन वो सब भरम निकला ,शिवराज सिंह ने संगठन में भी हुए नेतृत्व परिवर्तन के बाद अपनी कुर्सी को बचने का उपक्रम सफलतापूर्वक कर दिखाया .शिवराज सिंह पहले साल से ही विवादों में रहे.विवादों और शिवराज सिंह का बड़ा ही घनिष्ठ संबंध रहा किन्तु इन सब पर पार पाते हुए शिवराज सिंह ने सत्ता की साधना को कभी नहीं छोड़ा. ये अपवाद है आप माने या न माने किन्तु मै शिवराज सिंह को स्थायित्व और मजबूती के मामले में आधुनिक अंगद मानता हूँ .उनकी कुर्सी के पाए हिलने के लिए बीते बारह साल में कोई चौबीस कोशिशें की गयीं लेकिन सभी को निराशा हाथ लगी शिवराज की कुर्सी हिलने का प्रयास करने वाले किसी के हाथ में छले पद गए तो किसी का चुर्रा चला गया लेकिन कोई कामयाब नहीं हुआ .शिवराज पर प्रतिपक्ष ने सामने से बारह साल में जितने प्रहार किया उससे किसी भी दूसरे नेता का सीना छलनी हो चुका होता लेकिन शिवराज अक्षुण्ण बने हुए हैं .शिवराज पर उनकी अपनी पार्टी के लोगों ने पीठ पीछे से जितने वार किया उन्हें भी शायद ही कोई दूसरा नेता झेल पाता,शिवराज ने न कभी आह भरी और न अपनी चोटों को सहलाया ,वे हर स्थित में सहज रहे,फिर चाहे किसानों पर गोली चली हो या कोई व्यापम घोटाला हो गया हो .वे डम्परों की चपेट में भी ए लेकिन साफ़ बच निकले अदालतें भी उनके पक्ष में खड़ी दिखाई दीं,जाहिर है की उनके खिलाफ विपक्ष के पास कोई सबूत नहीं है होता तो शिवराज भी आज सींखचों के पीछे होते क्योंकि उनके नाम से असंख्य घपले-घोटाले बाबस्ता हैं . मुख्यमंत्री शिवराज सिंह के बारह साल पूरे होने पर सरकार ने अख़बारों मेंउनकी उपलब्धियों की लम्बी-चौड़ी फेहरिस्त दी है इसलिए उनके बारे में एक भी शब्द जाया नहीं कर रहा ,मै तो उनकेव्यक्तित्व के उन पहलुओं को रेखांकित करने की कोशिश कर रहा हूँ जो बहुत कम पकड़ में आते हैं .शिवराज के या तो मुखर विरोधी हैं या फिर अंध प्रशंसक.मै दोनों ही श्रेणियों में नहीं आता इसलिए जो लिख रहा हूँ बिना हानि-लाभ की चिंता किये बिना लिख रहा हूँ .मुझे लगता है की शिवराज सिंह चौहान इस शताब्दी के पहले दौर के पहले 'शाक प्रूफ 'नेता हैं .उनके पास सिंह की चपलता है तो मगरमच्छ के आंसूं भी हैं ,खाल भी है ,वे वक ध्यानी भी हैं उनके पास काग चेष्टा भी है ,उनके चरित्र में चपलता भी है और गाम्भीर्य भी .वे शुष्क भी हैं और तरल भी .वे जटिल भी हैं और सहज भी . शिवराज सिंह के बारे में एक अलग धरना ये भी बन गयी है की वे मिस्टर बंटाधार के रूप में विख्यात हुए मध्य्प्रदेश के पूर्व मुख्यमंत्री दिग्विजय सिंह की तरह बदनाम हो चुके हैं और यदि उनके नेतृत्व में अगला विधानसभा चुनाव लड़ा गया तो भाजपा की बढ़िया बैठ जाएगी,लेकिन मै ऐसा नहीं मानता,मेरी मान्यता है की तमाम खामियों के बावजूद प्रदेश में यदि भाजपा सत्ता में लौटेगी तो केवल शिवराज के कारण ही,यहां कोई दूसरा 'फैक्टर'काम ही नहीं करेगा ,मोदी जी का चेहरा भी नहीं .शिवराज का अंगतत्व बरकरार रहे,वे सतत मामागिरी करते रहे इसके अलावा मै कुछ और नहीं कहना चाहता


aaमुख्यमंत्री पद की मिसाल हैं श्री शिवराज सिंह चौहान


28 November 2017

मुख्यमंत्री श्री शिवराज सिंह चौहान से मैं जब-जब मिला, एक बात हमेशा मेरा ध्यान आकर्षित करती थी। वह थी उनका कमजोर तबके और महिलाओं के उत्थान के लिए कुछ कर गुजरने की दृढ़ इच्छा-शक्ति। यह विचारधारा तब और पुष्ट हुई, जब मैंने श्रम, अल्पसंख्यक एवं पिछड़ा वर्ग कल्याण, पशुपालन, मछलीपालन, कुटीर एवं ग्रामोद्योग मंत्री का काम सम्हाला। मुख्यमंत्री इन विभागों की चर्चाओं और बैठकों में काफी संवेदनशील हो जाया करते थे। शायद यह पहली बार हुआ है कि किसी प्रदेश के मुख्यमंत्री में आज तीर्थ-दर्शन योजना के माध्यम से किसी बुजुर्ग को अपना बेटा दिखता है, युवाओं के लिए पढ़ाई से लेकर रोजगार तक की विभिन्न योजनाओं के कारण युवा वर्ग इन्हें अपना मामा मानते हैं। महिलाओं की सशक्तिकरण के लिए किये गये प्रयासों ने महिलाओं के ह्रदय में इन्हें भाई का मजबूत ओहदा दिया है। मुख्यमंत्री बनने के पहले भी श्री चौहान गरीब-बेसहारा कन्याओं का विवाह करवाते थे। सीमित संसाधनों के कारण उस समय उनकी हर गरीब कन्या का विवाह कराने की इच्छा हर बार सफल नहीं पाती थी। इस इच्छा की पूर्ति के लिये मुख्यमंत्री बनते ही उन्होंने लाड़ली लक्ष्मी योजना और मुख्यमंत्री कन्यादान योजना लागू की। मैंने जीवन में पहली बार देखा है कि बेटियों के बारे में सदियों से अमरबेल की तरह गहरी जड़ें जमाई कुरीतियाँ कैसे बदलती है। कन्या जन्म अब माँ-बाप के माथे पर चिंता की रेखाएँ नहीं खुशियाँ लेकर आता है। लाड़ली लक्ष्मी योजना और मुख्यमंत्री कन्यादान योजना इसका साक्षात प्रमाण हैं। आज जहाँ लाखों गरीब माता-पिता की कन्याओं के हाथ सरकार की सहायता से पीले हो गए हैं और वे अपना सुखी जीवन जी रही हैं, वहीं लगभग 26 लाख कन्याओं को लाड़ली लक्ष्मी योजना का भरपूर लाभ मिला है। इसलिये गरीब माँ-बाप मुख्यमंत्री को आशीर्वाद देते नहीं थकते हैं। महिलाओं पर अत्याचार और अपराध रोकने में मुख्यमंत्री ने न केवल पहल की है, बल्कि केबिनेट में 12 साल या उससे कम उम्र की लड़कियों से रेप अथवा गैंगरेप के आरोपी को फांसी की सजा का कानूनी प्रावधान तय करने का निर्णय लिया। यह देश में पहली बार हो रहा है। उम्मीद है जिस तरह से लाड़ली लक्ष्मी और मुख्यमंत्री कन्यादान निकाह/विवाह योजना का अनुसरण दूसरे राज्यों ने किया है, वैसे ही यह प्रावधान भी दूसरे राज्यों के लिये मिसाल बनेगा। महिलाओं को सरकारी नौकरियों में 33 प्रतिशत और स्थानीय निकायों एवं संविदा शाला शिक्षक पदों पर भी 50 प्रतिशत आरक्षण देकर मुख्यमंत्री ने महिलाओं को आर्थिक रूप से सशक्त बना दिया है। किसानों के हित में भी क्रांतिकारी निर्णय लिए गये हैं। किसानों के नुकसान की भरपाई करने वाली भावांतर योजना भी दूसरे राज्यों के लिए अध्ययन का विषय बन रही है। वर्ष 2003 में किसानों को 18 प्रतिशत ब्याज दर पर कृषि ऋण दिये जाते थे। मुख्यमंत्री श्री चौहान ने ब्याज दरों को लगातार घटाते हुए शून्य प्रतिशत कर दिया। सिंचाई रकबे में लाखों हेक्टेयर वृद्धि होने से सिंचाई रकबा बढ़ा और कृषि लाभ का धंधा बनी है। प्रदेश ने लगातार 5 कृषि कर्मण अवार्ड जीते। श्री शिवराज सिंह चौहान ने खेतिहर मजदूरों की कमजोर सामाजिक और आर्थिक अवस्था को सुधारने के लिए मुख्यमंत्री सुरक्षा योजना शुरू कर भूमिहीन खेतिहर मजदूरों को भी लाभान्वित किया है। गेहूँ, धान, प्याज के समर्थन मूल्य व बोनस घोषित हुए। किसानों को सस्ती और भरपूर बिजली दी जा रही है। अनुसूचित जाति-जनजाति के किसानों को विशेष लाभ दिए गये हैं। प्राकृतिक आपदा से हुए नुकसान की भरपाई के लिए प्रधानमंत्री फसल योजना लागू की गई है। किसानों की आय को दोगुना करने के लिए पशुपालन और मछलीपालन को भी प्रोत्साहित किया जा रहा है। मुख्यमंत्री युवा उद्यमी योजना, मुख्यमंत्री स्व-रोजगार योजना, मुख्यमंत्री आर्थिक कल्याण योजना, मुख्यमंत्री युवा इंजीनियर कांट्रेक्टर योजना आदि और युवाओं को कौशलयुक्त बनाने के लिए राज्य कौशल मिशन की सहायता से युवाओं को रोजगार देने के प्रयास जारी हैं। प्रदेश की आर्थिक उन्नति के लिए ग्लोबल इन्वेस्टर्स समिट के उत्साहजनक परिणाम मिले हैं। आम लोगों को लोक सेवाएँ मिलने में कोई कठिनाई नहीं हो, इसके लिए मुख्यमंत्री ने लोक सेवा गारंटी अधिनियम लागू किया है। आम जनता से जुड़े विभागों की 164 सेवाओं को इस अधिनियम में शामिल किया गया है। जन-शिकायतों के निवारण के लिए श्री चौहान ने सी.एम. हेल्पलाइन 161 के रूप में अभिनव पहल की है। यह कॉल-सेंटर रोज सुबह 7 से रात 11 बजे तक काम करता है। मैंने हमेशा देखा कि मुख्यमंत्री गरीबों की स्वास्थ्य सेवाओं के प्रति चिंतित रहते हैं। उनके दखल के कारण ही प्रदेश के शासकीय अस्पतालों में आज राज्य बीमारी सहायता योजना, मुख्यमंत्री बाल श्रवण योजना, बाल स्वास्थ्य योजना, नि:शुल्क डायलिसिस, कीमोथैरेपी की व्यवस्थाएँ सुनिश्चित हो पाई हैं। अब आर्थिक रूप से कमजोर वर्गों के लोग न केवल महंगा इलाज करवा पा रहे हैं, बल्कि बहुत बड़ी संख्या में लोगों को नि:शुल्क दवाइयाँ भी मिल रही हैं। आज गाँव-गाँव तक सड़कों की पुख्ता व्यवस्था है। इससे प्रदेश के सर्वांगीण विकास को वांछित गति मिली है। प्रदेश में गरीबों को एक रुपये किलो में गेहूँ, चावल और नमक मिल रहा है। होशंगाबाद जिले के गाँव बावड़िया की रहने वाली श्रीमती विद्या तंवर और गेंदाबाई कहती हैं कि पेट की चिंता न होने से हम अपना पैसा दूसरे कामों में खर्च करने लगे हैं। इससे हमको सुकून भी मिला है और जीवन में उम्मीदें भी बढ़ने लगी हैं। मुख्यमंत्री श्री चौहान की सबसे बड़ी विशेषता यह है कि वे 12 वर्षों तक मुख्यमंत्री रहने के बाद भी कभी एक प्रशासक के रूप में लोगों के बीच नहीं लाते। लोग आज भी उन्हें अपने परिवार का भाई, बेटा, मामा और अपने बीच का ही समझते हैं। इसीलिए समस्या होने पर उनसे गुहार करने में नहीं सकुचाते। श्री चौहान ने महिला, हम्माल, कामकाजी महिला, किसान, मछुआ को अपनेपन का एहसास कराया है। उन्होंने उस मिथक को तोड़ा है जो पहले एक मुख्यमंत्री और आम जनता के बीच हुआ करता था। मुख्यमंत्री का मध्यप्रदेश को देश का अग्रणी राज्य बनाने का सपना एक सार्थक मुकाम तय कर चुका है। इसकी जड़ में है गरीबों का उत्थान, महिलाओं का सशक्तिकरण और कमजोर तबकों का विकास। मुख्यमंत्री अपने लक्ष्य को एक दिन अवश्य हासिल करेंगे क्योंकि उनके ज़हन में हमेशा कमजोर वर्गों की तरक्की और विकास के लिए मंथन चलता रहता है। वे मानते हैं गरीब का उत्थान प्रदेश का उत्थान है और मुख्यमंत्री रहते हुए वे अपने इस सपने को बेहतर ढंग से सच कर सकते हैं।


बदलता मध्यप्रदेश : डॉ.एच.एल. चौधरी
Our Correspondent :29 November 2016
भारत का हृदय प्रदेश मध्यप्रदेश का तेजी से कायाकल्प हो रहा है। प्रदेश ने बीते ग्यारह वर्षों में विकास और जनकल्याण की नई ऊँचाइयाँ हासिल किया है। राज्य में हर क्षेत्र में अभूतपूर्व कार्य हुआ है। कई क्षेत्रों में राज्य देश में अगुवा रहा है। एक दशक पहले की बीमारू छवि से प्रदेश पूरी तरह बाहर आ गया है। अब तेजी से विकास करने वाले राज्यों की पहली कतार में शामिल हो गया है।
• पिछले वर्षों में कोई भी क्षेत्र प्रगति से अछूता नहीं रहा है। चाहे अधोसंरचना विकास हो या आम आदमी की बेहतरी के प्रयास हो। हर क्षेत्र में अद्भुत कार्य हुआ है। • प्रदेश में बिजली की उपलब्ध क्षमता 4673 मेगावाट से बढ़कर 17 हजार 169 मेगावाट हुई। • किसानों को कृषि कार्य के लिए 10 घंटे बिजली उपलब्ध। • प्रदेश में 5,812 फीडरों का सेपरेशन। • सिंचाई क्षमता साढ़े 7 लाख हेक्टर से बढ़कर 40 लाख हेक्टर हुई। • कृषि विकास दर गत चार वर्ष से 20 प्रतिशत से अधिक रही। • कृषि उत्पादन में 98 प्रतिशत वॄद्धि। वर्ष 2004-05 में कृषि उत्पादन दो करोड़ 14 लाख मीट्रिक टन था। वर्ष 2015-16 बढ़कर 4 करोड़ 23 लाख मीट्रिक टन हुआ। • खाद्यान्न उत्पादन में 142 प्रतिशत वृद्धि। यह 2004-05 में 1.43 करोड़ मीट्रिक टन था। वर्ष 2015-16 में हुआ 3.46 करोड़ मीट्रिक टन। • गेहू उत्पादन में देश में दूसरे स्थान पर। गेहूं का उत्पादन 12 वर्ष पहले 60 लाख मेट्रिक टन था। अब 185 लाख मीट्रिक टन गेहूं की उत्पादकता 18.21 क्विंटल प्रति हेक्टेयर से बढ़कर 31.31 क्विंटल प्रति हैक्टेयर हुई। • किसानों को कृषि कार्य के लिए शून्य प्रतिशत ब्याज दर पर अल्पावधि ऋण दिए जा रहे हैं। साथ ही मूलधन की राशि भी दस प्रतिशत कम वापस ली जा रही है। • वर्ष-2008 में पहली बार प्रदेश के सभी किसानों को 2,91,46,236 नि:शुल्क खसरा एवं बी-1 की प्रति उपलब्ध कराई गई। • प्रदेश की विकास दर गत सात वर्ष से 10 प्रतिशत से अधिक रही। • 11 वर्षों में 2 लाख 76 हजार से ज्यादा सूक्ष्म और लघु उद्योग स्थापित, जिनमें 6 लाख लोगों को रोजगार मिला। • स्वरोजगार योजनाओं एक लाख 27 हजार से ज्यादा हितग्राहियों को 559 करोड़ रूपये का अनुदान वितरीत किया गया। • लघु उद्योग इकाईयों को 816 करोड़ रूपये की राशि अनुदान के रूप में वितरित की गयी। • ग्यारह वर्षों में प्रति व्यक्ति आय 15 हजार 442 रूपये से बढ़कर 60 हजार रूपये हुई। • प्रदेश में रोड नेटवर्क एक लाख 60 हजार किलोमीटर का हो गया।
• प्रदेश में इंदिरा आवास के अंतर्गत 9 लाख 28 हजार 489 आवास, अंत्योदय आवास योजना में 458.55 एवं मुख्यमंत्री ग्रामीण आवास मिशन के तहत 4 लाख 72 हजार आवास निर्मित किये गये। • प्रदेश में 13 लाख आवासहीनों के लिये मकान बनाये जा रहे हैं। • राज्य में मातृ मृत्यु दर 2005-07 में 335 थी, जो 114 अंक गिरकर 222 हो गयी। देश में इस दौरान यह गिरावट सिर्फ 87 अंक रही। • शिशु मृत्यु दर 2003-04 में 82 थी, जो अब घटकर 53 हो गयी है। • संस्थागत प्रसव की संख्या 22 प्रतिशत से बढ़कर 86 प्रतिशत हुयी। • सरदार वल्लभ भाई पटेल योजना में सभी शासकीय चिकित्सा संस्थाओं में हर वर्ग के रोगियों को दवायें मुफ्त। 63 प्रकार की पैथोलॉजी जाँच की नि:शुल्क सुविधा। • प्रदेश में अब एक भी बसाहट पेयजल स्त्रोतविहीन नहीं। • प्रदेश में स्थापित हैण्डपम्पों की संख्या बढ़ाकर 5 लाख 22 हजार हुई। • नि:शुल्क एवं अनिवार्य बाल शिक्षा अधिकार अधिनियम में अब तक 8 लाख 58 हजार बच्चों को निजी स्कूलों में प्रवेश। • शासकीय विद्यालयों, पंजीकृत मदरसों एवं संस्कृत शालाओं में कक्षा 8 तक 80 लाख 95 हजार बच्चों को प्रतिवर्ष नि:शुल्क पाठ्यपुस्तकें। • शासकीय विश्वविद्यालयों में प्रथम वर्ष में प्रवेश लेने वाले विद्यार्थियों को स्मार्टफोन। • 2005-06 में गाँव की बेटी योजना लागू, 11 वर्षों में 2,18,506 छात्रायें लाभान्वित। • प्रदेश में विभिन्न पेंशन योजनाओं के माध्यम से 33 लाख 35 हजार 700 से अधिक गरीब, कमजोर, नि:शक्तजन और वृद्धजनों को सामाजिक सुरक्षा प्रदान की जा रही है। • गरीब परिवारों की विवाह योग्य कन्याओं, विधवाओं और परित्यक्तता महिलाओं के विवाह के लिए शासन द्वारा शुरू की गई मुख्यमंत्री कन्या विवाह योजना में 3 लाख 80 हजार 412 कन्याओं के विवाह सम्पन्न। • मुख्यमंत्री निकाह योजना में 9,589 कन्याओं के निकाह सम्पन्न। • योजना में प्रत्येक कन्या के विवाह अथवा निकाह के लिए 25 हजार रूपये की राशि प्रदान की जाती है। इसमें 10 हजार रूपये की राशि भविष्य में बेहतर उपयोग के लिए सावधि जमा के रूप में होती है। • नि:शक्त विवाह प्रोत्साहन योजना में 8 हजार 423 कन्याओं के विवाह सम्पन्न। • असंगठित क्षेत्र में खेतिहर मजदूरों को सामाजिक और आर्थिक सुरक्षा प्रदान करने के लिए मुख्यमंत्री मजदूर सुरक्षा योजना लागू की गई है। इस योजना में अभी तक 52 लाख 38 हजार 857 मजदूरों को लाभ मिल चुका है। • मुख्यमंत्री अन्नपूर्णा योजना के अंतर्गत बीपीएल और अन्त्योदय परिवारों के 5 करोड़ 43 लाख सदस्यों को खाद्यान्न सुरक्षा प्रदान की जा रही है। इसमें इन परिवारों को एक रूपये किलो की दर से गेहूँ, चावल और आयोडीनयुक्त नमक प्रदान किया जाता है। • वन‍ विभाग को छोड़कर सभी सरकारी नौकरियों में 33 प्रतिशत पद महिलाओं के लिए आरक्षित। • स्थानीय निकायों एवं संविदा शिक्षक पदों पर महिलाओं को 50 प्रतिशत आरक्षण।
• लाडली लक्ष्मी योजना में लगभग 24 लाख बेटियाँ लाभान्वित। • वर्ष 2005-06 में अनुसूचित जाति के स्कूली विद्यार्थियों के लिए 778 छात्रावास संचालित थे। विगत 11 वर्ष में 952 नये छात्रावास स्थापित किये गये, जिसके साथ ही इनकी संख्या बढ़कर 1730 हो गई है। • महाविद्यालयीन विद्यार्थियों के लिये विगत 11 वर्ष में 78 नये छात्रावास स्थापित किये गये। इसके साथ इनकी संख्या बढ़कर 189 हो गई है। • प्रदेश में आदिवासियों के विकास के लिए उनकी जनसंख्या के प्रतिशत से अधिक राशि आयोजना में प्रावधानित की जा रही है। पिछले 10 वर्ष में इस राशि में 10 गुना वृद्धि हुई है। वर्ष 2015-16 में 8,416 करोड़ 78 लाख रूपये स्वीकृत किये गये है। • प्रदेश में वन अधिकारों की मान्यता अधिनियम के तहत अनुसूचित जनजाति वर्ग के 2 लाख 37 हजार 544 हक प्रमाण-पत्र वितरित किये गये हैं। • सभी जिला मुख्यालयों पर पिछड़ा वर्ग विद्यार्थियों के 100 सीट वाले पोस्ट मेट्रिक बालक छात्रावास स्वीकृत। • सभी जिला मुख्यालयों पर इस वर्ग की बालिकाओं के लिए 50 सीट वाले कन्या छात्रावास स्वीकृत। • पिछड़ा वर्ग के छात्र-छात्राओं के लिए शहरों में पढ़ने के लिए आवास सुविधा और छात्रावास की सुविधा उपलब्ध है। प्रवेश पाने वाले छात्रों को 1000 रूपये और छात्राओं को 1040 रूपये की दर से शिष्यवृत्ति दी जाती है। अभी तक 24 हजार 176 विद्यार्थियों को 17 करोड़ 81 लाख रूपये से अधिक की शिष्यवृत्ति दी जा चुकी है। • मनरेगा के अंतर्गत अब तक 197 करोड़ मानव दिवस का रोजगार निर्मित हुआ है। कुल 26 लाख 40 हजार 524 रोजगारमूलक काम स्वीकृत हुए, जिनमें से 23 लाख 32 हजार 716 काम पूरे हो गये हैं। • गाँवों में अब तक 1 लाख 49 हजार 995 स्व-सहायता समूहों से 17 लाख 3 हजार ग्रामीण परिवारों को जोड़ा गया, जो व्यवसायिक गतिविधि से आजीविका कमा रहे हैं। • शहरों के विकास पर अगले तीन वर्ष में 75 हजार करोड़ रूपए खर्च किये जायेंगे। • प्रदेश के 378 नगरों में पेयजल योजनाएँ स्वीकृत। • आम जनता से जुड़े 23 विभागों की 164 सेवाओं को लोक सेवा प्रदाय गांरटी अधिनियम के दायरे में लाया गया है। वर्तमान में इनमें से 110 सेवाओं के आवेदन ऑनलाइन लिये जा रहे हैं। अभी तक 3 करोड़ 96 लाख से अधिक आवेदन ऑनलाइन प्राप्त हुए, जिनमें से 3 करोड़ 88 लाख का निराकरण किया जा चुका है


बाबा साहेब की 125वीं जयंती पर महू में लिखा जायेगा विकास का नया अध्याय
14 April 2016
मानवता के इतिहास में महू एक बार फिर अविस्मरणीय घटना का साक्षी बनेगा। आज से सवा सौ साल पहले इसी दिन मानवता के क्षितिज पर बाबा साहेब डॉ. भीमराव अम्बेडकर का अरूणोदय हुआ था। उसी विराट व्यक्तित्व के व्यापक ज्ञान से समृद्ध विकास की नई रोशनी का प्रस्फुटन 14 अप्रैल 2016 को "ग्रामोदय से भारत उदय अभियान" के शुभारंभ से होगा। महू की पावन धरती से प्रधानमंत्री श्री नरेन्द्र मोदी अभियान के रूप में विश्वास और विकास की मशाल को प्रज्जवलित कर भय, भ्रम और भेद के अंधकार के ठहरने की लेशमात्र गुजांईश को समाप्त कर समतावादी समाज निर्माण की राह को और मजबूती प्रदान सौभाग्य और गौरव की बात है कि बाबा साहेब डॉ. अम्बेडकर का अवतरण भारत के हृदय प्रदेश मध्यप्रदेश में हुआ, जिससे उनके ज्ञान और कर्म के प्रकाश का प्रसार पूरे देश में समान रूप से हुआ। उनका जन्म मध्यप्रदेश ही नहीं देश के लिये सबसे बड़ा वरदान है। यह एक सुखद संयोग है कि उनके जन्म-दिवस पर उनकी जन्म-स्थली महू से गाँवों का कायाकल्प करने वाले महत्वाकांक्षी अभियान ग्रामोदय से भारत उदय का शुभारंभ हो रहा है।
मानवता के सबसे बड़े हितैषी संविधान निर्माता डॉ. अम्बेडकर का सम्पूर्ण चिंतन और कर्म समाज के सबसे निचले पायदान पर खड़े लोगों के उत्थान के लिये ही रहा। उनका मानना था कि जब शरीर के सभी अंग स्वस्थ होंगे तभी शरीर स्वस्थ रहेगा। ठीक इसी प्रकार देश का जब हरेक व्यक्ति और गाँव समृद्ध होगा तभी देश सुदृढ़ होगा।
युगदृष्टा बाबा साहेब डॉ. अम्बेडकर को किसी जाति, धर्म या लिंग की सीमाओं में नहीं बाँधा जा सकता। उनका विराट व्यक्तित्व और कृतित्व प्रेरणा-पुंज है। उनका जीवन और कर्म मानव को मानव बनने-बनाने की चेतना और संवेदना जगाता है। उनके द्वारा रचा गया भारतीय संविधान जन-जन को अनुप्राणित करता है और पल्लवित होने का समान अवसर देता है। बाबा साहेब अम्बेडकर ने देश को कमजोर करने वाले कारकों को दूर करने का स्थायी समाधान देकर देश पर बड़ा उपकार किया। उन्होंने राष्ट्र के निर्माण और विकास तथा संस्कृति के संरक्षण में बुनियादी योगदान देने वाले लोगों की जिन्दगी में रोशनी बिखेरने की आधार-शिला रखकर राष्ट्र की एकता, अखण्डता और सुदृढ़ता को मजबूत आधार दिया है। जिसके लिये राष्ट्र सदैव उनका ऋणी रहेगा।
मुख्यमंत्री श्री शिवराज सिंह चौहान के नेतृत्व में राज्य सरकार ने सामाजिक समरसता के प्रबल पक्षधर डॉ. अम्बेडकर द्वारा दी गयी शिक्षा, सिद्धांत और उनके दिशा-दर्शन का अनुसरण किया है। राज्य में अनुसूचित जातियों के कल्याणकारी कार्यक्रमों के लिये उनकी आबादी के प्रतिशत के अनुपात में बजट प्रावधान किया गया है। दस वर्ष पहले प्रदेश का अनुसूचित जाति उपयोजना का बजट मात्र 1005.40 करोड़ रुपये था, जो बढ़कर अब 11709.18 करोड़ रुपये हो गया है।इस वर्ग को छात्र-छात्राओं के लिये प्रदेश में कक्षा एक से लेकर विदेश अध्ययन तक छात्रवृत्ति योजनाओं का प्रावधान किया गया है। प्रतिवर्ष 22 लाख विद्यार्थियों को 375 करोड़ रुपये की छात्रवृत्ति वितरित की जा रही है। राज्य सरकार ने प्रतिवर्ष 50 विद्यार्थियों को विदेश अध्ययन हेतु भेजने का निर्णय लिया है। अभी तक 39 विद्यार्थी विदेश अध्ययन छात्रवृत्ति का लाभ ले चुके हैं।प्रदेश सरकार द्वारा अनुसूचित जाति के विद्यार्थियों को आवासीय व्यवस्थाएँ उपलब्ध करवाने के लिये बड़ी संख्या में छात्रावास संचालित किये जा रहे हैं। विगत 10 वर्ष में 764 नये प्री-मेट्रिक छात्रावास 70 नये पोस्ट-मेट्रिक छात्रावास खोले गये हैं। आज प्रदेश में 1838 छात्रावास संचालित हो रहे हैं। जिनमें 90 हजार 262 विद्यार्थी आवासीय व्यवस्था का लाभ ले रहे हैं।स्व-रोजगार योजनाओं में 10 वर्ष में हर वर्ग के एक लाख 53 हजार से अधिक युवा उद्यमियों को लगभग 720 करोड़ की वित्तीय सहायता ऋण और अनुदान के रूप में उपलब्ध करवाई गई है। मुख्यमंत्री कौशल विकास योजना के तहत प्रशिक्षित कर युवाओं को प्रतिष्ठित संस्थाओं में रोजगार दिलाने की पहल की गई है। इसके अंतर्गत 41 हजार से अधिक युवकों को उनकी अभिरूचि के अनुसार विभिन्न विधाओं में प्रशिक्षण दिलाया गया है। इनमें 17 हजार से अधिक युवाओं को प्रतिष्ठित संस्थाओं में रोजगार भी उपलब्ध करवाया गया है।
राज्य सरकार ने प्रेरणा-पुंज संविधान-शिल्पी बाबा साहेब डॉ. अम्बेडकर के जन्म-स्थल महू में 12 करोड़ रुपये से अधिक लागत के स्मारक का निर्माण किया है। मुख्यमंत्री श्री चौहान ने प्रधानमंत्री श्री नरेन्द्र मोदी के संदेश "सबका साथ-सबका विकास" की प्रदेश में अनुकरणीय और प्रभावी पहल की है। इसी का अनुसरण वे "ग्रामोदय से भारत उदय अभियान" के क्रियान्वयन में भी कर रहे हैं। उनका प्रयास है कि मध्यप्रदेश एक आदर्श राज्य के रूप में पूरे देश में जाना जाये। प्रदेश की सामाजिक समरसता का स्पंदन पूरे देश में महसूस किया जाये।
मध्यप्रदेश में मुख्यमंत्री श्री चौहान ने ग्रामोदय से भारत उदय अभियान को गरीब कल्याण के प्रभावी प्रयास का माध्यम बनाने का प्रयत्न किया है। पूरे देश में जहाँ यह अभियान दस दिन चलेगा, वहीं मध्यप्रदेश में इसे वृहद देकर 14 अप्रैल से 31 मई तक यानी 45 दिन चलाया जायेगा। इसके क्रियान्वयन में प्रदेश के आला अधिकारियों को जहाँ जोड़ा है वहीं जन-प्रतिनिधियों की सक्रिय भागीदारी के प्रयास भी किये गये हैं। अभियान के माध्यम से गाँव और गाँववासियों की तकदीर एवं तस्वीर बदलने का उपक्रम होगा। अभियान के दौरान ग्राम सभाओं का आयोजन होगा, जिनमें गाँव के विकास का खाका खींचा जायेगा तथा गाँववासियों के कल्याण की योजनाओं को अमली जामा पहनाया जायेगा। साथ ही किसानों की आमदनी को दोगुना करने के उपायों का गाँववार रोडमेप तैयार किया जायेगा। प्रयास होगा कि कोई भी पात्र व्यक्ति योजनाओं के लाभ से वंचित नहीं रहें। अभियान के दौरान गाँव और गाँववासियों की विकास योजनाओं पर संसद की तर्ज पर ग्रामीणजन खुली बहस कर पंचायत राज को मजबूती प्रदान करेंगे। उनके सुझावों पर अमल का प्रयास भी होगा। इसके साथ ही महिला स्वास्थ्य शिविर और महिला स्व-सहायता सम्मेलन आयोजित किये जायेंगे। महिलाओं के नि:शुल्क उपचार की व्यवस्था की जायेगी। युवाओं के लिये खेल-कूद और सांस्कृतिक प्रतियोगिताएँ भी आयोजित की जायेंगी।
मुख्यमंत्री श्री चौहान द्वारा अभियान के क्रियान्वयन के गंभीर प्रयासों से स्पष्ट है कि मध्यप्रदेश देश में अभियान संचालन का आदर्श उदाहरण प्रस्तुत करेगा। राज्य के नवाचार लाड़ली लक्ष्मी योजना, लोक सेवा प्रदाय गारंटी अधिनियम, कृषि विकास दर और विकास दर में वृद्धि के समान इस अभियान में भी राज्य देश में अगुवा बनेगा। इस तरह बाबा साहेब की 125वीं सालगिरह पर महू में प्रदेश ही नहीं देश के समग्र विकास का नया अध्याय लिखा जायेगा।



आर्थिक उदारीकरणः उपभोक्ता, सामाजिक सरोकार की विदायी - भरतचन्द्र नायक....
14 January 2016
‘उत्तम खेती मध्यम वान, अधम चाकरी भीख निदान’ कहावत आज भी प्रचलित है। इसमें भारतीय संस्कृति का मर्म समाहित है। युग-युगों तक यह कहावत भारतीय जीवन के रचे-पचे यथार्थ को मुखर करती रही। तब घरों पर सामाजिक धर्म के रूप में शुभ-लाभ लिखने का चलन था। इसमें समाज का व्यापक हित परिलक्षित हुआ करता था। शुभ शब्द सर्वप्रथम लिखने का अभिप्राय समाज हित चिंतन के रूप में परिभाषित हुआ। समय ने पलटा खाया। आर्थिक उदारीकरण की आंधी में शुभ शब्द विलोपित हो गया और चिंतन का नहीं स्पर्धा का पर्याय बन चुका है। उद्योग, वाणिज्य में बनने वाली बैलेंस शीट में लाभ की प्राथमिकता सर्वोच्च हो गयी है। धर्म, समाज, सरोकार के साथ मानवीय चेहरा भी गुम हो गया है। बाजारवाद में उपभोक्तावाद की परिभाषा ही बदल गयी है। उपभोक्तावाद से उपभोक्ता जिसे हम ग्राहक मानते थे वह महज उपयोगवाद की कठपुतली बनकर रह जाने से जहां एक ओर वह बाजारवाद की जड़ता का षिकार हुआ, वहीं उपभोक्ता के नैतिक, कानूनी अधिकारों से या तो वे सुध है अथवा पंूजीवाद के उन्माद ने उसे भुला दिया है। चमकीले विज्ञापनों, फ्री के आकर्षक बोल ने उसे गूंगा बना दिया है। आवष्यकता है कि उपभोक्ता इस जड़ता को तोड़कर सजग हो और अपने संवैधानिक अधिकारों की मांग करें। बाजारवाद के शोषण से मुक्ति के लिए हुंकार भरे।
मकान, दुकान पर अंकित रहने वाला शुभांकर ‘‘षुभ’’ वास्तव में इस बात को लक्षित करता रहा है कि हमारा मकसद ‘जियो और जीने दो’ है। शुभ मानवता के कल्याण का प्रतीक रहा है, लेकिन वणिक उत्साह ने इसे धर्माडंबर मानकर खारिज करके निरे लाभ फायदे के रूप में ‘‘लाभ’’ पर ही सामाजिक हित को कुर्बान कर दिया है। जागरूकता और जानकारी के अभाव में उपभोक्ता शोषण का षिकार हो रहा है। उपभोक्ता को ठगने के नये-नये तरीके खोजे जा चुके है, जिनमें विज्ञापनों की कलाकारी, पैकिंग उम्दा, कन्टेंटस घटिया और मात्रा में कमी, बिक्री के दौरान अफरा-तफरी, उत्पाद की गुणवत्ता में कमी और मिलावट, कीमत में छुपे हुए तथ्यों का जोड़, एमआरपी में 50 से 200 प्रतिषत तक इन्फेट करने का हुनर, अनाधिकृत उत्पादों का बाजार में उतारा जाना, कमजोर उपभोक्ता सेवा, बिक्री और सेवा की शर्तों में कोई समानता नहीं रखना जैसी विकृतियां आम होने का सबब मुनाफा कमानें की दुष्प्रवृत्ति है। खाद्यान्न जिन्सों की कीमतों में उतार-चढ़ाव में बिचैलियों और सट्टेबाजों की निरंतर बढ़ती सक्रियता है। भारत की जीवन शैली में धर्म और संस्कारों का आदिकाल से प्रभाव रहा है। भारत की जीवन शैली को दुनिया में हिन्दू धर्म के रूप में पहचाना गया। इसकी चर्चा हमें प्राईमरी स्कूल में हृेन सांग जैसे पर्यटकों के उल्लेख के साथ मिलती है। विष्व पर्यटन पर जब हृेन सांग भारत आया और कंठ गीला करने के लिए उसने पानी मांगा तो उसे खालिष सुस्वाद से भरपूर दूध से भरा पात्र वेमोल पकड़ा दिया गया। हृेन सांग कुतुहल मंे पड़ गया और उसने भारत में अतिथि देवो भवः की भावना का खूब प्रचार करके पर्यटक इतिहास पुरूष बन गया। लेकिन हमनें उस इतिहास को ही आत्म विस्मृत कर दिया। आज यदि दूध भी खरीदा जाता है तो पैकिंग उम्दा होती है, लेकिन उपभोक्ता की सेहत के प्रति अधिक संवेदनषील होकर पानी मिला दूध दिया जाता है। इतना ही नहीं दूध में इतने विषैले रसायन मिला दिये जाते है कि स्वास्थ्य के लिए उपयोगी दूध भी रोग व्याधि का कारण बन जाता है। इसको परखने, अपमिश्रण के लिए दंड देने की कानून में पूरी व्यवस्था है। लेकिन सारी व्यवस्था या तो चांदी के टुकड़ों की गुलाम हो चुकी है अथवा राजनैतिक दबाव हावी है। राजनीति जनता की सेवा का माध्यम कहा जाता है। लेकिन अब वह भी अपने मकसद को पूरी करती है यह बात विवाद के घेरे में आ चुकी है। राजनीति में लोकहित रहे तो बात बनें। लेकिन आज सकारात्मकता कम होती जा रही है, इससे राजनीति में नकारात्मकता के दर्षन होते है। राजनेता सत्तासीन दल को कोसते है। आलोचना तक उनका कत्र्तव्य रह गया है। दाम बढ़े, महंगाई गगनचुंबी हो इससे राजनेताओं की सेहत बनती है। क्योंकि ऐसा होने से सत्ता दल अलोकप्रिय हो जाता है। विपक्ष को मौका मिलता है और वह जनता की सहानुभूति बटोर कर सत्ता की देहलीज में प्रवेष कर फिर मंहगाई के चक्र के प्रति लापरवाह हो जाता है। नतीजा यह होता है कि जनता पुनः गुनहगार पार्टी को मौके देने के बारें में सोचने लगती है। राजनीति और मंहगाई चोली-दामन की साथी बन चुकी है। कानून अपना काम करता है, लेकिन इसे हाथी के दांत ही कहा जा सकता है। इस चक्र को तोड़ना होगा। मानवीय संवेदना की जो षिक्षा-दीक्षा अकादमिक स्तर पर दी जाती है उसका लोक षिक्षण किये जाने की आवष्यकता है। तभी समाज में अनुचित बिचैलियो, वायदा बाजार के खिलाडि़यों की हरकतों पर अंकुष लगाये बिना यह चक्र टूटने वाला नहीं है। विज्ञान ने मानवीय संवेदना का जिस तरह क्षरण किया है, आर्थिक उदारीकरण ने समाज के रिष्तों, मानवीय सरोकारों को गौण बना दिया है। वैष्विक परिवेष जिस अर्थवाद के मोहपाष मंे जकड़ा है, भारतीय समाज ने भी अर्थ सर्वोपरि का तत्व आत्मसात कर लोकहित को भगवान भरोसे छोड़ दिया है। इस विवष्ता ने अपेक्षा की है कि देष के उपभोक्ता मौन का परित्याग कर उपभोक्तावाद, उपभोक्ता के अधिकार के बारें में सजग और जागरूक बनें। उपभोक्ता अपना संकोच और मौन तोड़कर मुखर हो। बाजारवाद के उन्मादी शोषण के विरूद्ध शंखनाद करें। उपभोक्ता के उपयोग में आने वाली वस्तु और सेवा का जब हम चयन करते है तो हमें यह अधिकार भी मिल जाता है कि उसकी प्रामाणिकता से संतुष्ट रहें। साबुन की टिकिया या डिटेरजेंट जहां वस्तु है वहीं टेलीफोन सेवा, वाहन की खरीद, सेवा में सुधार सेवा के रूप में कानून में वर्णित है और इसकी गुणवत्ता संदिग्ध होने पर उपभोक्ता क्षतिपूर्ति का जायज अधिकारी होता है। क्योंकि इसके लिए भुगतान करते है और बिल के रूप में केष मेमो या रसीद हासिल करते है। कहीं-कहीं उपभोक्ता को गारंटी, वारंटी भी प्रदान की जाती है, जो धोखे के रूप में उपभोक्ता भुगतता है। क्योंकि उपभोक्ता, उपभोक्तावाद में मिले अधिकारों के उपयोग में संकोच करता है। षिकायत करनें की झंझट नहीं पालना चाहता। यदि वैष्विक परिवेष में लाभार्जन को प्रमुखता मिली है तो उपभोक्ता को भी अपने अनुकूल परिवेष बनाना होगा।

उपभोक्ता सरंक्षण के लिए संवैधानिक उपाय

कानून के प्रति जागरूकता लाने के लिए विधिक साक्षरता पर जोर दिया जाना चाहिए आज की आवष्यकता है। उपभोक्ता के हित में उपभोक्ता सरंक्षण कानून-1986 कुछ अधिकार सुनिष्चित करता है, लेकिन घर बैठे नहीं। उपभोक्ता को जिला फोरम, राज्य आयोग, राष्ट्रीय आयोग में गुहार लगाना पड़ेगी। उत्पाद, सेवा के साथ ही बीमा, बैंकिंग, परिवहन सेवा, होटल, लाॅज, टेलीफोन, बिजली, आवास, मनोरंजन, आमोद-प्रमोद के साधनों, सेवाओं में भी उपभोक्ता को अधिकार हासिल है। इस कानून में यह भी प्रावधान है कि राज्य और केन्द्र स्तर पर उपभोक्ता सरंक्षण परामर्षदात्री समितियां गठित हों। उपभोक्ता के विवादों के निराकरण के लिए जिला फोरम, राज्य आयोग, केन्द्रीय आयोग को अर्द्ध न्यायिक प्रक्रिया अपनाने के अधिकार है। लेकिन लगता यह है कि इस अधिनियम की उपभोक्ता दिवस पर चर्चा करके हम संतुष्ट हो जाते है। सब चलता है कि तदर्थवादी प्रवृत्ति हममे इस कदर हावी है कि उपभोक्ता मासूमियत के साथ शोषित होते जाने के लिए अभिशप्त है।
उपभोक्तावाद को जनआंदोलन बनानें के लिए उपभोक्ता को भी कुछ कत्र्तव्यों का पालन करना सीखना होगा। उपभोक्ता को वस्तु और सेवा प्राप्त करनें के साथ लेन-देन का प्रमाण पत्र, केष मेमो हासिल करना चाहिए। जहां वस्तु, सेवा की गारंटी है, वहां उसका अनुचित उपयोग नहीं करना चाहिए। दावा आपत्ति पेष करते समय हमें वस्तुगत रहनें की आवष्यकता हैं अतिरंजना करने पर हास्य का पात्र बनना होगां उपभोक्तावाद की सफलता उपभोक्ताओं से जिस सजगता की अपेक्षा करती है उस पर खरा उतरना होगा। क्योंकि बाजारवाद जिस तरह शक्तिषाली है उपभोक्ता उस मामले में अखाड़े का कमजोर पहलवान है। इसलिए उपभोक्तावाद आंदोलन को संगठित करना समय की आवष्यकता है।

परिश्रम की पराकाष्ठा के जीवंत स्वरूप
Our Correspondent :27 November 2015
लोकहित के लिए परिश्रम की पराकाष्ठा तक जाने का मूल मंत्र हमारे मुख्यमंत्री श्री शिवराज सिंह चौहान के व्यक्तित्व और कृतित्व का सारतत्व है।
इन 10 वर्षों में हम सबने इसी मूलमंत्र को फलीभूत भी होते हुए देखा है और स्वयं को ऊर्जान्वित होते हुए भी। सही अर्थों में पूछें तो ममध्यप्रदेश आज प्रगति के जिस-मुकाम तक पहुंचा है उसके पीछे संकल्पों को पूरा करने के लिए परिश्रम की पराकाष्ठा असंभव व मुश्किल से लगने वाले लक्ष्यों को तय करना और फिर उस चुनौती को पूरा करने के लिए पूरी ताकत लगा देना उनके स्वभाव में है। प्रदेश में 24 घंटे निर्बाध बिजली उपलब्ध कराने का मिशन कुछ ऐसा ही था। मुख्यमंत्री जी ने तय किया कि हमें पूरे प्रदेश में 24 घन्टे निर्बाध बिजली उपलब्ध कराकर, अंधेरे के कलंक से मुक्ति पाना है। इसके लिए अटल ज्योति योजना तैयार की गई। योजना के हर पहलुओं पर गंभीरता से विचार मंथन हुआ। बिजली की जरूरत, उसकी आपूर्ति पूरे सिस्टम का संचालन-संधारण और उसकी सतत् निगरानी की त्रुटिहीन प्रणाली तैयार की गई। इसके बाद पूरी टीम जुट गई मिशन को पूरा करने में। कमान खुद मुख्यमंत्री जी ने संभाली। अटल ज्योति योजना को सर्वोच्च वरीयता पर रखते हुए वे खुद एक-एक जिले गए और योजना का शुभारंभ किया। प्रदेशवासियों ने भाजपा सरकार के पूर्व का समयकाल देखा है। घुप्प-अंधेरे में जीने के अभिशाप को भोगा है। छात्रों की एक समूची पीढ़ी आज भी उन दिनों को कष्ट के साथ याद करती है। किसान भाइयों को आज भी वे दिन याद हैं जब उनकी फसलें बिजली का इन्तजार करते-करते मुरझा जाती थीं। छोटे उद्योग धंधे से लेकर बड़े कारखाने तक उन दिनों बिजली के संकट की मार से ग्रस्त थे। बिजली हमारे जीवन का अनिवार्य हिस्सा बन चुकी है। वह विकास की हर धडक़न के साथ जुड़ी है। बिजली का कृषि-उद्योग, सामान्य जन-जीवन के साथ इतना गहरा रिश्ता बन चुका है कि अब इसके बिना एक कदम भी आगे बढऩे के बारे में सोचा ही नहीं जा सकता।
मुख्यमंत्री जी ने जब अटल ज्योति योजना का सबक हमारे सामने रखा और संकल्प दिलाया कि इस मिशन को प्राण-पण से पूरा करना है और निर्धारित अवधि के भीतर, तो आलोचकों ने आसमान सिर पर उठा लिया। वक्तव्य आने लगे कि शिवराज जी की सरकार दिन में सपने देखती है। तमाम तरह के कुतर्क दिए गए कि ये कैसे संभव है। इन स्थितियों के बीच मुख्यमंत्री जी ने हमेशा संबल दिया। स्वामी विवेकानंदजी के मूलमंत्र का स्मरण कराते हुए, उठो-जागो-लक्ष्य प्राप्त करो। आलोचनाओं की परवाह किए बगैर हमारी टीम जुटी और अंतत: प्रदेश को अंधेरे से मुक्त करके ही चैन की सांस ली। आज मध्यप्रदेश, गुजरात के बाद दूसरा ऐसा राज्य है जो बिजली को लेकर आत्मनिर्भर है। जल्दी ही हम पॉवर सरप्लस स्टेट बनने जा रहे हैं। श्री शिवराज सिंह जी की यही विशेषता है कि वे सपने देखते हैं- दिखाते हैं- उसे पूरा करने - पूरा करवाने का माद्दा रखते हैं। लक्ष्य पर उनकी नजर वैसे ही रहती है जैसे चिडिय़ा की आँख पर धनुर्धर अर्जुन की थी। इन 10 वर्षों में लगभग हर क्षेत्र में विकास की क्रांति आयी है। बिजली के क्षेत्र में देखें तो 2004 में इसकी उपलब्धता महज 6 हजार मेगावाट थी अब हम 13 से 14 हजार मेगावाट की उपलब्धता की स्थिति में है। इस बीच बिजली उपभोक्ताओं की संख्या लगभग दो गुनी बढ़ते हुए 65 लाख से 1 करोड़ 10 लाख तक पहुंच गई। मध्यप्रदेश सोलर और विन्ड एनर्जी जैसे वैकल्पिक स्त्रोतों की ओर तेजी से बढ़ रहा है। नीमच में एशिया के सबसे बड़े सोलर प्लांट ने उत्पादन शुरु कर दिया है। रीवा में गुढ़ के समीप विश्व का सबसे बड़ा सोलर प्लांट लगने की नवीन और नवकरणीय ऊर्जा के क्षेत्र में मध्यप्रदेश को देश का सिरमौर बनाने का सबक मुख्यमंत्री जी का ही है। योजना की तैयारी और मैदानी स्तर पर प्रयास शुरू है। मुख्यमंत्री जी परिकल्पना है कि पहले प्रदेश के महानगरों में सौर ऊर्जा के उत्पादन का नवाचार शुरू हो फिर पूरे प्रदेश में और एक दिन ऐसा आए कि हम बिजली की खपत का हिस्सा नवकरणीय ऊर्जा से प्राप्त करें और अन्तत: जर्मनी के शहरों की भांति हमारे शहरों के प्रत्येक घर पावर हाउस में बदल जाएं। घरों में न सिर्फ जरूरत की ऊर्जा का उत्पादन हो अपितु उससे आमदनी भी हों। इसके लिए नेट मीटरिंग प्रणाली तैयार की जा रही है।
बेरोजगार युवाओं के लिए संभावनाओं का द्वार ऊर्जा के क्षेत्र में भी खुले यही मुख्यमंत्री जी की प्ररेणा मुख्यमंत्री श्री शिवराज सिंह जी के नेतृत्च में मैंने पाया कि कोई सपना इतना बड़ा नहीं होता कि उसे पूरा न किया जा सके। वे सकारात्मक ऊर्जा से भरपूर हैं। इतने वर्षों से उनके साथ व सानिध्य में रहते हुए उनमें नकारात्मकता को कहीं दूर-दूर तक नहीं देखा वे सकारात्मक सोच व ऊर्जा से भरपूर दिखाई देते हैं। राजनीति के बहुप्रचारित चलन गुणा-भाग, कांट-छांट से दूर उन्हें सिर्फ जोड़ते हुए ही देखा, महसूस किया। आलोचना और निन्दा पर प्रतिक्रिया करने की बजाय उसे जज्ब करने और फिर दूने आवेग के साथ काम पर जुट जाने की विशेषता उनमें देखी। मध्यप्रदेश के प्रवासों में प्रधानमंत्री सम्मानीय श्री नरेन्द्र मोदीजी भाषण की शुरुआत ही श्री शिवराज जी के व्यक्तित्व कृतित्व की प्रशंसा के साथ करते हैं। वे अन्य प्रदेशों के कार्यक्रमों में उदाहरण देते हैं, श्री शिवराज जी टीम ने किस तरह एक राज्य को बीमारी से निकालकर स्वस्थ्य बना दिया। शीर्ष उद्योगपतियों ने हमारे मुख्यमंत्री व उसके सुशासन पर जैसा विश्वास व्यक्त किया उसका परिणाम 6.75 लाख करोड़ रुपए के निवेश के संकल्प के साथ सामने आया। कृषि के क्षेत्र में 24 प्रतिशत विकास दर के साथ मध्यप्रदेश देश में सर्वोपरि है ही अब शीघ्र ही औद्योगिक विकास में भी यही आंकड़ा छुएंगे।
चरैवेति-चरैवेति निरन्तर चलते रहो, चलते रहो, पण्डित दीनदयाल उपाध्याय जी के मूलमंत्र को वास्तविकता के धरातल पर यदि किसी ने उतारा तो वे श्री शिवराज सिंह जी हैं। उनकी दिनचर्या और कार्य संस्कृति में आराम को कोई जगह नहीं। यही हमें प्रेरणा देती है। यहीं नई पीढ़ी के कार्यकर्ताओं के लिए प्रेरक भी है। मन की स्वच्छता और हृदय की शुचिता के साथ लिए जाने वाले कोई संकल्प विफल नहीं होते, हमारे मुख्यमंत्री जी उसके उदाहरण हैं।


5 मार्च 2015 जन्म दिवस पर विशेषmetromirror
Our Correspondent :07 March 2015
मुख्यमंत्री श्री शिवराज सिंह चौहान की राजनैतिक यात्रा को जनता के लिये जनता के नेता बने कहना सर्वथा समीचीन होगा। वे राजनीति के ऐसे दैदीप्यमान नक्षत्र है जिसने भारतीय राजनीति और राज व्यवस्था में क्रांतिकारी परिवर्तन के कारनामे किये हैं। उनका व्यक्तित्व भारतीय संस्कृति का दर्पण है। सादा जीवन उच्च-विचार का प्रतिदर्श है। आचार-व्यवहार में विनयशील, मृदुभाषी इस आम आदमी का कृतित्व असाधारण रूप से विशाल और व्यापक है। जहाँ एक ओर उनका दिल सवा सात करोड़ जनता के लोक-कल्याण के लिये धड़कता है वहीं सवा सात करोड़ दिलों की धड़कन में भी उनका नाम रचा-बसा है। वे ऐसे जननेता हैं जिसने आम को खास आदमी बना दिया है। वे स्पष्ट तौर पर इसकी न केवल उद्घोषणा करते हैं बल्कि कार्य-व्यवहार में स्पष्ट रूप से दर्शित भी करवाते हैं। उनकी सरकार गरीबों की सरकार है। धन बल, शक्ति बल, प्रभुत्व संपन्नों को खुली चुनौती देने वाले इस जननेता ने आम आदमी को इतना खास बना दिया है कि गरीब बीमार आदमी अपनी कोई भी परेशानी सहजता से मुख्यमंत्री को बतला सकता है। उनका सृजनात्मक मस्तिष्क जन-कल्याण के लिये है, तो दिल पीड़ित मानवता की सेवा के लिये धड़कता है।

जनता द्वारा बना - जननेता

श्री चौहान जनता के द्वारा बनाये गये जननेता हैं। बुदनी के ग्रामीण परिवेश में पले-बढ़े शिवराज की नेतृत्व क्षमता को पहचानने का श्रेय भी यहाँ की जनता को जाता है। जिसने शोषित के दर्द को समझने वाले उनके दिल और अन्याय के खिलाफ खड़े होने वाले मस्तिष्क की शक्ति और क्षमता को बखूबी पहचाना, मात्र दस-बारह वर्ष की उम्र के छोटे से बालक के नेतृत्व में उनसे बड़ी उम्र के मजदूरों का एकजुट होना उनकी नेतृत्व क्षमता को जनता का पहला समर्थन था। यह नि:स्वार्थ जनसेवा का गुण और नेतृत्व की उनकी क्षमता ही थी जिसे बिना किसी वंशानुगत राजनैतिक आधार और आर्थिक शक्ति वाले युवा को जनता ने निरंतर प्रोत्साहित और प्रेरित किया। उनके जनसेवी व्यक्तित्व की महक कस्तूरी के समान तेजी से फैली। उनके नेतृत्व का दायरा निरंतर बढ़ता गया। वर्ष 1990 में वे बुदनी विधानसभा क्षेत्र के विधायक और 1991 में विदिशा संसदीय क्षेत्र से सांसद भी बन गये। जननेता की नेतृत्व क्षमता को भारतीय जनता पार्टी ने भी निखारने के भरपूर अवसर दिये। वर्ष 1988 से 1991 तक वे युवा मोर्चे के प्रदेश अध्यक्ष के रूप में वर्ष 2002 से 2003 तक भारतीय जनता युवा मोर्चा के राष्ट्रीय अध्यक्ष के रूप में और वर्ष 2005 में पार्टी के प्रदेश अध्यक्ष के मिले संगठनात्मक दायित्वों ने जननेता के रूप में उनको ढालने का कार्य किया।
उनके व्यक्तिव का सबसे मजबूत पहलू जन-भावनाओं को समझने की अपार क्षमता में है। सार्वजनिक जीवन के विभिन्न अवसरों और उपक्रमों के विभिन्न चरणों में चाहे वह कार्यकर्ता के रूप में हो, पार्टी के संगठक की भूमिका हो अथवा राज्य के मुखिया की जिम्मेदारी, श्री चौहान हर जगह जनता की आवाज ही बने। नौ वर्ष से अधिक के मुख्यमंत्रित्व कार्यकाल में वे जन-आकांक्षाओं को नई बुलंदियों पर पहुँचाने का कार्य समर्पित भाव से निरंतर कर रहे हैं। वर्ष 2005 के अंत में मिली मुख्यमंत्री की जिम्मेदारी जन-आकांक्षाओं को पूरा करने और अंत्योदय की संकल्पना को साकार करने का ही उपक्रम है। आमजन के हाव-भाव को पढ़ने और उनकी आँखों में झाँकने की अद्भुत क्षमता उनमें है। श्रोताओं के दिल में सीधे उतर कर दिल से बात करने की उनकी अनूठी शैली श्रोताओं के दिलों-दिमाग पर छा जाती है। फिर चाहे श्रोता ठेठ ग्रामीण अंचल के हों, न्यूयार्क सिटी के अप्रवासी भारतीय हो, अमेरिकी राजनयिक अथवा संयुक्त राष्ट्र संघ के अंतर्राष्ट्रीय नीति निर्माता, सभी के समक्ष वे प्रभावी तरीके से भारतीय जन-भावनाओं को अभिव्यक्त करते हैं। वे जनवाणी के मुखर वक्ता है।

जनता के लिये बना - जननेता

metromirror श्री चौहान जनता के लिये बने जननेता हैं। उनकी समस्याओं के समाधान के लिये निरंतर चिंतन और मनन करते हैं। वे बच्चे, बूढ़े, जवान, अमीर, गरीब, किसान, मजदूर, स्त्री-पुरूष सभी के दिलों में बसे हैं। सब उनके दिलों में बसे हैं। यह उनकी सर्वमान्यता ही है कि वे फाइव स्टार अभिजात्य संस्कृति को भी अपनी बात समझा लेते हैं वहीं गरीब झुग्गीवासी सर्वहारा वर्ग को भी आश्वस्त कर लेते हैं। मंच चाहे धनिकों का हो अथवा गरीबों का हो श्री चौहान बेबाकी से अपनी बात कहते हैं। वे साफ तौर से कहते हैं कि अमीर तो सरकार के साथ एडजस्ट हो जाते हैं या कर लेते हैं यह गरीब ही है जिसको सरकार की जरूरत है। वह आगे कहते हैं कि प्राकृतिक संसाधन सबके लिये हैं कुछ इसका उपयोग कर पाते हैं, कुछ नहीं करते हैं। इसलिये यह सरकार का दायित्व है कि वह उपयोग करने वाले से कराधान के माध्यम से राजस्व अर्जित करे। अर्जित राजस्व का उपयोग गरीब जरूरतमंद की सहायता के कार्यों में करें।
श्री चौहान समन्वयकारी जननेता है। उनकी वाणी, व्यवहार में समाज का हर वर्ग और समुदाय अपनी प्रतिछाया देखता है। वे बच्चों के बीच उत्साही स्वप्नदृष्टा, प्रेरक और स्नेहिल पालक हैं। प्रचार-प्रसार में संकोची श्री चौहान बच्चों के बीच जाने और उनके साथ जमीन पर भी बैठकर बतियाने और फोटो खिंचाने के लिये सदैव तैयार रहते हैं। छोटे से छोटा प्रसंग हो अथवा बड़े से बड़ा अंतर्राष्ट्रीय मंच श्री चौहान बच्चों के साथ उनके जुड़ाव को उल्लेखित करते हैं। माँ से दोगुना प्यार करने वाले 'मामा' इस जननायक की पहचान बन गई है। बच्चों, युवाओं की आशाओं, आकांक्षाओं को समझने वाला तथा बुर्जुगों के लिये आध्यात्मिक सुख और सेवा में ही सर्वस्व देखने वाले श्रवण कुमार का व्यक्तिव उनमें समाहित है। महिलाओं के लिये उनका व्यक्तित्व ऐसे भाई और बेटे का है जो उनकी आँख में आँसू नहीं आने पाये इसके लिये अपनी पूरी शक्ति और संकल्प के साथ सब कुछ न्यौछावर करने को तैयार है। युवाओं के मध्य जिद, जुनून और जज्बे से भरा उनका व्यक्तित्व ऐसे व्यक्ति का है जिसकी डिक्शनरी में असंभव का शब्द है ही नहीं। वह बड़ी से बड़ी चुनौती को आगे बढ़कर लेने को तैयार रहता है। ‍फिर वह राजनीति का मोर्चा हो अथवा विकास का मंच। प्रदेश के युवाओं को रोजगार मांगने वाला नहीं रोजगार देने वाला बनाने का संकल्प युवाओं की आकांक्षाओं की प्रतिध्वनि ही है।
जननायक चौहान खिलाड़ियों के बीच छूना है आकाश की जिद् के लिये ऐड़ी-चोटी का दम लगाने वाले व्यक्ति हैं। खिलाड़ियों को खेल के अलावा सारी चिंताएँ छोड़ने की सलाह, उनकी जिम्मेदारियों को अपने ऊपर लेने का आश्वासन खिलाड़ियों में नई ऊर्जा भर देता है। वे समाज के हर वर्ग, हर समुदाय की आवाज हैं। किसानों के बीच वह किसान की आवाज है। वे साफ तौर पर कहते हैं कि किसानों के खेत तक पानी पहुँचा दो बाकी काम वह स्वयं कर लेगा। मजदूर की मजदूरी की माँग और सामाजिक सुरक्षा की जरूरत का अहसास उन्हें है। उसके हर दु:ख-सुख में सहायता और सहयोग के लिये वे प्रयत्नशील हैं। फेरी और फुटपाथ पर व्यवसाय करने वालों की सम्मानजनक तरीके से व्यवसाय की माँग जब श्री चौहान उठाते हैं तो वह उनके व्यक्तित्व से अभिभूत हो जाता है। उनका यह कहना है कि ग्रीन, स्मार्ट और ग्लोबल सिटी बनाने के लक्ष्य के साथ ही झुग्गियों में रहने वाले परिवारों की चिंता उनके भोजन, शिक्षा, स्वास्थ्य, और आवास की जरूरतों को पूरा करने का कार्य भी उनकी जिम्मेदारी है। वे इस जिम्मेदारी का निर्वहन पूरी शिद्दत के साथ कर रहे हैं। उनका यह कथन जननेता के रूप में उनकी सोच की स्वीकार्यता का सबसे प्रभावी प्रमाण है।
श्री शिवराज सिंह चौहान ऐसे जननेता है जिसका शरीर, मन, बुद्धि और आत्मा भारतीय है। एकात्म मानववाद जिसका दर्शन और दृष्टि है। व्यक्तिगत रूप से वह भावुक, सहृदय दिल की सुनने वाले हैं। विचारशील भारतीय दर्शन के चिंतक है। खेलों में उनकी रूचि है। व्यस्ततम दिनचर्या में भी उनका पठन-पाठन का स्थान सुरक्षित है। जन-आकांक्षाओं को पूरा करने के लिये निरंतर कार्य करने को प्रतिबद्ध जननेता जनता की माँग पर सार्वजनिक मंच से गुनगुनाने में भी देर नहीं करता है। मित्र-मंडली, कार्यकर्ताओं, सहयोगियों के साथ गप-शप के जो भी मौके मिलते है उनमें वह गर्मजोशी के साथ शामिल होते हैं। विभिन्न धर्मों के त्यौहारों की उमंग के आयोजन हों अथवा विकास के विचार-विमर्श में आम आदमी की भागीदारी की पंचायत का कार्यक्रम हो, सभी में आम आदमी की भागीदारी के लिये मुख्यमंत्री निवास के द्वार सदैव खुले रहते हैं। संक्षेप में श्री शिवराज सिंह चौहान ऐसे जननेता है जिसे जनता ने ही जनता की सेवा के लिये बनाया है। वह इस जनता रूपी भगवान की आराधना में सर्वस्व समर्पित करने वाले संकल्पित उपासक हैं।


 
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