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अजà¥à¤žà¤¾à¤¨ जैसा शतà¥à¤°à¥ दूसरा नहीं
- चाणकà¥à¤¯
अपने शतà¥à¤°à¥ से पà¥à¤°à¥‡à¤® करो, जो तà¥à¤®à¥à¤¹à¥‡ सताठउसके लिठपà¥à¤°à¤¾à¤°à¥à¤¥à¤¨à¤¾ करो
- ईसा
पà¥à¤°à¤¤à¥à¤¯à¥‡à¤• दिन का आकलन उस दिन काटी गई फसल से नहीं बलà¥à¤•ि बोठगठबीजों से करें।
- राबरà¥à¤Ÿ लà¥à¤‡à¤¸ सà¥à¤Ÿà¥€à¤µà¥‡à¤‚सन
अजà¥à¤žà¤¾à¤¨à¥€ होना मनà¥à¤·à¥à¤¯ का असाधारण अधिकार नहीं है बलà¥à¤•ि सà¥à¤µà¤¯à¤‚ को अजà¥à¤žà¤¾à¤¨à¥€ जानना ही उसका विशेषाधिकार है
- राधाकृषà¥à¤£à¤¨
ईशà¥à¤µà¤° दà¥à¤µà¤¾à¤°à¤¾ निरà¥à¤®à¤¿à¤¤ जल और वायॠकी तरह सà¤à¥€ चीजों पर सबका सामान अधिकार होना चाहिà¤
- महातà¥à¤®à¤¾ गाà¤à¤§à¥€
अधिकार जताने से अधिकार सिदà¥à¤§ नहीं होता
- टैगोर
दà¥à¤¨à¤¿à¤¯à¤¾ में दो ही तà¥à¤°à¤¾à¤¸à¤¦à¤¿à¤¯à¤¾à¤‚ हैं: à¤à¤• जिसकी खà¥à¤µà¤¾à¤¹à¤¿à¤· हो वह नहीं मिलना और दूसरी तà¥à¤°à¤¾à¤¸à¤¦à¥€, उसका मिल जाना।
- आसà¥à¤•र वाइलà¥à¤¡
सà¥à¤– बाहर से मिलने की चीज नहीं पर अहंकार छोड़े बगैर इसकी पà¥à¤°à¤¾à¤ªà¥à¤¤à¤¿ होने वाली à¤à¥€ नहीं।
- महातà¥à¤®à¤¾ गांधी
गà¥à¤œà¤°à¤¾à¤¤ की बहादà¥à¤° बेटियाां
जीवन कà¥à¤·à¤£à¤à¤‚गà¥à¤° है à¤à¤µà¤‚ मृतà¥à¤¯à¥ à¤à¤• शाशà¥à¤µà¤¤ सतà¥à¤¯à¥¤ इसका à¤à¤¹à¤¸à¤¾à¤¸ मानव को सबसे अधिक शà¥à¤®à¤¶à¤¾à¤¨ घाट पर होता है। कितना मà¥à¤¶à¥à¤•िल है à¤à¤• वà¥à¤¯à¤•à¥à¤¤à¤¿ को चिता के हवाले करना जो कà¥à¤› देर पहले हम सबके बीच था। नारी का कोमल सà¥à¤µà¤à¤¾à¤µ इस दà¥à¤– को सह नहीं पाà¤à¤—ा यही सोचकर हिंदू संसà¥à¤•ृति में बेटियां शà¥à¤®à¤¶à¤¾à¤¨ घाट नहीं जातीं । वहीं कà¥à¤› बेटियां à¤à¤¸à¥€ à¤à¥€ हैं जिनà¥à¤¹à¥‹à¤‚ने कोरोनाकाल में सà¥à¤µà¤¯à¤‚ आगे बढ़कर शवों के अंतिम संसà¥à¤•ार की जिमà¥à¤®à¥‡à¤¦à¤¾à¤°à¥€ संà¤à¤¾à¤²à¥€à¥¤ इस कहानी में आज हम आपको मिलाà¤à¤‚गे राषà¥à¤Ÿà¥à¤° सेविका समिति की à¤à¤¸à¥€ ही सà¥à¤µà¤¯à¤‚सेवी बहनों से।
बात अपà¥à¤°à¥ˆà¤² 2021 की है, जब कोविड की दूसरी लहर से हाहाकार मचा हà¥à¤† था‌। संकà¥à¤°à¤®à¤£ के डर से लोग अपने-अपने घरों में डरे सहमे, दà¥à¤¬à¤•े बैठे थे। कोरोना पाज़िटिव शवों के अंतिम संसà¥à¤•ार के लिठउनके अपने परिजन ही तैयार नहीं थे‌। à¤à¤¸à¥‡ में गà¥à¤œà¤°à¤¾à¤¤- कचà¥à¤› के सà¥à¤–पर गांव की हिना वेलानी, रिंकू वेकरिया, सà¥à¤®à¤¿à¤¤à¤¾ à¤à¥‚डिया, तà¥à¤²à¤¸à¥€ वेलानी समेत राषà¥à¤Ÿà¥à¤° सेविका समिति की 10 बहनों ने अदà¥à¤à¥à¤¤ साहस का परिचय देते हà¥à¤ घाट की सफाई, चिता सजाने से लेकर पी.पी.ई. किट पहनकर अंतिम विदाई देने के काम को बखूबी अंजाम दिया।
यह सिलसिला तब आरंठहà¥à¤†, जब 15 अपà¥à¤°à¥ˆà¤² 2021 की शाम à¤à¥à¤œ तहसील के विकास अधिकारी का फोन संघ के सà¥à¤µà¤¯à¤‚सेवक रामजी वेलानी के पास आया सà¥à¤µà¤¯à¤‚सेवकों से मदद के लिà¤, ताकि à¤à¥à¤œ के सरकारी असà¥à¤ªà¤¤à¤¾à¤² में अंतिम विदाई की राह देख रही à¤à¤¸à¥€ लाशों की अंतिम कà¥à¤°à¤¿à¤¯à¤¾ समà¥à¤ªà¤¨à¥à¤¨ कराई जा सके
जिनके अंतिम संसà¥à¤•ार के लिठपरिजनों ने ही मà¥à¤‚ह मोड़ लिया था, व सरकारी करà¥à¤®à¤šà¤¾à¤°à¥€ à¤à¥€ परà¥à¤¯à¤¾à¤ªà¥à¤¤ नहीं थे। इस विकट अवसà¥à¤¥à¤¾ को देखकर संघ कारà¥à¤¯à¤•रà¥à¤¤à¤¾à¤“ं ने मिलकर इस कारà¥à¤¯ के लिठपà¥à¤°à¥à¤· सà¥à¤µà¤¯à¤‚सेवकों की à¤à¤• टीम बनाई तो उनकी बेटी हिना ने à¤à¥€ इसमें सहयोग करने की इचà¥à¤›à¤¾ जाहिर की। पिता का मन थोड़ा आशंकित था कि इस कठोर कारà¥à¤¯ को कà¥à¤¯à¤¾ हिना संपनà¥à¤¨ कर पाà¤à¤‚गी? किंतॠउनकी आशंका गलत साबित हà¥à¤ˆ, हिना के साथ-साथ राषà¥à¤Ÿà¥à¤° सेविका समिति की नौ अनà¥à¤¯ बहनें à¤à¥€ इस काम में जà¥à¤Ÿ गईं।
अपना अनà¥à¤à¤µ साà¤à¤¾ करते हà¥à¤ सौराषà¥à¤Ÿà¥à¤° पà¥à¤°à¤¾à¤‚त की राषà¥à¤Ÿà¥à¤°à¥€à¤¯ सेविका समिति की पà¥à¤°à¤¾à¤‚त पà¥à¤°à¤šà¤¾à¤° पà¥à¤°à¤¸à¤¾à¤° पà¥à¤°à¤®à¥à¤– हिना दीदी बताती हैं कि, हम 3-3 की टोली में काम कर रहे थे। नियमित शà¥à¤®à¤¶à¤¾à¤¨ घाट की सफाई से लेकर, à¤à¥€à¤·à¤£ गरà¥à¤®à¥€ में पी.पी.ई. किट पहनकर अंतिम संसà¥à¤•ार करने में हमें थोड़ी à¤à¥€ कठिनाई महसूस नहीं हà¥à¤ˆà¥¤ गांव के लोगों ने à¤à¥€ पूरा सहयोग किया, जिनके घरों में लकड़ी थी उनà¥à¤¹à¥‹à¤‚ने लकड़ी दी, कहीं से घी आया तो कहीं से कपूर।
लॉकडाउन का समय था, à¤à¥à¤œ के असà¥à¤ªà¤¤à¤¾à¤² व आसपास के गांवो के सà¤à¥€ शवों का अंतिम संसà¥à¤•ार हमारे गांव सà¥à¤–पर के घाट पर ही होता था। लगà¤à¤— 45 दिन चले इस अà¤à¤¿à¤¯à¤¾à¤¨ में, 450 से अधिक शवों को समà¥à¤®à¤¾à¤¨à¤œà¤¨à¤• विदाई सà¥à¤µà¤¯à¤‚सेवकों की टोली à¤à¤µà¤‚ समिति की बहनों ने मिलकर दी।
जब काम धीरे-धीरे आगे बढ़ा तो कई यà¥à¤µà¤¾ इस कारà¥à¤¯ के में जà¥à¤Ÿ गठऔर अगà¥à¤¨à¤¿à¤¦à¤¾à¤¹ का काम संà¤à¤¾à¤² लिया तो समिति की इन बहनों ने माठअनà¥à¤¨à¤ªà¥‚रà¥à¤£à¤¾ का रूप धारण कर कà¥à¤µà¥‰à¤°à¥‡à¤‚टाइन लोगों के टिफिन की जिमà¥à¤®à¥‡à¤¦à¤¾à¤°à¥€ संà¤à¤¾à¤² ली। लॉकडाउन में सेनेटाइजर के साथ सिलाई मशीन से मासà¥à¤• बनवा कर घर-घर बांटना, अकेले असहाय वृदà¥à¤§à¥‹à¤‚ के घर पहà¥à¤‚च कर फà¥à¤°à¥‚ट व खाने से लेकर दवाइयां पहà¥à¤‚चाना, पà¥à¤²à¤¿à¤¸ से लेकर समगà¥à¤° तंतà¥à¤° को सà¤à¥€ पà¥à¤°à¤•ार का सहयोग करने से लेकर à¤à¤¸à¥€ कोई सेवा नहीं थी, जो कोरोना काल में सेविका बहनों ने नहीं की हो।
यह सब कैसे कर पाती हैं à¤à¤¸à¤¾ पूछने पर à¤à¤• ही पà¥à¤°à¤¤à¥à¤¯à¥à¤¤à¥à¤¤à¤° आता था कि - संघ के पारिवारिक संसà¥à¤•ार व समिति के पà¥à¤°à¤¶à¤¿à¤•à¥à¤·à¤£ वरà¥à¤—ों की वजह से सब कà¥à¤› समà¥à¤à¤µ है। तà¤à¥€ कहते हैं "संघे शकà¥à¤¤à¤¿ यà¥à¤—े यà¥à¤—े"।
महावीर जयंती पर विशेष
जानिये à¤à¤—वान महावीर के बारे मे
पूरे à¤à¤¾à¤°à¤¤ वरà¥à¤· मे महावीर जयंती जैन समाज दà¥à¤µà¤¾à¤°à¤¾ à¤à¤—वान महावीर के जनà¥à¤® उतà¥à¤¸à¤µ के रूप मे मनाई जाती है. जैन समाज दà¥à¤µà¤¾à¤°à¤¾ मनाठजाने वाले इस तà¥à¤¯à¥‹à¤¹à¤¾à¤° को महावीर जयंती के साथ साथ महावीर जनà¥à¤® कलà¥à¤¯à¤¾à¤£à¤• नाम से à¤à¥€ जानते है. महावीर जयंती हर वरà¥à¤· चैतà¥à¤° माह के 13 वे दिन मनाई जाती है, जो हमारे वरà¥à¤•िंग केलेनà¥à¤¡à¤° के हिसाब से मारà¥à¤š या अपà¥à¤°à¥ˆà¤² मे आती है. इस दिन हर तरह के जैन दिगमà¥à¤¬à¤°, शà¥à¤µà¥‡à¤¤à¤¾à¤®à¥à¤¬à¤° आदि à¤à¤• साथ मिलकर इस उतà¥à¤¸à¤µ को मनाते है. à¤à¤—वान महावीर के जनà¥à¤® उतà¥à¤¸à¤µ के रूप मे मनाठजाने वाले इस तà¥à¤¯à¥‹à¤¹à¤¾à¤° मे पूरे à¤à¤¾à¤°à¤¤ मे सरकारी छà¥à¤Ÿà¥à¤Ÿà¥€ घोषित की गयी है.
जैन धरà¥à¤® के पà¥à¤°à¤µà¤°à¥à¤¤à¤• à¤à¤—वान महावीर का जीवन उनके जनà¥à¤® के ढाई हजार साल à¤à¥€ उनके लाखों अनà¥à¤¯à¤¾à¤¯à¤¿à¤¯à¥‹à¤‚ के साथ ही पूरी दà¥à¤¨à¤¿à¤¯à¤¾ को अहिंसा का पाठपढ़ा रहा है. पंचशील सिदà¥à¤§à¤¾à¤¨à¥à¤¤ के पà¥à¤°à¤°à¥à¤µà¤¤à¤• और जैन धरà¥à¤® के चौबिसवें तीरà¥à¤¥à¤‚कर महावीर सà¥à¤µà¤¾à¤®à¥€ अहिंसा के पà¥à¤°à¤®à¥à¤– धà¥â€à¤µà¤œà¤µà¤¾à¤¹à¤•ों में से à¤à¤• हैं. जैन गà¥à¤°à¤‚थों के अनà¥à¤¸à¤¾à¤°, 23वें तीरà¥à¤¥à¤‚कर पारà¥à¤¶à¥à¤µà¤¨à¤¾à¤¥ जी के मोकà¥à¤· पà¥à¤°à¤¾à¤ªà¥à¤¤à¤¿ के बाद 298 वरà¥à¤· बाद महावीर सà¥à¤µà¤¾à¤®à¥€ का जनà¥à¤®â€ à¤à¤¸à¥‡ यà¥à¤— में हà¥à¤†, जहां पशà¥â€à¤¬à¤²à¤¿, हिंसा और जाति-पाति के à¤à¥‡à¤¦à¤à¤¾à¤µ का अंधविशà¥à¤µà¤¾à¤¸ था.
à¤à¤—वान महावीर का जीवन परिचय
पूरा नाम |
à¤à¤—वान महावीर |
जनà¥à¤® |
599 BCE |
जनà¥à¤® सà¥à¤¥à¤¾à¤¨ |
कà¥à¤·à¤¤à¥à¤°à¤¿à¤¯à¤•à¥à¤‚ड, वैशाली जिला, बिहार, à¤à¤¾à¤°à¤¤ |
मृतà¥à¤¯à¥ |
527 BCE |
मृतà¥à¤¯à¥ सà¥à¤¥à¤¾à¤¨ |
पावापà¥à¤°à¥€, मगध, नालंदा जिला, बिहार, à¤à¤¾à¤°à¤¤ |
उमà¥à¤° |
72 साल |
पिता |
सिदà¥à¤§à¤¾à¤°à¥à¤¥à¤°à¤¾à¤œà¤¾ |
माता |
तà¥à¤°à¤¿à¤¶à¤¾à¤²à¤¾ |
à¤à¤¾à¤ˆ |
नंदीवरà¥à¤§à¤¨à¤¾, सà¥à¤¦à¤°à¥à¤¶à¤¨à¤¾ |
पतà¥à¤¨à¥€ |
यशोदा |
जाति |
जनिजà¥à¤® |
धरà¥à¤® |
जैन |
à¤à¤—वान महावीर के जनà¥à¤®, परिवार, पतà¥à¤¨à¥€
à¤à¤—वान महावीर का जनà¥à¤® लगà¤à¤— 600 वरà¥à¤· पूरà¥à¤µ चैतà¥à¤° शà¥à¤•à¥à¤² तà¥à¤°à¤¯à¥‹à¤¦à¤¶à¥€ के दिन कà¥à¤·à¤¤à¥à¤°à¤¿à¤¯à¤•à¥à¤£à¥à¤¡ नगर मे हà¥à¤†. à¤à¤—वान महावीर की माता का नाम महारानी तà¥à¤°à¤¿à¤¶à¤²à¤¾ और पिता का नाम महाराज सिदà¥à¤§à¤¾à¤°à¥à¤¥ थे. à¤à¤—वान महावीर कई नामो से जाने गठउनके कà¥à¤› पà¥à¤°à¤®à¥à¤– नाम वरà¥à¤§à¤®à¤¾à¤¨, महावीर, सनà¥à¤®à¤¤à¤¿, शà¥à¤°à¤®à¤£ आदि थे. महावीर सà¥à¤µà¤¾à¤®à¥€ के à¤à¤¾à¤ˆ नंदिवरà¥à¤§à¤¨ और बहन सà¥à¤¦à¤°à¥à¤¶à¤¨à¤¾ थी. बचपन से ही महावीर तेजसà¥à¤µà¥€ और साहसी थे. शिकà¥à¤·à¤¾ पूरी होने के बाद इनके माता—पिता ने इनका विवाह राजकà¥à¤®à¤¾à¤°à¥€ यशोदा के साथ कर दिया. बाद में उनà¥à¤¹à¥‡à¤‚ à¤à¤• पà¥à¤¤à¥à¤°à¥€ पà¥à¤°à¤¿à¤¯à¤¦à¤°à¥à¤¶à¤¨à¤¾ की पà¥à¤°à¤¾à¤ªà¥à¤¤à¤¿ हà¥à¤ˆ, जिसका विवाह जमली से हà¥à¤†.
à¤à¤—वान महावीर का जनà¥à¤® à¤à¤• साधारण बालक के रूप मे हà¥à¤† था, इनà¥à¤¹à¥‹à¤¨à¥‡ अपनी कठिन तपसà¥à¤¯à¤¾ से अपने जीवन को अनूठा बनाया. महावीर सà¥à¤µà¤¾à¤®à¥€ के जीवन के हर चरण मे à¤à¤• कथा वà¥à¤¯à¤¾à¤ªà¥à¤¤ है, हम यहा उनके जीवन से जà¥à¤¡à¤¼à¥‡ कà¥à¤› चरणों तथा उसमे निहित कथाओ को बता रहे है.
महावीर सà¥à¤µà¤¾à¤®à¥€ के जीवन के विà¤à¤¿à¤¨à¥à¤¨ चरण तथा उनसे जà¥à¤¡à¤¼à¥€ कथा
महावीर सà¥à¤µà¤¾à¤®à¥€ जनà¥à¤® और नामकरण संसà¥à¤•ार :
महावीर सà¥à¤µà¤¾à¤®à¥€ के जनà¥à¤® के समय कà¥à¤·à¤¤à¥à¤°à¤¿à¤¯à¤•à¥à¤£à¥à¤¡ गाव मे दस दिनो तक उतà¥à¤¸à¤µ मनाया गया. सारे मितà¥à¤°à¥‹ à¤à¤¾à¤ˆ बंधà¥à¤“ को आमंतà¥à¤°à¤¿à¤¤ किया गया, तथा उनका खूब सतà¥à¤•ार किया गया. राजा सिदà¥à¤§à¤¾à¤°à¥à¤¥ का कहना था, कि जब से महावीर सà¥à¤µà¤¾à¤®à¥€ का जनà¥à¤® उनके परिवार मे हà¥à¤† है, तब से उनके धन धानà¥à¤¯ कोष à¤à¤‚डार बल आदि सà¤à¥€ राजकीय साधनो मे बहà¥à¤¤ वृधà¥à¤¦à¥€ हà¥à¤ˆ, तो उनà¥à¤¹à¥‹à¤¨à¥‡ सबकी सहमति से अपने पà¥à¤¤à¥à¤° का नाम वरà¥à¤§à¥à¤¦à¤®à¤¾à¤¨ रखा.
महावीर सà¥à¤µà¤¾à¤®à¥€ का विवाह:
कहा जाता है कि महावीर सà¥à¤µà¤¾à¤®à¥€ अनà¥à¤¤à¤°à¥à¤®à¥à¤–ी सà¥à¤µà¤à¤¾à¤µ के थे. शà¥à¤°à¤µà¤¾à¤¤ से ही उनà¥à¤¹à¥‡ संसार के à¤à¥‹à¤—ो मे कोई रà¥à¤šà¤¿ नहीं थी, परंतॠमाता पिता की इचà¥à¤›à¤¾ के कारण उनà¥à¤¹à¥‹à¤¨à¥‡ वसंतपà¥à¤° के महासामनà¥à¤¤ समरवीर की पà¥à¤¤à¥à¤°à¥€ यशोदा के साथ विवाह किया. तथा उनके साथ उनकी à¤à¤• पà¥à¤¤à¥à¤°à¥€ हà¥à¤ˆ, जिसका नाम पà¥à¤°à¤¿à¤¯à¤¦à¤°à¥à¤¶à¤¨à¤¾ रखा गया.
महावीर सà¥à¤µà¤¾à¤®à¥€ का वैरागà¥à¤¯:
महावीर सà¥à¤µà¤¾à¤®à¥€ के माता पिता की मृतà¥à¤¯à¥ के पशà¥à¤šà¤¾à¤¤ उनके मन मे वैरागà¥à¤¯ लेने की इचà¥à¤›à¤¾ जागृत हà¥à¤ˆ, परंतॠजब उनà¥à¤¹à¥‹à¤¨à¥‡ इसके लिठअपने बड़े à¤à¤¾à¤ˆ से आजà¥à¤žà¤¾ मांगी, तो उनà¥à¤¹à¥‹à¤¨à¥‡ अपने à¤à¤¾à¤ˆ से कà¥à¤› समय रà¥à¤•ने का आगà¥à¤°à¤¹ किया. तब महावीर सà¥à¤µà¤¾à¤®à¥€ जी ने अपने à¤à¤¾à¤ˆ की आजà¥à¤žà¤¾ का मान रखते हà¥à¤¯à¥‡ 2 वरà¥à¤· पशà¥à¤šà¤¾à¤¤ 30 वरà¥à¤· की आयॠमे वैरागà¥à¤¯ लिया. इतनी कम आयॠमें घर का तà¥à¤¯à¤¾à¤— कर ‘केशलोच’ के साथ जंगल में रहने लगे. वहां उनà¥à¤¹à¥‡à¤‚ 12 वरà¥à¤· के कठोर तप के बाद जमà¥à¤¬à¤• में ऋजà¥à¤ªà¤¾à¤²à¤¿à¤•ा नदी के तट पर à¤à¤• सालà¥à¤µ वृकà¥à¤· के नीचे सचà¥à¤šà¤¾ जà¥à¤žà¤¾à¤¨ पà¥à¤°à¤¾à¤ªà¥à¤¤ हà¥à¤†. इसके बाद उनà¥à¤¹à¥‡à¤‚ ‘केवलिन’ नाम से जाना गया तथा उनके उपदेश चारों और फैलने लगे. बडे-बडे राजा महावीर सà¥à¤µà¤¾â€à¤®à¥€ के अनà¥à¤¯à¤¾à¤¯à¥€ बने उनमें से बिमà¥à¤¬à¤¿à¤¸à¤¾à¤° à¤à¥€ à¤à¤• थे. 30 वरà¥à¤· तक महावीर सà¥à¤µà¤¾à¤®à¥€ ने तà¥à¤¯à¤¾à¤—, पà¥à¤°à¥‡à¤® और अहिंसा का संदेश फैलाया और बाद में वे जैन धरà¥à¤® के चौबीसवें तीरà¥à¤¥à¤‚कर बनें और विशà¥à¤µ के शà¥à¤°à¥‡à¤·à¥à¤ महातà¥à¤®à¤¾à¤“ं में शà¥à¤®à¤¾à¤° हà¥à¤.
उपसरà¥à¤—, अà¤à¤¿à¤—à¥à¤°à¤¹, केवलजà¥à¤žà¤¾à¤¨: तीस वरà¥à¤· की आयॠमे महावीर सà¥à¤µà¤¾à¤®à¥€ ने पूरà¥à¤£ संयम रखकर शà¥à¤°à¤®à¤£ बन गये, तथा दीकà¥à¤·à¤¾ लेते ही उनà¥à¤¹à¥‡ मन परà¥à¤¯à¤¾à¤¯ का जà¥à¤žà¤¾à¤¨ हो गया. दीकà¥à¤·à¤¾ लेने के बाद महावीर सà¥à¤µà¤¾à¤®à¥€ जी ने बहà¥à¤¤ कठिन तापसà¥à¤¯à¤¾ की और विà¤à¤¿à¤¨à¥à¤¨ कठिन उपसरà¥à¤—ों को समता à¤à¤¾à¤µ से गà¥à¤°à¤¹à¤£ किया. साधना के बारहवे वरà¥à¤· मे महावीर सà¥à¤µà¤¾à¤®à¥€ जी मेढ़िया गà¥à¤°à¤¾à¤® से कोशमà¥à¤¬à¥€ आठऔर तब उनà¥à¤¹à¥‹à¤¨à¥‡ पौष कृषà¥à¤£à¤¾ पà¥à¤°à¤¤à¤¿à¤ªà¤¦à¤¾ के दिन à¤à¤• बहà¥à¤¤ ही कठिन अà¤à¤¿à¤—à¥à¤°à¤¹ धारण किया. इसके पशà¥à¤šà¤¾à¤¤ साढ़े बारह वरà¥à¤· की कठिन तपसà¥à¤¯à¤¾ और साधना के बाद ऋजà¥à¤¬à¤¾à¤²à¥à¤•ा नदी के किनारे महावीर सà¥à¤µà¤¾à¤®à¥€ जी को शाल वृकà¥à¤· के नीचे वैशाख शà¥à¤•à¥à¤² दशमी के दिन केवल जà¥à¤žà¤¾à¤¨- केवल दरà¥à¤¶à¤¨ की उपलबà¥à¤§à¤¿ हà¥à¤ˆ.
महावीर और जैन धरà¥à¤®
महावीर को वीर, अतिवीर और स​नà¥à¤®à¤¤à¥€ के नाम से à¤à¥€ जाना जाता है. वे महावीर सà¥à¤µà¤¾à¤®à¥€ ही थे, जिनके कारण ही 23वें तीरà¥à¤¥à¤‚कर पारà¥à¤¶à¥à¤µà¤¨à¤¾à¤¥ दà¥à¤µà¤¾à¤°à¤¾ पà¥à¤°à¤¤à¤¿à¤ªà¤¾à¤¦à¤¿à¤¤ सिदà¥à¤§à¤¾à¤¨à¥à¤¤à¥‹à¤‚ ने à¤à¤• विशाल धरà¥à¤® ‘जैन धरà¥à¤®â€™ का रूप धारण किया. à¤à¤—वान महावीर के जनà¥à¤® सà¥à¤¥à¤¾à¤¨ को लेकर विदà¥à¤µà¤¾à¤¨à¥‹à¤‚ में कई मत पà¥à¤°à¤šà¤²à¤¿à¤¤ है, लेकिन उनके à¤à¤¾à¤°à¤¤ में अवतरण को लेकर वे à¤à¤• मत है. वे à¤à¤—वान महावीर के कारà¥à¤¯à¤•ाल को ईराक के जराथà¥à¤°à¥à¤¸à¥à¤Ÿ, फिलिसà¥à¤¤à¥€à¤¨ के जिरेमिया, चीन के कनà¥à¤«à¥à¤¯à¥‚सियस तथा लाओतà¥à¤¸à¥‡ और यà¥à¤¨à¤¾à¤¨ के पाइथोगोरस, पà¥à¤²à¥‡à¤Ÿà¥‹ और सà¥à¤•रात के समकालीन मानते हैं. à¤à¤¾à¤°à¤¤ वरà¥à¤· को à¤à¤—वान महावीर ने गहरे तक पà¥à¤°à¤à¤¾à¤µà¤¿à¤¤ किया. उनकी शिकà¥à¤·à¤¾à¤“ं से ततà¥à¤•ालीन राजवंश खासे पà¥à¤°à¤à¤¾à¤µà¤¿à¤¤ हà¥à¤ और ढेरों राजाओं ने जैन धरà¥à¤® को अपना राजधरà¥à¤® बनाया. बिमà¥à¤¬à¤¸à¤¾à¤° और चंदà¥à¤°à¤—à¥à¤ªà¥à¤¤ मौरà¥à¤¯ का नाम इन राजवंशों में पà¥à¤°à¤®à¥à¤–ता से लिया जा सकता है, जो जैन धरà¥à¤® के अनà¥à¤¯à¤¾à¤¯à¥€ बने. à¤à¤—वान महावीर ने अहिंसा को जैन धरà¥à¤® का आधार बनाया. उनà¥à¤¹à¥‹à¤‚ने ततà¥à¤•ालीन हिनà¥à¤¦à¥ समाज में वà¥à¤¯à¤¾à¤ªà¥à¤¤ जाति वà¥à¤¯à¤µà¤¸à¥à¤¥à¤¾ का विरोध किया और सबको समान मानने पर जोर दिया. उनà¥à¤¹à¥‹à¤‚ने जियो और ​जीने दो के सिदà¥à¤§à¤¾à¤¨à¥à¤¤ पर जोर दिया. सबको à¤à¤• समान नजर में देखने वाले à¤à¤—वान महावीर अहिंसा और अपरिगà¥à¤°à¤¹ के साकà¥à¤·à¤¾à¤¤ मूरà¥à¤¤à¤¿ थे. वे किसी को à¤à¥€ कोई दà¥:ख नहीं देना चाहते थे.
महावीर सà¥à¤µà¤¾à¤®à¥€ के उपदेश
à¤à¤—वान महावीर ने अहिंसा, तप, संयम, पाच महावà¥à¤°à¤¤, पाच समिति, तीन गà¥à¤ªà¥à¤¤à¥€, अनेकानà¥à¤¤, अपरिगà¥à¤°à¤¹ à¤à¤µà¤‚ आतà¥à¤®à¤µà¤¾à¤¦ का संदेश दिया. महावीर सà¥à¤µà¤¾à¤®à¥€ जी ने यजà¥à¤ž के नाम पर होने वाली पशà¥-पकà¥à¤·à¥€ तथा नर की बाली का पूरà¥à¤£ रूप से विरोध किया तथा सà¤à¥€ जाती और धरà¥à¤® के लोगो को धरà¥à¤® पालन का अधिकार बतलाया. महावीर सà¥à¤µà¤¾à¤®à¥€ जी ने उस समय जाती-पाति और लिंग à¤à¥‡à¤¦ को मिटाने के लिठउपदेश दिये.
निरà¥à¤µà¤¾à¤£ :
कारà¥à¤¤à¤¿à¤• मास की अमावसà¥à¤¯à¤¾ को रातà¥à¤°à¥€ के समय महावीर सà¥à¤µà¤¾à¤®à¥€ निरà¥à¤µà¤¾à¤£ को पà¥à¤°à¤¾à¤ªà¥à¤¤ हà¥à¤¯à¥‡, निरà¥à¤µà¤¾à¤£ के समय à¤à¤—वान महावीर सà¥à¤µà¤¾à¤®à¥€ जी की आयॠ72 वरà¥à¤· की थी.
विशेष तथà¥à¤¯ – à¤à¤—वान महावीर
à¤à¤—वान महावीर के जिओं और जीने दो के सिदà¥à¤§à¤¾à¤¨à¥à¤¤ को जन—जन तक पहà¥à¤‚चाने के लिठजैन धरà¥à¤® के अनà¥à¤¯à¤¾à¤¯à¥€ हर वरà¥à¤· की कारà¥à¤¤à¤¿à¤• पूरà¥à¤£à¤¿à¤®à¤¾ को तà¥à¤¯à¥‹à¤¹à¤¾à¤° की तरह मनाते हैं. इस अवसर पर वह दीपक पà¥à¤°à¤œà¥à¤µà¤²à¤¿à¤¤ करते हैं.
जैन धरà¥à¤® के अनà¥à¤¯à¤¾à¤¯à¤¿à¤¯à¥‹à¤‚ के लिठउनà¥à¤¹à¥‹à¤‚ने पांच वà¥à¤°à¤¤ दिà¤, जिसमें अहिंसा,अहिंसा, सतà¥à¤¯, असà¥à¤¤à¥‡à¤¯, बà¥à¤°à¤¹à¥à¤®à¤šà¤°à¥à¤¯ और अपरिगà¥à¤°à¤¹ बताया गया.
अपनी ​सà¤à¥€ इंनà¥à¤¦à¥à¤°à¤¿à¤¯à¥‹à¤‚ पर विजय पà¥à¤°à¤¾à¤ªà¥à¤¤ कर लेने की वजह से वे जितेनà¥à¤¦à¥à¤°à¤¿à¤¯ या ‘जिन’ कहलाà¤.
जिन से ही जैन धरà¥à¤® को अपना नाम मिला.
जैन धरà¥à¤® के गà¥à¤°à¥‚ओं के अनà¥à¤¸à¤¾à¤° à¤à¤—वान महावीर के कà¥à¤² 11 गणधर थे, जिनमें गौतम सà¥à¤µà¤¾à¤®à¥€ पहले गणधर थे.
à¤à¤—वान महावीन ने 527 ईसा पूरà¥à¤µ कारà¥à¤¤à¤¿à¤• कृषà¥à¤£à¤¾ दà¥à¤µà¤¿à¤¤à¥€à¤¯à¤¾ तिथि को अपनी देह का तà¥à¤¯à¤¾à¤— किया. देह तà¥à¤¯à¤¾à¤— के समय उनकी आयू 72 वरà¥à¤· थी.
बिहार के पावापूरी जहां उनà¥à¤¹à¥‹à¤‚ने अपनी देह को छोड़ा, जैन अनà¥à¤¯à¤¾à¤¯à¤¿à¤¯à¥‹à¤‚ के लिठयह पवितà¥à¤° सà¥à¤¥à¤² की तरह पूजित किया जाता है.
à¤à¤—वान महावीर की मृतà¥à¤¯à¥ के दो सौ साल बाद, जैन धरà¥à¤® शà¥à¤µà¥‡à¤¤à¤¾à¤®à¥à¤¬à¤° और दिगमà¥à¤¬à¤° समà¥à¤ªà¥à¤°à¤¦à¤¾à¤¯à¥‹à¤‚ में बंट गया.
दिगमà¥à¤¬à¤° समà¥à¤ªà¥à¤°à¤¦à¤¾à¤¯ के जैन संत वसà¥à¤¤à¥à¤°à¥‹à¤‚ का तà¥à¤¯à¤¾à¤— कर देते हैं, इसलिठदिगमà¥à¤¬à¤° कहलाते हैं जबकि शà¥à¤µà¥‡à¤¤à¤¾à¤®à¥à¤¬à¤° समà¥à¤ªà¥à¤°à¤¦à¤¾à¤¯ के संत शà¥à¤µà¥‡à¤¤ वसà¥à¤¤à¥à¤° धारण करते हैं.
à¤à¤—वान महावीर सà¥à¤µà¤¾à¤®à¥€ जी की शिकà¥à¤·à¤¾à¤
à¤à¤—वान महावीर दà¥à¤µà¤¾à¤°à¤¾ दिठगठपंचशील सिदà¥à¤§à¤¾à¤¨à¥à¤¤ ही जैन धरà¥à¤® का आधार बने है. इस सिदà¥à¤§à¤¾à¤¨à¥à¤¤ को अपना कर ही à¤à¤• अनà¥à¤¯à¤¾à¤¯à¥€ सचà¥à¤šà¤¾ जैन अनà¥à¤¯à¤¾à¤¯à¥€ बन सकता है. सतà¥à¤¯, अहिंसा, असà¥à¤¤à¥‡à¤¯, बà¥à¤°à¤¹à¥à¤®à¤šà¤°à¥à¤¯ और अपरिगà¥à¤°à¤¹ को पंचशील कहा जाता है.
सतà¥à¤¯ –
à¤à¤—वान महावीर ने सतà¥à¤¯ को महान बताया है. उनके अनà¥à¤¸à¤¾à¤°, सतà¥à¤¯ इस दà¥à¤¨à¤¿à¤¯à¤¾ में सबसे शकà¥à¤¤à¤¿à¤¶à¤¾à¤²à¥€ है और à¤à¤• अचà¥à¤›à¥‡ इंसान को किसी à¤à¥€ हालत में सच का साथ नहीं छोड़ना चाहिà¤. à¤à¤• बेहतर इंसान बनने के लिठजरूरी है कि हर परिसà¥à¤¥à¤¿à¤¤à¤¿ में सच बोला जाà¤.
अहिंसा –
दूसरों के पà¥à¤°à¤¤à¤¿ हिंसा की à¤à¤¾à¤µà¤¨à¤¾ नहीं रखनी चाहिà¤. जितना पà¥à¤°à¥‡à¤® हम खà¥à¤¦ से करते हैं उतना ही पà¥à¤°à¥‡à¤® दूसरों से à¤à¥€ करें. अहिंसा का पालन करें.
असà¥à¤¤à¥‡à¤¯ –
दूसरों की वसà¥à¤¤à¥à¤“ं को चà¥à¤°à¤¾à¤¨à¤¾ और दूसरों की चीजों की इचà¥à¤›à¤¾ करना महापाप है. जो मिला है उसमें ही संतà¥à¤·à¥à¤Ÿ रहें.
बà¥à¤°à¤¹à¥ƒà¤®à¤šà¤°à¥à¤¯ –
महावीर जी के अनà¥à¤¸à¤¾à¤° जीवन में बà¥à¤°à¤¹à¤®à¤šà¤°à¥à¤¯ का पालन करना सबसे कठिन है, जो à¤à¥€ मनà¥à¤·à¥à¤¯ इसको अपने जीवन में सà¥à¤¥à¤¾à¤¨ देता है, वो मोकà¥à¤· पà¥à¤°à¤¾à¤ªà¥à¤¤ करता है.
अपरिगà¥à¤°à¤¹ –
ये दà¥à¤¨à¤¿à¤¯à¤¾ नशà¥à¤µà¤° है. चीजों के पà¥à¤°à¤¤à¤¿ मोह ही आपके दà¥:खों को कारण है. सचà¥à¤šà¥‡ इंसान किसी à¤à¥€ सांसारिक चीज का मोह नहीं करते हैं.
करà¥à¤® किसी को à¤à¥€ नहीं छोड़ते, à¤à¤¸à¤¾ समà¤à¤•र करà¥à¤® बांधने से à¤à¤¾à¤¯ रखो.
तीरà¥à¤¥à¤•र सà¥à¤µà¤¯à¤‚ घर का तà¥à¤¯à¤¾à¤— कर साधू धरà¥à¤® सà¥à¤µà¥€à¤•ारते है तो फिर बिना धरà¥à¤® कारणि किठहमारा कलà¥à¤¯à¤¾à¤£ केसे होगा.
à¤à¤—वान ने जब इतनी उगà¥à¤° तपसà¥à¤¯à¤¾ की तो हमे à¤à¥€ शकà¥à¤¤à¤¿ अनà¥à¤¸à¤¾à¤° तपसà¥à¤¯à¤¾ करनी चाहिà¤.
à¤à¤—वान ने सामने जाकर उपसरà¥à¤— सहे तो कम से कम हमे अपने सामने आठउपसरà¥à¤—ो को समता से सहन करना चाहिà¤.
वरà¥à¤· 2023 मे महावीर जयंती कब है
वरà¥à¤· 2023 मे महावीर जयंती 4 अपà¥à¤°à¥ˆà¤², के दिन मनाई जाà¤à¤—ी. जहा à¤à¥€ à¤à¤—वान महावीर के मंदिर है, वहा इस दिन विशेष आयोजन किठजाते है परंतॠमहावीर जयंती अधिकतर तà¥à¤¯à¥‹à¤¹à¤¾à¤°à¥‹ से अलग बहà¥à¤¤ ही शांत माहौल मे विशेष पूजा अरà¥à¤šà¤¨à¤¾ दà¥à¤µà¤¾à¤°à¤¾ मनाई जाती है . इस दिन à¤à¤—वान महावीर का विशेष अà¤à¤¿à¤·à¥‡à¤• किया जाता है तथा जैन बंधà¥à¤“ दà¥à¤µà¤¾à¤°à¤¾ अपने मंदिरो मे जाकर विशेष धà¥à¤¯à¤¾à¤¨ और पà¥à¤°à¤¾à¤°à¥à¤¥à¤¨à¤¾ की जाती है . इस दिन हर जैन मंदिर मे अपनी शकà¥à¤¤à¤¿ अनà¥à¤¸à¤¾à¤° गरीबो मे दान दकà¥à¤·à¤¿à¤£à¤¾ का विशेष महतà¥à¤µ है. à¤à¤¾à¤°à¤¤ मे गà¥à¤œà¤°à¤¾à¤¤, राजेसà¥à¤¥à¤¾à¤¨, बिहार और कोलकाता मे उपसà¥à¤¥à¤¿à¤¤ पà¥à¤°à¤¸à¤¿à¤§à¥à¤¦ मंदिरो मे यह उतà¥à¤¸à¤µ विशेष रूप से मनाया जाता है
à¤à¤—वान महावीर के पà¥à¤°à¤®à¥à¤– गà¥à¤¯à¤¾à¤°à¤¹ गणधर
1.शà¥à¤°à¥€ इंदà¥à¤°à¥à¤à¥‚ती जी
2.शà¥à¤°à¥€ अगà¥à¤¨à¤¿à¤à¥‚ति जी
3.शà¥à¤°à¥€ वायà¥à¤à¥‚ति जी
4.शà¥à¤°à¥€ वà¥à¤¯à¤•à¥à¤¤ सà¥à¤µà¤¾à¤®à¥€à¤œà¥€
5.शà¥à¤°à¥€ सà¥à¤§à¤°à¥à¤®à¤¾ सà¥à¤µà¤¾à¤®à¥€à¤œà¥€
6.शà¥à¤°à¥€ मंडितपà¥à¤¤à¥à¤°à¤œà¥€
7.शà¥à¤°à¥€ मौरà¥à¤¯à¤ªà¥à¤¤à¥à¤° जी
8.शà¥à¤°à¥€ अकमà¥à¤ªà¤¿à¤¤ जी
9.शà¥à¤°à¥€ अचलà¤à¥à¤°à¤¾à¤¤à¤¾ जी
10.शà¥à¤°à¥€ मोतारà¥à¤¯à¤œà¥€
11.शà¥à¤°à¥€ पà¥à¤°à¤à¤¾à¤¸à¤œà¥€
शिवरातà¥à¤°à¤¿
शिवरातà¥à¤°à¤¿ हिनà¥à¤¦à¥‚ कैलेनà¥à¤¡à¤° के अनà¥à¤¸à¤¾à¤° फालà¥à¤—à¥à¤¨ महीने की अमावस मे मनाई जाती हैâ€,जो कि इंगलिश कैलेनà¥à¤¡à¤° के हिसाब से मारà¥à¤š में होती है|शिवरातà¥à¤°à¤¿ बहà¥à¤¤ महतà¥à¤µà¤ªà¥‚रà¥à¤£ तà¥à¤¯à¥‹à¤¹à¤¾à¤° है|इसदिन लोग वà¥à¤°à¤¤ रखते है और सारी रात मनà¥à¤¦à¤¿à¤°à¥‹à¤‚ मे à¤à¤—वान शिवकाà¤à¤œà¤¨ होता है| सà¥à¤¬à¤¹ à¤à¤—वान शिव के à¤à¤•à¥à¤¤ बिशेष तौर पर औरतें नहा धोकर शिबलिंग पर जल चà¥à¤¾à¤¨à¥‡ जाती है|औरतो के लिये विशेष रà¥à¤ª से शà¥à¤ माना जाता है|कà¥à¤¯à¥‹à¤•ि à¤à¤• कथा है कि पारà¥à¤µà¤¤à¥€ ने तपसà¥à¤¯à¤¾ की और पà¥à¤°à¤¾à¤°à¥à¤¥à¤¨à¤¾ की कि इस अनà¥à¤§à¥‡à¤°à¥€ रात में मेरे पर कोई मà¥à¤¸à¥€à¤µà¤¤ न आये| हे à¤à¤—वान उसके सारे दà¥à¤– दूर हो जाये|तव से महाशिवरातà¥à¤°à¤¿ के उतà¥à¤¸à¤µ पर औरतें अपने पति और पà¥à¤¤à¥à¤° का शà¥à¤ मांगती हैं| à¤à¤—वान से पारà¥à¤¥à¤¨à¤¾ करती है कà¥à¤µà¤¾à¤°à¥€ लडकियाठà¤à¤—वान शिव का पूजन करती हैं कि हमें अचà¥à¤›à¤¾ पति मिले|
सà¥à¤¬à¤¹ होने पर लोग गंगा में या खजà¥à¤°à¤¾à¤¹à¥‹ में शिवसागर तालाव में सà¥à¤¨à¤¾à¤¨ करना पà¥à¤¨à¥à¤¯ समà¤à¤¤à¥‡ हैं| à¤à¤•à¥à¤¤ लोग सूरà¥à¤¯,विषà¥à¤£à¥ और शिव की पूजा करते ह, शिवलिंग पर पानी या दूध चà¥à¤¾à¤¤à¥‡ हैऔर औंनमःशिवाय , जय शंकर जी की बोलते है| मनà¥à¤¦à¤¿à¤° में घंटियों की आवाज गूंज उठती है|
रामायण में शिवà¤à¤•à¥à¤¤à¥‹à¤‚ की कथा इसपà¥à¤°à¤•ार कही गई है कि à¤à¤• बार राजा à¤à¤¾à¤—ीरथ अपना राजà¥à¤¯ छोडकर बà¥à¤°à¤¹à¥à¤®à¤¾ के पास गये और पà¥à¤°à¤¾à¤°à¥à¤¥à¤¨à¤¾ की कि हमारे पूरà¥à¤¬à¤œà¥‹à¤‚ को उनके पापों से मà¥à¤•à¥à¤¤ करें और उनà¥à¤¹à¥‡à¤‚ सà¥à¤µà¤°à¥à¤— में à¤à¥‡à¤œ सà¥à¤¥à¤¾à¤¨ दें| वह गंगा को पृथà¥à¤µà¥€ पर à¤à¥‡à¤œà¥‡à¤‚ जो उनके पूरà¥à¤µà¤œà¥‹ को इस बनà¥à¤§à¤¨ से छà¥à¤¡à¤¾ सकती है और सब पाप धो सकती है| तब बà¥à¤°à¤¹à¥à¤®à¤¾ ने उसकी इचà¥à¤›à¤¾ पूरी की और कहा कि आप शिव को पà¥à¤°à¤¾à¤°à¥à¤¥à¤¨à¤¾ करे वह ही गंगा का à¤à¤¾à¤° उठा सकते है कहते है कि गंगा शिव की जटाओ पर उतरी उसके बाद पृथà¥à¤µà¥€ पर आई और यह à¤à¥€ कहा गया है कि शिव की जटाओं के बाद थोडी सी बौछारे आई इसलिये बरà¥à¤£ को à¤à¥€ पवितà¥à¤°à¤¤à¤¾ का रà¥à¤ª माना जाता है जो कि पà¥à¤°à¤¾à¤£à¥€ का जीवन आधार है| लिगं को पानी से सà¥à¤¬à¤¾à¤¨ कराया जाता है जिसको à¤à¤• धारà¥à¤®à¤¿à¤• रà¥à¤ª देदिया गया है| लिंग को दूध ,पानी और शहद से à¤à¥€ नहलाते है उसके बाद उस पर चनà¥à¤¦à¤¨ की लकडी के बूरे का पेसà¥à¤Ÿ बनाकर उस का टीका लिंग पर लगाया जाता है फूल,फल ,पान के पतà¥à¤¤à¥à¤¤à¥‡ चढाये जाते है और धूप दिया जलाया जाता है| शिब पà¥à¤°à¤¾à¤£ की कथा मैं इन छः वसà¥à¤¤à¥à¤“ं का à¥à¤‚ग से महतà¥à¤µ बताया गया हैः
१ लोग बेलपतà¥à¤° से पानी लिंग पर छिडकते है उसका तातà¥à¤ªà¤°à¥à¤¯ यह है कि शिव की कà¥à¤°à¥‹à¤§ की अगà¥à¤¨à¤¿ को शानà¥à¤¤ करने के लिये ठनà¥à¤¡à¥‡ पानी व पतà¥à¤¤à¥‡ से सà¥à¤¨à¤¾à¤¨ कराया जाता है जो कि आतà¥à¤®à¤¾ कि शà¥à¤¦à¥à¤§à¤¿ का पà¥à¤°à¤¤à¥€à¤• है|
२ नहलाने के बाद लिंग पर चनà¥à¤¦à¤¨ का टीका लगाना शà¥à¤ जागà¥à¤°à¤¤ करने का पà¥à¤°à¤¤à¥€à¤• है|
३ फल, फूल चà¥à¤¾à¤¨à¤¾, धनà¥à¤¯à¤¬à¤¾à¤¦ करना à¤à¤—वान की कृपा और जीवनदान, à¤à¤—वान शिव इस दà¥à¤¨à¤¿à¤¯à¤¾ के रवयिता है|उनकी रचना पर धनà¥à¤¯à¤µà¤¾à¤¦ करना|
४ धूप जलानाः सब अशà¥à¤¦à¥à¤§ वायà¥,कीटाणà¥, गंदगी का नाश करने का पà¥à¤°à¤¤à¥€à¤• है|हमारे सब संकट, कषà¥à¤Ÿ,दà¥à¤ƒà¤– दूर रहे, सब सà¥à¤–ी बसें|
५ दिया जलानाः हमें जà¥à¤žà¤¾à¤¨ दें,हमें रोशनी दें,पà¥à¤°à¤•ाश दें,विदà¥à¤µà¤¾à¤¨ बनाये, शिकà¥à¤·à¤¾ दें ताकि हम सदा उनà¥à¤¨à¤¤à¤¿ के पथ पर बढते रहें|
६.पान का पतà¥à¤¤à¤¾à¤ƒ इसी से सनà¥à¤¤à¥à¤·à¥à¤Ÿ हैं हमें जो दिया है हम उसी का धनà¥à¤¯à¤µà¤¾à¤¦ करते है|
पानी चढाना, मसà¥à¤¤à¤• à¤à¥à¤•ाना , लिंग पर धूप जलाना,मनà¥à¤¦à¤¿à¤° की घणà¥à¤Ÿà¥€ बजाना यह सब अपनी आतà¥à¤®à¤¾ को सरà¥à¤¤à¤• करना हैकि हम इस संसार के रचने वाले का अंग हैं|
शिव के नृतà¥à¤¯, ताणà¥à¤¡à¤µ नृतà¥à¤¯ की मà¥à¤¦à¥à¤°à¤¾à¤à¤ à¤à¥€ खूब दरà¥à¤¶à¤¨à¥€à¤¯ होती हैं| नृतà¥à¤¯ में à¤à¥‚मने के, लिये लोग ठंडाई जो à¤à¤• पेय है और यह बादाम, à¤à¤‚ग और दूध से बनती है, पीते है|
पà¥à¤°à¤¾à¤£à¥‹à¤‚ में बहà¥à¤¤ सी कथाà¤à¤ मिलती हैं| à¤à¤• कथा है कि समà¥à¤¦à¥à¤° मंथन की | à¤à¤• बार समà¥à¤¦à¥à¤° से जहर निकला, सब देवी देवता डर गये कि अब दà¥à¤¨à¤¿à¤¯à¤¾ तबाह हो जायेगी| इस समसà¥à¤¯à¤¾ को लेकर सब देवी देवता शिव जी के पास गये, शिव ने वह जहर पी लिया और अपने गले तक रखा, निगला नही,शिव का गला नीला हो गया और उसे नीलकंठका नाम दिया गया| शिव ने दà¥à¤¨à¤¿à¤¯à¤¾ को बचा लिया, शिवरातà¥à¤°à¤¿ इसलिये à¤à¥€ मनाई जाती है|
पà¥à¤°à¤¾à¤£à¥‹à¤‚ में और à¤à¥€ कथायें मिलती है जो कि शिव की महिमा का वरà¥à¤£à¤¨ करती है परनà¥à¤¤à¥ सारांश यह है कि शिवरातà¥à¤°à¤¿ à¤à¤¾à¤°à¤¤ में सब जगह फालà¥à¤—à¥à¤¨ के महिने में मनाई जाती है,हर जगह हरियाली छा जाती है, सरà¥à¤¦à¥€ का मौसम समापà¥à¤¤ होता है| धरती फिर से फूलों में समाने लगती है| à¤à¤¸à¤¾ लगता है कि पृथà¥à¤µà¥€ में फिर से जान आ गई है| सारे à¤à¤¾à¤°à¤¤ में शिवलिंग की पूजा होती है जो कि रचना की पà¥à¤°à¤¤à¥€à¤• है| विशà¥à¤µà¤¨à¤¾à¤¥ मनà¥à¤¦à¤¿à¤°, जो काशी में है, में शिवलिंग के "जà¥à¤žà¤¾à¤¨ का सà¥à¤¤à¤®à¥à¤" दिखाया गया है| शिव को बà¥à¤¦à¥à¤§à¤¿ मता,पà¥à¤°à¤•ाश,रोशनी का पà¥à¤°à¤¤à¥€à¤• माना गया है| वह दà¥à¤¨à¤¿à¤¯à¤¾ का रचयिता है| वह अजà¥à¤žà¤¾à¤¨à¤¤à¤¾ को दूर कर के फिर से इनà¥à¤¸à¤¾à¤¨ में à¤à¤• नई लहर सी जाग जाती है आगे बà¥à¤¨à¥‡à¤‚ की, यह तà¥à¤¯à¥‹à¤¹à¤¾à¤° à¤à¤• नई उमंग लेकर मनà¥à¤·à¥à¤¯ को पà¥à¤°à¥‹à¤¤à¥à¤¸à¤¾à¤¹à¤¿à¤¤ करते रहते है| बचà¥à¤šà¥‡, बूà¥à¥‡, जवान सà¤à¥€ चेतना से à¤à¤° जाते हैं |।
हनà¥à¤®à¤¾à¤¨ साधना के कà¥à¤› नियम
हनà¥à¤®à¤¾à¤¨ जी को पà¥à¤°à¤¸à¤¨à¥à¤¨ करना बहà¥à¤¤ सरल है। राह चलते उनका नाम सà¥à¤®à¤°à¤£ करने मातà¥à¤° से ही सारे संकट दूर हो जाते हैं। जो साधक विधिपूरà¥à¤µà¤• साधना से हनà¥à¤®à¤¾à¤¨ जी की कृपा पà¥à¤°à¤¾à¤ªà¥à¤¤ करना चाहते हैं उनके लिठपà¥à¤°à¤¸à¥à¤¤à¥à¤¤ हैं कà¥à¤› उपयोगी नियम ...
वरà¥à¤¤à¤®à¤¾à¤¨ यà¥à¤— में हनà¥à¤®à¤¾à¤¨ साधना तà¥à¤°à¤‚त फल देती है। इसी कारण ये जन-जन के देव माने जाते हैं। इनकी पूजा-अरà¥à¤šà¤¨à¤¾ अति सरल है, इनके मंदिर जगह-जगह सà¥à¤¥à¤¿à¤¤ हैं अतः à¤à¤•à¥à¤¤à¥‹à¤‚ को पहà¥à¤‚चने में कठिनाई à¤à¥€ नहीं आती है। मानव जीवन का सबसे बड़ा दà¥à¤– à¤à¤¯'' है और जो साधक शà¥à¤°à¥€ हनà¥à¤®à¤¾à¤¨ जी का नाम सà¥à¤®à¤°à¤£ कर लेता है वह à¤à¤¯ से मà¥à¤•à¥à¤¤à¤¿ पà¥à¤°à¤¾à¤ªà¥à¤¤ कर लेता है।
हनà¥à¤®à¤¾à¤¨ साधना के कà¥à¤› नियम यहां उदà¥à¤§à¥ƒà¤¤ हैं। जिनका पालन करना अति आवशà¥à¤¯à¤• है
हनà¥à¤®à¤¾à¤¨ साधना में शà¥à¤¦à¥à¤§à¤¤à¤¾ à¤à¤µà¤‚ पवितà¥à¤°à¤¤à¤¾ अनिवारà¥à¤¯ है। पà¥à¤°à¤¸à¤¾à¤¦ शà¥à¤¦à¥à¤§ घी का बना होना चाहिà¤à¥¤
हनà¥à¤®à¤¾à¤¨ जी को तिल के तेल में मिल हà¥à¤ सिंदूर का लेपन करना चाहिà¤à¥¤
हनà¥à¤®à¤¾à¤¨ जी को केसर के साथ घिसा लाल चंदन लगाना चाहिà¤à¥¤
पà¥à¤·à¥à¤ªà¥‹à¤‚ में लाल, पीले बड़े फूल अरà¥à¤ªà¤¿à¤¤ करने चाहिà¤à¥¤ कमल, गेंदे, सूरà¥à¤¯à¤®à¥à¤–ी के फूल अरà¥à¤ªà¤¿à¤¤ करने पर हनà¥à¤®à¤¾à¤¨ जी पà¥à¤°à¤¸à¤¨à¥à¤¨ होते हैं।
नैवेदà¥à¤¯ में पà¥à¤°à¤¾à¤¤à¤ƒ पूजन में गà¥à¥œ, नारियल का गोला और लडू, दोपहर में गà¥à¥œ, घी और गेहूं की रोटी का चूरमा अथवा मोटा रोट अरà¥à¤ªà¤¿à¤¤ करना चाहिà¤à¥¤ रातà¥à¤°à¤¿ में आम, अमरूद, केला आदि फलों का पà¥à¤°à¤¸à¤¾à¤¦ अरà¥à¤ªà¤¿à¤¤ करें।
साधना काल में बà¥à¤°à¤¹à¥à¤®à¤šà¤°à¥à¤¯ का पालन अति अनिवारà¥à¤¯ है।
जो नैवेदà¥à¤¯ हनà¥à¤®à¤¾à¤¨ जी को अरà¥à¤ªà¤¿à¤¤ किया जाता है उसे साधक को गà¥à¤°à¤¹à¤£ करना चाहिà¤à¥¤
मंतà¥à¤° जप बोलकर किठजा सकते हैं। हनà¥à¤®à¤¾à¤¨ जी की मूरà¥à¤¤à¤¿ के समकà¥à¤· उनके नेतà¥à¤°à¥‹à¤‚ की ओर देखते हà¥à¤ मंतà¥à¤°à¥‹à¤‚ के जप करें।
साधना में दो पà¥à¤°à¤•ार की मालाओं का पà¥à¤°à¤¯à¥‹à¤— किया जाता है। सातà¥à¤µà¤¿à¤• कारà¥à¤¯ से संबंधित साधना में रà¥à¤¦à¥à¤°à¤¾à¤•à¥à¤· माला तथा तामसी à¤à¤µà¤‚ पराकà¥à¤°à¤®à¥€ कारà¥à¤¯à¥‹à¤‚ के लिठमूंगे की माला।
साधना पूरà¥à¤£ आसà¥à¤¥à¤¾, शà¥à¤°à¤¦à¥à¤§à¤¾ और सेवा à¤à¤¾à¤µ से की जानी चाहिà¤à¥¤
मंगलवार हनà¥à¤®à¤¾à¤¨ जी का दिन है। इस दिन अनà¥à¤·à¥à¤ ान संपनà¥à¤¨ करना चाहिà¤à¥¤ इसके अतिरिकà¥à¤¤ शनिवार को à¤à¥€ हनà¥à¤®à¤¾à¤¨ पूजा का विधान है।
हनà¥à¤®à¤¾à¤¨ साधना से गà¥à¤°à¤¹à¥‹à¤‚ का अशà¥à¤à¤¤à¥à¤µ पूरà¥à¤£ रूप से शांत हो जाता है। हनà¥à¤®à¤¾à¤¨ जी और सूरà¥à¤¯à¤¦à¥‡à¤µ à¤à¤• दूसरे के सà¥à¤µà¤°à¥‚प हैं, इनकी परसà¥à¤ªà¤° मैतà¥à¤°à¥€ अति पà¥à¤°à¤¬à¤² मानी गई है। इसलिठहनà¥à¤®à¤¾à¤¨ साधना करने वाले साधकों में सूरà¥à¤¯ ततà¥à¤µ अरà¥à¤¥à¤¾à¤¤ आतà¥à¤®à¤µà¤¿à¤¶à¥à¤µà¤¾à¤¸, ओज, तेजसà¥à¤µà¤¿à¤¤à¤¾ आदि विशेष रूप से आ जाते हैं। यह तेज ही साधकों को सामानà¥à¤¯ वà¥à¤¯à¤•à¥à¤¤à¤¿à¤¯à¥‹à¤‚ से अलग करता है।
हनà¥à¤®à¤¾à¤¨ जी की साधना में जो धà¥à¤¯à¤¾à¤¨ किया जाता है उसका विशेष महतà¥à¤µ है। हनà¥à¤®à¤¾à¤¨ जी के जिस विगà¥à¤°à¤¹ सà¥à¤µà¤°à¥‚प का धà¥à¤¯à¤¾à¤¨ करें वैसी ही मूरà¥à¤¤à¤¿ अपने मानस में सà¥à¤¥à¤¿à¤° करें और इस तरह का अà¤à¥à¤¯à¤¾à¤¸ करें कि नेतà¥à¤° बंद कर लेने पर à¤à¥€ वही सà¥à¤µà¤°à¥‚प नजर आता रहे।
अंधशà¥à¤°à¤¦à¥à¤§à¤¾ से मà¥à¤•à¥à¤¤à¤¿ सबसे बड़ी देशà¤à¤•à¥à¤¤à¤¿ है-
परमà¥à¤ªà¤°à¤¾à¤µà¤¾à¤¦à¥€ सोच ही विजà¥à¤žà¤¾à¤¨ मे बाधा- हरीश देशमà¥à¤–
दà¥à¤¨à¤¿à¤¯à¤¾ मे à¤à¥‚त नही होते, à¤à¥‚त दिमाग मे होते
टोना-टोटकों का कोई असà¥à¤¤à¤¿à¤¤à¥à¤µ नही
अंधशà¥à¤°à¤¦à¥à¤§à¤¾ निरà¥à¤®à¥‚लन समिती ईशà¥à¤µà¤° और धरà¥à¤® के विरोधी ‘अंधविशà¥à¤µà¤¾à¤¸ उनà¥à¤®à¥‚लन’ के लिठतैयार हो रहे विजà¥à¤žà¤¾à¤¨ पà¥à¤°à¤šà¤¾à¤°à¤•
‘विजà¥à¤žà¤¾à¤¨ बनाम चमतà¥à¤•ार’ पानी से दिया जलाकर किया कारà¥à¤¯à¤¶à¤¾à¤²à¤¾
अखिल à¤à¤¾à¤°à¤¤à¥€à¤¯ अंधशà¥à¤°à¤¦à¥à¤§à¤¾ निरà¥à¤®à¥‚लन समिति नागपूर दà¥à¤µà¤¾à¤°à¤¾ विजà¥à¤žà¤¾à¤¨ à¤à¤µà¤‚ पà¥à¤°à¥Œà¤¦à¥à¤¯à¥‹à¤—िकी संचार परिषद नई दिलà¥à¤²à¥€ के सहयोग से 24 से 28 मई 2014 तक पांच दिवसीय अंधविशà¥à¤µà¤¾à¤¸ निरà¥à¤®à¥‚लन कारà¥à¤¯à¤¶à¤¾à¤²à¤¾ का आयोजन à¤à¥‹à¤ªà¤¾à¤² के आॅयकफ आशà¥à¤°à¤® लायोसा निवास, अरेरा काॅलोनी मे किया जा रहा है। 5 दिवसीय इस कारà¥à¤¯à¤¶à¤¾à¤²à¤¾ का उदà¥à¤¦à¥‡à¤¶à¥à¤¯ बताते हà¥à¤ अखिल à¤à¤¾à¤°à¤¤à¥€à¤¯ अंधविशà¥à¤µà¤¾à¤¸ उनà¥à¤®à¥‚लन समिति के कारà¥à¤¯à¤•ारी सचिव शà¥à¤°à¥€ हरिà¤à¤¾à¤Š पाथोडे ने बताया कि अंधशà¥à¤°à¤¦à¥à¤§à¤¾ और अंधविशà¥à¤µà¤¾à¤¸ à¤à¤¾à¤°à¤¤à¥€à¤¯ समाज की गंà¤à¥€à¤° समसà¥à¤¯à¤¾ है। जब तब अंधशà¥à¤°à¤¦à¥à¤§à¤¾ वà¥à¤¯à¤¾à¤ªà¤• तौर पर दूर नही होती तब तक किसी समाज का सà¥à¤§à¤¾à¤° और पà¥à¤°à¤—ति असंà¤à¤µ है। कारà¥à¤¯à¤¶à¤¾à¤²à¤¾ का शà¥à¤à¤¾à¤°à¤‚ठमà¥à¤–à¥à¤¯ अतिथी अखिल à¤à¤¾à¤°à¤¤à¥€à¤¯ अंधविशà¥à¤µà¤¾à¤¸ उनà¥à¤®à¥‚लन समिति राषà¥à¤Ÿà¥à¤°à¥€à¤¯ महासचिव हरीश देशमà¥à¤– ने पानी से दिया जलाकर किया।
पà¥à¤°à¤®à¥à¤– अतिथीयों मे अखिल à¤à¤¾à¤°à¤¤à¥€à¤¯ अंधविशà¥à¤µà¤¾à¤¸ उनà¥à¤®à¥‚लन समिति के कारà¥à¤¯à¤•ारी सचिव शà¥à¤°à¥€ हरिà¤à¤¾à¤Š पाथोडे, मासà¥à¤Ÿà¤° रिसोरà¥à¤¸ परà¥à¤¸à¤¨ à¤à¤¡. गणेश हलकारे, अखिल à¤à¤¾à¤°à¤¤à¥€à¤¯ अंधविशà¥à¤µà¤¾à¤¸ उनà¥à¤®à¥‚लन समिति के महाराषà¥à¤Ÿà¥à¤° संघटक दिलीप सोलंके, कारà¥à¤¯à¤¶à¤¾à¤²à¤¾ के को-आरà¥à¤¡à¤¿à¤¨à¥‡à¤Ÿà¤° पà¥à¤°à¤¶à¤¾à¤‚त बौदà¥à¤§, चनà¥à¤¦à¥à¤°à¤•ाॅत देशमà¥à¤– उपसà¥à¤¥à¤¿à¤¤ थे। कारà¥à¤¯à¤¶à¤¾à¤²à¤¾ के शà¥à¤à¤¾à¤°à¤‚ठशà¥à¤°à¥€ हरिओम ने कहा कि समाज मे वà¥à¤¯à¤¾à¤ªà¥à¤¤ अंधविशà¥à¤µà¤¾à¤¸ को दूर रखने का दायितà¥à¤µ हम सà¤à¥€ का है। मानवीय हितों को केंदà¥à¤° मे रखकर समाज को अंधविशà¥à¤µà¤¾à¤¸ से मà¥à¤•à¥à¤¤ करने की आवशà¥à¤¯à¤•ता आज à¤à¥€ है ा अखिल à¤à¤¾à¤°à¤¤à¥€à¤¯ अंधविशà¥à¤µà¤¾à¤¸ उनà¥à¤®à¥‚लन समिति की à¤à¥‚मिका सà¥à¤ªà¤·à¥à¤Ÿ करते हूठकहा कि वह ईशà¥à¤µà¤° और धरà¥à¤® के विरोधी नही, बलà¥à¤•ि ईशà¥à¤µà¤° और धà¥à¤¾à¤°à¥à¤® के नाम पर लोगों को लूटने, उनका शेाषण करने के की मानसिकता का विरोध करती है। à¤à¤¾à¤°à¤¤à¥€à¤¯ संविधान और संत परंपरा à¤à¥€ इसकी इजाजत नहीं कारà¥à¤¯à¤¶à¤¾à¤²à¤¾ में मानवी उतà¥à¤•à¥à¤°à¤¾à¤‚ती, अंधविशà¥à¤µà¤¾à¤¸à¥‹à¤‚ का उदà¥à¤—म, वैजà¥à¤žà¤¾à¤¨à¤¿à¤• सोच, बाबागिरी, मंतà¥à¤°-तंतà¥à¤° टोना -टोटका, à¤à¥‚त और à¤à¥‚तों का मनोविजà¥à¤žà¤¾à¤¨, जà¥à¤¯à¥‹à¤¤à¤¿à¤·à¤¶à¤¾à¤¸à¥à¤¤à¥à¤°, आतà¥à¤®à¤¾-पà¥à¤°à¥à¤¨à¤œà¤¨à¥à¤®, तथाकथित चमतà¥à¤•ारों की वà¥à¤¯à¤¾à¤–à¥à¤¯à¤¾, बाबागिरी का परà¥à¤¦à¤¾à¤ªà¤¾à¤¶, फिलà¥à¤®-शो आदि विषयों पर विसà¥à¤¤à¤¾à¤° से चरà¥à¤šà¤¾ और वà¥à¤¯à¤¾à¤–à¥à¤¯à¤¾ की जा रही है। à¤à¥‹à¤ªà¤¾à¤² के आसपास के 12 जिलों से लगà¤à¤— 40 पà¥à¤°à¤¶à¤¿à¤•à¥à¤·à¤£à¤¾à¤°à¥à¤¥à¥€ सà¥à¤¤à¥à¤°à¥‹à¤¤ वà¥à¤¯à¤•à¥à¤¤à¤¿à¤“ं से पà¥à¤°à¤¶à¤¿à¤•à¥à¤·à¤£ ले रहे है। उदà¥à¤˜à¤¾à¤Ÿà¤¨ सतà¥à¤° का संचालन करते हà¥à¤ अनिल à¤à¤µà¤°à¥‡ ने बताया कि कारà¥à¤¯à¤¶à¤¾à¤²à¤¾ में पà¥à¤°à¤·à¤¿à¤•à¥à¤·à¤£ पà¥à¤°à¤¾à¤ªà¥à¤¤ कर पà¥à¤°à¤¶à¤¿à¤•à¥à¤·à¤£à¤¾à¤°à¥à¤¥à¥€ अपने कà¥à¤·à¥‡à¤¤à¥à¤° में जाकर लोगोें को जागरूक करेंगे। आंख बंद कर वैजà¥à¤žà¤¾à¤¨à¤¿à¤• घटना में चमतà¥à¤•ार का वैजà¥à¤žà¤¾à¤¨à¤¿à¤• आधार खोजने की कोशिश अवैजà¥à¤žà¤¾à¤¨à¤¿à¤• है।
बà¥à¤¦à¥à¤§à¤®à¤‚ शरणं गचà¥à¤›à¤¾à¤®à¥€...
उस दिन बैसाख पूरà¥à¤£à¤¿à¤®à¤¾ थी, जो गà¥à¤°à¥ पूरà¥à¤£à¤¿à¤®à¤¾ कहलाई à¤à¤¾à¤°à¤¤ वरà¥à¤· को गà¥à¤°à¥ होने का गौरव पà¥à¤°à¤¾à¤ªà¥à¤¤ हà¥à¤†à¥¤ गौतम बà¥à¤¦à¥à¤§ का जनà¥à¤® उस संघरà¥à¤·à¤®à¤¯ यà¥à¤— में हà¥à¤† जब समाज में जाति वà¥à¤¯à¤µà¤¸à¥à¤¥à¤¾ व जातिà¤à¥‡à¤¦ पà¥à¤°à¤¬à¤² हो रहा था। धारà¥à¤®à¤¿à¤• अंधविशà¥à¤µà¤¾à¤¸à¥‹à¤‚, करà¥à¤®à¤•ांडों व पाखंड का à¤à¤¾à¤°à¥€ बोलबाला था। हिंसा, सामाजिक कà¥à¤°à¥€à¤¤à¤¿à¤¯à¥‹à¤‚ व आडंबरों से à¤à¤¾à¤°à¤¤à¥€à¤¯ समाज आहत हो रहा था। समाज का हर वरà¥à¤— à¤à¥‡à¤¦à¤à¤¾à¤µà¤ªà¥‚रà¥à¤£ पà¥à¤°à¤šà¤²à¤¿à¤¤ वà¥à¤¯à¤µà¤¸à¥à¤¥à¤¾ से दà¥:खी था और बदलाव की पà¥à¤°à¤¤à¥€à¤•à¥à¤·à¤¾ कर रहा था। गौतम बà¥à¤¦à¥à¤§ ने पà¥à¤°à¤šà¤²à¤¿à¤¤ सामाजिक, धारà¥à¤®à¤¿à¤• रूढ़िगत मानà¥à¤¯à¤¤à¤¾à¤“ं का कड़ा विरोध किया और समता, सà¥à¤µà¤¤à¤‚तà¥à¤°à¤¤à¤¾, बंधà¥à¤¤à¤¾, नैतिकता व वैजà¥à¤žà¤¾à¤¨à¤¿à¤• सोच की नई सà¥à¤µà¤¸à¥à¤¥ परमà¥à¤ªà¤°à¤¾à¤à¤‚ सà¥à¤¥à¤¾à¤ªà¤¿à¤¤ कीं।
बà¥à¤¦à¥à¤§ का वà¥à¤¯à¤•à¥à¤¤à¤¿à¤¤à¥à¤µ आकषरà¥à¤• था। उनके उपदेशों का मूल आधार शासà¥à¤¤à¥à¤°, धरà¥à¤®à¤—à¥à¤°à¤‚थ, ईशà¥à¤µà¤°, मोकà¥à¤· या कालà¥à¤ªà¤¨à¤¿à¤• शकà¥à¤¤à¤¿ न होकर मानव समाज था। उनà¥à¤¹à¥‹à¤‚ने खà¥à¤¦ को ‘मà¥à¤•à¥à¤¤à¤¿à¤¦à¤¾à¤¤à¤¾â€™ नहीं, ‘मारà¥à¤—दाता’ कहा। सà¥à¤µà¤¯à¤‚ को मानव समाज का अंग मानते हà¥à¤ मनà¥à¤·à¥à¤¯ के सà¥à¤–ी व शांतिपूरà¥à¤£ जीवन का रासà¥à¤¤à¤¾ बताया, लेकिन यह à¤à¥€ कहा कि समय व काल के अनà¥à¤¸à¤¾à¤° मेरी बातें मानव कलà¥à¤¯à¤¾à¤£ की राह में उचित नहीं लगें तो उनà¥à¤¹à¥‡à¤‚ मत मानना।
पंचशील सदाचार
जीवन में अचà¥à¤›à¤¾ आचरण यानी सदाचार बौदà¥à¤§ धरà¥à¤® की आधारशिला है और इस सदाचार को ही पंचशील कहा गया है। पंचशील सदाचार के पांच सारà¥à¤µà¤à¥Œà¤® नियम हैं- जीव ¨हसा न करना, चोरी न करना, वà¥à¤¯à¤à¤¿à¤šà¤¾à¤° न करना, à¤à¥‚ठन बोलना और वà¥à¤¯à¤¸à¤¨à¥‹à¤‚ से दूर रहना।
बà¥à¤¦à¥à¤§ ने सिखाया
1. सà¥à¤µà¤šà¤¿à¤‚तन से निरà¥à¤£à¤¯ लो किसी à¤à¥€ बात को इसलिठमत मानो कि..
* à¤à¤¸à¤¾ सदियों से होता आया है
* किसी धरà¥à¤®à¤—à¥à¤°à¤‚थ में लिखा हà¥à¤† है या जà¥à¤¯à¤¾à¤¦à¤¾à¤¤à¤° लोग à¤à¤¸à¤¾ मानते हैं
* किसी आचारà¥à¤¯, साधà¥, संत ने कहा है
* कोई बड़ा तà¥à¤®à¤¸à¥‡ कह रहा है बलà¥à¤•ि हर बात को तरà¥à¤•, विवेक व चिंतन की कसौटी पर कसकर तौलना। यदि वह बात सà¥à¤µà¤¯à¤‚, समाज व मानव कलà¥à¤¯à¤¾à¤£ के हित में लगे तो ही मानना।
2. गà¥à¤²à¤¾à¤® नहीं, बà¥à¤¦à¥à¤§à¤¿à¤µà¤¾à¤¦à¥€ बनो अतà¥à¤¤ दीपोà¤à¤µ: यानी अपने दीपक सà¥à¤µà¤¯à¤‚ बनो, सà¥à¤µà¤¯à¤‚ पà¥à¤°à¤•ाशवान बनो। अपने जीवन को सà¥à¤–ी, समृदà¥à¤§à¤¶à¤¾à¤²à¥€ व निरà¥à¤µà¤¾à¤£ के लिठकिसी कालà¥à¤ªà¤¨à¤¿à¤• शकà¥à¤¤à¤¿ का गà¥à¤²à¤¾à¤® मत बनो। तà¥à¤®à¥à¤¹à¥‡à¤‚ अपनी दासà¥à¤¤à¤¾, दरिदà¥à¤°à¤¤à¤¾ व गरीबी खà¥à¤¦ ही मिटानी है। तà¥à¤® इस जीव जगत के सबसे बà¥à¤¦à¥à¤§à¤¿à¤®à¤¾à¤¨ पà¥à¤°à¤¾à¤£à¥€ हो, इसलिठगà¥à¤²à¤¾à¤® नहीं, बà¥à¤¦à¥à¤§à¤¿à¤µà¤¾à¤¦à¥€ बनो।
3. जाति नहीं आचरण मानो कोई à¤à¥€ वà¥à¤¯à¤•à¥à¤¤à¤¿ जनà¥à¤® से बड़ा नहीं होता है, बलà¥à¤•ि आचरण से होता है। इसलिठअपना आचरण à¤à¤¸à¤¾ रखो कि सà¥à¤µà¤¤: बड़े हो जाओ।
संदेश-
हे मानव! तà¥à¤® शेर के सामने जाने से मत डरना, यह बहादà¥à¤°à¥€ की परीकà¥à¤·à¤¾ है। तà¥à¤® तलवार का सामना करने से à¤à¥€ à¤à¤¯à¤à¥€à¤¤ मत होना, यह तà¥à¤¯à¤¾à¤— की कसौटी है। तà¥à¤® परà¥à¤µà¤¤ शिखर से पाताल में कूदते हà¥à¤ à¤à¥€ मत डरना,यह तप की परीकà¥à¤·à¤¾ है। तà¥à¤® धधकती जà¥à¤µà¤¾à¤²à¤¾à¤“ं से à¤à¥€ मत डरना, यह सà¥à¤µà¤°à¥à¤£ परीकà¥à¤·à¤¾ है लेकिन शराब व अनà¥à¤¯ वà¥à¤¯à¤¸à¤¨ से हमेशा à¤à¤¯à¤à¥€à¤¤ रहना, कà¥à¤¯à¥‹à¤‚कि यह बà¥à¤°à¤¾à¤ˆ, गरीबी व दà¥à¤°à¤¾à¤šà¤¾à¤° की जननी है।
- गौतम बà¥à¤¦à¥à¤§
छठपूजा
छठहिनà¥à¤¦à¥à¤“ं का à¤à¤• पà¥à¤°à¤®à¥à¤– तà¥à¤¯à¥‹à¤¹à¤¾à¤° है । यह पूजा उतà¥à¤¤à¤° à¤à¤¾à¤°à¤¤ à¤à¤µà¤‚ नेपाल में बड़े पैमाने पर की जाती है । छठकी पूजा बिहार, à¤à¤¾à¤°à¤–ंड और पूरà¥à¤µà¥€ उतà¥à¤¤à¤° पà¥à¤°à¤¦à¥‡à¤¶ में अतà¥à¤¯à¤‚त लोकपà¥à¤°à¤¿à¤¯ है । छठपूजा दीपावली परà¥à¤µ के छठे à¤à¤µà¤‚ सातवे दिन कारà¥à¤¤à¤¿à¤• शà¥à¤•à¥à¤² षषà¥à¤ ी à¤à¤µà¤‚ सपà¥à¤¤à¤®à¥€ को की जाती है । छठ, षषà¥à¤Ÿà¥€ का अपà¤à¥à¤°à¤‚श है जिसका अरà¥à¤¥ हिनà¥à¤¦à¥‚ पंचांग की छठवीं तारीख है । कारà¥à¤¤à¤¿à¤• शà¥à¤•à¥à¤² षषà¥à¤Ÿà¥€ को सूरà¥à¤¯ षषà¥à¤Ÿà¥€ नाम से जाना जाता है ।
छठ, सूरà¥à¤¯ की उपासना का परà¥à¤µ है । वैसे à¤à¤¾à¤°à¤¤ में सूरà¥à¤¯ पूजा की परमà¥à¤ªà¤°à¤¾ वैदिक काल से ही रही है । लंका विजय के बाद रामराजà¥à¤¯ की सà¥à¤¥à¤¾à¤ªà¤¨à¤¾ के दिन कारà¥à¤¤à¤¿à¤• शà¥à¤•à¥à¤² षषà¥à¤ ी को à¤à¤—वान राम और माता सीता ने उपवास किया और सूरà¥à¤¯à¤¦à¥‡à¤µ की आराधना की और सपà¥à¤¤à¤®à¥€ को सूरà¥à¤¯à¥‹à¤¦à¤¯ के समय अनà¥à¤·à¥à¤ ान कर सूरà¥à¤¯à¤¦à¥‡à¤µ से आशिरà¥à¤µà¤¾à¤¦ पà¥à¤°à¤¾à¤ªà¥à¤¤ किया। इसी के उपलकà¥à¤·à¥à¤¯ में छठपूजा की जाती है।
ऊरà¥à¤œà¤¾ का सबसे बड़ा सà¥à¤°à¥‹à¤¤ सूरà¥à¤¯ है । इस कारण हिनà¥à¤¦à¥‚ शासà¥à¤¤à¥à¤°à¥‹à¤‚ में सूरà¥à¤¯ को à¤à¤—वान मानते हैं । सूरà¥à¤¯ के बिना कà¥à¤› दिन रहने की जरा कलà¥à¤ªà¤¨à¤¾ कीजिठ। इनका जीवन के लिठइनका रोज उदित होना जरूरी है । कà¥à¤› इसी तरह की परिकलà¥à¤ªà¤¨à¤¾ के साथ पूरà¥à¤µà¥‹à¤¤à¥à¤¤à¤° à¤à¤¾à¤°à¤¤ के लोग छठमहोतà¥à¤¸à¤µ के रूप में इनकी आराधना करते हैं ।
माना जाता है कि छठया सूरà¥à¤¯ पूजा महाà¤à¤¾à¤°à¤¤ काल से की जाती रही है । छठपूजा की शà¥à¤°à¥à¤†à¤¤ सूरà¥à¤¯ पà¥à¤¤à¥à¤° करà¥à¤£ ने की थी। करà¥à¤£ à¤à¤—वान सूरà¥à¤¯ का परम à¤à¤•à¥à¤¤ था। वह पà¥à¤°à¤¤à¤¿à¤¦à¤¿à¤¨ घंटों कमर तक पानी में ख़ड़े होकर सूरà¥à¤¯ को अरà¥à¤˜à¥à¤¯ देता था । सूरà¥à¤¯ की कृपा से ही वह महान योदà¥à¤§à¤¾ बना था । महाà¤à¤¾à¤°à¤¤ में सूरà¥à¤¯ पूजा का à¤à¤• और वरà¥à¤£à¤¨ मिलता है।
यह à¤à¥€ कहा जाता है कि पांडवों की पतà¥à¤¨à¥€ दà¥à¤°à¥Œà¤ªà¤¦à¥€ अपने परिजनों के उतà¥à¤¤à¤® सà¥à¤µà¤¾à¤¸à¥à¤¥à¥à¤¯ की कामना और लंबी उमà¥à¤° के लिठनियमित सूरà¥à¤¯ पूजा करती थीं । इसका सबसे पà¥à¤°à¤®à¥à¤– गीत 'केलवा जे फरेला घवद से, ओह पर सà¥à¤—ा मे़ड़राय काà¤à¤š ही बाà¤à¤¸ के बहंगिया, बहंगी लचकत जाà¤' है।
दीपावली के छठे दिन से शà¥à¤°à¥‚ होने वाला छठका परà¥à¤µ चार दिनों तक चलता है । इन चारों दिन शà¥à¤°à¤¦à¥à¤§à¤¾à¤²à¥ à¤à¤—वान सूरà¥à¤¯ की आराधना करके वरà¥à¤·à¤à¤° सà¥à¤–ी, सà¥à¤µà¤¸à¥à¤¥ और निरोगी होने की कामना करते हैं । चार दिनों के इस परà¥à¤µ के पहले दिन घर की साफ-सफाई की जाती है ।
वैसे तो छठमहोतà¥à¤¸à¤µ को लेकर तरह-तरह की मानà¥à¤¯à¤¤à¤¾à¤à¤ पà¥à¤°à¤šà¤²à¤¿à¤¤ हैं, लेकिन इन सबमें पà¥à¤°à¤®à¥à¤– है साकà¥à¤·à¤¾à¤¤ à¤à¤—वान का सà¥à¤µà¤°à¥‚प सूरà¥à¤¯ से आà¤à¤–ें मिलाने की कोशिश à¤à¥€ कोई नहीं कर सकता। à¤à¤¸à¥‡ में इनके कोप से बचने के लिठछठके दौरान काफी सावधानी बरती जाती है। इस तà¥à¤¯à¥‹à¤¹à¤¾à¤° में पवितà¥à¤°à¤¤à¤¾ का सरà¥à¤µà¤¾à¤§à¤¿à¤• धà¥à¤¯à¤¾à¤¨ रखा जाता है।
इस अवसर पर छठी माता का पूजन होता है । मानà¥à¤¯à¤¤à¤¾ है कि पूजा के दौरान कोई à¤à¥€ मनà¥à¤¨à¤¤ माà¤à¤—ी जाà¤, पूरी होती। जिनकी मनà¥à¤¨à¤¤ पूरी होती है, वे अपने वादे अनà¥à¤¸à¤¾à¤° पूजा करते हैं । पूजा सà¥à¤¥à¤²à¥‹à¤‚ पर लोट लगाकर आते लोगों को देखा जा सकता है ।
छठपूजा का पà¥à¤°à¤¾à¤°à¤‚ठमहाà¤à¤¾à¤°à¤¤ काल में कà¥à¤‚ती दà¥à¤µà¤¾à¤°à¤¾ सूरà¥à¤¯ की आराधना व पà¥à¤¤à¥à¤° करà¥à¤£ के जनà¥à¤® के समय से माना जाता है। मानà¥à¤¯à¤¤à¤¾ है कि छठदेवी सूरà¥à¤¯ देव की बहन हैं और उनà¥à¤¹à¥€à¤‚ को पà¥à¤°à¤¸à¤¨à¥à¤¨ करने के लिठजीवन के महतà¥à¤µà¤ªà¥‚रà¥à¤£ अवयवों में सूरà¥à¤¯ व जल की महतà¥à¤¤à¤¾ को मानते हà¥à¤, इनà¥à¤¹à¥‡à¤‚ साकà¥à¤·à¥€ मान कर कारà¥à¤¤à¤¿à¤• माह के शà¥à¤•à¥à¤² पकà¥à¤· की पंचमी को à¤à¤—वान सूरà¥à¤¯ की आराधना तथा उनका धनà¥à¤¯à¤µà¤¾à¤¦ करते हà¥à¤ मां गंगा-यमà¥à¤¨à¤¾ या किसी à¤à¥€ पवितà¥à¤° नदी या तालाब के किनारे पूजा करने के लिठलोगो का हà¥à¤œà¥‚म à¤à¤•तà¥à¤°à¤¿à¤¤ होता है पà¥à¤°à¤¾à¤šà¥€à¤¨ काल में इसे बिहार और पूरà¥à¤µà¥€ उतà¥à¤¤à¤° पà¥à¤°à¤¦à¥‡à¤¶ में ही मनाया जाता था। लेकिन आज इस पà¥à¤°à¤¾à¤¨à¥à¤¤ के लोग विशà¥à¤µ में जहाठà¤à¥€ रहते हैं वहाठइस परà¥à¤µ को उसी शà¥à¤°à¤¦à¥à¤§à¤¾ और à¤à¤•à¥à¤¤à¤¿ से मनाते हैं। छठमà¥à¤–à¥à¤¯ रूप से बिहार और पूरà¥à¤µà¥€ उतà¥à¤¤à¤° पà¥à¤°à¤¦à¥‡à¤¶ में मनाया जाता है।इस लोकपरà¥à¤µ का संबंध बिहार के उस कà¥à¤·à¥‡à¤¤à¥à¤° से है, जो इतिहास के किसी दौर में महान सूरà¥à¤¯à¥‹à¤ªà¤¾à¤¸à¤• रहा है। यह संबंध पूरà¥à¤µà¥€ बिहार अथवा पà¥à¤°à¤¾à¤šà¥€à¤¨ ‘अंग’ पà¥à¤°à¤¦à¥‡à¤¶ से जोड़ा जा सकता है, जिसमें à¤à¤¾à¤—लपà¥à¤°, मà¥à¤‚गेर, पटना, गया, राजगृह, चंपा नगरी और मिथिला आदि कà¥à¤·à¥‡à¤¤à¥à¤° आते हैं। बिहार में तो इसे राजकीय परà¥à¤µ जैसा दरà¥à¤œà¤¾ मिला हà¥à¤† है। अब मà¥à¤‚बई,दिलà¥à¤²à¥€ और कोलकाता जैसे महानगरों और इनके उपनगरों में à¤à¥€ पà¥à¤°à¤µà¤¾à¤¸à¥€ बिहारी और उतà¥à¤¤à¤° पà¥à¤°à¤¦à¥‡à¤¶ के लोग यह परà¥à¤µ बड़े पैमाने पर मनाने लगे हैं।
छठका परà¥à¤µ तीन दिनों तक मनाया जाता है। इसे छठसे दो दिन पहले चौथ के दिन शà¥à¤°à¥‚ करते हैं जिसमें दो दिन तक वà¥à¤°à¤¤ रखा जाता है।-परà¥à¤µ के पहले दिन पूजा में चढ़ावे के लिठसामान तैयार किया जाता है जिसमें सà¤à¥€ पà¥à¤°à¤•ार के मौसमी फल, केले की पूरी गौर (गवद), इस परà¥à¤µ पर खासतौर पर बनाया जाने वाला पकवान ठेकà¥à¤†(खजूर), नारियल, मूली, सà¥à¤¥à¤¨à¥€, अखरोट, बादाम, नारियल, इस पर चढ़ाने के लिठलाल,पीले रंग का कपड़ा, à¤à¤• बड़ा घड़ा जिस पर बारह दीपक लगे हो गनà¥à¤¨à¥‡ के बारह पेड़ आदि। पहले दिन महिलाà¤à¤ अपने बाल धो कर चावल, लौकी और चने की दाल का à¤à¥‹à¤œà¤¨ करती हैं और देवकरी में पूजा का सारा सामान रख कर दूसरे दिन आने वाले वà¥à¤°à¤¤ की तैयारी करती हैं।
छठपरà¥à¤µ पर दूसरे दिन पूरे दिन वà¥à¤°à¤¤ ( उपवास) रखा जाता है और शाम को गनà¥à¤¨à¥‡ के रस की बखीर बनाकर देवकरी में पांच जगह कोशा ( मिटà¥à¤Ÿà¥€ के बरà¥à¤¤à¤¨) में बखीर रखकर उसी से हवन किया जाता है। बाद में पà¥à¤°à¤¸à¤¾à¤¦ के रूप में बखीर का ही à¤à¥‹à¤œà¤¨ किया जाता है व सगे संबंधियों में इसे बाà¤à¤Ÿà¤¾ जाता है।
तीसरे दिन यानी छठके दिन 24 घंटे का निरà¥à¤œà¤²à¥€ वà¥à¤°à¤¤ रखा जाता है सारे दिन पूजा की तैयारी की जाती है और पूजा के लिठà¤à¤• बांस की बनी हà¥à¤ˆ बड़ी टोकरी, जिसे दौरी कहते हैं दौरी में पूजा का सà¤à¥€ सामान डाल कर देवकरी में रख दिया जाता है। देवकरी में गनà¥à¤¨à¥‡ के पेड़ से à¤à¤• छतà¥à¤° बनाकर और उसके नीचे मिटà¥à¤Ÿà¥€ का à¤à¤• बड़ा बरà¥à¤¤à¤¨, दीपक, तथा मिटà¥à¤Ÿà¥€ के हाथी बना कर रखे जाते हैं और उसमें पूजा का सामान à¤à¤° दिया जाता है। वहाठपूजा अरà¥à¤šà¤¨à¤¾ करने के बाद शाम को à¤à¤• सूप में नारियल कपड़े में लिपटा हà¥à¤† नारियल, पांच पà¥à¤°à¤•ार के फल, पूजा का अनà¥à¤¯ सामान ले कर दौरी में रख कर घर का पà¥à¤°à¥‚ष इसे अपने हाथों से उठा कर नदी, समà¥à¤¦à¥à¤° या पोखर पर ले जाता है। यह अपवितà¥à¤° न हो जाठइसलिठइसे सिर के उपर की तरफ रखते हैं। इस परà¥à¤µ की विशेषता है कि इसे घर का कोई à¤à¥€ सदसà¥à¤¯ रख सकता है तथा इसे किसी मनà¥à¤¦à¤¿à¤° या धारà¥à¤®à¤¿à¤• सà¥à¤¥à¤¾à¤¨ में न मना कर अपने घर में देवकरी ( पूजा-सà¥à¤¥à¤²) व पà¥à¤°à¤¾à¤•ृतिक जल राशि के समकà¥à¤· मनाया जाता है। तीन दिन तक चलने वाले इस परà¥à¤µ के लिठमहिलाà¤à¤ कई दिनों से तैयारी करती हैं इस अवसर पर घर के सà¤à¥€ सदसà¥à¤¯ सà¥à¤µà¤šà¥à¤›à¤¤à¤¾ का बहà¥à¤¤ धà¥à¤¯à¤¾à¤¨ रखते हैं जहाठपूजा सà¥à¤¥à¤² होता है वहाठनहा धो कर ही जाते हैं यही नही तीन दिन तक घर के सà¤à¥€ सदसà¥à¤¯ देवकरी के सामने जमीन पर ही सोते हैं।
वैसे तो पà¥à¤°à¤¤à¥à¤¯à¥‡à¤• परà¥à¤µ में ही सà¥à¤µà¤šà¥à¤›à¤¤à¤¾ à¤à¤µà¤‚ शà¥à¤¦à¥à¤§à¤¤à¤¾ पर विशेष धà¥à¤¯à¤¾à¤¨ दिया जाता है, पर इस परà¥à¤µ के संबंध में à¤à¤¸à¥€ धारणा है कि किसी ने यदि à¤à¥‚ल से या अनजाने में à¤à¥€ कोई तà¥à¤°à¥à¤Ÿà¤¿ की तो उसका कठिन दंड à¤à¥à¤—तना होगा। इसलिठपूरी सतरà¥à¤•ता बरती जाती है कि पूजा के निमितà¥à¤¤ लाठगठफल- फूल किसी à¤à¥€ कारण अशà¥à¤¦à¥à¤§ न होने पाà¤à¤‚। इस परà¥à¤µ के नियम बड़े कठोर हैं। सबसे कठोर अनà¥à¤¶à¤¾à¤¸à¤¨ बिहार के दरà¤à¤‚गा में देखने को मिलता है। संà¤à¤µà¤¤: इसीलिठइसे छठवà¥à¤°à¤¤à¤¿à¤¯à¥‹à¤‚ का सिदà¥à¤§à¤ªà¥€à¤ à¤à¥€ कहा जाता है। à¤à¤¸à¤¾ समà¤à¤¾ जाता है कि इस पूजा के दौरान अरà¥à¤˜à¥à¤¯à¤¦à¤¾à¤¨ के लिठसाधक जल पूरित अंजलि ले कर सूरà¥à¤¯à¤¾à¤à¤¿à¤®à¥à¤– होकर जब जल को à¤à¥‚मि पर गिराता है, तब सूरà¥à¤¯ की किरणें उस जल धारा को पार करते समय पà¥à¤°à¤¿à¤œà¥à¤® पà¥à¤°à¤à¤¾à¤µ से अनेक पà¥à¤°à¤•ार की किरणों में विखंडित हो जाती हैं। साधक के शरीर पर ये किरणें परा बैंगनी किरणों जैसा पà¥à¤°à¤à¤¾à¤µ डालती हैं, जिसका उपचारी पà¥à¤°à¤à¤¾à¤µ होता है।
छठपरà¥à¤µ हिंदी महीने के कारà¥à¤¤à¤¿à¤• मास के छठे दिन मनाया जाता है। यह कà¥à¤² चार दिन का परà¥à¤µ है। पà¥à¤°à¤¥à¤® दिन वà¥à¤°à¤¤à¥€ गंगा सà¥à¤¨à¤¾à¤¨ करके गंगाजल घर लाते हैं। दूसरे दिन, दिन à¤à¤° उपवास रहकर रात में उपवास तोड़ देते हैं। फिर तीसरे दिन वà¥à¤°à¤¤ रहकर पूरे दिन पूजा के लिठसामगà¥à¤°à¥€ तैयार करते हैं। इस सामगà¥à¤°à¥€ में कम से कम पांच किसà¥à¤® के फलों का होना जरूरी होता है।
तीसरे दिन ही शाम को जलाशयों या गंगा में खड़े रहकर वà¥à¤°à¤¤à¥€ सूरà¥à¤¯à¤¦à¥‡à¤µ की उपासना करते हैं और उनà¥à¤¹à¥‡à¤‚ अरà¥à¤˜à¥à¤¯ देते हैं। अगले दिन तड़के पà¥à¤¨: तट पर पहà¥à¤‚चकर पानी में खड़े रहकर सूरà¥à¤¯à¥‹à¤¦à¤¯ का इंतजार करते हैं। सूरà¥à¤¯à¥‹à¤¦à¤¯ होते ही सूरà¥à¤¯ दरà¥à¤¶à¤¨ के साथ उनका अनà¥à¤·à¥à¤ ान पूरा हो जाता है। पूरे चौबीस घंटे वà¥à¤°à¤¤à¤§à¤¾à¤°à¤¿à¤¯à¥‹à¤‚ का निरà¥à¤œà¤²à¤¾ बीतता है।
इस वà¥à¤°à¤¤ में पहले दिन खरना होता है। पूरे दिन उपवास रखकर वà¥à¤°à¤¤à¥€ शाम को गà¥à¤¡à¤¼ की खीर और रोटी का पà¥à¤°à¤¸à¤¾à¤¦ गà¥à¤°à¤¹à¤£ करते हैं। साथ ही लौकी की सबà¥à¤œà¥€ खाने की à¤à¥€ परंपरा है। कहा जाता है कि गà¥à¤¡à¤¼ की खीर खाने से जीवन और काया में सà¥à¤–-समृदà¥à¤§à¤¿ के अंश जà¥à¤¡à¤¼ जाते हैं। इस पà¥à¤°à¤¸à¤¾à¤¦ को लोग मांगकर à¤à¥€ पà¥à¤°à¤¾à¤ªà¥à¤¤ करते हैं अथवा वà¥à¤°à¤¤à¥€ अपने आसपास के घरों में सà¥à¤µà¤¯à¤‚ बांटने के लिठजाते हैं, ताकि जीवन के सà¥à¤– की मिठास समाज में à¤à¥€ फैले।
इस परà¥à¤µ के संबंध में कई कहानियां पà¥à¤°à¤šà¤²à¤¿à¤¤ हैं। à¤à¤• कथा यह है कि लंका विजय के बाद जब à¤à¤—वान राम अयोधà¥à¤¯à¤¾ लौटे तो दीपावली मनाई गई। जब राम का राजà¥à¤¯à¤¾à¤à¤¿à¤·à¥‡à¤• हà¥à¤†, तो राम और सीता ने सूरà¥à¤¯ षषà¥à¤ ी के दिन तेजसà¥à¤µà¥€ पà¥à¤¤à¥à¤° की पà¥à¤°à¤¾à¤ªà¥à¤¤à¤¿ के लिठसूरà¥à¤¯ की उपासना की। इसके अलावा à¤à¤• कथा यह à¤à¥€ है कि सूरà¥à¤¯ षषà¥à¤ ी को ही गायतà¥à¤°à¥€ माता का जनà¥à¤® हà¥à¤† था। इसी दिन ऋषि विशà¥à¤µà¤¾à¤®à¤¿à¤¤à¥à¤° के मà¥à¤– से गायतà¥à¤°à¥€ मंतà¥à¤° फूटा था। पà¥à¤¤à¥à¤° की पà¥à¤°à¤¾à¤ªà¥à¤¤à¤¿ के लिठगायतà¥à¤°à¥€ माता की à¤à¥€ उपासना की जाती है।
à¤à¤• पà¥à¤°à¤¸à¤‚ग यह à¤à¥€ है कि अपना राजपाट खो चà¥à¤•े जंगलों में à¤à¤Ÿà¤•ते पांडवों की दà¥à¤°à¥à¤¦à¤¶à¤¾ से वà¥à¤¯à¤¥à¤¿à¤¤ दौपदà¥à¤°à¥€ ने सूरà¥à¤¯à¤¦à¥‡à¤µ की आराधना की थी।
कोशी à¤à¤°à¤¨à¥‡ की मानà¥à¤¯à¤¤à¤¾
इस अवसर पर पà¥à¤¤à¥à¤° पà¥à¤°à¤¾à¤ªà¥à¤¤à¤¿ या सà¥à¤–ा -शांति और वैà¤à¤µ पà¥à¤°à¤¾à¤ªà¥à¤¤à¤¿ किसी à¤à¥€ इचà¥à¤›à¤¾ पूरà¥à¤¤à¤¿ हेतॠजो कोई छठमां से मनà¥à¤¨à¤¤ मांगता है वह मनà¥à¤¨à¤¤ पूरी होने पर कोशी à¤à¤°à¥€ जाती है इसके लिठछठपूजन के साथ -साथ गनà¥à¤¨à¥‡ के बारह पेड़ से à¤à¤• समूह बना कर उसके नीचे à¤à¤• मिटà¥à¤Ÿà¥€ का बड़ा घड़ा जिस पर छ: दिठहोते हैं देवकरी में रखे जाते हैं और बाद में इसी पà¥à¤°à¤•à¥à¤°à¤¿à¤¯à¤¾ से नदी किनारे पूजा की जाती है नदी किनारे गनà¥à¤¨à¥‡ का à¤à¤• समूह बना कर छतà¥à¤° बनाया जाता है उसके नीचे पूजा का सारा सामान रखा जाता है।
छठमाता का à¤à¤• लोकपà¥à¤°à¤¿à¤¯ गीत है–
केरवा जे फरेला गवद से ओह पर सà¥à¤—ा मंडराय
उ जे खबरी जनइबो अदिक से सà¥à¤—ा देले जà¥à¤ ियाà¤
उ जे मरबो रे सà¥à¤—वा धनà¥à¤• से सà¥à¤—ा गिरे मà¥à¤°à¤à¤¾à¤¯
उ जे सà¥à¤—नी जे रोवे ले वियोग से आदित होइ ना सहाय
दीपावली : तà¥à¤¯à¥Œà¤¹à¤¾à¤° रोशनी का
à¤à¤¾à¤°à¤¤ की सांसà¥à¤•ृतिक विरासत को हरा-à¤à¤°à¤¾ करने में यहां के विविधता à¤à¤°à¥‡ तà¥à¤¯à¥Œà¤¹à¤¾à¤°à¥‹à¤‚ का अहम सà¥à¤¥à¤¾à¤¨ है. दीपावली, होली, दशहरा हमारे जीवन को नया रंग रूप देते हैं. यह तà¥à¤¯à¥Œà¤¹à¤¾à¤° ही हैं जो हमें जीने का नया जोश दिलाते हैं. अगर होली हमारे जीवन में रंग à¤à¤°à¤¨à¥‡ के लिठजानी जाती है तो हमारे जीवन में उजियारा फैलाने के लिठदीपावली का तà¥à¤¯à¥Œà¤¹à¤¾à¤° है. दीपावली à¤à¤• à¤à¤¸à¤¾ तà¥à¤¯à¥Œà¤¹à¤¾à¤° है जिसे हम पूरी पवितà¥à¤°à¤¤à¤¾ और हरà¥à¤·à¥‹à¤²à¥à¤²à¤¾à¤¸ के साथ मनाते हैं.
दीपावली दीपों का तà¥à¤¯à¥Œà¤¹à¤¾à¤° है. इस दिन रोशनी का विशेष महतà¥à¤µ होता है. दीपावली के कई मायने हैं. à¤à¤¾à¤°à¤¤ के हर धारà¥à¤®à¤¿à¤• तà¥à¤¯à¥Œà¤¹à¤¾à¤° की तरह इस तà¥à¤¯à¥Œà¤¹à¤¾à¤° के पीछे à¤à¥€ पà¥à¤°à¤¾à¤£à¤¿à¤• कथा है. पर तमाम कथाओं और रीति रिवाजों के बावजूद दीपावली ही à¤à¤• à¤à¤¸à¤¾ परà¥à¤µ है जिसे हम साल का सबसे बड़ा परà¥à¤µ कह सकते हैं. यह हिनà¥à¤¦à¥à¤“ं का सबसे बड़ा परà¥à¤µ होता है. लेकिन à¤à¤¾à¤°à¤¤ जैसे धरà¥à¤®à¤¨à¤¿à¤°à¤ªà¥‡à¤•à¥à¤· देश में कोई à¤à¥€ परà¥à¤µ किसी खास जाति या धरà¥à¤® तक तो सीमित रह ही नहीं सकता. आज दीपावली à¤à¤¾à¤°à¤¤ में रहने वाले हर इंसान के लिठà¤à¤• अहम तà¥à¤¯à¥Œà¤¹à¤¾à¤° है.
धारà¥à¤®à¤¿à¤• मानà¥à¤¯à¤¤
कारà¥à¤¤à¤¿à¤• अमावसà¥à¤¯à¤¾ की काली रात को दीयों से उजाले में बदलने की यह परंपरा बहà¥à¤¤ पà¥à¤°à¤¾à¤¨à¥€ है. मानà¥à¤¯à¤¤à¤¾ है कि इसी दिन à¤à¤—वान शà¥à¤°à¥€ रामचंदà¥à¤°à¤œà¥€ चौदह वरà¥à¤· का वनवास काटकर तथा रावण का वध कर अयोधà¥à¤¯à¤¾ वापस लौटे थे. तब अयोधà¥à¤¯à¤¾à¤µà¤¾à¤¸à¤¿à¤¯à¥‹à¤‚ ने राम के राजà¥à¤¯à¤¾à¤°à¥‹à¤¹à¤£ पर दीपमालाà¤à¤‚ जलाकर महोतà¥à¤¸à¤µ मनाया था. उसी परंपरा को आज à¤à¥€ हम मानते हैं और दीपावली पर दिठजलाकर मरà¥à¤¦à¤¾à¤¯à¤¾ पà¥à¤°à¥à¤·à¥‹à¤¤à¥à¤¤à¤® राम को याद करते हैं.
लकà¥à¤·à¥à¤®à¥€ पूजन: कलयà¥à¤— में सांसारिक वसà¥à¤¤à¥à¤“ं और धन का विशेष महतà¥à¤µ है. मानà¥à¤¯à¤¤à¤¾ है कि इस यà¥à¤— में लकà¥à¤·à¥à¤®à¥€ जी ही à¤à¤¸à¥€ देवी हैं जो अपने à¤à¤•à¥à¤¤à¥‹à¤‚ को संसारिक वसà¥à¤¤à¥à¤“ं से परिपूरà¥à¤£ करती हैं और धन देती हैं. मानà¥à¤¯à¤¤à¤¾ है कि समà¥à¤¦à¥à¤° मंथन के समय कारà¥à¤¤à¤¿à¤• अमावसà¥à¤¯à¤¾ को ही लकà¥à¤·à¥à¤®à¥€ जी पà¥à¤°à¤•ट हà¥à¤ˆ थीं. इसलिठइसी दिन लकà¥à¤·à¥à¤®à¥€ पूजन का विशेष महतà¥à¤µ है.
दीपावली की कथा
वैसे तो दीपावली मनाने का मà¥à¤–à¥à¤¯ कारण à¤à¤—वान राम का अयोधà¥à¤¯à¤¾ लौटना था पर मनà¥à¤·à¥à¤¯ जिसमें शायद अब पà¥à¤°à¥à¤·à¥‹à¤¤à¥à¤¤à¤® बनने की हिमà¥à¤®à¤¤ रही नहीं वह इस तà¥à¤¯à¥Œà¤¹à¤¾à¤° को मातà¥à¤° लकà¥à¤·à¥à¤®à¥€ पूजन का दिन मनाता है. कà¥à¤¯à¥‚ंकि लकà¥à¤·à¥à¤®à¥€ जी धन की देवी हैं और धन आज सबसे जà¥à¤¯à¤¾à¤¦à¤¾ महतà¥à¤µ रखता है इसलिठआज जà¥à¤¯à¤¾à¤¦à¤¾à¤¤à¤° लोग इस परà¥à¤µ पर मातà¥à¤° लकà¥à¤·à¥à¤®à¥€ जी को ही याद करते हैं.
रामायण तो हम सब ने सà¥à¤¨à¥€ ही है चलिठइस बार लकà¥à¤·à¥à¤®à¥€ जी से जà¥à¥œà¥€ à¤à¤• कथा à¤à¥€ पॠलेते हैं:
पà¥à¤°à¤¾à¤šà¥€à¤¨à¤•ाल में à¤à¤• साहूकार था. उसकी à¤à¤• सà¥à¤¶à¥€à¤² और सà¥à¤‚दर बेटी थी. वह पà¥à¤°à¤¤à¤¿à¤¦à¤¿à¤¨ पीपल पर जल चढ़ाने जाती थी. उस पीपल पर लकà¥à¤·à¥à¤®à¥€ जी का वास था. à¤à¤• दिन लकà¥à¤·à¥à¤®à¥€à¤œà¥€ ने साहूकार की बेटी से कहा- ‘तà¥à¤® मेरी सहेली बन जाओ.’ तब साहूकार के बेटी ने लकà¥à¤·à¥à¤®à¥€ जी से कहा- ‘मैं कल अपने पिता से पूछकर उतà¥à¤¤à¤° दूंगी.’ घर जाकर उसने अपने पिता को सारी बात कह सà¥à¤¨à¤¾à¤ˆ. उसने कहा- ‘पीपल पर à¤à¤• सà¥à¤¤à¥à¤°à¥€ मà¥à¤à¥‡ अपनी सहेली बनाना चाहती है.’ तब साहूकार ने कहा- ‘वह तो लकà¥à¤·à¥à¤®à¥€ जी हैं. और हमें कà¥à¤¯à¤¾ चाहिà¤, तू उनकी सहेली बन जा.’
इस पà¥à¤°à¤•ार पिता के हां कर देने पर दूसरे दिन साहूकार की बेटी जब पीपल सींचने गई तो उसने लकà¥à¤·à¥à¤®à¥€ जी को सहेली बनाना सà¥à¤µà¥€à¤•ार कर लिया. à¤à¤• दिन लकà¥à¤·à¥à¤®à¥€ जी ने साहूकार की बेटी को à¤à¥‹à¤œà¤¨ का नà¥à¤¯à¥Œà¤¤à¤¾ दिया. जब साहूकार की बेटी लकà¥à¤·à¥à¤®à¥€ जी के यहाठà¤à¥‹à¤œà¤¨ करने गई तो लकà¥à¤·à¥à¤®à¥€ जी ने उसको ओढ़ने के लिठशाल दà¥à¤¶à¤¾à¤²à¤¾ दिया तथा सोने की चौकी पर बैठाकर, सोने की थाली में अनेक पà¥à¤°à¤•ार के à¤à¥‹à¤œà¤¨ कराà¤. जब साहूकार की बेटी खा-पीकर अपने घर को लौटने लगी तो लकà¥à¤·à¥à¤®à¥€ जी ने उसे पकड़ लिया और कहा- ‘तà¥à¤® मà¥à¤à¥‡ अपने घर कब बà¥à¤²à¤¾ रही हो? मैं à¤à¥€ तेरे घर जीमने आऊंगी.’ पहले तो उसने आनाकानी की, फिर कहा -’अचà¥à¤›à¤¾, आ जाना.’ घर आकर वह रूठकर बैठगई. तब साहूकार ने कहा- ‘तà¥à¤® लकà¥à¤·à¥à¤®à¥€à¤œà¥€ को तो घर आने का निमनà¥à¤¤à¥à¤°à¤£ दे आई हो और सà¥à¤µà¤¯à¤‚ उदास बैठी हो.’ तब साहूकार की बेटी बोली- ‘पिताजी! लकà¥à¤·à¥à¤®à¥€ जी ने तो मà¥à¤à¥‡ इतना दिया और बहà¥à¤¤ उतà¥à¤¤à¤® à¤à¥‹à¤œà¤¨ कराया. मैं उनà¥à¤¹à¥‡à¤‚ किस पà¥à¤°à¤•ार खिलाऊंगी, हमारे घर में तो वैसा कà¥à¤› à¤à¥€ नहीं है.’
तब साहूकार ने कहा- ‘जो अपने से बनेगा, वही ख़ातिर कर देंगे. तू जलà¥à¤¦à¥€ से गोबर मिटà¥à¤Ÿà¥€ से चौका देकर सफ़ाई कर दे. चौमà¥à¤–ा दीपक बनाकर लकà¥à¤·à¥à¤®à¥€ जी का नाम लेकर बैठजा.’ तà¤à¥€ à¤à¤• चील किसी रानी का नौलखा हार उठा लाई और उसे साहूकार की बेटी के पास डाल गई. साहूकार की बेटी ने उस हार को बेचकर सोने का थाल, शाल, दà¥à¤¶à¤¾à¤²à¤¾ और अनेक पà¥à¤°à¤•ार के à¤à¥‹à¤œà¤¨ की तैयारी कर ली. थोड़ी देर बाद लकà¥à¤·à¥à¤®à¥€ जी उसके घर पर आ गईं. साहूकार की बेटी ने लकà¥à¤·à¥à¤®à¥€ जी को बैठने के लिठसोने की चौकी दी. लकà¥à¤·à¥à¤®à¥€ जी ने बैठने को बहà¥à¤¤ मना किया और कहा- ‘इस पर तो राजा-रानी बैठते हैं.’ तब साहूकार की बेटी ने कहा- ‘तà¥à¤®à¥à¤¹à¥‡à¤‚ तो हमारे यहाठबैठना ही पड़ेगा.’ तब लकà¥à¤·à¥à¤®à¥€ जी उस पर बैठगई. साहूकार की बेटी ने लकà¥à¤·à¥à¤®à¥€à¤œà¥€ की बहà¥à¤¤ ख़ातिरदारी की, इससे लकà¥à¤·à¥à¤®à¥€ जी बहà¥à¤¤ पà¥à¤°à¤¸à¤¨à¥à¤¨ हà¥à¤ˆ और साहूकार के पास बहà¥à¤¤ धन-दौलत हो गई.
दीपावली को सफाई का महतà¥à¤µ: दीपावली धारà¥à¤®à¤¿à¤• कारणों से ही नहीं बलà¥à¤•ि वैजà¥à¤žà¤¾à¤¨à¤¿à¤• दृषà¥à¤Ÿà¤¿ से à¤à¥€ à¤à¤• अहम परà¥à¤µ है. जà¥à¤¯à¤¾à¤¦à¤¾à¤¤à¤° लोग इस दिन घर की पूरी सफाई और रंगाई करते हैं जिससे जहां पूरे साल सफाई नहीं होती वहां à¤à¥€ सफाई हो जाती है.
दीपावली पूजन विधि: दीपावली को लकà¥à¤·à¥à¤®à¥€, गणेश और सरसà¥à¤µà¤¤à¥€ की पूजा करने का विधान है. इसके साथ à¤à¤—वान राम और सीताजी को à¤à¥€ पूजा जाता है. इस दिन गणेश जी की पूजा इसलिठकी जाती है कà¥à¤¯à¥‚ंकि गणेश पूजन के बिना कोई à¤à¥€ पूजन अधूरा होता है और सरसà¥à¤µà¤¤à¥€ जी की इसलिठकी जाती है कà¥à¤¯à¥‚ंकि धन व सिदà¥à¤§à¤¿ के साथ जà¥à¤žà¤¾à¤¨ à¤à¥€ पूजनीय है.
इस दिन सà¥à¤¬à¤¹-सà¥à¤¬à¤¹ जलà¥à¤¦à¥€ उठकर नहा लेना चाहिठऔर आलसà¥à¤¯ का तà¥à¤¯à¤¾à¤— करना चाहिà¤. कहा जाता है कि लकà¥à¤·à¥à¤®à¥€ वहीं वास करती हैं जहां सफाई और सà¥à¤«à¥‚रà¥à¤¤à¤¿ हो. शाम के समय लकà¥à¤·à¥à¤®à¥€ जी की फोटो या मूरà¥à¤¤à¤¿ पर रोली बांधे.
छः चौमà¥à¤–े व 26 छोटे दीपक रखें. इनमें तेल-बतà¥à¤¤à¥€ डालकर जलाà¤à¤‚. फिर जल, मौली, चावल, फल, गà¥à¤¢à¤¼, अबीर, गà¥à¤²à¤¾à¤², धूप आदि से विधिवत पूजन करें. पूजा पहले पà¥à¤°à¥à¤· तथा बाद में सà¥à¤¤à¥à¤°à¤¿à¤¯à¤¾à¤‚ करें. पूजा के बाद à¤à¤•-à¤à¤• दीपक घर के कोनों में जलाकर रखें.
à¤à¤• छोटा तथा à¤à¤• चौमà¥à¤–ा दीपक रखकर निमà¥à¤¨ मंतà¥à¤° से लकà¥à¤·à¥à¤®à¥€à¤œà¥€ का पूजन करें:
नमसà¥à¤¤à¥‡ सरà¥à¤µà¤¦à¥‡à¤µà¤¾à¤¨à¤¾à¤‚ वरदासि हरेः पà¥à¤°à¤¿à¤¯à¤¾.
या गतिसà¥à¤¤à¥à¤µà¤¤à¥à¤ªà¥à¤°à¤ªà¤¨à¥à¤¨à¤¾à¤¨à¤¾à¤‚ सा मे à¤à¥‚यातà¥à¤µà¤¦à¤°à¥à¤šà¤¨à¤¾à¤¤à¥¥
इस पूजन के पशà¥à¤šà¤¾à¤¤ तिजोरी में गणेशजी तथा लकà¥à¤·à¥à¤®à¥€à¤œà¥€ की मूरà¥à¤¤à¤¿ रखकर विधिवत पूजा करें. इसके बाद मां लकà¥à¤·à¥à¤®à¥€ जी की आरती सपरिवार गाà¤à¤‚. पूजा के बाद खील बताशों का पà¥à¤°à¤¸à¤¾à¤¦ सà¤à¥€ को बांटें.
दीपावली और पटाखे
हार साल दीपावली पर पटाखों की वजह से कई घटनाà¤à¤‚ होती है. कई लोग आग का शिकार होते हैं. दीपावली दीपों का तà¥à¤¯à¥Œà¤¹à¤¾à¤° है ना कि पटाखों का. आज के पटाखों की आवाज से तो शायद à¤à¤—वान के कान à¤à¥€ कांपते होंगे.
तो दोसà¥à¤¤à¥‹à¤‚ जितना हो सके इस दीपावली खà¥à¤¦ à¤à¥€ पटाखों से दूर रहें और अपने आसपास के लोगों को à¤à¥€ पटाखों से होनी वाली हानियों के बारे में बताà¤à¤‚. इस दीपावली उजाला फैलाà¤à¤‚ ना कि पà¥à¤°à¤¦à¥‚षण.
दशहरा

दशहरा (विजयदशमी या आयà¥à¤§-पूजा) हिनà¥à¤¦à¥à¤“ं का à¤à¤• पà¥à¤°à¤®à¥à¤– तà¥à¤¯à¥‹à¤¹à¤¾à¤° है। अशà¥à¤µà¤¿à¤¨ (कà¥à¤µà¤¾à¤°) मास के शà¥à¤•à¥à¤² पकà¥à¤· की दशमी तिथि को इसका आयोजन होता है। à¤à¤—वान राम ने इसी दिन रावण का वध किया था। इसे असतà¥à¤¯ पर सतà¥à¤¯ की विजय के रूप में मनाया जाता है। इसीलिये इस दशमी को विजयादशमी के नाम से जाना जाता है। दशहरा वरà¥à¤· की तीन अतà¥à¤¯à¤¨à¥à¤¤ शà¥à¤ तिथियों में से à¤à¤• है, अनà¥à¤¯ दो हैं चैतà¥à¤° शà¥à¤•à¥à¤² की à¤à¤µà¤‚ कारà¥à¤¤à¤¿à¤• शà¥à¤•à¥à¤² की पà¥à¤°à¤¤à¤¿à¤ªà¤¦à¤¾à¥¤ इसी दिन लोग नया कारà¥à¤¯ पà¥à¤°à¤¾à¤°à¤®à¥à¤ करते हैं, शसà¥à¤¤à¥à¤°-पूजा की जाती है। पà¥à¤°à¤¾à¤šà¥€à¤¨ काल में राजा लोग इस दिन विजय की पà¥à¤°à¤¾à¤°à¥à¤¥à¤¨à¤¾ कर रण-यातà¥à¤°à¤¾ के लिठपà¥à¤°à¤¸à¥à¤¥à¤¾à¤¨ करते थे। इस दिन जगह-जगह मेले लगते हैं। रामलीला का आयोजन होता है। रावण का विशाल पà¥à¤¤à¤²à¤¾ बनाकर उसे जलाया जाता है। दशहरा अथवा विजयदशमी à¤à¤—वान राम की विजय के रूप में मनाया जाठअथवा दà¥à¤°à¥à¤—ा पूजा के रूप में, दोनों ही रूपों में यह शकà¥à¤¤à¤¿-पूजा का परà¥à¤µ है, शसà¥à¤¤à¥à¤° पूजन की तिथि है। हरà¥à¤· और उलà¥à¤²à¤¾à¤¸ तथा विजय का परà¥à¤µ है। à¤à¤¾à¤°à¤¤à¥€à¤¯ संसà¥à¤•ृति वीरता की पूजक है, शौरà¥à¤¯ की उपासक है। वà¥à¤¯à¤•à¥à¤¤à¤¿ और समाज के रकà¥à¤¤ में वीरता पà¥à¤°à¤•ट हो इसलिठदशहरे का उतà¥à¤¸à¤µ रखा गया है। दशहरा का परà¥à¤µ दस पà¥à¤°à¤•ार के पापों- काम, कà¥à¤°à¥‹à¤§, लोà¤, मोह मद, मतà¥à¤¸à¤°, अहंकार, आलसà¥à¤¯, हिंसा और चोरी के परितà¥à¤¯à¤¾à¤— की सदà¥à¤ªà¥à¤°à¥‡à¤°à¤£à¤¾ पà¥à¤°à¤¦à¤¾à¤¨ करता है।
सामाजिक महतà¥à¤¤à¥à¤µ
दशहरे का सांसà¥à¤•ृतिक पहलू à¤à¥€ है। à¤à¤¾à¤°à¤¤ कृषि पà¥à¤°à¤§à¤¾à¤¨ देश है। जब किसान अपने खेत में सà¥à¤¨à¤¹à¤°à¥€ फसल उगाकर अनाज रूपी संपतà¥à¤¤à¤¿ घर लाता है तो उसके उलà¥à¤²à¤¾à¤¸ और उमंग का पारावार नहीं रहता। इस पà¥à¤°à¤¸à¤¨à¥à¤¨à¤¤à¤¾ के अवसर पर वह à¤à¤—वान की कृपा को मानता है और उसे पà¥à¤°à¤•ट करने के लिठवह उसका पूजन करता है। समसà¥à¤¤ à¤à¤¾à¤°à¤¤à¤µà¤°à¥à¤· में यह परà¥à¤µ विà¤à¤¿à¤¨à¥à¤¨ पà¥à¤°à¤¦à¥‡à¤¶à¥‹à¤‚ में विà¤à¤¿à¤¨à¥à¤¨ पà¥à¤°à¤•ार से मनाया जाता है। महाराषà¥à¤Ÿà¥à¤° में इस अवसर पर सिलंगण के नाम से सामाजिक महोतà¥à¤¸à¤µ के रूप में à¤à¥€ इसको मनाया जाता है। सायंकाल के समय पर सà¤à¥€ गà¥à¤°à¤¾à¤®à¥€à¤£à¤œà¤¨ सà¥à¤‚दर-सà¥à¤‚दर नव वसà¥à¤¤à¥à¤°à¥‹à¤‚ से सà¥à¤¸à¤œà¥à¤œà¤¿à¤¤ होकर गाà¤à¤µ की सीमा पार कर शमी वृकà¥à¤· के पतà¥à¤¤à¥‹à¤‚ के रूप में 'सà¥à¤µà¤°à¥à¤£' लूटकर अपने गà¥à¤°à¤¾à¤® में वापस आते हैं। फिर उस सà¥à¤µà¤°à¥à¤£ का परसà¥à¤ªà¤° आदान-पà¥à¤°à¤¦à¤¾à¤¨ किया जाता है।
à¤à¤¾à¤°à¤¤ के विà¤à¤¿à¤¨à¥à¤¨ पà¥à¤°à¤¦à¥‡à¤¶à¥‹à¤‚ का दशहरा
दशहरा अथवा विजयदशमी राम की विजय के रूप में मनाया जाठअथवा दà¥à¤°à¥à¤—ा पूजा के रूप में, दोनों ही रूपों में यह शकà¥à¤¤à¤¿ पूजा का परà¥à¤µ है, शसà¥à¤¤à¥à¤° पूजन की तिथि है। हरà¥à¤· और उलà¥à¤²à¤¾à¤¸ तथा विजय का परà¥à¤µ है। देश के कोने-कोने में यह विà¤à¤¿à¤¨à¥à¤¨ रूपों से मनाया जाता है, बलà¥à¤•ि यह उतने ही जोश और उलà¥à¤²à¤¾à¤¸ से दूसरे देशों में à¤à¥€ मनाया जाता जहां पà¥à¤°à¤µà¤¾à¤¸à¥€ à¤à¤¾à¤°à¤¤à¥€à¤¯ रहते हैं।
हिमाचल पà¥à¤°à¤¦à¥‡à¤¶ में कà¥à¤²à¥à¤²à¥‚ का दशहरा बहà¥à¤¤ पà¥à¤°à¤¸à¤¿à¤¦à¥à¤§ है। अनà¥à¤¯ सà¥à¤¥à¤¾à¤¨à¥‹à¤‚ की ही à¤à¤¾à¤à¤¤à¤¿ यहाठà¤à¥€ दस दिन अथवा à¤à¤• सपà¥à¤¤à¤¾à¤¹ पूरà¥à¤µ इस परà¥à¤µ की तैयारी आरंठहो जाती है। सà¥à¤¤à¥à¤°à¤¿à¤¯à¤¾à¤ और पà¥à¤°à¥à¤· सà¤à¥€ सà¥à¤‚दर वसà¥à¤¤à¥à¤°à¥‹à¤‚ से सजà¥à¤œà¤¿à¤¤ होकर तà¥à¤°à¤¹à¥€, बिगà¥à¤², ढोल, नगाड़े, बाà¤à¤¸à¥à¤°à¥€ आदि-आदि जिसके पास जो वादà¥à¤¯ होता है, उसे लेकर बाहर निकलते हैं। पहाड़ी लोग अपने गà¥à¤°à¤¾à¤®à¥€à¤£ देवता का धूम धाम से जà¥à¤²à¥‚स निकाल कर पूजन करते हैं। देवताओं की मूरà¥à¤¤à¤¿à¤¯à¥‹à¤‚ को बहà¥à¤¤ ही आकरà¥à¤·à¤• पालकी में सà¥à¤‚दर ढंग से सजाया जाता है। साथ ही वे अपने मà¥à¤–à¥à¤¯ देवता रघà¥à¤¨à¤¾à¤¥ जी की à¤à¥€ पूजा करते हैं। इस जà¥à¤²à¥‚स में पà¥à¤°à¤¶à¤¿à¤•à¥à¤·à¤¿à¤¤ नरà¥à¤¤à¤• नटी नृतà¥à¤¯ करते हैं। इस पà¥à¤°à¤•ार जà¥à¤²à¥‚स बनाकर नगर के मà¥à¤–à¥à¤¯ à¤à¤¾à¤—ों से होते हà¥à¤ नगर परिकà¥à¤°à¤®à¤¾ करते हैं और कà¥à¤²à¥à¤²à¥‚ नगर में देवता रघà¥à¤¨à¤¾à¤¥à¤œà¥€ की वंदना से दशहरे के उतà¥à¤¸à¤µ का आरंठकरते हैं। दशमी के दिन इस उतà¥à¤¸à¤µ की शोà¤à¤¾ निराली होती है।
पंजाब में दशहरा नवरातà¥à¤°à¤¿ के नौ दिन का उपवास रखकर मनाते हैं। इस दौरान यहां आगंतà¥à¤•ों का सà¥à¤µà¤¾à¤—त पारंपरिक मिठाई और उपहारों से किया जाता है। यहां à¤à¥€ रावण-दहन के आयोजन होते हैं, व मैदानों में मेले लगते हैं।
बसà¥à¤¤à¤° में दशहरे के मà¥à¤–à¥à¤¯ कारण को राम की रावण पर विजय ना मानकर, लोग इसे मां दंतेशà¥à¤µà¤°à¥€ की आराधना को समरà¥à¤ªà¤¿à¤¤ à¤à¤• परà¥à¤µ मानते हैं। दंतेशà¥à¤µà¤°à¥€ माता बसà¥à¤¤à¤° अंचल के निवासियों की आराधà¥à¤¯ देवी हैं, जो दà¥à¤°à¥à¤—ा का ही रूप हैं। यहां यह परà¥à¤µ पूरे à¥à¥« दिन चलता है। यहां दशहरा शà¥à¤°à¤¾à¤µà¤£ मास की अमावस से आशà¥à¤µà¤¿à¤¨ मास की शà¥à¤•à¥à¤² तà¥à¤°à¤¯à¥‹à¤¦à¤¶à¥€ तक चलता है। पà¥à¤°à¤¥à¤® दिन जिसे काछिन गादि कहते हैं, देवी से समारोहारंठकी अनà¥à¤®à¤¤à¤¿ ली जाती है। देवी à¤à¤• कांटों की सेज पर विरजमान होती हैं, जिसे काछिन गादि कहते हैं। यह कनà¥à¤¯à¤¾ à¤à¤• अनà¥à¤¸à¥‚चित जाति की है, जिससे बसà¥à¤¤à¤° के राजपरिवार के वà¥à¤¯à¤•à¥à¤¤à¤¿ अनà¥à¤®à¤¤à¤¿ लेते हैं। यह समारोह लगà¤à¤— १५वीं शताबà¥à¤¦à¥€ से शà¥à¤°à¥ हà¥à¤† था। इसके बाद जोगी-बिठाई होती है, इसके बाद à¤à¥€à¤¤à¤° रैनी (विजयदशमी) और बाहर रैनी (रथ-यातà¥à¤°à¤¾) और अंत में मà¥à¤°à¤¿à¤¯à¤¾ दरबार होता है। इसका समापन अशà¥à¤µà¤¿à¤¨ शà¥à¤•à¥à¤² तà¥à¤°à¤¯à¥‹à¤¦à¤¶à¥€ को ओहाड़ी परà¥à¤µ से होता है।
बंगाल,ओडिशा और असम में यह परà¥à¤µ दà¥à¤°à¥à¤—ा पूजा के रूप में ही मनाया जाता है। यह बंगालियों,ओडिआ,और आसाम के लोगों का सबसे महतà¥à¤µà¤ªà¥‚रà¥à¤£ तà¥à¤¯à¥‹à¤¹à¤¾à¤° है। पूरे बंगाल में पांच दिनों के लिठमनाया जाता है।ओडिशा और असम मे ४ दिन तक तà¥à¤¯à¥‹à¤¹à¤¾à¤° चलता है। यहां देवी दà¥à¤°à¥à¤—ा को à¤à¤µà¥à¤¯ सà¥à¤¶à¥‹à¤à¤¿à¤¤ पंडालों विराजमान करते हैं। देश के नामी कलाकारों को बà¥à¤²à¤µà¤¾ कर दà¥à¤°à¥à¤—ा की मूरà¥à¤¤à¤¿ तैयार करवाई जाती हैं। इसके साथ अनà¥à¤¯ देवी दà¥à¤µà¥‡à¤µà¤¤à¤¾à¤“ं की à¤à¥€ कई मूरà¥à¤¤à¤¿à¤¯à¤¾à¤‚ बनाई जाती हैं। तà¥à¤¯à¥‹à¤¹à¤¾à¤° के दौरान शहर में छोटे मोटे सà¥à¤Ÿà¤¾à¤² à¤à¥€ मिठाईयों से à¤à¤°à¥‡ रहते हैं। यहां षषà¥à¤ ी के दिन दà¥à¤°à¥à¤—ा देवी का बोधन, आमंतà¥à¤°à¤£ à¤à¤µà¤‚ पà¥à¤°à¤¾à¤£ पà¥à¤°à¤¤à¤¿à¤·à¥à¤ ा आदि का आयोजन किया जाता है। उसके उपरांत सपà¥à¤¤à¤®à¥€, अषà¥à¤Ÿà¤®à¥€ à¤à¤µà¤‚ नवमी के दिन पà¥à¤°à¤¾à¤¤à¤ƒ और सायंकाल दà¥à¤°à¥à¤—ा की पूजा में वà¥à¤¯à¤¤à¥€à¤¤ होते हैं।अषà¥à¤Ÿà¤®à¥€ के दिन महापूजा और बलि à¤à¤¿ दि जाति है। दशमी के दिन विशेष पूजा का आयोजन किया जाता है। पà¥à¤°à¤¸à¤¾à¤¦ चढ़ाया जाता है और पà¥à¤°à¤¸à¤¾à¤¦ वितरण किया जाता है। पà¥à¤°à¥à¤· आपस में आलिंगन करते हैं, जिसे कोलाकà¥à¤²à¥€ कहते हैं। सà¥à¤¤à¥à¤°à¤¿à¤¯à¤¾à¤‚ देवी के माथे पर सिंदूर चढ़ाती हैं, व देवी को अशà¥à¤°à¥à¤ªà¥‚रित विदाई देती हैं। इसके साथ ही वे आपस में à¤à¥€ सिंदूर लगाती हैं, व सिंदूर से खेलते हैं। इस दिन यहां नीलकंठपकà¥à¤·à¥€ को देखना बहà¥à¤¤ ही शà¥à¤ माना जाता है। तदनंतर देवी पà¥à¤°à¤¤à¤¿à¤®à¤¾à¤“ं को बड़े-बड़े टà¥à¤°à¤•ों में à¤à¤° कर विसरà¥à¤œà¤¨ के लिठले जाया जाता है। विसरà¥à¤œà¤¨ की यह यातà¥à¤°à¤¾ à¤à¥€ बड़ी शोà¤à¤¨à¥€à¤¯ और दरà¥à¤¶à¤¨à¥€à¤¯ होती है।
तमिल नाडà¥, आंधà¥à¤° पà¥à¤°à¤¦à¥‡à¤¶ à¤à¤µà¤‚ करà¥à¤¨à¤¾à¤Ÿà¤• में दशहरा नौ दिनों तक चलता है जिसमें तीन देवियां लकà¥à¤·à¥à¤®à¥€, सरसà¥à¤µà¤¤à¥€ और दà¥à¤°à¥à¤—ा की पूजा करते हैं। पहले तीन दिन लकà¥à¤·à¥à¤®à¥€ - धन और समृदà¥à¤§à¤¿ की देवी का पूजन होता है। अगले तीन दिन सरसà¥à¤µà¤¤à¥€- कला और विदà¥à¤¯à¤¾ की देवी की अरà¥à¤šà¤¨à¤¾ की जाती है और अंतिम दिन देवी दà¥à¤°à¥à¤—ा-शकà¥à¤¤à¤¿ की देवी की सà¥à¤¤à¥à¤¤à¤¿ की जाती है। पूजन सà¥à¤¥à¤² को अचà¥à¤›à¥€ तरह फूलों और दीपकों से सजाया जाता है। लोग à¤à¤• दूसरे को मिठाइयां व कपड़े देते हैं। यहां दशहरा बचà¥à¤šà¥‹à¤‚ के लिठशिकà¥à¤·à¤¾ या कला संबंधी नया कारà¥à¤¯ सीखने के लिठशà¥à¤ समय होता है। करà¥à¤¨à¤¾à¤Ÿà¤• में मैसूर का दशहरा विशेष उलà¥à¤²à¥‡à¤–नीय है। मैसूर में दशहरे के समय पूरे शहर की गलियों को रोशनी से सजà¥à¤œà¤¿à¤¤ किया जाता है और हाथियों का शà¥à¤°à¤‚गार कर पूरे शहर में à¤à¤• à¤à¤µà¥à¤¯ जà¥à¤²à¥‚स निकाला जाता है। इस समय पà¥à¤°à¤¸à¤¿à¤¦à¥à¤§ मैसूर महल को दीपमालिकाओं से दà¥à¤²à¤¹à¤¨ की तरह सजाया जाता है। इसके साथ शहर में लोग टारà¥à¤š लाइट के संग नृतà¥à¤¯ और संगीत की शोà¤à¤¾ यातà¥à¤°à¤¾ का आनंद लेते हैं। इन दà¥à¤°à¤µà¤¿à¤¡à¤¼ पà¥à¤°à¤¦à¥‡à¤¶à¥‹à¤‚ में रावण-दहन का आयोजन नहीं किया जाता है।
गà¥à¤œà¤°à¤¾à¤¤ में मिटà¥à¤Ÿà¥€ सà¥à¤¶à¥‹à¤à¤¿à¤¤ रंगीन घड़ा देवी का पà¥à¤°à¤¤à¥€à¤• माना जाता है और इसको कà¥à¤‚वारी लड़कियां सिर पर रखकर à¤à¤• लोकपà¥à¤°à¤¿à¤¯ नृतà¥à¤¯ करती हैं जिसे गरबा कहा जाता है। गरबा नृतà¥à¤¯ इस परà¥à¤µ की शान है। पà¥à¤°à¥à¤· à¤à¤µà¤‚ सà¥à¤¤à¥à¤°à¤¿à¤¯à¤¾à¤‚ दो छोटे रंगीन डंडों को संगीत की लय पर आपस में बजाते हà¥à¤ घूम घूम कर नृतà¥à¤¯ करते हैं। इस अवसर पर à¤à¤•à¥à¤¤à¤¿, फिलà¥à¤® तथा पारंपरिक लोक-संगीत सà¤à¥€ का समायोजन होता है। पूजा और आरती के बाद डांडिया रास का आयोजन पूरी रात होता रहता है। नवरातà¥à¤°à¤¿ में सोने और गहनों की खरीद को शà¥à¤ माना जाता है।
महाराषà¥à¤Ÿà¥à¤° में नवरातà¥à¤°à¤¿ के नौ दिन मां दà¥à¤°à¥à¤—ा को समरà¥à¤ªà¤¿à¤¤ रहते हैं, जबकि दसवें दिन जà¥à¤žà¤¾à¤¨ की देवी सरसà¥à¤µà¤¤à¥€ की वंदना की जाती है। इस दिन विदà¥à¤¯à¤¾à¤²à¤¯ जाने वाले बचà¥à¤šà¥‡ अपनी पढ़ाई में आशीरà¥à¤µà¤¾à¤¦ पाने के लिठमां सरसà¥à¤µà¤¤à¥€ के तांतà¥à¤°à¤¿à¤• चिहà¥à¤¨à¥‹à¤‚ की पूजा करते हैं। किसी à¤à¥€ चीज को पà¥à¤°à¤¾à¤°à¤‚ठकरने के लिठखासकर विदà¥à¤¯à¤¾ आरंठकरने के लिठयह दिन काफी शà¥à¤ माना जाता है। महाराषà¥à¤Ÿà¥à¤° के लोग इस दिन विवाह, गृह-पà¥à¤°à¤µà¥‡à¤¶ à¤à¤µà¤‚ नये घर खरीदने का शà¥à¤ मà¥à¤¹à¥‚रà¥à¤¤ समà¤à¤¤à¥‡ हैं।
कशà¥à¤®à¥€à¤° के अलà¥à¤ªà¤¸à¤‚खà¥à¤¯à¤• हिनà¥à¤¦à¥‚ नवरातà¥à¤°à¤¿ के परà¥à¤µ को शà¥à¤°à¤¦à¥à¤§à¤¾ से मनाते हैं। परिवार के सारे वयसà¥à¤• सदसà¥à¤¯ नौ दिनों तक सिरà¥à¤« पानी पीकर उपवास करते हैं। अतà¥à¤¯à¤‚त पà¥à¤°à¤¾à¤¨à¥€ परंपरा के अनà¥à¤¸à¤¾à¤° नौ दिनों तक लोग माता खीर à¤à¤µà¤¾à¤¨à¥€ के दरà¥à¤¶à¤¨ करने के लिठजाते हैं। यह मंदिर à¤à¤• à¤à¥€à¤² के बीचोबीच बना हà¥à¤† है। à¤à¤¸à¤¾ माना जाता है कि देवी ने अपने à¤à¤•à¥à¤¤à¥‹à¤‚ से कहा हà¥à¤† है कि यदि कोई अनहोनी होने वाली होगी तो सरोवर का पानी काला हो जाà¤à¤—ा। कहा जाता है कि इंदिरा गांधी की हतà¥à¤¯à¤¾ के ठीक à¤à¤• दिन पहले और à¤à¤¾à¤°à¤¤ पाक यà¥à¤¦à¥à¤§ के पहले यहाठका पानी सचमà¥à¤š काला हो गया था।
विजय परà¥à¤µ
दशहरे का उतà¥à¤¸à¤µ शकà¥à¤¤à¤¿ और शकà¥à¤¤à¤¿ का समनà¥à¤µà¤¯ बताने वाला उतà¥à¤¸à¤µ है। नवरातà¥à¤°à¤¿ के नौ दिन जगदमà¥à¤¬à¤¾ की उपासना करके शकà¥à¤¤à¤¿à¤¶à¤¾à¤²à¥€ बना हà¥à¤† मनà¥à¤·à¥à¤¯ विजय पà¥à¤°à¤¾à¤ªà¥à¤¤à¤¿ के लिठततà¥à¤ªà¤° रहता है। इस दृषà¥à¤Ÿà¤¿ से दशहरे अरà¥à¤¥à¤¾à¤¤ विजय के लिठपà¥à¤°à¤¸à¥à¤¥à¤¾à¤¨ का उतà¥à¤¸à¤µ का उतà¥à¤¸à¤µ आवशà¥à¤¯à¤• à¤à¥€ है।
à¤à¤¾à¤°à¤¤à¥€à¤¯ संसà¥à¤•ृति सदा से ही वीरता व शौरà¥à¤¯ की समरà¥à¤¥à¤• रही है। पà¥à¤°à¤¤à¥à¤¯à¥‡à¤• वà¥à¤¯à¤•à¥à¤¤à¤¿ और समाज के रà¥à¤§à¤¿à¤° में वीरता का पà¥à¤°à¤¾à¤¦à¥à¤°à¥à¤à¤¾à¤µ हो कारण से ही दशहरे का उतà¥à¤¸à¤µ मनाया जाता है। यदि कà¤à¥€ यà¥à¤¦à¥à¤§ अनिवारà¥à¤¯ ही हो तब शतà¥à¤°à¥ के आकà¥à¤°à¤®à¤£ की पà¥à¤°à¤¤à¥€à¤•à¥à¤·à¤¾ ना कर उस पर हमला कर उसका पराà¤à¤µ करना ही कà¥à¤¶à¤² राजनीति है। à¤à¤—वान राम के समय से यह दिन विजय पà¥à¤°à¤¸à¥à¤¥à¤¾à¤¨ का पà¥à¤°à¤¤à¥€à¤• निशà¥à¤šà¤¿à¤¤ है। à¤à¤—वान राम ने रावण से यà¥à¤¦à¥à¤§ हेतॠइसी दिन पà¥à¤°à¤¸à¥à¤¥à¤¾à¤¨ किया था। मराठा रतà¥à¤¨ शिवाजी ने à¤à¥€ औरंगजेब के विरà¥à¤¦à¥à¤§ इसी दिन पà¥à¤°à¤¸à¥à¤¥à¤¾à¤¨ करके हिनà¥à¤¦à¥‚ धरà¥à¤® का रकà¥à¤·à¤£ किया था। à¤à¤¾à¤°à¤¤à¥€à¤¯ इतिहास में अनेक उदाहरण हैं जब हिनà¥à¤¦à¥‚ राजा इस दिन विजय-पà¥à¤°à¤¸à¥à¤¥à¤¾à¤¨ करते थे।
इस परà¥à¤µ को à¤à¤—वती के 'विजया' नाम पर à¤à¥€ 'विजयादशमी' कहते हैं। इस दिन à¤à¤—वान रामचंदà¥à¤° चौदह वरà¥à¤· का वनवास à¤à¥‹à¤—कर तथा रावण का वध कर अयोधà¥à¤¯à¤¾ पहà¥à¤à¤šà¥‡ थे। इसलिठà¤à¥€ इस परà¥à¤µ को 'विजयादशमी' कहा जाता है। à¤à¤¸à¤¾ माना जाता है कि आशà¥à¤µà¤¿à¤¨ शà¥à¤•à¥à¤² दशमी को तारा उदय होने के समय 'विजय' नामक मà¥à¤¹à¥‚रà¥à¤¤ होता है। यह काल सरà¥à¤µà¤•ारà¥à¤¯ सिदà¥à¤§à¤¿à¤¦à¤¾à¤¯à¤• होता है। इसलिठà¤à¥€ इसे विजयादशमी कहते हैं।
à¤à¤¸à¤¾ माना गया है कि शतà¥à¤°à¥ पर विजय पाने के लिठइसी समय पà¥à¤°à¤¸à¥à¤¥à¤¾à¤¨ करना चाहिà¤à¥¤ इस दिन शà¥à¤°à¤µà¤£ नकà¥à¤·à¤¤à¥à¤° का योग और à¤à¥€ अधिक शà¥à¤ माना गया है। यà¥à¤¦à¥à¤§ करने का पà¥à¤°à¤¸à¤‚ग न होने पर à¤à¥€ इस काल में राजाओं (महतà¥à¤¤à¥à¤µà¤ªà¥‚रà¥à¤£ पदों पर पदासीन लोग) को सीमा का उलà¥à¤²à¤‚घन करना चाहिà¤à¥¤ दà¥à¤°à¥à¤¯à¥‹à¤§à¤¨ ने पांडवों को जà¥à¤ में पराजित करके बारह वरà¥à¤· के वनवास के साथ तेरहवें वरà¥à¤· में अजà¥à¤žà¤¾à¤¤à¤µà¤¾à¤¸ की शरà¥à¤¤ दी थी। तेरहवें वरà¥à¤· यदि उनका पता लग जाता तो उनà¥à¤¹à¥‡à¤‚ पà¥à¤¨à¤ƒ बारह वरà¥à¤· का वनवास à¤à¥‹à¤—ना पड़ता। इसी अजà¥à¤žà¤¾à¤¤à¤µà¤¾à¤¸ में अरà¥à¤œà¥à¤¨ ने अपना धनà¥à¤· à¤à¤• शमी वृकà¥à¤· पर रखा था तथा सà¥à¤µà¤¯à¤‚ वृहनà¥à¤¨à¤²à¤¾ वेश में राजा विराट के यहठनौकरी कर ली थी। जब गोरकà¥à¤·à¤¾ के लिठविराट के पà¥à¤¤à¥à¤° धृषà¥à¤Ÿà¤¦à¥à¤¯à¥à¤®à¥à¤¨ ने अरà¥à¤œà¥à¤¨ को अपने साथ लिया, तब अरà¥à¤œà¥à¤¨ ने शमी वृकà¥à¤· पर से अपने हथियार उठाकर शतà¥à¤°à¥à¤“ं पर विजय पà¥à¤°à¤¾à¤ªà¥à¤¤ की थी। विजयादशमी के दिन à¤à¤—वान रामचंदà¥à¤°à¤œà¥€ के लंका पर चढ़ाई करने के लिठपà¥à¤°à¤¸à¥à¤¥à¤¾à¤¨ करते समय शमी वृकà¥à¤· ने à¤à¤—वान की विजय का उदà¥à¤˜à¥‹à¤· किया था। विजयकाल में शमी पूजन इसीलिठहोता है।
नवरातà¥à¤°à¤¿
नवरातà¥à¤°à¤¿ à¤à¤• हिंदू परà¥à¤µ है। नवरातà¥à¤°à¤¿ संसà¥à¤•ृत शबà¥à¤¦ है, जिसका अरà¥à¤¥ होता है नौ रातें । यह परà¥à¤µ साल में चार बार आता है।चैतà¥à¤°,आषाढ,अशà¥à¤µà¤¿à¤¨,पोषपà¥à¤°à¤¤à¤¿à¤ªà¤¦à¤¾ से नवमी तक मनाया जाता है। नवरातà¥à¤°à¤¿ के नौ रातो में तीन देवियों - महाकाली, महालकà¥à¤·à¥à¤®à¥€ और महासरसà¥à¤µà¤¤à¥€à¤¯à¤¾ सरसà¥à¤µà¤¤à¥€à¤•ि तथा दà¥à¤°à¥à¤—ा के नौ सà¥à¤µà¤°à¥à¤ªà¥‹à¤‚ की पूजा होती है जिनà¥à¤¹à¥‡ नवदà¥à¤°à¥à¤—ा कहते हैं ।
नौ देवियाठहै :-
शà¥à¤°à¥€ शैलपà¥à¤¤à¥à¤°à¥€
देवी दà¥à¤°à¥à¤—ा के नौ रूप होते हैं। दà¥à¤°à¥à¤—ाजी पहले सà¥à¤µà¤°à¥‚प में 'शैलपà¥à¤¤à¥à¤°à¥€' के नाम से जानी जाती हैं। ये ही नवदà¥à¤°à¥à¤—ाओं में पà¥à¤°à¤¥à¤® दà¥à¤°à¥à¤—ा हैं। परà¥à¤µà¤¤à¤°à¤¾à¤œ हिमालय के घर पà¥à¤¤à¥à¤°à¥€ रूप में उतà¥à¤ªà¤¨à¥à¤¨ होने के कारण इनका नाम 'शैलपà¥à¤¤à¥à¤°à¥€' पड़ा। नवरातà¥à¤°-पूजन में पà¥à¤°à¤¥à¤® दिवस इनà¥à¤¹à¥€à¤‚ की पूजा और उपासना की जाती है। इस पà¥à¤°à¤¥à¤® दिन की उपासना में योगी अपने मन को 'मूलाधार' चकà¥à¤° में सà¥à¤¥à¤¿à¤¤ करते हैं। यहीं से उनकी योग साधना का पà¥à¤°à¤¾à¤°à¤‚ठहोता है।
शोà¤à¤¾
वृषà¤-सà¥à¤¥à¤¿à¤¤à¤¾ इन माताजी के दाहिने हाथ में तà¥à¤°à¤¿à¤¶à¥‚ल और बाà¤à¤ हाथ में कमल-पà¥à¤·à¥à¤ª सà¥à¤¶à¥‹à¤à¤¿à¤¤ है। अपने पूरà¥à¤µ जनà¥à¤® में ये पà¥à¤°à¤œà¤¾à¤ªà¤¤à¤¿ दकà¥à¤· की कनà¥à¤¯à¤¾ के रूप में उतà¥à¤ªà¤¨à¥à¤¨ हà¥à¤ˆ थीं। तब इनका नाम 'सती' था। इनका विवाह à¤à¤—वान शंकरजी से हà¥à¤† था।
कथा
à¤à¤• बार पà¥à¤°à¤œà¤¾à¤ªà¤¤à¤¿ दकà¥à¤· ने à¤à¤• बहà¥à¤¤ बड़ा यजà¥à¤ž किया। इसमें उनà¥à¤¹à¥‹à¤‚ने सारे देवताओं को अपना-अपना यजà¥à¤ž-à¤à¤¾à¤— पà¥à¤°à¤¾à¤ªà¥à¤¤ करने के लिठनिमंतà¥à¤°à¤¿à¤¤ किया, किनà¥à¤¤à¥ शंकरजी को उनà¥à¤¹à¥‹à¤‚ने इस यजà¥à¤ž में निमंतà¥à¤°à¤¿à¤¤ नहीं किया। सती ने जब सà¥à¤¨à¤¾ कि उनके पिता à¤à¤• अतà¥à¤¯à¤‚त विशाल यजà¥à¤ž का अनà¥à¤·à¥à¤ ान कर रहे हैं, तब वहाठजाने के लिठउनका मन विकल हो उठा।
अपनी यह इचà¥à¤›à¤¾ उनà¥à¤¹à¥‹à¤‚ने शंकरजी को बताई। सारी बातों पर विचार करने के बाद उनà¥à¤¹à¥‹à¤‚ने कहा- पà¥à¤°à¤œà¤¾à¤ªà¤¤à¤¿ दकà¥à¤· किसी कारणवश हमसे रà¥à¤·à¥à¤Ÿ हैं। अपने यजà¥à¤ž में उनà¥à¤¹à¥‹à¤‚ने सारे देवताओं को निमंतà¥à¤°à¤¿à¤¤ किया है। उनके यजà¥à¤ž-à¤à¤¾à¤— à¤à¥€ उनà¥à¤¹à¥‡à¤‚ समरà¥à¤ªà¤¿à¤¤ किठहैं, किनà¥à¤¤à¥ हमें जान-बूà¤à¤•र नहीं बà¥à¤²à¤¾à¤¯à¤¾ है। कोई सूचना तक नहीं à¤à¥‡à¤œà¥€ है। à¤à¤¸à¥€ सà¥à¤¥à¤¿à¤¤à¤¿ में तà¥à¤®à¥à¤¹à¤¾à¤°à¤¾ वहाठजाना किसी पà¥à¤°à¤•ार à¤à¥€ शà¥à¤°à¥‡à¤¯à¤¸à¥à¤•र नहीं होगा।'
शंकरजी के इस उपदेश से सती का पà¥à¤°à¤¬à¥‹à¤§ नहीं हà¥à¤†à¥¤ पिता का यजà¥à¤ž देखने, वहाठजाकर माता और बहनों से मिलने की उनकी वà¥à¤¯à¤—à¥à¤°à¤¤à¤¾ किसी पà¥à¤°à¤•ार à¤à¥€ कम न हो सकी। उनका पà¥à¤°à¤¬à¤² आगà¥à¤°à¤¹ देखकर à¤à¤—वान शंकरजी ने उनà¥à¤¹à¥‡à¤‚ वहाठजाने की अनà¥à¤®à¤¤à¤¿ दे दी।
सती ने पिता के घर पहà¥à¤à¤šà¤•र देखा कि कोई à¤à¥€ उनसे आदर और पà¥à¤°à¥‡à¤® के साथ बातचीत नहीं कर रहा है। सारे लोग मà¥à¤à¤¹ फेरे हà¥à¤ हैं। केवल उनकी माता ने सà¥à¤¨à¥‡à¤¹ से उनà¥à¤¹à¥‡à¤‚ गले लगाया। बहनों की बातों में वà¥à¤¯à¤‚गà¥à¤¯ और उपहास के à¤à¤¾à¤µ à¤à¤°à¥‡ हà¥à¤ थे।
परिजनों के इस वà¥à¤¯à¤µà¤¹à¤¾à¤° से उनके मन को बहà¥à¤¤ कà¥à¤²à¥‡à¤¶ पहà¥à¤à¤šà¤¾à¥¤ उनà¥à¤¹à¥‹à¤‚ने यह à¤à¥€ देखा कि वहाठचतà¥à¤°à¥à¤¦à¤¿à¤• à¤à¤—वान शंकरजी के पà¥à¤°à¤¤à¤¿ तिरसà¥à¤•ार का à¤à¤¾à¤µ à¤à¤°à¤¾ हà¥à¤† है। दकà¥à¤· ने उनके पà¥à¤°à¤¤à¤¿ कà¥à¤› अपमानजनक वचन à¤à¥€ कहे। यह सब देखकर सती का हृदय कà¥à¤·à¥‹à¤, गà¥à¤²à¤¾à¤¨à¤¿ और कà¥à¤°à¥‹à¤§ से संतपà¥à¤¤ हो उठा। उनà¥à¤¹à¥‹à¤‚ने सोचा à¤à¤—वान शंकरजी की बात न मान, यहाठआकर मैंने बहà¥à¤¤ बड़ी गलती की है।
वे अपने पति à¤à¤—वान शंकर के इस अपमान को सह न सकीं। उनà¥à¤¹à¥‹à¤‚ने अपने उस रूप को ततà¥à¤•à¥à¤·à¤£ वहीं योगागà¥à¤¨à¤¿ दà¥à¤µà¤¾à¤°à¤¾ जलाकर à¤à¤¸à¥à¤® कर दिया। वजà¥à¤°à¤ªà¤¾à¤¤ के समान इस दारà¥à¤£-दà¥à¤ƒà¤–द घटना को सà¥à¤¨à¤•र शंकरजी ने कà¥à¤°à¥à¤¦à¥à¤§ होअपने गणों को à¤à¥‡à¤œà¤•र दकà¥à¤· के उस यजà¥à¤ž का पूरà¥à¤£à¤¤à¤ƒ विधà¥à¤µà¤‚स करा दिया।
सती ने योगागà¥à¤¨à¤¿ दà¥à¤µà¤¾à¤°à¤¾ अपने शरीर को à¤à¤¸à¥à¤® कर अगले जनà¥à¤® में शैलराज हिमालय की पà¥à¤¤à¥à¤°à¥€ के रूप में जनà¥à¤® लिया। इस बार वे 'शैलपà¥à¤¤à¥à¤°à¥€' नाम से विखà¥à¤¯à¤¾à¤¤ हà¥à¤°à¥à¤ˆà¤‚। पारà¥à¤µà¤¤à¥€, हैमवती à¤à¥€ उनà¥à¤¹à¥€à¤‚ के नाम हैं। उपनिषदॠकी à¤à¤• कथा के अनà¥à¤¸à¤¾à¤° इनà¥à¤¹à¥€à¤‚ ने हैमवती सà¥à¤µà¤°à¥‚प से देवताओं का गरà¥à¤µ-à¤à¤‚जन किया था।
उपसंहार
'शैलपà¥à¤¤à¥à¤°à¥€' देवी का विवाह à¤à¥€ शंकरजी से ही हà¥à¤†à¥¤ पूरà¥à¤µà¤œà¤¨à¥à¤® की à¤à¤¾à¤à¤¤à¤¿ इस जनà¥à¤® में à¤à¥€ वे शिवजी की ही अरà¥à¤¦à¥à¤§à¤¾à¤‚गिनी बनीं। नवदà¥à¤°à¥à¤—ाओं में पà¥à¤°à¤¥à¤® शैलपà¥à¤¤à¥à¤°à¥€ दà¥à¤°à¥à¤—ा का महतà¥à¤µ और शकà¥à¤¤à¤¿à¤¯à¤¾à¤ अनंत हैं।
शà¥à¤°à¥€ बà¥à¤°à¤¹à¥à¤®à¤šà¤¾à¤°à¤¿à¤£à¥€
नवरातà¥à¤° परà¥à¤µ के दूसरे दिन माठबà¥à¤°à¤¹à¥à¤®à¤šà¤¾à¤°à¤¿à¤£à¥€ की पूजा-अरà¥à¤šà¤¨à¤¾ की जाती है। साधक इस दिन अपने मन को माठके चरणों में लगाते हैं। बà¥à¤°à¤¹à¥à¤® का अरà¥à¤¥ है तपसà¥à¤¯à¤¾ और चारिणी यानी आचरण करने वाली। इस पà¥à¤°à¤•ार बà¥à¤°à¤¹à¥à¤®à¤šà¤¾à¤°à¤¿à¤£à¥€ का अरà¥à¤¥ हà¥à¤† तप का आचरण करने वाली। इनके दाहिने हाथ में जप की माला à¤à¤µà¤‚ बाà¤à¤ हाथ में कमणà¥à¤¡à¤² रहता है।
शकà¥à¤¤à¤¿
इस दिन साधक कà¥à¤‚डलिनी शकà¥à¤¤à¤¿ को जागृत करने के लिठà¤à¥€ साधना करते हैं। जिससे उनका जीवन सफल हो सके और अपने सामने आने वाली किसी à¤à¥€ पà¥à¤°à¤•ार की बाधा का सामना आसानी से कर सकें।
फल
माठदà¥à¤°à¥à¤—ाजी का यह दूसरा सà¥à¤µà¤°à¥‚प à¤à¤•à¥à¤¤à¥‹à¤‚ और सिदà¥à¤§à¥‹à¤‚ को अननà¥à¤¤à¤«à¤² देने वाला है। इनकी उपासना से मनà¥à¤·à¥à¤¯ में तप, तà¥à¤¯à¤¾à¤—, वैरागà¥à¤¯, सदाचार, संयम की वृदà¥à¤§à¤¿ होती है। जीवन के कठिन संघरà¥à¤·à¥‹à¤‚ में à¤à¥€ उसका मन करà¥à¤¤à¤µà¥à¤¯-पथ से विचलित नहीं होता।
माठबà¥à¤°à¤¹à¥à¤®à¤šà¤¾à¤°à¤¿à¤£à¥€ देवी की कृपा से उसे सरà¥à¤µà¤¤à¥à¤° सिदà¥à¤§à¤¿ और विजय की पà¥à¤°à¤¾à¤ªà¥à¤¤à¤¿ होती है। दà¥à¤°à¥à¤—ा पूजा के दूसरे दिन इनà¥à¤¹à¥€à¤‚ के सà¥à¤µà¤°à¥‚प की उपासना की जाती है। इस दिन साधक का मन ‘सà¥à¤µà¤¾à¤§à¤¿à¤·à¥à¤ ान ’चकà¥à¤° में शिथिल होता है। इस चकà¥à¤° में अवसà¥à¤¥à¤¿à¤¤ मनवाला योगी उनकी कृपा और à¤à¤•à¥à¤¤à¤¿ पà¥à¤°à¤¾à¤ªà¥à¤¤ करता है।
इस दिन à¤à¤¸à¥€ कनà¥à¤¯à¤¾à¤“ं का पूजन किया जाता है कि जिनका विवाह तय हो गया है लेकिन अà¤à¥€ शादी नहीं हà¥à¤ˆ है। इनà¥à¤¹à¥‡à¤‚ अपने घर बà¥à¤²à¤¾à¤•र पूजन के पशà¥à¤šà¤¾à¤¤ à¤à¥‹à¤œà¤¨ कराकर वसà¥à¤¤à¥à¤°, पातà¥à¤° आदि à¤à¥‡à¤‚ट किठजाते हैं।
उपासना
पà¥à¤°à¤¤à¥à¤¯à¥‡à¤• सरà¥à¤µà¤¸à¤¾à¤§à¤¾à¤°à¤£ के लिठआराधना योगà¥à¤¯ यह शà¥à¤²à¥‹à¤• सरल और सà¥à¤ªà¤·à¥à¤Ÿ है। माठजगदमà¥à¤¬à¥‡ की à¤à¤•à¥à¤¤à¤¿ पाने के लिठइसे कंठसà¥à¤¥ कर नवरातà¥à¤°à¤¿ में दà¥à¤µà¤¿à¤¤à¥€à¤¯ दिन इसका जाप करना चाहिà¤à¥¤
या देवी सरà¥à¤µà¤à¥‚â€à¤¤à¥‡à¤·à¥ माठबà¥à¤°à¤¹à¥à¤®à¤šà¤¾à¤°à¤¿à¤£à¥€ रूपेण संसà¥à¤¥à¤¿à¤¤à¤¾à¥¤
नमसà¥à¤¤à¤¸à¥à¤¯à¥ˆ नमसà¥à¤¤à¤¸à¥à¤¯à¥ˆ नमसà¥à¤¤à¤¸à¥à¤¯à¥ˆ नमो नम:।।
अरà¥à¤¥ : हे माà¤! सरà¥à¤µà¤¤à¥à¤° विराजमान और बà¥à¤°à¤¹à¥à¤®à¤šà¤¾à¤°à¤¿à¤£à¥€ के रूप में पà¥à¤°à¤¸à¤¿à¤¦à¥à¤§ अमà¥à¤¬à¥‡, आपको मेरा बार-बार पà¥à¤°à¤£à¤¾à¤® है। या मैं आपको बारंबार पà¥à¤°à¤£à¤¾à¤® करता हूà¤à¥¤
शà¥à¤°à¥€ चंदà¥à¤°à¤˜à¤‚टा
माठदà¥à¤°à¥à¤—ाजी की तीसरी शकà¥à¤¤à¤¿ का नाम चंदà¥à¤°à¤˜à¤‚टा है। नवरातà¥à¤°à¤¿ उपासना में तीसरे दिन की पूजा का अतà¥à¤¯à¤§à¤¿à¤• महतà¥à¤µ है और इस दिन इनà¥à¤¹à¥€à¤‚ के विगà¥à¤°à¤¹ का पूजन-आराधन किया जाता है। इस दिन साधक का मन 'मणिपूर' चकà¥à¤° में पà¥à¤°à¤µà¤¿à¤·à¥à¤Ÿ होता है।
माठचंदà¥à¤°à¤˜à¤‚टा की कृपा से अलौकिक वसà¥à¤¤à¥à¤“ं के दरà¥à¤¶à¤¨ होते हैं, दिवà¥à¤¯ सà¥à¤—ंधियों का अनà¥à¤à¤µ होता है तथा विविध पà¥à¤°à¤•ार की दिवà¥à¤¯ धà¥à¤µà¤¨à¤¿à¤¯à¤¾à¤ सà¥à¤¨à¤¾à¤ˆ देती हैं। ये कà¥à¤·à¤£ साधक के लिठअतà¥à¤¯à¤‚त सावधान रहने के होते हैं।
सà¥à¤µà¤°à¥‚प
माठका यह सà¥à¤µà¤°à¥‚प परम शांतिदायक और कलà¥à¤¯à¤¾à¤£à¤•ारी है। इनके मसà¥à¤¤à¤• में घंटे का आकार का अरà¥à¤§à¤šà¤‚दà¥à¤° है, इसी कारण से इनà¥à¤¹à¥‡à¤‚ चंदà¥à¤°à¤˜à¤‚टा देवी कहा जाता है। इनके शरीर का रंग सà¥à¤µà¤°à¥à¤£ के समान चमकीला है। इनके दस हाथ हैं। इनके दसों हाथों में खडà¥à¤— आदि शसà¥à¤¤à¥à¤° तथा बाण आदि असà¥à¤¤à¥à¤° विà¤à¥‚षित हैं। इनका वाहन सिंह है। इनकी मà¥à¤¦à¥à¤°à¤¾ यà¥à¤¦à¥à¤§ के लिठउदà¥à¤¯à¤¤ रहने की होती है।
कृपा
मां चंदà¥à¤°à¤˜à¤‚टा की कृपा से साधक के समसà¥à¤¤ पाप और बाधाà¤à¤ विनषà¥à¤Ÿ हो जाती हैं। इनकी आराधना सदà¥à¤¯à¤ƒ फलदायी है। माठà¤à¤•à¥à¤¤à¥‹à¤‚ के कषà¥à¤Ÿ का निवारण शीघà¥à¤° ही कर देती हैं। इनका उपासक सिंह की तरह पराकà¥à¤°à¤®à¥€ और निरà¥à¤à¤¯ हो जाता है। इनके घंटे की धà¥à¤µà¤¨à¤¿ सदा अपने à¤à¤•à¥à¤¤à¥‹à¤‚ को पà¥à¤°à¥‡à¤¤à¤¬à¤¾à¤§à¤¾ से रकà¥à¤·à¤¾ करती है। इनका धà¥à¤¯à¤¾à¤¨ करते ही शरणागत की रकà¥à¤·à¤¾ के लिठइस घंटे की धà¥à¤µà¤¨à¤¿ निनादित हो उठती है।
माठका सà¥à¤µà¤°à¥‚प अतà¥à¤¯à¤‚त सौमà¥à¤¯à¤¤à¤¾ à¤à¤µà¤‚ शांति से परिपूरà¥à¤£ रहता है। इनकी आराधना से वीरता-निरà¥à¤à¤¯à¤¤à¤¾ के साथ ही सौमà¥à¤¯à¤¤à¤¾ à¤à¤µà¤‚ विनमà¥à¤°à¤¤à¤¾ का विकास होकर मà¥à¤–, नेतà¥à¤° तथा संपूरà¥à¤£ काया में कांति-गà¥à¤£ की वृदà¥à¤§à¤¿ होती है। सà¥à¤µà¤° में दिवà¥à¤¯, अलौकिक माधà¥à¤°à¥à¤¯ का समावेश हो जाता है। माठचंदà¥à¤°à¤˜à¤‚टा के à¤à¤•à¥à¤¤ और उपासक जहाठà¤à¥€ जाते हैं लोग उनà¥à¤¹à¥‡à¤‚ देखकर शांति और सà¥à¤– का अनà¥à¤à¤µ करते हैं।
माठके आराधक के शरीर से दिवà¥à¤¯ पà¥à¤°à¤•ाशयà¥à¤•à¥à¤¤ परमाणà¥à¤“ं का अदृशà¥à¤¯ विकिरण होता रहता है। यह दिवà¥à¤¯ कà¥à¤°à¤¿à¤¯à¤¾ असाधारण चकà¥à¤·à¥à¤“ं से दिखाई नहीं देती, किनà¥à¤¤à¥ साधक और उसके संपरà¥à¤• में आने वाले लोग इस बात का अनà¥à¤à¤µ à¤à¤²à¥€-à¤à¤¾à¤à¤¤à¤¿ करते रहते हैं।
साधना
हमें चाहिठकि अपने मन, वचन, करà¥à¤® à¤à¤µà¤‚ काया को विहित विधि-विधान के अनà¥à¤¸à¤¾à¤° पूरà¥à¤£à¤¤à¤ƒ परिशà¥à¤¦à¥à¤§ à¤à¤µà¤‚ पवितà¥à¤° करके माठचंदà¥à¤°à¤˜à¤‚टा के शरणागत होकर उनकी उपासना-आराधना में ततà¥à¤ªà¤° हों। उनकी उपासना से हम समसà¥à¤¤ सांसारिक कषà¥à¤Ÿà¥‹à¤‚ से विमà¥à¤•à¥à¤¤ होकर सहज ही परमपद के अधिकारी बन सकते हैं।
हमें निरंतर उनके पवितà¥à¤° विगà¥à¤°à¤¹ को धà¥à¤¯à¤¾à¤¨ में रखते हà¥à¤ साधना की ओर अगà¥à¤°à¤¸à¤° होने का पà¥à¤°à¤¯à¤¤à¥à¤¨ करना चाहिà¤à¥¤ उनका धà¥à¤¯à¤¾à¤¨ हमारे इहलोक और परलोक दोनों के लिठपरम कलà¥à¤¯à¤¾à¤£à¤•ारी और सदà¥à¤—ति देने वाला है।
पà¥à¤°à¤¤à¥à¤¯à¥‡à¤• सरà¥à¤µà¤¸à¤¾à¤§à¤¾à¤°à¤£ के लिठआराधना योगà¥à¤¯ यह शà¥à¤²à¥‹à¤• सरल और सà¥à¤ªà¤·à¥à¤Ÿ है। माठजगदमà¥à¤¬à¥‡ की à¤à¤•à¥à¤¤à¤¿ पाने के लिठइसे कंठसà¥à¤¥ कर नवरातà¥à¤°à¤¿ में तृतीय दिन इसका जाप करना चाहिà¤à¥¤
उपासना
या देवी सरà¥à¤µà¤à¥‚â€à¤¤à¥‡à¤·à¥ माठचंदà¥à¤°à¤˜à¤‚टा रूपेण संसà¥à¤¥à¤¿à¤¤à¤¾à¥¤
नमसà¥à¤¤à¤¸à¥à¤¯à¥ˆ नमसà¥à¤¤à¤¸à¥à¤¯à¥ˆ नमसà¥à¤¤à¤¸à¥à¤¯à¥ˆ नमो नम:।।
अरà¥à¤¥ : हे माà¤! सरà¥à¤µà¤¤à¥à¤° विराजमान और चंदà¥à¤°à¤˜à¤‚टा के रूप में पà¥à¤°à¤¸à¤¿à¤¦à¥à¤§ अमà¥à¤¬à¥‡, आपको मेरा बार-बार पà¥à¤°à¤£à¤¾à¤® है। या मैं आपको बारंबार पà¥à¤°à¤£à¤¾à¤® करता हूà¤à¥¤ हे माà¤, मà¥à¤à¥‡ सब पापों से मà¥à¤•à¥à¤¤à¤¿ पà¥à¤°à¤¦à¤¾à¤¨ करें।
इस दिन सांवली रंग की à¤à¤¸à¥€ विवाहित महिला जिसके चेहरे पर तेज हो, को बà¥à¤²à¤¾à¤•र उनका पूजन करना चाहिà¤à¥¤ à¤à¥‹à¤œà¤¨ में दही और हलवा खिलाà¤à¤à¥¤ à¤à¥‡à¤‚ट में कलश और मंदिर की घंटी à¤à¥‡à¤‚ट करना चाहिà¤à¥¤
शà¥à¤°à¥€ कà¥à¤·à¥à¤®à¤¾à¤‚डा
नवरातà¥à¤°-पूजन के चौथे दिन कूषà¥à¤®à¤¾à¤£à¥à¤¡à¤¾ देवी के सà¥à¤µà¤°à¥‚प की ही उपासना की जाती है। इस दिन साधक का मन 'अदाहत' चकà¥à¤° में अवसà¥à¤¥à¤¿à¤¤ होता है। अतः इस दिन उसे अतà¥à¤¯à¤‚त पवितà¥à¤° और अचंचल मन से कूषà¥à¤®à¤¾à¤£à¥à¤¡à¤¾ देवी के सà¥à¤µà¤°à¥‚प को धà¥à¤¯à¤¾à¤¨ में रखकर पूजा-उपासना के कारà¥à¤¯ में लगना चाहिà¤à¥¤
जब सृषà¥à¤Ÿà¤¿ का असà¥à¤¤à¤¿à¤¤à¥à¤µ नहीं था, तब इनà¥à¤¹à¥€à¤‚ देवी ने बà¥à¤°à¤¹à¥à¤®à¤¾à¤‚ड की रचना की थी। अतः ये ही सृषà¥à¤Ÿà¤¿ की आदि-सà¥à¤µà¤°à¥‚पा, आदिशकà¥à¤¤à¤¿ हैं। इनका निवास सूरà¥à¤¯à¤®à¤‚डल के à¤à¥€à¤¤à¤° के लोक में है। वहाठनिवास कर सकने की कà¥à¤·à¤®à¤¤à¤¾ और शकà¥à¤¤à¤¿ केवल इनà¥à¤¹à¥€à¤‚ में है। इनके शरीर की कांति और पà¥à¤°à¤à¤¾ à¤à¥€ सूरà¥à¤¯ के समान ही दैदीपà¥à¤¯à¤®à¤¾à¤¨ हैं।
इनके तेज और पà¥à¤°à¤•ाश से दसों दिशाà¤à¤ पà¥à¤°à¤•ाशित हो रही हैं। बà¥à¤°à¤¹à¥à¤®à¤¾à¤‚ड की सà¤à¥€ वसà¥à¤¤à¥à¤“ं और पà¥à¤°à¤¾à¤£à¤¿à¤¯à¥‹à¤‚ में अवसà¥à¤¥à¤¿à¤¤ तेज इनà¥à¤¹à¥€à¤‚ की छाया है। माठकी आठà¤à¥à¤œà¤¾à¤à¤ हैं। अतः ये अषà¥à¤Ÿà¤à¥à¤œà¤¾ देवी के नाम से à¤à¥€ विखà¥à¤¯à¤¾à¤¤ हैं। इनके सात हाथों में कà¥à¤°à¤®à¤¶à¤ƒ कमंडल, धनà¥à¤·, बाण, कमल-पà¥à¤·à¥à¤ª, अमृतपूरà¥à¤£ कलश, चकà¥à¤° तथा गदा है। आठवें हाथ में सà¤à¥€ सिदà¥à¤§à¤¿à¤¯à¥‹à¤‚ और निधियों को देने वाली जपमाला है। इनका वाहन सिंह है।
महिमा
माठकूषà¥à¤®à¤¾à¤£à¥à¤¡à¤¾ की उपासना से à¤à¤•à¥à¤¤à¥‹à¤‚ के समसà¥à¤¤ रोग-शोक मिट जाते हैं। इनकी à¤à¤•à¥à¤¤à¤¿ से आयà¥, यश, बल और आरोगà¥à¤¯ की वृदà¥à¤§à¤¿ होती है। माठकूषà¥à¤®à¤¾à¤£à¥à¤¡à¤¾ अतà¥à¤¯à¤²à¥à¤ª सेवा और à¤à¤•à¥à¤¤à¤¿ से पà¥à¤°à¤¸à¤¨à¥à¤¨ होने वाली हैं। यदि मनà¥à¤·à¥à¤¯ सचà¥à¤šà¥‡ हृदय से इनका शरणागत बन जाठतो फिर उसे अतà¥à¤¯à¤¨à¥à¤¤ सà¥à¤—मता से परम पद की पà¥à¤°à¤¾à¤ªà¥à¤¤à¤¿ हो सकती है।
विधि-विधान से माठके à¤à¤•à¥à¤¤à¤¿-मारà¥à¤— पर कà¥à¤› ही कदम आगे बढ़ने पर à¤à¤•à¥à¤¤ साधक को उनकी कृपा का सूकà¥à¤·à¥à¤® अनà¥à¤à¤µ होने लगता है। यह दà¥à¤ƒà¤– सà¥à¤µà¤°à¥‚प संसार उसके लिठअतà¥à¤¯à¤‚त सà¥à¤–द और सà¥à¤—म बन जाता है। माठकी उपासना मनà¥à¤·à¥à¤¯ को सहज à¤à¤¾à¤µ से à¤à¤µà¤¸à¤¾à¤—र से पार उतारने के लिठसरà¥à¤µà¤¾à¤§à¤¿à¤• सà¥à¤—म और शà¥à¤°à¥‡à¤¯à¤¸à¥à¤•र मारà¥à¤— है।
माठकूषà¥à¤®à¤¾à¤£à¥à¤¡à¤¾ की उपासना मनà¥à¤·à¥à¤¯ को आधियों-वà¥à¤¯à¤¾à¤§à¤¿à¤¯à¥‹à¤‚ से सरà¥à¤µà¤¥à¤¾ विमà¥à¤•à¥à¤¤ करके उसे सà¥à¤–, समृदà¥à¤§à¤¿ और उनà¥à¤¨à¤¤à¤¿ की ओर ले जाने वाली है। अतः अपनी लौकिक, पारलौकिक उनà¥à¤¨à¤¤à¤¿ चाहने वालों को इनकी उपासना में सदैव ततà¥à¤ªà¤° रहना चाहिà¤à¥¤
उपासना
चतà¥à¤°à¥à¤¥à¥€ के दिन माठकूषà¥à¤®à¤¾à¤‚डा की आराधना की जाती है। इनकी उपासना से सिदà¥à¤§à¤¿à¤¯à¥‹à¤‚ में निधियों को पà¥à¤°à¤¾à¤ªà¥à¤¤ कर समसà¥à¤¤ रोग-शोक दूर होकर आयà¥-यश में वृदà¥à¤§à¤¿ होती है। पà¥à¤°à¤¤à¥à¤¯à¥‡à¤• सरà¥à¤µà¤¸à¤¾à¤§à¤¾à¤°à¤£ के लिठआराधना योगà¥à¤¯ यह शà¥à¤²à¥‹à¤• सरल और सà¥à¤ªà¤·à¥à¤Ÿ है। माठजगदमà¥à¤¬à¥‡ की à¤à¤•à¥à¤¤à¤¿ पाने के लिठइसे कंठसà¥à¤¥ कर नवरातà¥à¤°à¤¿ में चतà¥à¤°à¥à¤¥ दिन इसका जाप करना चाहिà¤à¥¤
या देवी सरà¥à¤µà¤à¥‚â€à¤¤à¥‡à¤·à¥ माठकूषà¥à¤®à¤¾à¤£à¥à¤¡à¤¾ रूपेण संसà¥à¤¥à¤¿à¤¤à¤¾à¥¤
नमसà¥à¤¤à¤¸à¥à¤¯à¥ˆ नमसà¥à¤¤à¤¸à¥à¤¯à¥ˆ नमसà¥à¤¤à¤¸à¥à¤¯à¥ˆ नमो नम:।।
अरà¥à¤¥ : हे माà¤! सरà¥à¤µà¤¤à¥à¤° विराजमान और कूषà¥à¤®à¤¾à¤£à¥à¤¡à¤¾ के रूप में पà¥à¤°à¤¸à¤¿à¤¦à¥à¤§ अमà¥à¤¬à¥‡, आपको मेरा बार-बार पà¥à¤°à¤£à¤¾à¤® है। या मैं आपको बारंबार पà¥à¤°à¤£à¤¾à¤® करता हूà¤à¥¤ हे माà¤, मà¥à¤à¥‡ सब पापों से मà¥à¤•à¥à¤¤à¤¿ पà¥à¤°à¤¦à¤¾à¤¨ करें।
अपनी मंद, हलà¥à¤•ी हà¤à¤¸à¥€ दà¥à¤µà¤¾à¤°à¤¾ अंड अरà¥à¤¥à¤¾à¤¤ बà¥à¤°à¤¹à¥à¤®à¤¾à¤‚ड को उतà¥à¤ªà¤¨à¥à¤¨ करने के कारण इनà¥à¤¹à¥‡à¤‚ कूषà¥à¤®à¤¾à¤£à¥à¤¡à¤¾ देवी के रूप में पूजा जाता है। संसà¥à¤•ृत à¤à¤¾à¤·à¤¾ में कूषà¥à¤®à¤¾à¤£à¥à¤¡à¤¾ को कà¥à¤®à¥à¤¹à¤¡à¤¼ कहते हैं। बलियों में कà¥à¤®à¥à¤¹à¤¡à¤¼à¥‡ की बलि इनà¥à¤¹à¥‡à¤‚ सरà¥à¤µà¤¾à¤§à¤¿à¤• पà¥à¤°à¤¿à¤¯ है। इस कारण से à¤à¥€ माठकूषà¥à¤®à¤¾à¤£à¥à¤¡à¤¾ कहलाती हैं।
पूजन
इस दिन जहाठतक संà¤à¤µ हो बड़े माथे वाली तेजसà¥à¤µà¥€ विवाहित महिला का पूजन करना चाहिà¤à¥¤ उनà¥à¤¹à¥‡à¤‚ à¤à¥‹à¤œà¤¨ में दही, हलवा खिलाना शà¥à¤°à¥‡à¤¯à¤¸à¥à¤•र है। इसके बाद फल, सूखे मेवे और सौà¤à¤¾à¤—à¥à¤¯ का सामान à¤à¥‡à¤‚ट करना चाहिà¤à¥¤ जिससे माताजी पà¥à¤°à¤¸à¤¨à¥à¤¨ होती हैं। और मनवांछित फलों की पà¥à¤°à¤¾à¤ªà¥à¤¤à¤¿ होती है।
शà¥à¤°à¥€ सà¥à¤•ंदमाता
नवरातà¥à¤°à¤¿ का पाà¤à¤šà¤µà¤¾à¤ दिन सà¥à¤•ंदमाता की उपासना का दिन होता है। मोकà¥à¤· के दà¥à¤µà¤¾à¤° खोलने वाली माता परम सà¥à¤–दायी हैं। माठअपने à¤à¤•à¥à¤¤à¥‹à¤‚ की समसà¥à¤¤ इचà¥à¤›à¤¾à¤“ं की पूरà¥à¤¤à¤¿ करती हैं।
कथा
à¤à¤—वान सà¥à¤•ंद 'कà¥à¤®à¤¾à¤° कारà¥à¤¤à¤¿à¤•ेय' नाम से à¤à¥€ जाने जाते हैं। ये पà¥à¤°à¤¸à¤¿à¤¦à¥à¤§ देवासà¥à¤° संगà¥à¤°à¤¾à¤® में देवताओं के सेनापति बने थे। पà¥à¤°à¤¾à¤£à¥‹à¤‚ में इनà¥à¤¹à¥‡à¤‚ कà¥à¤®à¤¾à¤° और शकà¥à¤¤à¤¿ कहकर इनकी महिमा का वरà¥à¤£à¤¨ किया गया है। इनà¥à¤¹à¥€à¤‚ à¤à¤—वान सà¥à¤•ंद की माता होने के कारण माठदà¥à¤°à¥à¤—ाजी के इस सà¥à¤µà¤°à¥‚प को सà¥à¤•ंदमाता के नाम से जाना जाता है।
सà¥à¤µà¤°à¥‚प
सà¥à¤•ंदमाता की चार à¤à¥à¤œà¤¾à¤à¤ हैं। इनके दाहिनी तरफ की नीचे वाली à¤à¥à¤œà¤¾, जो ऊपर की ओर उठी हà¥à¤ˆ है, उसमें कमल पà¥à¤·à¥à¤ª है। बाईं तरफ की ऊपर वाली à¤à¥à¤œà¤¾ में वरमà¥à¤¦à¥à¤°à¤¾ में तथा नीचे वाली à¤à¥à¤œà¤¾ जो ऊपर की ओर उठी है उसमें à¤à¥€ कमल पà¥à¤·à¥à¤ª ली हà¥à¤ˆ हैं। इनका वरà¥à¤£ पूरà¥à¤£à¤¤à¤ƒ शà¥à¤à¥à¤° है। ये कमल के आसन पर विराजमान रहती हैं। इसी कारण इनà¥à¤¹à¥‡à¤‚ पदà¥à¤®à¤¾à¤¸à¤¨à¤¾ देवी à¤à¥€ कहा जाता है। सिंह à¤à¥€ इनका वाहन है।
महतà¥à¤µ
नवरातà¥à¤°à¤¿-पूजन के पाà¤à¤šà¤µà¥‡à¤‚ दिन का शासà¥à¤¤à¥à¤°à¥‹à¤‚ में पà¥à¤·à¥à¤•ल महतà¥à¤µ बताया गया है। इस चकà¥à¤° में अवसà¥à¤¥à¤¿à¤¤ मन वाले साधक की समसà¥à¤¤ बाहà¥à¤¯ कà¥à¤°à¤¿à¤¯à¤¾à¤“ं à¤à¤µà¤‚ चितà¥à¤¤à¤µà¥ƒà¤¤à¥à¤¤à¤¿à¤¯à¥‹à¤‚ का लोप हो जाता है। वह विशà¥à¤¦à¥à¤§ चैतनà¥à¤¯ सà¥à¤µà¤°à¥‚प की ओर अगà¥à¤°à¤¸à¤° हो रहा होता है।
साधक का मन समसà¥à¤¤ लौकिक, सांसारिक, मायिक बंधनों से विमà¥à¤•à¥à¤¤ होकर पदà¥à¤®à¤¾à¤¸à¤¨à¤¾ माठसà¥à¤•ंदमाता के सà¥à¤µà¤°à¥‚प में पूरà¥à¤£à¤¤à¤ƒ तलà¥à¤²à¥€à¤¨ होता है। इस समय साधक को पूरà¥à¤£ सावधानी के साथ उपासना की ओर अगà¥à¤°à¤¸à¤° होना चाहिà¤à¥¤ उसे अपनी समसà¥à¤¤ धà¥à¤¯à¤¾à¤¨-वृतà¥à¤¤à¤¿à¤¯à¥‹à¤‚ को à¤à¤•ागà¥à¤° रखते हà¥à¤ साधना के पथ पर आगे बढ़ना चाहिà¤à¥¤
माठसà¥à¤•ंदमाता की उपासना से à¤à¤•à¥à¤¤ की समसà¥à¤¤ इचà¥à¤›à¤¾à¤à¤ पूरà¥à¤£ हो जाती हैं। इस मृतà¥à¤¯à¥à¤²à¥‹à¤• में ही उसे परम शांति और सà¥à¤– का अनà¥à¤à¤µ होने लगता है। उसके लिठमोकà¥à¤· का दà¥à¤µà¤¾à¤° सà¥à¤µà¤®à¥‡à¤µ सà¥à¤²à¤ हो जाता है। सà¥à¤•ंदमाता की उपासना से बालरूप सà¥à¤•ंद à¤à¤—वान की उपासना à¤à¥€ सà¥à¤µà¤®à¥‡à¤µ हो जाती है। यह विशेषता केवल इनà¥à¤¹à¥€à¤‚ को पà¥à¤°à¤¾à¤ªà¥à¤¤ है, अतः साधक को सà¥à¤•ंदमाता की उपासना की ओर विशेष धà¥à¤¯à¤¾à¤¨ देना चाहिà¤à¥¤
सूरà¥à¤¯à¤®à¤‚डल की अधिषà¥à¤ ातà¥à¤°à¥€ देवी होने के कारण इनका उपासक अलौकिक तेज à¤à¤µà¤‚ कांति से संपनà¥à¤¨ हो जाता है। à¤à¤• अलौकिक पà¥à¤°à¤à¤¾à¤®à¤‚डल अदृशà¥à¤¯ à¤à¤¾à¤µ से सदैव उसके चतà¥à¤°à¥à¤¦à¤¿à¤•à¥â€Œ परिवà¥à¤¯à¤¾à¤ªà¥à¤¤ रहता है। यह पà¥à¤°à¤à¤¾à¤®à¤‚डल पà¥à¤°à¤¤à¤¿à¤•à¥à¤·à¤£ उसके योगकà¥à¤·à¥‡à¤® का निरà¥à¤µà¤¹à¤¨ करता रहता है।
हमें à¤à¤•ागà¥à¤°à¤à¤¾à¤µ से मन को पवितà¥à¤° रखकर माठकी शरण में आने का पà¥à¤°à¤¯à¤¤à¥à¤¨ करना चाहिà¤à¥¤ इस घोर à¤à¤µà¤¸à¤¾à¤—र के दà¥à¤ƒà¤–ों से मà¥à¤•à¥à¤¤à¤¿ पाकर मोकà¥à¤· का मारà¥à¤— सà¥à¤²à¤ बनाने का इससे उतà¥à¤¤à¤® उपाय दूसरा नहीं है।
उपासना
पà¥à¤°à¤¤à¥à¤¯à¥‡à¤• सरà¥à¤µà¤¸à¤¾à¤§à¤¾à¤°à¤£ के लिठआराधना योगà¥à¤¯ यह शà¥à¤²à¥‹à¤• सरल और सà¥à¤ªà¤·à¥à¤Ÿ है। माठजगदमà¥à¤¬à¥‡ की à¤à¤•à¥à¤¤à¤¿ पाने के लिठइसे कंठसà¥à¤¥ कर नवरातà¥à¤°à¤¿ में पाà¤à¤šà¤µà¥‡à¤‚ दिन इसका जाप करना चाहिà¤à¥¤
या देवी सरà¥à¤µà¤à¥‚â€à¤¤à¥‡à¤·à¥ माठसà¥à¤•ंदमाता रूपेण संसà¥à¤¥à¤¿à¤¤à¤¾à¥¤
नमसà¥à¤¤à¤¸à¥à¤¯à¥ˆ नमसà¥à¤¤à¤¸à¥à¤¯à¥ˆ नमसà¥à¤¤à¤¸à¥à¤¯à¥ˆ नमो नम:।।
अरà¥à¤¥ : हे माà¤! सरà¥à¤µà¤¤à¥à¤° विराजमान और सà¥à¤•ंदमाता के रूप में पà¥à¤°à¤¸à¤¿à¤¦à¥à¤§ अमà¥à¤¬à¥‡, आपको मेरा बार-बार पà¥à¤°à¤£à¤¾à¤® है। या मैं आपको बारंबार पà¥à¤°à¤£à¤¾à¤® करता हूà¤à¥¤ हे माà¤, मà¥à¤à¥‡ सब पापों से मà¥à¤•à¥à¤¤à¤¿ पà¥à¤°à¤¦à¤¾à¤¨ करें। इस दिन साधक का मन 'विशà¥à¤¦à¥à¤§' चकà¥à¤° में अवसà¥à¤¥à¤¿à¤¤ होता है। इनके विगà¥à¤°à¤¹ में à¤à¤—वान सà¥à¤•ंदजी बालरूप में इनकी गोद में बैठे होते हैं।
शà¥à¤°à¥€ कातà¥à¤¯à¤¾à¤¯à¤¨à¥€
माठदà¥à¤°à¥à¤—ा के छठे सà¥à¤µà¤°à¥‚प का नाम कातà¥à¤¯à¤¾à¤¯à¤¨à¥€ है। उस दिन साधक का मन 'आजà¥à¤žà¤¾' चकà¥à¤° में सà¥à¤¥à¤¿à¤¤ होता है। योगसाधना में इस आजà¥à¤žà¤¾ चकà¥à¤° का अतà¥à¤¯à¤‚त महतà¥à¤µà¤ªà¥‚रà¥à¤£ सà¥à¤¥à¤¾à¤¨ है। इस चकà¥à¤° में सà¥à¤¥à¤¿à¤¤ मन वाला साधक माठकातà¥à¤¯à¤¾à¤¯à¤¨à¥€ के चरणों में अपना सरà¥à¤µà¤¸à¥à¤µ निवेदित कर देता है। परिपूरà¥à¤£ आतà¥à¤®à¤¦à¤¾à¤¨ करने वाले à¤à¤¸à¥‡ à¤à¤•à¥à¤¤à¥‹à¤‚ को सहज à¤à¤¾à¤µ से माठके दरà¥à¤¶à¤¨ पà¥à¤°à¤¾à¤ªà¥à¤¤ हो जाते हैं।
कथा
माठका नाम कातà¥à¤¯à¤¾à¤¯à¤¨à¥€ कैसे पड़ा इसकी à¤à¥€ à¤à¤• कथा है- कत नामक à¤à¤• पà¥à¤°à¤¸à¤¿à¤¦à¥à¤§ महरà¥à¤·à¤¿ थे। उनके पà¥à¤¤à¥à¤° ऋषि कातà¥à¤¯ हà¥à¤à¥¤ इनà¥à¤¹à¥€à¤‚ कातà¥à¤¯ के गोतà¥à¤° में विशà¥à¤µà¤ªà¥à¤°à¤¸à¤¿à¤¦à¥à¤§ महरà¥à¤·à¤¿ कातà¥à¤¯à¤¾à¤¯à¤¨ उतà¥à¤ªà¤¨à¥à¤¨ हà¥à¤ थे। इनà¥à¤¹à¥‹à¤‚ने à¤à¤—वती परामà¥à¤¬à¤¾ की उपासना करते हà¥à¤ बहà¥à¤¤ वरà¥à¤·à¥‹à¤‚ तक बड़ी कठिन तपसà¥à¤¯à¤¾ की थी। उनकी इचà¥à¤›à¤¾ थी माठà¤à¤—वती उनके घर पà¥à¤¤à¥à¤°à¥€ के रूप में जनà¥à¤® लें। माठà¤à¤—वती ने उनकी यह पà¥à¤°à¤¾à¤°à¥à¤¥à¤¨à¤¾ सà¥à¤µà¥€à¤•ार कर ली।
कà¥à¤› समय पशà¥à¤šà¤¾à¤¤ जब दानव महिषासà¥à¤° का अतà¥à¤¯à¤¾à¤šà¤¾à¤° पृथà¥à¤µà¥€ पर बढ़ गया तब à¤à¤—वान बà¥à¤°à¤¹à¥à¤®à¤¾, विषà¥à¤£à¥, महेश तीनों ने अपने-अपने तेज का अंश देकर महिषासà¥à¤° के विनाश के लिठà¤à¤• देवी को उतà¥à¤ªà¤¨à¥à¤¨ किया। महरà¥à¤·à¤¿ कातà¥à¤¯à¤¾à¤¯à¤¨ ने सरà¥à¤µà¤ªà¥à¤°à¤¥à¤® इनकी पूजा की। इसी कारण से यह कातà¥à¤¯à¤¾à¤¯à¤¨à¥€ कहलाईं।
à¤à¤¸à¥€ à¤à¥€ कथा मिलती है कि ये महरà¥à¤·à¤¿ कातà¥à¤¯à¤¾à¤¯à¤¨ के वहाठपà¥à¤¤à¥à¤°à¥€ रूप में उतà¥à¤ªà¤¨à¥à¤¨ हà¥à¤ˆ थीं। आशà¥à¤µà¤¿à¤¨ कृषà¥à¤£ चतà¥à¤°à¥à¤¦à¤¶à¥€ को जनà¥à¤® लेकर शà¥à¤•à¥à¤¤ सपà¥à¤¤à¤®à¥€, अषà¥à¤Ÿà¤®à¥€ तथा नवमी तक तीन दिन इनà¥à¤¹à¥‹à¤‚ने कातà¥à¤¯à¤¾à¤¯à¤¨ ऋषि की पूजा गà¥à¤°à¤¹à¤£ कर दशमी को महिषासà¥à¤° का वध किया था।
माठकातà¥à¤¯à¤¾à¤¯à¤¨à¥€ अमोघ फलदायिनी हैं। à¤à¤—वान कृषà¥à¤£ को पतिरूप में पाने के लिठबà¥à¤°à¤œ की गोपियों ने इनà¥à¤¹à¥€à¤‚ की पूजा कालिनà¥à¤¦à¥€-यमà¥à¤¨à¤¾ के तट पर की थी। ये बà¥à¤°à¤œà¤®à¤‚डल की अधिषà¥à¤ ातà¥à¤°à¥€ देवी के रूप में पà¥à¤°à¤¤à¤¿à¤·à¥à¤ ित हैं।
माठकातà¥à¤¯à¤¾à¤¯à¤¨à¥€ का सà¥à¤µà¤°à¥‚प अतà¥à¤¯à¤‚त चमकीला और à¤à¤¾à¤¸à¥à¤µà¤° है। इनकी चार à¤à¥à¤œà¤¾à¤à¤ हैं। माताजी का दाहिनी तरफ का ऊपरवाला हाथ अà¤à¤¯à¤®à¥à¤¦à¥à¤°à¤¾ में तथा नीचे वाला वरमà¥à¤¦à¥à¤°à¤¾ में है। बाईं तरफ के ऊपरवाले हाथ में तलवार और नीचे वाले हाथ में कमल-पà¥à¤·à¥à¤ª सà¥à¤¶à¥‹à¤à¤¿à¤¤ है। इनका वाहन सिंह है।
माठकातà¥à¤¯à¤¾à¤¯à¤¨à¥€ की à¤à¤•à¥à¤¤à¤¿ और उपासना दà¥à¤µà¤¾à¤°à¤¾ मनà¥à¤·à¥à¤¯ को बड़ी सरलता से अरà¥à¤¥, धरà¥à¤®, काम, मोकà¥à¤· चारों फलों की पà¥à¤°à¤¾à¤ªà¥à¤¤à¤¿ हो जाती है। वह इस लोक में सà¥à¤¥à¤¿à¤¤ रहकर à¤à¥€ अलौकिक तेज और पà¥à¤°à¤à¤¾à¤µ से यà¥à¤•à¥à¤¤ हो जाता है।
उपासना
नवरातà¥à¤°à¤¿ का छठा दिन माठकातà¥à¤¯à¤¾à¤¯à¤¨à¥€ की उपासना का दिन होता है। इनके पूजन से अदà¥à¤à¥à¤¤ शकà¥à¤¤à¤¿ का संचार होता है व दà¥à¤¶à¥à¤®à¤¨à¥‹à¤‚ का संहार करने में ये सकà¥à¤·à¤® बनाती हैं। इनका धà¥à¤¯à¤¾à¤¨ गोधà¥à¤²à¥€ बेला में करना होता है। पà¥à¤°à¤¤à¥à¤¯à¥‡à¤• सरà¥à¤µà¤¸à¤¾à¤§à¤¾à¤°à¤£ के लिठआराधना योगà¥à¤¯ यह शà¥à¤²à¥‹à¤• सरल और सà¥à¤ªà¤·à¥à¤Ÿ है। माठजगदमà¥à¤¬à¥‡ की à¤à¤•à¥à¤¤à¤¿ पाने के लिठइसे कंठसà¥à¤¥ कर नवरातà¥à¤°à¤¿ में छठे दिन इसका जाप करना चाहिà¤à¥¤
'या देवी सरà¥à¤µà¤à¥‚तेषॠशकà¥à¤¤à¤¿ रूपेण संसà¥à¤¥à¤¿à¤¤à¤¾à¥¤ नमसà¥à¤¤à¤¸à¥à¤¯à¥ˆ नमसà¥à¤¤à¤¸à¥à¤¯à¥ˆ नमसà¥à¤¤à¤¸à¥à¤¯à¥ˆ नमो नम:॥
अरà¥à¤¥ : हे माà¤! सरà¥à¤µà¤¤à¥à¤° विराजमान और शकà¥à¤¤à¤¿ -रूपिणी पà¥à¤°à¤¸à¤¿à¤¦à¥à¤§ अमà¥à¤¬à¥‡, आपको मेरा बार-बार पà¥à¤°à¤£à¤¾à¤® है। या मैं आपको बारंबार पà¥à¤°à¤£à¤¾à¤® करता हूà¤à¥¤
इसके अतिरिकà¥à¤¤ जिन कनà¥à¤¯à¤¾à¤“ के विवाह मे विलमà¥à¤¬ हो रहा हो,उनà¥à¤¹à¥‡ इस दिन माठकातà¥à¤¯à¤¾à¤¯à¤¨à¥€ की उपासना अवशà¥à¤¯ करनी चाहिà¤, जिससे उनà¥à¤¹à¥‡ मनोवानà¥à¤›à¤¿à¤¤ वर की पà¥à¤°à¤¾à¤ªà¥à¤¤à¤¿ होती है।
विवाह के लिये कातà¥à¤¯à¤¾à¤¯à¤¨à¥€ मनà¥à¤¤à¥à¤°-- ॠकातà¥à¤¯à¤¾à¤¯à¤¨à¥€ महामाये महायोगिनà¥à¤¯à¤§à¥€à¤¶à¥à¤µà¤°à¤¿ ! नंदगोपसà¥à¤¤à¤®à¥ देवि पतिमॠमे कà¥à¤°à¥à¤¤à¥‡ नम:।
महिमा
माठको जो सचà¥à¤šà¥‡ मन से याद करता है उसके रोग, शोक, संताप, à¤à¤¯ आदि सरà¥à¤µà¤¥à¤¾ विनषà¥à¤Ÿ हो जाते हैं। जनà¥à¤®-जनà¥à¤®à¤¾à¤‚तर के पापों को विनषà¥à¤Ÿ करने के लिठमाठकी शरणागत होकर उनकी पूजा-उपासना के लिठततà¥à¤ªà¤° होना चाहिà¤à¥¤
शà¥à¤°à¥€ कालरातà¥à¤°à¤¿
माठदà¥à¤°à¥à¤—ाजी की सातवीं शकà¥à¤¤à¤¿ कालरातà¥à¤°à¤¿ के नाम से जानी जाती हैं। दà¥à¤°à¥à¤—ापूजा के सातवें दिन माठकालरातà¥à¤°à¤¿ की उपासना का विधान है। इस दिन साधक का मन 'सहसà¥à¤°à¤¾à¤°' चकà¥à¤° में सà¥à¤¥à¤¿à¤¤ रहता है। इसके लिठबà¥à¤°à¤¹à¥à¤®à¤¾à¤‚ड की समसà¥à¤¤ सिदà¥à¤§à¤¿à¤¯à¥‹à¤‚ का दà¥à¤µà¤¾à¤° खà¥à¤²à¤¨à¥‡ लगता है।
सहसà¥à¤°à¤¾à¤° चकà¥à¤° में सà¥à¤¥à¤¿à¤¤ साधक का मन पूरà¥à¤£à¤¤à¤ƒ माठकालरातà¥à¤°à¤¿ के सà¥à¤µà¤°à¥‚प में अवसà¥à¤¥à¤¿à¤¤ रहता है। उनके साकà¥à¤·à¤¾à¤¤à¥à¤•ार से मिलने वाले पà¥à¤£à¥à¤¯ का वह à¤à¤¾à¤—ी हो जाता है। उसके समसà¥à¤¤ पापों-विघà¥à¤¨à¥‹à¤‚ का नाश हो जाता है। उसे अकà¥à¤·à¤¯ पà¥à¤£à¥à¤¯-लोकों की पà¥à¤°à¤¾à¤ªà¥à¤¤à¤¿ होती है।
वरà¥à¤£à¤¨
इनके शरीर का रंग घने अंधकार की तरह à¤à¤•दम काला है। सिर के बाल बिखरे हà¥à¤ हैं। गले में विदà¥à¤¯à¥à¤¤ की तरह चमकने वाली माला है। इनके तीन नेतà¥à¤° हैं। ये तीनों नेतà¥à¤° बà¥à¤°à¤¹à¥à¤®à¤¾à¤‚ड के सदृश गोल हैं। इनसे विदà¥à¤¯à¥à¤¤ के समान चमकीली किरणें निःसृत होती रहती हैं।
माठकी नासिका के शà¥à¤µà¤¾à¤¸-पà¥à¤°à¤¶à¥à¤µà¤¾à¤¸ से अगà¥à¤¨à¤¿ की à¤à¤¯à¤‚कर जà¥à¤µà¤¾à¤²à¤¾à¤à¤ निकलती रहती हैं। इनका वाहन गरà¥à¤¦à¤ (गदहा) है। ये ऊपर उठे हà¥à¤ दाहिने हाथ की वरमà¥à¤¦à¥à¤°à¤¾ से सà¤à¥€ को वर पà¥à¤°à¤¦à¤¾à¤¨ करती हैं। दाहिनी तरफ का नीचे वाला हाथ अà¤à¤¯à¤®à¥à¤¦à¥à¤°à¤¾ में है। बाईं तरफ के ऊपर वाले हाथ में लोहे का काà¤à¤Ÿà¤¾ तथा नीचे वाले हाथ में खडà¥à¤— (कटार) है।
महिमा
माठकालरातà¥à¤°à¤¿ का सà¥à¤µà¤°à¥‚प देखने में अतà¥à¤¯à¤‚त à¤à¤¯à¤¾à¤¨à¤• है, लेकिन ये सदैव शà¥à¤ फल ही देने वाली हैं। इसी कारण इनका à¤à¤• नाम 'शà¥à¤à¤‚कारी' à¤à¥€ है। अतः इनसे à¤à¤•à¥à¤¤à¥‹à¤‚ को किसी पà¥à¤°à¤•ार à¤à¥€ à¤à¤¯à¤à¥€à¤¤ अथवा आतंकित होने की आवशà¥à¤¯à¤•ता नहीं है।
माठकालरातà¥à¤°à¤¿ दà¥à¤·à¥à¤Ÿà¥‹à¤‚ का विनाश करने वाली हैं। दानव, दैतà¥à¤¯, राकà¥à¤·à¤¸, à¤à¥‚त, पà¥à¤°à¥‡à¤¤ आदि इनके सà¥à¤®à¤°à¤£ मातà¥à¤° से ही à¤à¤¯à¤à¥€à¤¤ होकर à¤à¤¾à¤— जाते हैं। ये गà¥à¤°à¤¹-बाधाओं को à¤à¥€ दूर करने वाली हैं। इनके उपासकों को अगà¥à¤¨à¤¿-à¤à¤¯, जल-à¤à¤¯, जंतà¥-à¤à¤¯, शतà¥à¤°à¥-à¤à¤¯, रातà¥à¤°à¤¿-à¤à¤¯ आदि कà¤à¥€ नहीं होते। इनकी कृपा से वह सरà¥à¤µà¤¥à¤¾ à¤à¤¯-मà¥à¤•à¥à¤¤ हो जाता है।
माठकालरातà¥à¤°à¤¿ के सà¥à¤µà¤°à¥‚प-विगà¥à¤°à¤¹ को अपने हृदय में अवसà¥à¤¥à¤¿à¤¤ करके मनà¥à¤·à¥à¤¯ को à¤à¤•निषà¥à¤ à¤à¤¾à¤µ से उपासना करनी चाहिà¤à¥¤ यम, नियम, संयम का उसे पूरà¥à¤£ पालन करना चाहिà¤à¥¤ मन, वचन, काया की पवितà¥à¤°à¤¤à¤¾ रखनी चाहिà¤à¥¤ वे शà¥à¤à¤‚कारी देवी हैं। उनकी उपासना से होने वाले शà¥à¤à¥‹à¤‚ की गणना नहीं की जा सकती। हमें निरंतर उनका सà¥à¤®à¤°à¤£, धà¥à¤¯à¤¾à¤¨ और पूजा करना चाहिà¤à¥¤
नवरातà¥à¤°à¤¿ दिवस== नवरातà¥à¤°à¤¿ की सपà¥à¤¤à¤®à¥€ के दिन माठकालरातà¥à¤°à¤¿ की आराधना का विधान है। इनकी पूजा-अरà¥à¤šà¤¨à¤¾ करने से सà¤à¥€ पापों से मà¥à¤•à¥à¤¤à¤¿ मिलती है व दà¥à¤¶à¥à¤®à¤¨à¥‹à¤‚ का नाश होता है, तेज बढ़ता है। पà¥à¤°à¤¤à¥à¤¯à¥‡à¤• सरà¥à¤µà¤¸à¤¾à¤§à¤¾à¤°à¤£ के लिठआराधना योगà¥à¤¯ यह शà¥à¤²à¥‹à¤• सरल और सà¥à¤ªà¤·à¥à¤Ÿ है। माठजगदमà¥à¤¬à¥‡ की à¤à¤•à¥à¤¤à¤¿ पाने के लिठइसे कंठसà¥à¤¥ कर नवरातà¥à¤°à¤¿ में सातवें दिन इसका जाप करना चाहिà¤à¥¤
मंतà¥à¤°
या देवी सरà¥à¤µà¤à¥‚â€à¤¤à¥‡à¤·à¥ माठकालरातà¥à¤°à¤¿ रूपेण संसà¥à¤¥à¤¿à¤¤à¤¾à¥¤ नमसà¥à¤¤à¤¸à¥à¤¯à¥ˆ नमसà¥à¤¤à¤¸à¥à¤¯à¥ˆ नमसà¥à¤¤à¤¸à¥à¤¯à¥ˆ नमो नम:।।
अरà¥à¤¥ : हे माà¤! सरà¥à¤µà¤¤à¥à¤° विराजमान और कालरातà¥à¤°à¤¿ के रूप में पà¥à¤°à¤¸à¤¿à¤¦à¥à¤§ अमà¥à¤¬à¥‡, आपको मेरा बार-बार पà¥à¤°à¤£à¤¾à¤® है। या मैं आपको बारंबार पà¥à¤°à¤£à¤¾à¤® करता हूà¤à¥¤ हे माà¤, मà¥à¤à¥‡ पाप से मà¥à¤•à¥à¤¤à¤¿ पà¥à¤°à¤¦à¤¾à¤¨ कर।
शà¥à¤°à¥€ महागौरी
माठदà¥à¤°à¥à¤—ाजी की आठवीं शकà¥à¤¤à¤¿ का नाम महागौरी है। दà¥à¤°à¥à¤—ापूजा के आठवें दिन महागौरी की उपासना का विधान है। इनकी शकà¥à¤¤à¤¿ अमोघ और सदà¥à¤¯à¤ƒ फलदायिनी है। इनकी उपासना से à¤à¤•à¥à¤¤à¥‹à¤‚ को सà¤à¥€ कलà¥à¤®à¤· धà¥à¤² जाते हैं, पूरà¥à¤µà¤¸à¤‚चित पाप à¤à¥€ विनषà¥à¤Ÿ हो जाते हैं। à¤à¤µà¤¿à¤·à¥à¤¯ में पाप-संताप, दैनà¥à¤¯-दà¥à¤ƒà¤– उसके पास कà¤à¥€ नहीं जाते। वह सà¤à¥€ पà¥à¤°à¤•ार से पवितà¥à¤° और अकà¥à¤·à¤¯ पà¥à¤£à¥à¤¯à¥‹à¤‚ का अधिकारी हो जाता है।
सà¥à¤µà¤°à¥‚प
इनका वरà¥à¤£ पूरà¥à¤£à¤¤à¤ƒ गौर है। इस गौरता की उपमा शंख, चंदà¥à¤° और कà¥à¤‚द के फूल से दी गई है। इनकी आयॠआठवरà¥à¤· की मानी गई है- 'अषà¥à¤Ÿà¤µà¤°à¥à¤·à¤¾ à¤à¤µà¥‡à¤¦à¥ गौरी।' इनके समसà¥à¤¤ वसà¥à¤¤à¥à¤° à¤à¤µà¤‚ आà¤à¥‚षण आदि à¤à¥€ शà¥à¤µà¥‡à¤¤ हैं।
महागौरी की चार à¤à¥à¤œà¤¾à¤à¤ हैं। इनका वाहन वृषठहै। इनके ऊपर के दाहिने हाथ में अà¤à¤¯ मà¥à¤¦à¥à¤°à¤¾ और नीचे वाले दाहिने हाथ में तà¥à¤°à¤¿à¤¶à¥‚ल है। ऊपरवाले बाà¤à¤ हाथ में डमरू और नीचे के बाà¤à¤ हाथ में वर-मà¥à¤¦à¥à¤°à¤¾ हैं। इनकी मà¥à¤¦à¥à¤°à¤¾ अतà¥à¤¯à¤‚त शांत है।
कथा
अपने पारà¥à¤µà¤¤à¥€ रूप में इनà¥à¤¹à¥‹à¤‚ने à¤à¤—वान शिव को पति-रूप में पà¥à¤°à¤¾à¤ªà¥à¤¤ करने के लिठबड़ी कठोर तपसà¥à¤¯à¤¾ की थी। इनकी पà¥à¤°à¤¤à¤¿à¤œà¥à¤žà¤¾ थी कि 'वà¥à¤°à¤¿à¤¯à¥‡à¤½à¤¹à¤‚ वरदं शमà¥à¤à¥à¤‚ नानà¥à¤¯à¤‚ देवं महेशà¥à¤µà¤°à¤¾à¤¤à¥â€Œà¥¤' (नारद पांचरातà¥à¤°)। गोसà¥à¤µà¤¾à¤®à¥€ तà¥à¤²à¤¸à¥€à¤¦à¤¾à¤¸à¤œà¥€ के अनà¥à¤¸à¤¾à¤° à¤à¥€ इनà¥à¤¹à¥‹à¤‚ने à¤à¤—वान शिव के वरण के लिठकठोर संकलà¥à¤ª लिया था-
जनà¥à¤® कोटि लगि रगर हमारी। बरऊठसंà¤à¥ न त रहऊठकà¥à¤à¤†à¤°à¥€à¥¥
इस कठोर तपसà¥à¤¯à¤¾ के कारण इनका शरीर à¤à¤•दम काला पड़ गया। इनकी तपसà¥à¤¯à¤¾ से पà¥à¤°à¤¸à¤¨à¥à¤¨ और संतà¥à¤·à¥à¤Ÿ होकर जब à¤à¤—वान शिव ने इनके शरीर को गंगाजी के पवितà¥à¤° जल से मलकर धोया तब वह विदà¥à¤¯à¥à¤¤ पà¥à¤°à¤à¤¾ के समान अतà¥à¤¯à¤‚त कांतिमान-गौर हो उठा। तà¤à¥€ से इनका नाम महागौरी पड़ा।
महतà¥à¤µ
माठमहागौरी का धà¥à¤¯à¤¾à¤¨, सà¥à¤®à¤°à¤£, पूजन-आराधना à¤à¤•à¥à¤¤à¥‹à¤‚ के लिठसरà¥à¤µà¤µà¤¿à¤§ कलà¥à¤¯à¤¾à¤£à¤•ारी है। हमें सदैव इनका धà¥à¤¯à¤¾à¤¨ करना चाहिà¤à¥¤ इनकी कृपा से अलौकिक सिदà¥à¤§à¤¿à¤¯à¥‹à¤‚ की पà¥à¤°à¤¾à¤ªà¥à¤¤à¤¿ होती है। मन को अननà¥à¤¯ à¤à¤¾à¤µ से à¤à¤•निषà¥à¤ कर मनà¥à¤·à¥à¤¯ को सदैव इनके ही पादारविनà¥à¤¦à¥‹à¤‚ का धà¥à¤¯à¤¾à¤¨ करना चाहिà¤à¥¤
महागौरी à¤à¤•à¥à¤¤à¥‹à¤‚ का कषà¥à¤Ÿ अवशà¥à¤¯ ही दूर करती हैं। इनकी उपासना से आरà¥à¤¤à¤œà¤¨à¥‹à¤‚ के असंà¤à¤µ कारà¥à¤¯ à¤à¥€ संà¤à¤µ हो जाते हैं। अतः इनके चरणों की शरण पाने के लिठहमें सरà¥à¤µà¤µà¤¿à¤§ पà¥à¤°à¤¯à¤¤à¥à¤¨ करना चाहिà¤à¥¤
उपासना
पà¥à¤°à¤¾à¤£à¥‹à¤‚ में माठमहागौरी की महिमा का पà¥à¤°à¤šà¥à¤° आखà¥à¤¯à¤¾à¤¨ किया गया है। ये मनà¥à¤·à¥à¤¯ की वृतà¥à¤¤à¤¿à¤¯à¥‹à¤‚ को सतà¥â€Œ की ओर पà¥à¤°à¥‡à¤°à¤¿à¤¤ करके असतà¥â€Œ का विनाश करती हैं। हमें पà¥à¤°à¤ªà¤¤à¥à¤¤à¤¿à¤à¤¾à¤µ से सदैव इनका शरणागत बनना चाहिà¤à¥¤ या देवी सरà¥à¤µà¤à¥‚â€à¤¤à¥‡à¤·à¥ माठगौरी रूपेण संसà¥à¤¥à¤¿à¤¤à¤¾à¥¤
नमसà¥à¤¤à¤¸à¥à¤¯à¥ˆ नमसà¥à¤¤à¤¸à¥à¤¯à¥ˆ नमसà¥à¤¤à¤¸à¥à¤¯à¥ˆ नमो नम:।।
अरà¥à¤¥ : हे माà¤! सरà¥à¤µà¤¤à¥à¤° विराजमान और माठगौरी के रूप में पà¥à¤°à¤¸à¤¿à¤¦à¥à¤§ अमà¥à¤¬à¥‡, आपको मेरा बार-बार पà¥à¤°à¤£à¤¾à¤® है। हे माà¤, मà¥à¤à¥‡ सà¥à¤–-समृदà¥à¤§à¤¿ पà¥à¤°à¤¦à¤¾à¤¨ करो।
शà¥à¤°à¥€ सिदà¥à¤§à¤¿à¤¦à¤¾à¤¤à¥à¤°à¥€
माठदà¥à¤°à¥à¤—ाजी की नौवीं शकà¥à¤¤à¤¿ का नाम सिदà¥à¤§à¤¿à¤¦à¤¾à¤¤à¥à¤°à¥€ हैं। ये सà¤à¥€ पà¥à¤°à¤•ार की सिदà¥à¤§à¤¿à¤¯à¥‹à¤‚ को देने वाली हैं। नवरातà¥à¤°-पूजन के नौवें दिन इनकी उपासना की जाती है। इस दिन शासà¥à¤¤à¥à¤°à¥€à¤¯ विधि-विधान और पूरà¥à¤£ निषà¥à¤ ा के साथ साधना करने वाले साधक को सà¤à¥€ सिदà¥à¤§à¤¿à¤¯à¥‹à¤‚ की पà¥à¤°à¤¾à¤ªà¥à¤¤à¤¿ हो जाती है। सृषà¥à¤Ÿà¤¿ में कà¥à¤› à¤à¥€ उसके लिठअगमà¥à¤¯ नहीं रह जाता है। बà¥à¤°à¤¹à¥à¤®à¤¾à¤‚ड पर पूरà¥à¤£ विजय पà¥à¤°à¤¾à¤ªà¥à¤¤ करने की सामरà¥à¤¥à¥à¤¯ उसमें आ जाती है।
सिदà¥à¤§à¤¿à¤¯à¤¾à¤‚
मारà¥à¤•णà¥à¤¡à¥‡à¤¯ पà¥à¤°à¤¾à¤£ के अनà¥à¤¸à¤¾à¤° अणिमा, महिमा, गरिमा, लघिमा, पà¥à¤°à¤¾à¤ªà¥à¤¤à¤¿, पà¥à¤°à¤¾à¤•ामà¥à¤¯, ईशितà¥à¤µ और वशितà¥à¤µ- ये आठसिदà¥à¤§à¤¿à¤¯à¤¾à¤ होती हैं। बà¥à¤°à¤¹à¥à¤®à¤µà¥ˆà¤µà¤°à¥à¤¤ पà¥à¤°à¤¾à¤£ के शà¥à¤°à¥€à¤•ृषà¥à¤£ जनà¥à¤® खंड में यह संखà¥à¤¯à¤¾ अठारह बताई गई है। इनके नाम इस पà¥à¤°à¤•ार हैं-
माठसिदà¥à¤§à¤¿à¤¦à¤¾à¤¤à¥à¤°à¥€ à¤à¤•à¥à¤¤à¥‹à¤‚ और साधकों को ये सà¤à¥€ सिदà¥à¤§à¤¿à¤¯à¤¾à¤ पà¥à¤°à¤¦à¤¾à¤¨ करने में समरà¥à¤¥ हैं। देवीपà¥à¤°à¤¾à¤£ के अनà¥à¤¸à¤¾à¤° à¤à¤—वान शिव ने इनकी कृपा से ही इन सिदà¥à¤§à¤¿à¤¯à¥‹à¤‚ को पà¥à¤°à¤¾à¤ªà¥à¤¤ किया था। इनकी अनà¥à¤•मà¥à¤ªà¤¾ से ही à¤à¤—वान शिव का आधा शरीर देवी का हà¥à¤† था। इसी कारण वे लोक में 'अरà¥à¤¦à¥à¤§à¤¨à¤¾à¤°à¥€à¤¶à¥à¤µà¤°' नाम से पà¥à¤°à¤¸à¤¿à¤¦à¥à¤§ हà¥à¤à¥¤
माठसिदà¥à¤§à¤¿à¤¦à¤¾à¤¤à¥à¤°à¥€ चार à¤à¥à¤œà¤¾à¤“ं वाली हैं। इनका वाहन सिंह है। ये कमल पà¥à¤·à¥à¤ª पर à¤à¥€ आसीन होती हैं। इनकी दाहिनी तरफ के नीचे वाले हाथ में कमलपà¥à¤·à¥à¤ª है।
पà¥à¤°à¤¤à¥à¤¯à¥‡à¤• मनà¥à¤·à¥à¤¯ का यह करà¥à¤¤à¤µà¥à¤¯ है कि वह माठसिदà¥à¤§à¤¿à¤¦à¤¾à¤¤à¥à¤°à¥€ की कृपा पà¥à¤°à¤¾à¤ªà¥à¤¤ करने का निरंतर पà¥à¤°à¤¯à¤¤à¥à¤¨ करे। उनकी आराधना की ओर अगà¥à¤°à¤¸à¤° हो। इनकी कृपा से अनंत दà¥à¤– रूप संसार से निरà¥à¤²à¤¿à¤ªà¥à¤¤ रहकर सारे सà¥à¤–ों का à¤à¥‹à¤— करता हà¥à¤† वह मोकà¥à¤· को पà¥à¤°à¤¾à¤ªà¥à¤¤ कर सकता है।
नवदà¥à¤°à¥à¤—ाओं में
नवदà¥à¤°à¥à¤—ाओं में माठसिदà¥à¤§à¤¿à¤¦à¤¾à¤¤à¥à¤°à¥€ अंतिम हैं। अनà¥à¤¯ आठदà¥à¤°à¥à¤—ाओं की पूजा उपासना शासà¥à¤¤à¥à¤°à¥€à¤¯ विधि-विधान के अनà¥à¤¸à¤¾à¤° करते हà¥à¤ à¤à¤•à¥à¤¤ दà¥à¤°à¥à¤—ा पूजा के नौवें दिन इनकी उपासना में पà¥à¤°à¤µà¤¤à¥à¤¤ होते हैं। इन सिदà¥à¤§à¤¿à¤¦à¤¾à¤¤à¥à¤°à¥€ माठकी उपासना पूरà¥à¤£ कर लेने के बाद à¤à¤•à¥à¤¤à¥‹à¤‚ और साधकों की लौकिक, पारलौकिक सà¤à¥€ पà¥à¤°à¤•ार की कामनाओं की पूरà¥à¤¤à¤¿ हो जाती है। सिदà¥à¤§à¤¿à¤¦à¤¾à¤¤à¥à¤°à¥€ माठके कृपापातà¥à¤° à¤à¤•à¥à¤¤ के à¤à¥€à¤¤à¤° कोई à¤à¤¸à¥€ कामना शेष बचती ही नहीं है, जिसे वह पूरà¥à¤£ करना चाहे। वह सà¤à¥€ सांसारिक इचà¥à¤›à¤¾à¤“ं, आवशà¥à¤¯à¤•ताओं और सà¥à¤ªà¥ƒà¤¹à¤¾à¤“ं से ऊपर उठकर मानसिक रूप से माठà¤à¤—वती के दिवà¥à¤¯ लोकों में विचरण करता हà¥à¤† उनके कृपा-रस-पीयूष का निरंतर पान करता हà¥à¤†, विषय-à¤à¥‹à¤—-शूनà¥à¤¯ हो जाता है। माठà¤à¤—वती का परम सानà¥à¤¨à¤¿à¤§à¥à¤¯ ही उसका सरà¥à¤µà¤¸à¥à¤µ हो जाता है। इस परम पद को पाने के बाद उसे अनà¥à¤¯ किसी à¤à¥€ वसà¥à¤¤à¥ की आवशà¥à¤¯à¤•ता नहीं रह जाती। माठके चरणों का यह सानà¥à¤¨à¤¿à¤§à¥à¤¯ पà¥à¤°à¤¾à¤ªà¥à¤¤ करने के लिठà¤à¤•à¥à¤¤ को निरंतर नियमनिषà¥à¤ रहकर उनकी उपासना करने का नियम कहा गया है। à¤à¤¸à¤¾ माना गया है कि माठà¤à¤—वती का सà¥à¤®à¤°à¤£, धà¥à¤¯à¤¾à¤¨, पूजन, हमें इस संसार की असारता का बोध कराते हà¥à¤ वासà¥à¤¤à¤µà¤¿à¤• परम शांतिदायक अमृत पद की ओर ले जाने वाला है। विशà¥à¤µà¤¾à¤¸ किया जाता है कि इनकी आराधना से à¤à¤•à¥à¤¤ को अणिमा , लधिमा, पà¥à¤°à¤¾à¤ªà¥à¤¤à¤¿, पà¥à¤°à¤¾à¤•ामà¥à¤¯, महिमा, ईशितà¥à¤µ, सरà¥à¤µà¤•ामावसायिता, दूर शà¥à¤°à¤µà¤£, परकामा पà¥à¤°à¤µà¥‡à¤¶, वाकसिदà¥à¤§, अमरतà¥à¤µ à¤à¤¾à¤µà¤¨à¤¾ सिदà¥à¤§à¤¿ आदि समसà¥à¤¤ सिदà¥à¤§à¤¿à¤¯à¥‹à¤‚ नव निधियों की पà¥à¤°à¤¾à¤ªà¥à¤¤à¤¿ होती है। à¤à¤¸à¤¾ कहा गया है कि यदि कोई इतना कठिन तप न कर सके तो अपनी शकà¥à¤¤à¤¿à¤¨à¥à¤¸à¤¾à¤° जप, तप, पूजा-अरà¥à¤šà¤¨à¤¾ कर माठकी कृपा का पातà¥à¤° बन सकता ही है। माठकी आराधना के लिठइस शà¥à¤²à¥‹à¤• का पà¥à¤°à¤¯à¥‹à¤— होता है। माठजगदमà¥à¤¬à¥‡ की à¤à¤•à¥à¤¤à¤¿ पाने के लिठइसे कंठसà¥à¤¥ कर नवरातà¥à¤°à¤¿ में नवमी के दिन इसका जाप करने का नियम है।
सà¥à¤¤à¥à¤¤à¤¿
या देवी सरà¥à¤µà¤à¥‚â€à¤¤à¥‡à¤·à¥ माठसिदà¥à¤§à¤¿à¤¦à¤¾à¤¤à¥à¤°à¥€ रूपेण संसà¥à¤¥à¤¿à¤¤à¤¾à¥¤ नमसà¥à¤¤à¤¸à¥à¤¯à¥ˆ नमसà¥à¤¤à¤¸à¥à¤¯à¥ˆ नमसà¥à¤¤à¤¸à¥à¤¯à¥ˆ नमो नम:।
अरà¥à¤¥: हे माà¤! सरà¥à¤µà¤¤à¥à¤° विराजमान और माठसिदà¥à¤§à¤¿à¤¦à¤¾à¤¤à¥à¤°à¥€ के रूप में पà¥à¤°à¤¸à¤¿à¤¦à¥à¤§ अमà¥à¤¬à¥‡, आपको मेरा बार-बार पà¥à¤°à¤£à¤¾à¤® है। या मैं आपको बारंबार पà¥à¤°à¤£à¤¾à¤® करता हूà¤à¥¤ हे माà¤, मà¥à¤à¥‡ अपनी कृपा का पातà¥à¤° बनाओ।
गांधी जी का वà¥à¤¯à¤•à¥à¤¤à¤¿à¤¤à¥à¤µ बहà¥à¤†à¤¯à¤¾à¤®à¥€ था - सà¥à¤°à¥‡à¤¶ सोनी
चितà¥à¤°à¤•ूट 2 अकà¥à¤Ÿà¥‚बर 2013/à¤à¤•ातà¥à¤® मानव दरà¥à¤¶à¤¨ के महान चिनà¥à¤¤à¤• प0 दीनदयाल उपाधà¥à¤¯à¤¾à¤¯ जी की सà¥à¤®à¥ƒà¤¤à¤¿ में राषà¥à¤Ÿà¥à¤°à¤‹à¤¼à¤·à¤¿ नानाजी देशमà¥à¤– दà¥à¤µà¤¾à¤°à¤¾ सà¥à¤¥à¤¾à¤ªà¤¿à¤¤ दीनदयाल शोध संसà¥à¤¥à¤¾à¤¨ सामाजिक पà¥à¤¨à¤°à¥à¤°à¤šà¤¨à¤¾ के कारà¥à¤¯à¥‹ में अपने चार सूतà¥à¤°à¥‹à¤‚ शिकà¥à¤·à¤¾, सà¥à¤µà¤¾à¤¸à¥à¤¥à¥à¤¯, सà¥à¤µà¤¾à¤µà¤²à¤‚बन à¤à¤µà¤‚ सदाचार के माधà¥à¤¯à¤® से सतत पà¥à¤°à¤¯à¤¤à¥à¤¨à¤¶à¥€à¤² है।सà¥à¤µà¤¾à¤¸à¥à¤¥à¥à¤¯ पà¥à¤°à¤•लà¥à¤ª के अंतरà¥à¤—त आयà¥à¤°à¥à¤µà¥‡à¤¦, पà¥à¤°à¤¾à¤•ृतिक चिकितà¥à¤¸à¤¾ à¤à¤µà¤‚ योग के माधà¥à¤¯à¤® से चितà¥à¤°à¤•ूट कà¥à¤·à¥‡à¤¤à¥à¤° की 50 कि0मी0 की परिधि में आने वाले गà¥à¤°à¤¾à¤® केनà¥à¤¦à¥à¤° में आजीवन सà¥à¤µà¤¾à¤¸à¥à¤¥à¥à¤¯ संवरà¥à¤§à¤¨ की दिशा में अपनी सेवायें दे रहे आरोगà¥à¤¯à¤§à¤¾à¤® के योग à¤à¤µà¤‚ पà¥à¤°à¤¾à¤•ृतिक चिकितà¥à¤¸à¤¾ सदन में राषà¥à¤Ÿà¥à¤°à¤ªà¤¿à¤¤à¤¾ महातà¥à¤®à¤¾ गाॅधी à¤à¤µà¤‚ धरतीपà¥à¤¤à¥à¤° लालबहादà¥à¤° शाषà¥à¤¤à¥à¤°à¥€ जी का जनà¥à¤®à¥‹à¤¤à¥à¤¸à¤µ हरà¥à¤·à¥‹à¤²à¥à¤²à¤¾à¤¸ के साथ समà¥à¤ªà¤¨à¥à¤¨ हà¥à¤†à¥¤ इस कारà¥à¤¯à¤•à¥à¤°à¤® के मà¥à¤–à¥à¤¯ अतिथि के दायितà¥à¤µ का निरà¥à¤µà¤¹à¤¨ राषà¥à¤Ÿà¥à¤°à¥€à¤¯ सà¥à¤µà¤¯à¤‚सेवक संघ के सह सरकारà¥à¤¯à¤µà¤¾à¤¹ मा0 सà¥à¤°à¥‡à¤¶ सोनी जी ने à¤à¤µà¤‚ अधà¥à¤¯à¤•à¥à¤·à¤¤à¤¾ मधà¥à¤¯ पà¥à¤°à¤¦à¥‡à¤¶ परà¥à¤¯à¤Ÿà¤¨ विà¤à¤¾à¤— के चेयरमैन मा0 मोहन यादव जी ने की।
मा0 सà¥à¤°à¥‡à¤¶ सोनी जी ने उपिसà¥à¤¥à¤¤ कारà¥à¤¯à¤•रà¥à¤¤à¤¾à¤“ं का मारà¥à¤—दरà¥à¤¶à¤¨ करते हà¥à¤¯à¥‡ कहा कि राषà¥à¤Ÿà¥à¤°à¤‹à¤·à¤¿ नानाजी ने आरोगà¥à¤¯à¤§à¤¾à¤® की सà¥à¤¥à¤¾à¤ªà¤¨à¤¾ कर पà¥à¤°à¤¾à¤•ृतिक à¤à¤µà¤‚ योग चिकितà¥à¤¸à¤¾ के साथ-साथ आयà¥à¤°à¥à¤µà¥‡à¤¦ को जनवà¥à¤¯à¤¾à¤ªà¥€ बनाने के लिये दीनदयाल जी à¤à¤µà¤‚ गाॅधीजी को आदरà¥à¤¶ बनाकर संकलà¥à¤ª लिया। आज यह पà¥à¤°à¤•लà¥à¤ª अपनी सेवाओं से कà¥à¤·à¥‡à¤¤à¥à¤° के लोगों को लाठदे रहा है। गाॅधीजी के राजनीतिक रà¥à¤ª को तो लोग अधिक जानते हैं लेकिन गाॅधी जी का वà¥à¤¯à¤•à¥à¤¤à¤¿à¤¤à¥à¤µ बहà¥à¤†à¤¯à¤¾à¤®à¥€ था इस पर लोगों का धà¥à¤¯à¤¾à¤¨ कम जाता है। गाॅधीजी ने गà¥à¤°à¤¾à¤®à¥‹à¤‚ के पà¥à¤¨à¤°à¥à¤¤à¥à¤¥à¤¾à¤¨ के लिये बहà¥à¤¤ बडा़ काम किया और इसी दिशा में बहà¥à¤¤ बडा़ जनसमूह उनसे पà¥à¤°à¥‡à¤°à¤£à¤¾ ले कर इस काम पर लगा, लेकिन à¤à¤¸à¥‡ लोगों का कहीं नाम नहीं आता जबकि राजनीतिक कà¥à¤·à¥‡à¤¤à¥à¤° से नेहरà¥, पटेल à¤à¤¸à¥‡ लोगों का नाम लोग लेते हैं। गाॅधी जी आरà¥à¤¥à¤¿à¤• सà¥à¤µà¤¾à¤µà¤²à¤‚बन पर विशेष जोर देते थे इसी के लिये उनà¥à¤¹à¥‹à¤¨à¥‡ कà¥à¤Ÿà¥€à¤° उदà¥à¤¯à¥‹à¤—ों की दिशा में वà¥à¤¯à¤µà¤¹à¤¾à¤°à¤¿à¤• काम पà¥à¤°à¤¾à¤°à¤®à¥à¤ करवाया। वे किसी à¤à¥€ काम को सà¥à¤µà¤¯à¤‚ कर के देखते थे तब लोगों से वैसा वà¥à¤¯à¤µà¤¹à¤¾à¤° आचरण करने के लिये कहते थे। पà¥à¤°à¤¾à¤•ृतिक चिकितà¥à¤¸à¤¾ कà¥à¤¯à¤¾ है इस पर गाॅधी जी ने बताया यह शरीर पंचततà¥à¤µ का पà¥à¤¤à¤²à¤¾ है। शरीर में कà¥à¤› गड़बड़ होती है तो इन पाॅच ततà¥à¤µà¥‹à¤‚ से ही उसका इलाज à¤à¥€ संà¤à¤µ है जिनका आहार विहार ठीक है उनà¥à¤¹à¥‡à¤‚ औषधि की आवशà¥à¤¯à¤•ता ही नही हैं। आपने आदि à¤à¤µà¤‚ वà¥à¤¯à¤¾à¤§à¤¿ के बारे में à¤à¥€ अतà¥à¤¯à¤§à¤¿à¤• सरल à¤à¤¾à¤·à¤¾ में बताया। आदि है मानसिक रोग। यदि हम किसी से दà¥à¤µà¥‡à¤· करतें है तो उससे हमारा मन विकृत होता है उसी का पà¥à¤°à¤à¤¾à¤µ हमारे शरीर पर पड़ता है और हम असà¥à¤µà¤¸à¥à¤¥à¥à¤¯ हो जाते हैं। योग à¤à¤µà¤‚ पà¥à¤°à¤¾à¤•ृतिक चिकितà¥à¤¸à¤¾ में इसीलिये मन की पà¥à¤°à¤¸à¤¨à¥à¤¨à¤¤à¤¾ की à¤à¥€ बात कही गयी है यदि हम मन से हर परिसà¥à¤¥à¤¤à¤¿ में पà¥à¤°à¤¸à¤¨à¥à¤¨ रहतें है तो हमारा शरीर à¤à¥€ सà¥à¤µà¤¸à¥à¤¥à¥à¤¯ रहता है। राषà¥à¤Ÿà¥à¤°à¤‹à¤·à¤¿ नानजी ने इस सबको दीनदयाल शोध संसà¥à¤¥à¤¾à¤¨ के माधà¥à¤¯à¤® से वà¥à¤¯à¤µà¤¹à¤¾à¤°à¤¿à¤• धरातल पर करके दिखाया जिसका लाठसà¤à¥€ लेाग ले रहे है।
इस अवसर पर मधà¥à¤¯ पà¥à¤°à¤¦à¥‡à¤¶ परà¥à¤¯à¤Ÿà¤¨ विà¤à¤¾à¤— के चेयरमैन मा0 मोहन यादव जी ने अपना उदà¥à¤¬à¥‹à¤§à¤¨ देते हà¥à¤¯à¥‡ कहा कि आज मेेरा बडा़ सौà¤à¤¾à¤—à¥à¤¯ है जो मैं दो महापà¥à¤°à¥à¤·à¥‹à¤‚ की जयनà¥à¤¤à¥€ के शà¥à¤ उपलकà¥à¤·à¥à¤¯ में राषà¥à¤Ÿà¥à¤°à¤‹à¤·à¤¿ नानाजी दà¥à¤µà¤¾à¤°à¤¾ सà¥à¤¥à¤¾à¤ªà¤¿à¤¤ दीनदयाल शोध संसà¥à¤¥à¤¾à¤¨ के सà¥à¤µà¤¾à¤¸à¥à¤¥à¥à¤¯ पà¥à¤°à¤•लà¥à¤ª आरोगà¥à¤¯à¤§à¤¾à¤® में सà¥à¤°à¥‡à¤¶ सोनी जी के सानिधà¥à¤¯ में उपसà¥à¤¥à¤¿à¤¤ हà¥à¤† हूॅ। चितà¥à¤°à¤•ूट धाम में आरोगà¥à¤¯à¤§à¤¾à¤® जनमानस की à¤à¤¾à¤µà¤¨à¤¾ को समà¤à¤•र सचà¥à¤šà¤¾ à¤à¤¾à¤°à¤¤ गाॅव में बसता है इस धारणा केा लेकर गाà¥à¤°à¤® के विकास पर राषà¥à¤Ÿà¥à¤°à¤¼à¤‹à¤·à¤¿ नानाजी ने गाॅधी जी से पà¥à¤°à¥‡à¤°à¤£à¤¾ लेकर जोर दिया आप कहते थे à¤à¤¾à¤°à¤¤ की आतà¥à¤®à¤¾ गाॅव में बसती है और गाॅव के विकास से ही राषà¥à¤Ÿà¥à¤° का विकास हो सकता है। नानाजी ने इसे पà¥à¤°à¤¤à¥à¤¯à¤•à¥à¤· करके दिखाया। आज इस आयोजन की सफलता तà¤à¥€ सिदà¥à¤§ हेागी जब हम सà¤à¥€ राषà¥à¤Ÿà¥à¤°à¤µà¤¾à¤¸à¥€ यह संकलà¥à¤ª लेगें कि राषà¥à¤Ÿà¥à¤°à¤ªà¤¿à¤¤à¤¾ महातà¥à¤®à¤¾ गाॅधà¥à¤¾à¥€ à¤à¤µà¤‚ धरतीपà¥à¤¤à¥à¤° लालबहादà¥à¤° शाषà¥à¤¤à¥à¤°à¥€ तथा राषà¥à¤Ÿà¥à¤°à¤‹à¤·à¤¿ नानाजी ने जो कर दिखाया हम सब à¤à¥€ अपने-कà¥à¤·à¥‡à¤¤à¥à¤°à¥‹à¤‚ में छाटे-छोटे रà¥à¤ª में इस सब को वà¥à¤¯à¤µà¤¹à¤¾à¤°à¤¿à¤• धरातल पर लाने का पà¥à¤°à¤¯à¤¾à¤¸ करेगें तो यह हम सब की इन महापà¥à¤°à¥à¤·à¥‹à¤‚ के लिये सचà¥à¤šà¥€ शà¥à¤°à¤¦à¥à¤§à¤¾à¤‚जलि होगी।कारà¥à¤¯à¤•à¥à¤°à¤® के कà¥à¤°à¤® में गाॅधीजी का पà¥à¤°à¤¿à¤¯ à¤à¤œà¤¨ वैषà¥à¤£à¤µ जन को तेने कहिये............... à¤à¤µà¤‚ रघà¥à¤ªà¤¤à¤¿ राघव राजाराम à¤à¥€ हà¥à¤¯à¥‡à¥¤
इस शà¥à¤ अवसर पर दीनदयाल शोध संसà¥à¤¥à¤¾à¤¨ के संगठन सचिव अà¤à¤¯ महाजन à¤à¤µà¤‚ उदà¥à¤¯à¤®à¤¿à¤¤à¤¾ विदà¥à¤¯à¤ªà¥€à¤ की निदेशिका डा0 ननà¥à¤¦à¤¿à¤¤à¤¾ पाठक à¤à¥€ उपसà¥à¤¥à¤¿à¤¤ रहीं। सरà¥à¤µà¥‡ à¤à¤µà¤¨à¥à¤¤à¥à¤ƒ सà¥à¤–िनः से कारà¥à¤¯à¤•à¥à¤°à¤® समà¥à¤ªà¤¨à¥à¤¨ हà¥à¤†à¥¤
धारà¥à¤®à¤¿à¤• मूलà¥à¤¯à¥‹à¤‚ से अà¤à¤¿à¤ªà¥à¤°à¥‡à¤°à¤¿à¤¤ होकर मनà¥à¤·à¥à¤¯à¤¤à¤¾ के मायने समà¤à¥‡
इंदौर। महातà¥à¤®à¤¾ गांधी ने देश के धारà¥à¤®à¤¿à¤• मूलà¥à¤¯à¥‹à¤‚ से अà¤à¤¿à¤ªà¥à¤°à¤¾à¤£à¤¿à¤¤ होकर धरà¥à¤® शकà¥à¤¤à¤¿ का उपयोग करते हà¥à¤ सà¤à¥€ धरà¥à¤®à¤¾à¤‚े से नाता जोड़ने का पà¥à¤°à¤¯à¤¾à¤¸ किया। उनका मानना था कि हर धरà¥à¤® में मनà¥à¤·à¥à¤¯à¤¤à¤¾ का à¤à¤• बड़ा खजाना है। ये धरà¥à¤® हमें मनà¥à¤·à¥à¤¯, ईशà¥à¤µà¤°, पà¥à¤°à¤•ृति, पà¥à¤°à¤¾à¤£à¤¿à¤¯à¥‹à¤‚ आदि के पà¥à¤°à¤¤à¤¿ वफादार होने के à¤à¤¾à¤µ की सजगता का अहसास कराता है, तà¤à¥€ हम मनà¥à¤·à¥à¤¯à¤¤à¤¾ के मायनों को समठसकते है। धरà¥à¤® निरपेकà¥à¤· देश में धरà¥à¤® सà¥à¤¥à¤²à¥‹à¤‚, अवसरों, तà¥à¤¯à¥Œà¤¹à¤¾à¤°à¥‹à¤‚, धारà¥à¤®à¤¿à¤• à¤à¤¾à¤µà¤¨à¤¾à¤“ं आदि के पà¥à¤°à¤¦à¤°à¥à¤¶à¤¨ जरूर करते रहे है, लेकिन ईशà¥à¤µà¤°à¥€à¤¯à¤¤à¤¾ का अपने जीवन में कब, कहां पà¥à¤°à¤µà¥‡à¤¶ हà¥à¤† है, इस पर गंà¤à¥€à¤°à¤¤à¤¾ से सोचना चाहिà¤à¥¤
उकà¥à¤¤ विचार गांधी दरà¥à¤¶à¤¨ के वà¥à¤¯à¤¾à¤–à¥à¤¯à¤¾à¤¤à¤¾ और विसरà¥à¤œà¤¨ आशà¥à¤°à¤® के अधà¥à¤¯à¤•à¥à¤· डा. करूणाकर तà¥à¤°à¤¿à¤µà¥‡à¤¦à¥€ ने वà¥à¤¯à¤•à¥à¤¤ किये। डा. तà¥à¤°à¤¿à¤µà¥‡à¤¦à¥€ आज सà¥à¤¬à¤¹ संसà¥à¤¥à¤¾ सेवा सà¥à¤°à¤à¤¿ वà¥à¤¦à¤¾à¤°à¤¾ पà¥à¤°à¥€à¤¤à¤®à¤²à¤¾à¤² दà¥à¤† सà¤à¤¾à¤—ृह में गांधी जयंती निमितà¥à¤¤ आयोजित संगोषà¥à¤ ी में बोल रहे थे। संगोषà¥à¤ ी का विषय था- बदलता हà¥à¤† à¤à¤¾à¤°à¤¤ और गांधी का धरà¥à¤®-निरपेकà¥à¤· दरà¥à¤¶à¤¨à¥¤ इस मौके पर विशिषà¥à¤Ÿ वकà¥à¤¤à¤¾ बतौर देवी अहिलà¥à¤¯à¤¾ विशà¥à¤µà¤µà¤¿à¤¦à¥à¤¯à¤¾à¤²à¤¯ के पूरà¥à¤µ कà¥à¤²à¤ªà¤¤à¤¿ डा.à¤.à¤. अबà¥à¤¬à¤¾à¤¸à¥€ उपसà¥à¤¥à¤¿à¤¤ थे।
डा. तà¥à¤°à¤¿à¤µà¥‡à¤¦à¥€ ने कहा कि महातà¥à¤®à¤¾ गांधी मूलतः धरà¥à¤® निरपेकà¥à¤· नहीं थे। उनà¥à¤¹à¥‹à¤‚ने गांधी का मानना था कि ’’मैं अपना धरà¥à¤® जीता हॅू। धरà¥à¤® की शपथ लेता हॅू। ये मेरा वà¥à¤¯à¤•à¥à¤¤à¤¿à¤—त मामला है।’’ उनà¥à¤¹à¥‹à¤‚ने कहा कि à¤à¤•ादश वà¥à¤°à¤¤ शà¥à¤²à¥‹à¤• में सरà¥à¤µà¤§à¤°à¥à¤® समà¤à¤¾à¤µ का उलà¥à¤²à¥‡à¤– होता है इसका तातà¥à¤ªà¤°à¥à¤¯ ईशà¥à¤µà¤°, पà¥à¤°à¤•ृति, परà¥à¤¯à¤¾à¤µà¤°à¤£ आदि से तादातà¥à¤®à¥à¤¯ सà¥à¤¥à¤¾à¤ªà¤¿à¤¤ करने के लिठबडे लोगों वà¥à¤¦à¤¾à¤°à¤¾ तैयार की गई योजना से है।
पà¥à¤°à¤–र विचारक डा. à¤.à¤. अबà¥à¤¬à¤¾à¤¸à¥€ ने गांधीजी के पà¥à¤°à¤¸à¤‚गों का उलà¥à¤²à¥‡à¤– करते हà¥à¤ कहा कि सà¥à¤¤à¥à¤°à¥€ शकà¥à¤¤à¤¿ जागरण के लिठमहिलाà¤à¤‚ साहस नहीं करेगी तो आंदोलन को शकà¥à¤¤à¤¿ नहीं मिल सकती। गांधीजी के वà¥à¤¯à¤•à¥à¤¤à¤¿à¤¤à¥à¤µ के साथ कसà¥à¤¤à¥‚रबा à¤à¥€ जà¥à¥œà¥€ हà¥à¤ˆ थी। गांधी के वà¥à¤¯à¤•à¥à¤¤à¤¿à¤¤à¥à¤µ,कृतितà¥à¤µ और जीवन दरà¥à¤¶à¤¨ से नैतिकता, साहस, सतà¥à¤¯, अहिंसा, धरà¥à¤® निरपेकà¥à¤·à¤¤à¤¾ आदि का पाठपà¥à¤¾ जा सकता है। उनका मानना है कि मोहबà¥à¤¬à¤¤ के आधार पर ही वà¥à¤¯à¤•à¥à¤¤à¤¿ के दिल को जीतना à¤à¤• बड़ा असà¥à¤¤à¥à¤° है।
कारà¥à¤¯à¤•à¥à¤°à¤® के पà¥à¤°à¤¾à¤‚रठमें गांधी के परम अनà¥à¤¯à¤¾à¤¯à¥€ शà¥à¤°à¥€ किशोर गà¥à¤ªà¥à¤¤à¤¾ ने à¤à¤œà¤¨ पà¥à¤°à¤¸à¥à¤¤à¥à¤¤ किया। कसà¥à¤¤à¥‚रबा गांधी राषà¥à¤Ÿà¥à¤°à¥€à¤¯ सà¥à¤®à¤¾à¤°à¤• टà¥à¤°à¤¸à¥à¤Ÿ की छातà¥à¤°à¤¾à¤“ं ने बापू के लोकपà¥à¤°à¤¿à¤¯ à¤à¤œà¤¨à¥‹à¤‚ की पà¥à¤°à¤¸à¥à¤¤à¥à¤¤à¤¿ दी। वकà¥à¤¤à¤¾à¤“ं का सà¥à¤µà¤¾à¤—त शà¥à¤°à¥€ अनà¥à¤°à¤¾à¤— जैन, मोहन अगà¥à¤°à¤µà¤¾à¤², राजेश खंडेलवाल ने किया। सà¥à¤µà¤¾à¤—त उदà¥à¤¬à¥‹à¤§à¤¨ संसà¥à¤¥à¤¾ के वरिषà¥à¤ सदसà¥à¤¯ शà¥à¤°à¥€ अरविंद बागडी ने दिया। अतिथियों को सà¥à¤®à¥ƒà¤¤à¤¿ चिनà¥à¤¹ शà¥à¤°à¥€ कमल कलवानी, हरि अगà¥à¤°à¤µà¤¾à¤², अवतारसिंह सैनी ने पà¥à¤°à¤¦à¤¾à¤¨ किये। कारà¥à¤¯à¤•à¥à¤°à¤® का संचालन शà¥à¤°à¥€ कà¥à¤®à¤¾à¤° सिधà¥à¤¦à¤¾à¤°à¥à¤¥ ने किया। कारà¥à¤¯à¤•à¥à¤°à¤® के आयोजन में शà¥à¤°à¥€ ओम नरेडा, विशाल डागरिया, राजेश खंडेलवाल का उलà¥à¤²à¥‡à¤–नीय योगदान रहा। सरà¥à¤µà¤§à¤°à¥à¤® पà¥à¤°à¤¾à¤°à¥à¤¥à¤¨à¤¾ से कारà¥à¤¯à¤•à¥à¤°à¤® का समापन हà¥à¤†à¥¤ कारà¥à¤¯à¤•à¥à¤°à¤® में डा. सरोजकà¥à¤®à¤¾à¤°, पूरà¥à¤µ महापौर उमाशशि शरà¥à¤®à¤¾, बाबूà¤à¤¾à¤ˆ महिदपà¥à¤°à¤µà¤¾à¤²à¤¾, राजेश चेलावत, डा. राजीव शरà¥à¤®à¤¾, रेणॠपंत, डा. शशिकांत à¤à¤Ÿà¥à¤Ÿ, डा. पà¥à¤·à¥à¤ªà¥‡à¤¨à¥à¤¦à¥à¤° दà¥à¤¬à¥‡, अतà¥à¤² सेठ, अजबे गà¥à¤°à¥‚जी सहित सेंट उमर विदà¥à¤¯à¤¾à¤²à¤¯ के छातà¥à¤° आदि बड़ी संखà¥à¤¯à¤¾ में उपसà¥à¤¥à¤¿à¤¤ थे।
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अंतरà¥à¤°à¤¾à¤·à¥à¤Ÿà¥à¤°à¥€à¤¯ अहिंसा दिवस के अवसर पर महातà¥à¤®à¤¾ गांधी को शà¥à¤°à¤¦à¥à¤§à¤¾à¤‚जलि
लोग अपने-अपने तरीके से à¤à¤•-दूसरे को बांध लेते हैं। कहीं पà¥à¤°à¥‡à¤® से बांधा जाता है तो कहीं अपनेपन में। कà¥à¤› लोग दà¥à¤·à¥à¤®à¤¨à¥€ के कारण à¤à¥€ बंधे हà¥à¤ रहते हैं। बंधन का à¤à¤• और तरीका है- कसम का बंधन। à¤à¤¾à¤°à¤¤ में कसम देने की लोक 2 अकà¥â€à¤¤à¥‚बर को गांधी जयंती मनाई जाती है जो महातà¥â€à¤®à¤¾ गांधी अरà¥à¤¥à¤¾à¤¤ राषà¥â€à¤Ÿà¥à¤° के बापू का जनà¥â€à¤®à¤¦à¤¿à¤µà¤¸ है। मोहनदास करमचंद गांधी का जनà¥â€à¤® 2 अकà¥â€à¤¤à¥‚बर 1869 को गà¥à¤œà¤°à¤¾à¤¤ के पोरबंदर नामक सà¥â€à¤¥à¤¾à¤¨ पर हà¥à¤† था और उनà¥â€à¤¹à¥‡à¤‚ उनके नजदीकी मितà¥à¤°à¥‹à¤‚ और जानकारों, अनà¥â€à¤¯ अधिकांश à¤à¤¾à¤°à¤¤à¥€à¤¯à¥‹à¤‚ दà¥à¤µà¤¾à¤°à¤¾, जिसमें उनके आलोचक à¤à¥€ शामिल हैं, बापू जी का संबोधन दिया गया है। शेष दà¥à¤¨à¤¿à¤¯à¤¾ उनà¥â€à¤¹à¥‡à¤‚ महातà¥â€à¤®à¤¾ गांधी के नाम से जानती है।
''राषà¥â€à¤Ÿà¥à¤°à¤ªà¤¿à¤¤à¤¾'' शांति और मानवता का पà¥à¤°à¤¤à¥€à¤• हैं। हम उनà¥â€à¤¹à¥‡à¤‚ उनके जनà¥â€à¤® दिवस तथा अनà¥â€à¤¯ अनेक पवितà¥à¤° अवसरों पर याद करते हैं और संयà¥à¤•à¥â€à¤¤ राषà¥â€à¤Ÿà¥à¤° दà¥à¤µà¤¾à¤°à¤¾ 2 अकà¥â€à¤¤à¥‚बर अंतरराषà¥â€à¤Ÿà¥à¤°à¥€à¤¯ अहिंसा दिवस के रूप में घोषित किया गया है।
महातà¥à¤®à¤¾ गांधी की विचारधारा
गांधी जी का दरà¥à¤¶à¤¨ और उनकी विचारधारा सतà¥â€à¤¯ और अहिंसा à¤à¤—वत गीता और हिनà¥â€à¤¦à¥ मानà¥â€à¤¯à¤¤à¤¾à¤“ं, जैन धरà¥à¤® और लियो टॉलà¥â€à¤¸à¥â€à¤Ÿà¥‰à¤¯ की शांतिवादी ईसाई धरà¥à¤® की शिकà¥à¤·à¤¾à¤“ं से पà¥à¤°à¤à¤¾à¤µà¤¿à¤¤ हैं।
गांधी जी à¤à¤• शाकाहारी और बà¥à¤°à¤¹à¥à¤®à¤šà¤°à¥à¤¯ के हिनà¥â€à¤¦à¥ विचार के अनà¥à¤¯à¤¾à¤¯à¥€ थे -आधातà¥â€à¤¯à¤®à¤¿à¤• और वà¥â€à¤¯à¤µà¤¹à¤¾à¤°à¤¿à¤• शà¥à¤¦à¥à¤§à¤¤à¤¾ का पालन, सपà¥â€à¤¤à¤¾à¤¹ में à¤à¤• दिन मौन वà¥à¤°à¤¤ रखना। उनका विशà¥â€à¤µà¤¾à¤¸ था कि बोलने पर संयम रखने से उनà¥â€à¤¹à¥‡à¤‚ आंतरिक शांति मिलती हैं, यह पà¥à¤°à¤à¤¾à¤µ हिनà¥â€à¤¦à¥ सिदà¥à¤§à¤¾à¤‚त मौन और शांति से लिया गया है।
दकà¥à¤·à¤¿à¤£ अफà¥à¤°à¥€à¤•ा से लौटने के बाद गांधी जी ने पशà¥à¤šà¤¿à¤®à¥€ शैली के कपड़े पहनना छोड़ दिया, जो उनकी समà¥â€à¤ªà¤¨à¥â€à¤¨à¤¤à¤¾ और सफलता से जà¥à¤¡à¤¼à¤¾ था। उनà¥â€à¤¹à¥‹à¤‚ने सà¥â€à¤µà¤¦à¥‡à¤¶à¥€ रूप से बà¥à¤¨à¥‡ गठकपड़े अरà¥à¤¥à¤¾à¤¤ खादी का समरà¥à¤¥à¤¨ किया। गांधी जी और उनके अनà¥à¤¯à¤¾à¤¯à¤¿à¤¯à¥‹à¤‚ ने सूत से बà¥à¤¨à¥‡ गठखादी के कपड़े को अपनाया। उनà¥â€à¤¹à¥‹à¤‚ने कपड़े को अपने आप बà¥à¤¨à¤¾ और अनà¥â€à¤¯ लोगों को à¤à¤¸à¤¾ करने के लिठपà¥à¤°à¥‡à¤°à¤¿à¤¤ किया। यह चरखा आगे चलकर à¤à¤¾à¤°à¤¤à¥€à¤¯ राषà¥â€à¤Ÿà¥à¤°à¥€à¤¯ कॉनà¥â€à¤—à¥à¤°à¥‡à¤¸ के à¤à¤£à¥â€à¤¡à¥‡ में शामिल किया गया।
गांधी जी ने दरà¥à¤¶à¤¨ के बारे में और जीवन की शैली के बारे में अपनी जीवन कथा 'सतà¥â€à¤¯ के साथ मेरे पà¥à¤°à¤¯à¥‹à¤—' की कहानी में बताया है।
à¤à¤¾à¤°à¤¤à¥€à¤¯ संविधान मौलिक अधिकारों के माधà¥â€à¤¯à¤® से à¤à¤¾à¤°à¤¤ के सà¤à¥€ नागरिकों को कानून के समकà¥à¤· समानता का अधिकार देता है। यह जाति, धरà¥à¤®, नसà¥â€à¤², लिंग या जनà¥â€à¤® के आधार पर à¤à¥‡à¤¦à¤à¤¾à¤µ का निषेध करता है और असà¥â€à¤ªà¥ƒà¤¶à¥â€à¤¯à¤¤à¤¾ को समापà¥â€à¤¤ करता है। à¤à¤¾à¤°à¤¤ सतà¥â€à¤¯ और अहिंसा की मानà¥â€à¤¯à¤¤à¤¾à¤“ं का पालन करता है कà¥â€à¤¯à¥‹à¤‚कि देश की लोकतांतà¥à¤°à¤¿à¤• वà¥â€à¤¯à¤µà¤¸à¥â€à¤¥à¤¾ सà¥â€à¤µà¤°à¤¾à¤œ की विचारधारा का पà¥à¤°à¤¤à¤¿à¤¨à¤¿à¤§à¤¿à¤¤à¥â€à¤µ करती है।
बापू ने सतà¥â€à¤¯à¤¾à¤—à¥à¤°à¤¹ को इन लोगों की परिसà¥à¤¥à¤¿à¤¤à¤¿à¤¯à¥‹à¤‚ में सà¥à¤§à¤¾à¤° लाने और इनà¥â€à¤¹à¥‡à¤‚ सामाजिक नà¥â€à¤¯à¤¾à¤¯ दिलाने के साधन के रूप में इसà¥â€à¤¤à¥‡à¤®à¤¾à¤² किया जैसे सारà¥à¤µà¤à¥Œà¤®à¤¿à¤• शिकà¥à¤·à¤¾, महिलाओं के अधिकार, सामà¥à¤¦à¤¾à¤¯à¤¿à¤• सौहारà¥à¤¦, निरà¥à¤§à¤¨à¤¤à¤¾ का उनà¥â€à¤®à¥‚लन, खादी को पà¥à¤°à¥‹à¤¤à¥â€à¤¸à¤¾à¤¹à¤¨ देना आदि।
गांधी जी ने सात सामाजिक बà¥à¤°à¤¾à¤‡à¤¯à¤¾à¤‚ गिनाईं, जो हैं :
- सिदà¥à¤§à¤¾à¤‚तों के बिना राजनीति
- परिशà¥à¤°à¤® के बिना संपतà¥à¤¤à¤¿
- आतà¥â€à¤® चेतना की बिना आनंद
- चरितà¥à¤° के बिना जà¥à¤žà¤¾à¤¨
- नैतिकता के बिना वà¥â€à¤¯à¤¾à¤ªà¤¾à¤°
- मानवता के बिना विजà¥à¤žà¤¾à¤¨
- बलिदान के बिना पूजा
सनà¥à¤®à¤¾à¤°à¥à¤— पर चलना शपथ का उदà¥à¤¦à¥‡à¤¶à¥à¤¯
लोग अपने-अपने तरीके से à¤à¤•-दूसरे को बांध लेते हैं। कहीं पà¥à¤°à¥‡à¤® से बांधा जाता है तो कहीं अपनेपन में। कà¥à¤› लोग दà¥à¤·à¥à¤®à¤¨à¥€ के कारण à¤à¥€ बंधे हà¥à¤ रहते हैं। बंधन का à¤à¤• और तरीका है- कसम का बंधन। à¤à¤¾à¤°à¤¤ में कसम देने की लोक परंपरा है। संविधान में इसे ही शपथ का नाम दे दिया गया है। शपथ इसलिठली जाती है कि सही के पà¥à¤°à¤¤à¤¿ जो निरà¥à¤£à¤¯ लिया गया है उसे अवषà¥à¤¯ पूरा किया जाà¤à¥¤ पर शपथ की आड़ में कà¥à¤› लोग गलत काम à¤à¥€ करते हैं। कसम को à¤à¥€ हथियार बना लिया गया है। इसे राकà¥à¤·à¤¸à¥€ वृतà¥à¤¤à¤¿ कहते हैं। रावण पकà¥à¤· के लोंग इसमें बड़े माहिर थे। जब रावण के दूत पकड़े गये और राजा सà¥à¤—à¥à¤°à¥€à¤µ ने आदेश दे दिया कि इनà¥à¤¹à¥‡à¤‚ अंग à¤à¤‚ग किया जाà¤, तब देखिठराकà¥à¤·à¤¸à¥‹à¤‚ ने कà¥à¤¯à¤¾ किया। सà¥à¤‚दरकांड में आया है- ‘सà¥à¤¨à¤¿ सà¥à¤—à¥à¤°à¥€à¤µ बचन कपि धाà¤à¥¤ बांधि कटक चहॠपास फिराà¤à¥¤à¥¤ बहॠपà¥à¤°à¤•ार मारन कपि लागे। दीन पà¥à¤•ारत तदपि न तà¥à¤¯à¤¾à¤—े।। जो हमार हर नासा काना। तेहि कोसलाधीस कै आना।।’ सà¥à¤—à¥à¤°à¥€à¤µ के आदेष पर वानरों ने राकà¥à¤·à¤¸à¥‹à¤‚ को पà¥à¤°à¤¤à¤¾à¤¡à¤¿à¤¼à¤¤ करना आरंठकिया। राकà¥à¤·à¤¸ गिड़गिड़ाने लगे, तब à¤à¥€ वानरों ने उनà¥à¤¹à¥‡à¤‚ छोड़ा नही ंतो राकà¥à¤·à¤¸à¥‹à¤‚ ने कह दिया यदि हमारे नाक-कान काटोगे तो तà¥à¤®à¥à¤¹à¥‡à¤‚ à¤à¤—वान शà¥à¤°à¥€à¤°à¤¾à¤® की कसम। वानरों को रूक जाना पड़ा। धरà¥à¤®, संसà¥à¤•ृति, सà¤à¥à¤¯à¤¤à¤¾ ये सब à¤à¤• तरह की शपथ हैं सनà¥à¤®à¤¾à¤°à¥à¤— पर चलने के लिà¤à¥¤ राकà¥à¤·à¤¸à¥€ वृतà¥à¤¤à¤¿ के लोग धरà¥à¤® की आड़ में ही अधरà¥à¤® के काम करते हैं। संसà¥à¤•ृति के परदे में तमाम असांसà¥à¤•ृतिक कृतà¥à¤¯ करते हैं।
-पं. विजयषंकर मेहता
बà¥à¤œà¥à¤°à¥à¤—ो के समà¥à¤®à¤¾à¤¨ की परंपरा शà¥à¤°à¤¾à¤¦à¥à¤§
उमà¥à¤° बढ़ने के साथ सोच-विचार के धरातल à¤à¥€ बदल जाते हैं। बà¥à¤œà¥à¤°à¥à¤—ों को बात करते हà¥à¤ देखें, उनके चिंतन पर उनकी शारीरक सà¥à¤¥à¤¿à¤¤à¤¿ का पà¥à¤°à¤à¤¾à¤µ नजर आà¤à¤—ा। बà¥à¤¢à¤¼à¤¾à¤ªà¥‡ में सà¥à¤®à¥ƒà¤¤à¤¿ कà¥à¤·à¥€à¤£ होने कारण वे à¤à¤• ही विषय को बार-बार दोहराते हैं। अनà¥à¤à¤µ के कारण अधिकांश मौकों पर बड़े- बूढ़े आपस में बात कम और बहस जà¥à¤¯à¤¾à¤¦à¤¾ करते दिखेंगे। चूंकि शरीर काम कर नहीं पाता और मन अतà¥à¤¯à¤§à¤¿à¤• सकà¥à¤°à¤¿à¤¯ होता है इसलिठमन का सारा दबाव चिंतन पर पड़ता है और वे चिंतन के सहारे जीते हैं। वे या तो बैठे-बैठे सोचते रहेंगे या कोई सà¥à¤¨à¤¨à¥‡ वाला मिल जाठतो बीते समय की बातों को दोहराते रहेंगे। यदि à¤à¤¸à¤¾ सततॠचलता रहे तो वृदà¥à¤§à¤¾à¤µà¤¸à¥à¤¥à¤¾ बोठलगने लगती है। जीवन ऊब से à¤à¤° जाता है। कà¥à¤› मृतà¥à¤¯à¥ का इंतजार करने लगते हैं तो कà¥à¤› मृतà¥à¤¯à¥ के à¤à¤¯ से डरने लगते हैं। वे à¤à¥à¤² जाते हैं कि जीवन समगà¥à¤° का नाम है। जीवन की समगà¥à¤°à¤¤à¤¾ में बचपन, जवानी और बà¥à¤¢à¤¼à¤¾à¤ªà¤¾ तीनों शामिल हैं। इसलिठà¤à¤¾à¤°à¤¤à¥€à¤¯ परंपरा में शà¥à¤°à¤¾à¤¦à¥à¤§ परà¥à¤µ के रूप में मनाया जाता है। अनà¥à¤¨, पूजा आदि हमारे पितरों को कैसे और कितना पहà¥à¤‚चता है यह आज की पीढ़ी के लिठबहस का विषय हो सकता है, लेकिन वे इससे सहमत होंगे कि शà¥à¤°à¤¾à¤¦à¥à¤§ पकà¥à¤· के इन 15 दिनों मे अपने आस-पास के वृदà¥à¤§à¤œà¤¨, माता-पिता का à¤à¤°à¤ªà¥‚र सेवा-समà¥à¤®à¤¾à¤¨ करना चाहिà¤à¥¤ संकलà¥à¤ª लें कि शà¥à¤°à¤¾à¤¦à¥à¤§à¤ªà¤•à¥à¤· के बाद à¤à¥€ जीवनà¤à¤° अपने गà¥à¤œà¤°à¥‡ हà¥à¤ और जीवित वरिषà¥à¤ परिजनों के साथ विनमà¥à¤°à¤¤à¤¾ और सेवापूरà¥à¤£ वà¥à¤¯à¤µà¤¹à¤¾à¤° करेंगे।
पà¥à¤°à¤•ृति में निहित षांति पाने के उपाय
à¤à¤• महातà¥à¤®à¤¾ नदी किनारे à¤à¤•ांत में अपनी कà¥à¤Ÿà¤¿à¤¯à¤¾ में रहते थे। उनà¥à¤¹à¥‹à¤¨à¥‡à¤‚ कà¥à¤Ÿà¤¿à¤¯à¤¾ के चारों ओर हरे-à¤à¤°à¥‡ वृकà¥à¤· लगा रखे थे, जिन पर सà¥à¤¬à¤¹-शाम पकà¥à¤·à¤¿à¤¯à¥‹à¤‚ का कलरव गूंजता रहता था। पà¥à¤°à¤•ृति का यह मधà¥à¤° सानà¥à¤¨à¤¿à¤§à¥à¤¯ महातà¥à¤®à¤¾ को सदैव आनंदित रखता था। पकà¥à¤·à¥€ और पेड़-पौधो तो मानो उनका परिवार ही बन गठथे। à¤à¤• दिन महातà¥à¤®à¤¾ पà¥à¤°à¤¾à¤¤à¤ƒà¤•ालीन पूजन कर उठे ही थे कि दà¥à¤µà¤¾à¤° पर उनà¥à¤¹à¥‡ à¤à¤• सेठजी खड़े नजर आà¤à¥¤ उनà¥à¤¹à¥‡à¤‚ चिंतागà¥à¤°à¤¸à¥à¤¤ देख महातà¥à¤®à¤¾ ने उनसे समसà¥à¤¯à¤¾ जाननी चाही। सेठजी बोले, ‘महाराज! मेरे पास विशाल संपदा है, à¤à¤°à¤¾ पूरा परिवार है और मà¥à¤à¥‡ कोई रोग à¤à¥€ नहीं है। फिर à¤à¥€ मà¥à¤à¥‡ नींद नहीं आती, रातà¤à¤° करवटें ही बदलता रहता हूं।’ महातà¥à¤®à¤¾ आतà¥à¤®à¥€à¤¯à¤¤à¤¾ से सेठजी के सिर पर हाथ फेरकर बोले, ‘सेठ! तà¥à¤®à¥à¤¹à¤¾à¤°à¥‡ पास सब कà¥à¤› à¤à¤²à¥‡ ही हो, किंतॠवह नहीं है,जो नींद के लिठआवशà¥à¤¯à¤• है।’ सेठने पूछा, ‘वह कà¥à¤¯à¤¾ है, महाराज?’ महातà¥à¤®à¤¾ बोले, तà¥à¤® चारों ओर चिंताओं से घिरे हो। धन-संपतà¥à¤¤à¤¿ की चिंता, वà¥à¤¯à¤¾à¤ªà¤¾à¤°-वà¥à¤¯à¤µà¤¸à¤¾à¤¯ की चिंता, परिवार की चिंता। सà¥à¤®à¤°à¤£ रखो कि चिंता और चैन में शतà¥à¤°à¥à¤¤à¤¾ है।’ सेठने इससे बचने का उपाय पूछा तो उनà¥à¤¹à¥‹à¤‚ने कहा, ‘तà¥à¤® पà¥à¤°à¤•ृति से शिकà¥à¤·à¤¾ गà¥à¤°à¤¹à¤£ करो। पेड़, पौधे, फल, पानी और पà¥à¤°à¤•ाश के रूप में उसकी अनंत संपदा चारों ओर बिखरी हà¥à¤ˆ है, किंतॠवह चिंतामà¥à¤•à¥à¤¤ है। अपनी इस दौलत को पूरी दà¥à¤¨à¤¿à¤¯à¤¾ पर दोनों हाथों से सतत लà¥à¤Ÿà¤¾à¤¤à¥€ रहती है। तà¥à¤® यदि उससे पà¥à¤°à¥‡à¤°à¤£à¤¾ लेकर अपना जीवन à¤à¥€ उसके अनà¥à¤°à¥‚प बना लोगे तो तà¥à¤®à¥à¤¹à¥‡à¤‚ न केवल नींद आà¤à¤—ी बलà¥à¤•ि अतीव शांति महसूस होगी।’ सेठने महातà¥à¤®à¤¾ की बात का मरà¥à¤® समà¤à¤¾ और लोक कलà¥à¤¯à¤¾à¤£ की राह पर चल पड़ा। धन और जà¥à¤žà¤¾à¤¨ देने से बढ़ते ही हैं। इसलिठइनके संगà¥à¤°à¤¹ के साथ-साथ इनके दान की वृतà¥à¤¤à¤¿ à¤à¥€ रखनी चाहिà¤à¥¤
मोह के कारण गई लड़के की जान
जय और विजय में घनिषà¥à¤ मितà¥à¤°à¤¤à¤¾ थी। दोनों के परिवारों के मधà¥à¤¯ à¤à¥€ बहà¥à¤¤ सà¥à¤¨à¥‡à¤¹ था। दोनों पढ़ाई-लिखाई, घूमना-फिरना साथ ही करते थे। à¤à¤• बार दोनों नदी किनारे घूमने गà¤à¥¤ दोनों ही बड़े अचà¥à¤›à¥‡ तैराक थें नदी में दोनों ने काफी देर मसà¥à¤¤à¥€ की। तà¤à¥€ वहां सà¥à¤¥à¤¾à¤¨à¥€à¤¯ पà¥à¤°à¤¶à¤¾à¤¸à¤¨ की ओर से सूचना दी गई कि नदी से बाहर निकल आà¤à¤‚, कà¥à¤¯à¥‹à¤‚कि बांध से पानी छोड़ा जा रहा है। दोनों मितà¥à¤° पानी से बाहर निकल आà¤à¥¤ जब बांध से पानी नदी में छोड़ा गया तो बाढ़ जैसा दà¥à¤°à¤¶à¥à¤¯ निरà¥à¤®à¤¿à¤¤ हो गया। जय और विजय सà¥à¤°à¤•à¥à¤·à¤¿à¤¤ सà¥à¤¥à¤¾à¤¨ पर बैठकर यह नजारा देखने लगे।
तà¤à¥€ दोनों ने देखा कि नदी की धारा के मधà¥à¤¯ में à¤à¤• कंबल बहता हà¥à¤† आ रहा है। विजय को कंबल का लालच हो आया। जय ने उसे बहà¥à¤¤ रोका, किंतॠविजय पानी में कूद गया। लेकिन कंबल के पास पहà¥à¤‚चकर उसने जैसे ही उसे खींचकर ले जाने की कोशिश की, उसका संतà¥à¤²à¤¨ गड़बड़ा गया। कंबल पानी में à¤à¥€à¤—कर बहà¥à¤¤ à¤à¤¾à¤°à¥€ हो गया था। पानी का बहाव à¤à¥€ बहà¥à¤¤ तेज था। à¤à¤¸à¥‡ में कंबल लेकर तैरना असंà¤à¤µ था। विजय जितना जोर लगाकर किनारे की ओर आने का पà¥à¤°à¤¯à¤¾à¤¸ करता, बड़ी-बड़ी लहरें उसे पीछे की ओर फेंक देतीं। अपने मितà¥à¤° की à¤à¤¸à¥€ दà¥à¤°à¥à¤¦à¤¶à¤¾ देखकर जय चिलà¥à¤²à¤¾à¤¯à¤¾, ‘विजय! कंबल फेंक दो और लौट आओ।’ किंतॠविजय ने कहा, ‘मैं तो कंबल को छोड़ रहा हूं, किंतॠयह कंबल मà¥à¤à¥‡ नहीं छोड़ रहा है।’
जय समठगया कि विजय के मन में कंबल के पà¥à¤°à¤¤à¤¿ मोह जागृत हो गया है। विजय ने कंबल सहित किनारे पर आने की बहà¥à¤¤ कोशिश की, किंतॠवह नाकाम रहा और अंततः वह पानी में डूब गया। मोह सदैव संकट का कारण बनता है। इसलिठअपने मन को संयम की डोर से बांधे रखना चाहिà¤à¥¤
जब संतों ने लिया विपरीत का सहारा
किसी वन में दो संत रहते थे। वे à¤à¤•ांत में अपनी धà¥à¤¯à¤¾à¤¨-साधना में लीन रहते। उनà¥à¤¹à¥‡à¤‚ दà¥à¤¨à¤¿à¤¯à¤¾ से कोई सरोकार रखना पसंद नहीं था। कà¤à¥€-कà¤à¤¾à¤° यातà¥à¤°à¤¿à¤¯à¥‹à¤‚ का कोई दल वहां से गà¥à¤œà¤°à¤¤à¤¾ था तो अवषà¥à¤¯ उनसे ये संत बातचीत कर लेते। इनà¥à¤¹à¥€à¤‚ यातà¥à¤°à¤¿à¤¯à¥‹à¤‚ के दà¥à¤µà¤¾à¤°à¤¾ वहां के राजा को उनके विषय में जà¥à¤žà¤¾à¤¤ हà¥à¤†à¥¤ वह इन दोनों से मिलने रवाना हà¥à¤†à¥¤ जब संतों को पता चला तो उनà¥à¤¹à¥‹à¤‚ने सोचा कि यदि राजा ने हमसे मिलकर हमारी à¤à¤²à¤¾à¤ˆ देखी तो वह बार-बार हमसे मिलने आà¤à¤—ा। इस कारण हमारी धà¥à¤¯à¤¾à¤¨-साधना में बाधा पड़ेगी। अतः à¤à¤¸à¤¾ कोई तरीका अपनाना चाहिà¤, जिससे राजा हमें सामानà¥à¤¯ वà¥à¤¯à¤•à¥à¤¤à¤¿ ही समà¤à¥‡à¥¤ दोनों ने à¤à¤• उपाय सोचा। जब राजा का लाव-लषà¥à¤•र कà¥à¤Ÿà¤¿à¤¯à¤¾ के पास पहà¥à¤‚चा तो दोनों संत बाहर निकलकर लड़ने लगे। दोनों ने अपने हाथों में à¤à¤•-à¤à¤• डंडा ले रखा था। à¤à¤• संत ने कहा, ‘तू सà¥à¤µà¤¯à¤‚ को कà¥à¤¯à¤¾ समà¤à¤¤à¤¾ है? मैंने इतना जà¥à¤žà¤¾à¤¨ अरà¥à¤œà¤¿à¤¤ किया, जितना तू सात जनà¥à¤®à¥‹à¤‚ में à¤à¥€ नहीं कर सकता।, तब दूसरे संत ने चिढ़कर अपनी आवाज ऊंची की- ‘अपने जà¥à¤žà¤¾à¤¨ की डींग मत हांक। तà¥à¤à¤¸à¥‡ जà¥à¤¯à¤¾à¤¦à¤¾ तो मेरे षिषà¥à¤¯à¥‹à¤‚ ने जà¥à¤žà¤¾à¤¨à¤¾à¤°à¥à¤œà¤¨ किया है।’ पहले ने हाथ का डंडा ऊंचा कर कहा- ‘तू काहे का संत। दिन à¤à¤° खाता रहता है।’ दूसरे ने ततà¥à¤•ाल जवाब दिया- ‘तू कौन सा महातà¥à¤®à¤¾ है? खाने और सोने से तà¥à¤à¥‡ फà¥à¤°à¥à¤¸à¤¤ मिले, तो साधना करेगा न!’ राजा ने जब यह दृषà¥à¤¯ देखा, तो वह निराष हà¥à¤† और उनà¥à¤¹à¥‡à¤‚ सरà¥à¤µà¤¥à¤¾ सामानà¥à¤¯ वà¥à¤¯à¤•à¥à¤¤à¤¿ समà¤à¤•र वहां से चला गया। राजा के जाने पर संतों ने राहत महसूस की और पूरà¥à¤µà¤µà¤¤ अपनी-अपनी साधना में रम गà¤à¥¤ वृहतà¥à¤¤à¤° उदà¥à¤¦à¥‡à¤·à¥à¤¯à¥‹à¤‚ की पूरà¥à¤¤à¤¿ के लिठकई बार विपरीत मारà¥à¤— का अवलंबन लेना पड़ता है, जो दिखता गलत है, किंतॠअंततः वह कलà¥à¤¯à¤¾à¤£ की राह ही पà¥à¤°à¤·à¤¸à¥à¤¤ करता है।
राषà¥â€à¤Ÿà¥à¤°à¤ªà¤¿à¤¤à¤¾ महातà¥â€à¤®à¤¾ गांधी
19 September 2013
मोहनदास करमचंद गांधी (2 अकà¥à¤¤à¥‚बर 1869 - 30 जनवरी 1948) à¤à¤¾à¤°à¤¤ à¤à¤µà¤‚ à¤à¤¾à¤°à¤¤à¥€à¤¯ सà¥à¤µà¤¤à¤‚तà¥à¤°à¤¤à¤¾ आंदोलन के à¤à¤• पà¥à¤°à¤®à¥à¤– राजनैतिक à¤à¤µà¤‚ आधà¥à¤¯à¤¾à¤¤à¥à¤®à¤¿à¤• नेता थे। वे सतà¥à¤¯à¤¾à¤—à¥à¤°à¤¹ - वà¥à¤¯à¤¾à¤ªà¤• सविनय अवजà¥à¤žà¤¾ के माधà¥à¤¯à¤® से अतà¥à¤¯à¤¾à¤šà¤¾à¤° के पà¥à¤°à¤¤à¤¿à¤•ार के अगà¥à¤°à¤£à¥€ नेता थे, उनकी इस अवधारणा की नींव संपूरà¥à¤£ अहिंसा पर रखी गई थी जिसने à¤à¤¾à¤°à¤¤ को आजादी दिलाकर पूरी दà¥à¤¨à¤¿à¤¯à¤¾ में जनता के नागरिक अधिकारों à¤à¤µà¤‚ सà¥à¤µà¤¤à¤‚तà¥à¤°à¤¤à¤¾ के पà¥à¤°à¤¤à¤¿ आंदोलन के लिठपà¥à¤°à¥‡à¤°à¤¿à¤¤ किया। उनà¥à¤¹à¥‡à¤‚ दà¥à¤¨à¤¿à¤¯à¤¾ में आम जनता महातà¥à¤®à¤¾ गांधी के नाम से जानती है। संसà¥à¤•ृत: महातà¥à¤®à¤¾ अथवा महान आतà¥à¤®à¤¾ à¤à¤• समà¥à¤®à¤¾à¤¨ सूचक शबà¥à¤¦ जिसे सबसे पहले रवीनà¥à¤¦à¥à¤°à¤¨à¤¾à¤¥ टेगौर ने पà¥à¤°à¤¯à¥‹à¤— किया और à¤à¤¾à¤°à¤¤ में उनà¥à¤¹à¥‡à¤‚ बापू के नाम से à¤à¥€ याद किया जाता है।
गà¥à¤œà¤°à¤¾à¤¤à¥€ બાપૠ(बापू अथवा पिता) उनà¥à¤¹à¥‡à¤‚ सरकारी तौर पर राषà¥à¤Ÿà¥à¤°à¤ªà¤¿à¤¤à¤¾ का समà¥à¤®à¤¾à¤¨ दिया गया है २ अकà¥à¤Ÿà¥‚बर को उनके जनà¥à¤® दिन राषà¥à¤Ÿà¥à¤°à¥€à¤¯ परà¥à¤µ गांधी जयंती के नाम से मनाया जाता है और दà¥à¤¨à¤¿à¤¯à¤¾à¤à¤° में इस दिन को अंतरराषà¥à¤Ÿà¥à¤°à¥€à¤¯ अहिंसा दिवस के नाम से मनाया जाता है।
सबसे पहले गांधी ने रोजगार अहिंसक सविनय अवजà¥à¤žà¤¾ पà¥à¤°à¤µà¤¾à¤¸à¥€ वकील के रूप में दकà¥à¤·à¤¿à¤£ अफà¥à¤°à¥€à¤•ा, में à¤à¤¾à¤°à¤¤à¥€à¤¯ समà¥à¤¦à¤¾à¤¯ के लोगों के नागरिक अधिकारों के लिठसंघरà¥à¤· हेतॠपà¥à¤°à¤¯à¥à¤•à¥à¤¤ किया। १९१५ में उनकी वापसी के बाद उनà¥à¤¹à¥‹à¤‚ने à¤à¤¾à¤°à¤¤ में किसानों , कृषि मजदूरों और शहरी शà¥à¤°à¤®à¤¿à¤•ों को अतà¥à¤¯à¤¾à¤§à¤¿à¤• à¤à¥‚मि कर और à¤à¥‡à¤¦à¤à¤¾à¤µ के विरूदà¥à¤§ आवाज उठाने के लिठà¤à¤•जà¥à¤Ÿ किया।
१९२१ में à¤à¤¾à¤°à¤¤à¥€à¤¯ राषà¥à¤Ÿà¥à¤°à¥€à¤¯ कांगà¥à¤°à¥‡à¤¸ की बागडोर संà¤à¤¾à¤²à¤¨à¥‡ के बाद गांधी जी ने देशà¤à¤° में गरीबी से राहत दिलाने, महिलाओं के अधिकारों का विसà¥à¤¤à¤¾à¤°, धारà¥à¤®à¤¿à¤• à¤à¤µà¤‚ जातीय à¤à¤•ता का निरà¥à¤®à¤¾à¤£, आतà¥à¤®-निरà¥à¤à¤°à¤¤à¤¾ के लिठअसà¥à¤ªà¥ƒà¤¶à¥â€à¤¯à¤¤à¤¾ का अंत आदि के लिठबहà¥à¤¤ से आंदोलन चलाà¤à¤‚। किंतॠइन सबसे अधिक विदेशी राज से मà¥à¤•à¥à¤¤à¤¿ दिलाने वाले सà¥à¤µà¤°à¤¾à¤œ की पà¥à¤°à¤¾à¤ªà¥à¤¤à¤¿ उनका पà¥à¤°à¤®à¥à¤– लकà¥à¤·à¥â€à¤¯ था।
गाà¤à¤§à¥€ जी ने बà¥à¤°à¤¿à¤Ÿà¤¿à¤¶ सरकार दà¥à¤µà¤¾à¤°à¤¾ à¤à¤¾à¤°à¤¤à¥€à¤¯à¥‹à¤‚ पर लगाठगठनमक कर के विरोध में १९३० में दांडी मारà¥à¤š और इसके बाद १९४२ में , बà¥à¤°à¤¿à¤Ÿà¤¿à¤¶ à¤à¤¾à¤°à¤¤ छोड़ो आनà¥à¤¦à¥‹à¤²à¤¨ छेडकर à¤à¤¾à¤°à¤¤à¥€à¤¯à¥‹à¤‚ का नेतृतà¥à¤µ कर पà¥à¤°à¤¸à¤¿à¤¦à¥à¤§à¤¿ पà¥à¤°à¤¾à¤ªà¥à¤¤ की। दकà¥à¤·à¤¿à¤£ अफà¥à¤°à¥€à¤•ा और à¤à¤¾à¤°à¤¤ में विà¤à¤¿à¤¨à¥à¤¨ अवसरों पर कई वरà¥à¤·à¥‹à¤‚ तक उनà¥à¤¹à¥‡à¤‚ जेल में रहना पड़ा।
गांधी जी ने सà¤à¥€ परिसà¥à¤¥à¤¿à¤¤à¤¿à¤¯à¥‹à¤‚ में अहिंसा और सतà¥à¤¯ का पालन किया और सà¤à¥€ को इनका पालन करने के लिठवकालत à¤à¥€ की। उनà¥à¤¹à¥‹à¤‚ने आतà¥à¤®-निरà¥à¤à¤°à¤¤à¤¾ वाले आवासीय समà¥à¤¦à¤¾à¤¯ में अपना जीवन गà¥à¤œà¤¾à¤°à¤¾ किया और पंरपरागत à¤à¤¾à¤°à¤¤à¥€à¤¯ पोशाक धोती और सूत से बनी शॉल पहनी जिसे उसने सà¥à¤µà¤¯à¤‚ ने चरखे पर सूत कात कर हाथ से बनाया था। उनà¥à¤¹à¥‹à¤‚ने सादा शाकाहारी à¤à¥‹à¤œà¤¨ खाया और आतà¥à¤®à¤¶à¥à¤¦à¥à¤§à¤¿ तथा सामाजिक पà¥à¤°à¤¤à¤¿à¤•ार दोनों के लिठलंबे-लंबे उपवास à¤à¥€ किà¤à¥¤
रबीनà¥à¤¦à¥à¤°à¤¨à¤¾à¤¥ ठाकà¥à¤°, गà¥à¤°à¥à¤¦à¥‡à¤µ
19 September 2013
रबीनà¥à¤¦à¥à¤°à¤¨à¤¾à¤¥ ठाकà¥à¤°, गà¥à¤°à¥à¤¦à¥‡à¤µ (जनà¥à¤®- 7 मई, 1861, कलकतà¥à¤¤à¤¾, पशà¥à¤šà¤¿à¤® बंगाल; मृतà¥à¤¯à¥- 7 अगसà¥à¤¤, 1941, कलकतà¥à¤¤à¤¾) à¤à¤• बांगà¥à¤²à¤¾ कवि, कहानीकार, गीतकार, संगीतकार, नाटककार, निबंधकार और चितà¥à¤°à¤•ार थे। à¤à¤¾à¤°à¤¤à¥€à¤¯ संसà¥à¤•ृति के सरà¥à¤µà¤¶à¥à¤°à¥‡à¤·à¥à¤ रूप से पशà¥à¤šà¤¿à¤®à¥€ देशों का परिचय और पशà¥à¤šà¤¿à¤®à¥€ देशों की संसà¥à¤•ृति से à¤à¤¾à¤°à¤¤ का परिचय कराने में टैगोर की बड़ी à¤à¥‚मिका रही तथा आमतौर पर उनà¥à¤¹à¥‡à¤‚ आधà¥à¤¨à¤¿à¤• à¤à¤¾à¤°à¤¤ का असाधारण सृजनशील कलाकार माना जाता है।
जीवन परिचय
रबीनà¥à¤¦à¥à¤°à¤¨à¤¾à¤¥ ठाकà¥à¤° का जनà¥à¤® 7 मई, 1861 कलकतà¥à¤¤à¤¾ (वरà¥à¤¤à¤®à¤¾à¤¨ कोलकाता) में देवेंदà¥à¤°à¤¨à¤¾à¤¥ टैगोर और शारदा देवी के पà¥à¤¤à¥à¤° के रूप में à¤à¤• संपनà¥à¤¨ बांगà¥à¤²à¤¾ परिवार में हà¥à¤† था। बहà¥à¤®à¥à¤–ी पà¥à¤°à¤¤à¤¿à¤à¤¾ के धनी शà¥à¤°à¥€ टैगोर सहज ही कला के कई सà¥à¤µà¤°à¥‚पों की ओर आकृषà¥à¤Ÿ हà¥à¤ जैसे- साहितà¥à¤¯, कविता, नृतà¥à¤¯ और संगीत।
दà¥à¤¨à¤¿à¤¯à¤¾ की समकालीन सांसà¥à¤•ृतिक रà¥à¤à¤¾à¤¨ से वे à¤à¤²à¥€-à¤à¤¾à¤à¤¤à¤¿ अवगत थे। साठके दशक के उतà¥à¤¤à¤°à¤¾à¤°à¥à¤¦à¥à¤§ में टैगोर की चितà¥à¤°à¤•ला यातà¥à¤°à¤¾ शà¥à¤°à¥‚ हà¥à¤ˆà¥¤ यह उनके कवितà¥à¤¯ सजगता का विसà¥à¤¤à¤¾à¤° था। हालांकि उनà¥à¤¹à¥‡à¤‚ कला की कोई औपचारिक शिकà¥à¤·à¤¾ नहीं मिली थी उनà¥à¤¹à¥‹à¤‚ने à¤à¤• सशकà¥à¤¤ à¤à¤µà¤‚ सहज दृशà¥à¤¯ शबà¥à¤¦à¤•ोश का विकास कर लिया था। शà¥à¤°à¥€ टैगोर की इस उपलबà¥à¤§à¤¿ के पीछे आधà¥à¤¨à¤¿à¤• पाशà¥à¤šà¤¾à¤¤à¥à¤¯, पà¥à¤°à¤¾à¤¤à¤¨ à¤à¤µà¤‚ बालà¥à¤¯ कला जैसे दृशà¥à¤¯ कला के विà¤à¤¿à¤¨à¥à¤¨ सà¥à¤µà¤°à¥‚पों की उनकी गहरी समठथी।
शिकà¥à¤·à¤¾
रबीनà¥à¤¦à¥à¤°à¤¨à¤¾à¤¥ टैगोर की सà¥à¤•ूल की पढ़ाई पà¥à¤°à¤¤à¤¿à¤·à¥à¤ ित सेंट ज़ेवियर सà¥à¤•ूल में हà¥à¤ˆà¥¤ टैगोर ने बैरिसà¥à¤Ÿà¤° बनने की चाहत में 1878 में इंगà¥à¤²à¥ˆà¤‚ड के बà¥à¤°à¤¿à¤œà¤Ÿà¥‹à¤¨ पबà¥à¤²à¤¿à¤• सà¥à¤•ूल में नाम दरà¥à¤œ कराया। उनà¥à¤¹à¥‹à¤‚ने लंदन कॉलेज विशà¥à¤µà¤µà¤¿à¤¦à¥à¤¯à¤¾à¤²à¤¯ में क़ानून का अधà¥à¤¯à¤¯à¤¨ किया लेकिन 1880 में बिना डिगà¥à¤°à¥€ हासिल किठही वापस आ गà¤à¥¤ रबीनà¥à¤¦à¥à¤°à¤¨à¤¾à¤¥ टैगोर को बचपन से ही कविताà¤à¤‚ और कहानियाठलिखने का शौक़ था। उनके पिता देवेनà¥à¤¦à¥à¤°à¤¨à¤¾à¤¥ ठाकà¥à¤° à¤à¤• जाने-माने समाज सà¥à¤§à¤¾à¤°à¤• थे। वे चाहते थे कि रबीनà¥à¤¦à¥à¤° बडे होकर बैरिसà¥à¤Ÿà¤° बनें। इसलिठउनà¥à¤¹à¥‹à¤‚ने रबीनà¥à¤¦à¥à¤° को क़ानून की पढ़ाई के लिठलंदन à¤à¥‡à¤œà¤¾à¥¤ लेकिन रबीनà¥à¤¦à¥à¤° का मन साहितà¥à¤¯ में ही रमता था। उनà¥à¤¹à¥‡à¤‚ अपने मन के à¤à¤¾à¤µà¥‹à¤‚ को काग़ज़ पर उतारना पसंद था। आख़िरकार, उनके पिता ने पढ़ाई के बीच में ही उनà¥à¤¹à¥‡à¤‚ वापस à¤à¤¾à¤°à¤¤ बà¥à¤²à¤¾ लिया और उन पर घर-परिवार की ज़िमà¥à¤®à¥‡à¤¦à¤¾à¤°à¤¿à¤¯à¤¾à¤ डाल दीं। रबीनà¥à¤¦à¥à¤°à¤¨à¤¾à¤¥ टैगोर को पà¥à¤°à¤•ृति से बहà¥à¤¤ पà¥à¤¯à¤¾à¤° था। वे गà¥à¤°à¥à¤¦à¥‡à¤µ के नाम से लोकपà¥à¤°à¤¿à¤¯ थे। à¤à¤¾à¤°à¤¤ आकर गà¥à¤°à¥à¤¦à¥‡à¤µ ने फिर से लिखने का काम शà¥à¤°à¥‚ किया।
रचनाà¤à¤
रबीनà¥à¤¦à¥à¤°à¤¨à¤¾à¤¥ ठाकà¥à¤° à¤à¤• बांगà¥à¤²à¤¾ कवि, कहानीकार, गीतकार, संगीतकार, नाटककार, निबंधकार और चितà¥à¤°à¤•ार थे। जिनà¥à¤¹à¥‡à¤‚ 1913 में साहितà¥à¤¯ के लिठनोबेल पà¥à¤°à¤¸à¥à¤•ार पà¥à¤°à¤¦à¤¾à¤¨ किया गया। टैगोर ने बांगà¥à¤²à¤¾ साहितà¥à¤¯ में नठगदà¥à¤¯ और छंद तथा लोकà¤à¤¾à¤·à¤¾ के उपयोग की शà¥à¤°à¥à¤†à¤¤ की और इस पà¥à¤°à¤•ार शासà¥à¤¤à¥à¤°à¥€à¤¯ संसà¥à¤•ृत पर आधारित पारंपरिक पà¥à¤°à¤¾à¤°à¥‚पों से उसे मà¥à¤•à¥à¤¤à¤¿ दिलाई। धरà¥à¤® सà¥à¤§à¤¾à¤°à¤• देवेनà¥à¤¦à¥à¤°à¤¨à¤¾à¤¥ टैगोर के पà¥à¤¤à¥à¤° रबींदà¥à¤°à¤¨à¤¾à¤¥ ने बहà¥à¤¤ कम आयॠमें कावà¥à¤¯ लेखन पà¥à¤°à¤¾à¤°à¤‚ठकर दिया था। 1870 के दशक के उतà¥à¤¤à¤°à¤¾à¤°à¥à¤¦à¥à¤§ में वह इंगà¥à¤²à¥ˆà¤‚ड में अधà¥à¤¯à¤¯à¤¨ अधूरा छोड़कर à¤à¤¾à¤°à¤¤ वापस लौट आà¤à¥¤ à¤à¤¾à¤°à¤¤ में रबींदà¥à¤°à¤¨à¤¾à¤¥ टैगोर ने 1880 के दशक में कविताओं की अनेक पà¥à¤¸à¥à¤¤à¤•ें पà¥à¤°à¤•ाशित की तथा मानसी (1890) की रचना की। यह संगà¥à¤°à¤¹ उनकी पà¥à¤°à¤¤à¤¿à¤à¤¾ की परिपकà¥à¤µà¤¤à¤¾ का परिचायक है। इसमें उनकी कà¥à¤› सरà¥à¤µà¤¶à¥à¤°à¥‡à¤·à¥à¤ कविताà¤à¤ शामिल हैं, जिनमें से कई बांगà¥à¤²à¤¾ à¤à¤¾à¤·à¤¾ में अपरिचित नई पदà¥à¤¯ शैलियों में हैं। साथ ही इसमें समसामयिक बंगालियों पर कà¥à¤› सामाजिक और राजनीतिक वà¥à¤¯à¤‚गà¥à¤¯ à¤à¥€ हैं।
दो-दो राषà¥à¤Ÿà¥à¤°à¤—ानों के रचयिता रवीनà¥à¤¦à¥à¤°à¤¨à¤¾à¤¥ टैगोर के पारंपरिक ढांचे के लेखक नहीं थे। वे à¤à¤•मातà¥à¤° कवि हैं जिनकी दो रचनाà¤à¤ दो देशों का राषà¥à¤Ÿà¥à¤°à¤—ान बनीं- à¤à¤¾à¤°à¤¤ का राषà¥à¤Ÿà¥à¤°-गान जन गण मन और बांगà¥à¤²à¤¾à¤¦à¥‡à¤¶ का राषà¥à¤Ÿà¥à¤°à¥€à¤¯ गान आमार सोनार बांगà¥à¤²à¤¾ गà¥à¤°à¥à¤¦à¥‡à¤µ की ही रचनाà¤à¤ हैं। वे वैशà¥à¤µà¤¿à¤• समानता और à¤à¤•ांतिकता के पकà¥à¤·à¤§à¤° थे। बà¥à¤°à¤¹à¥à¤®à¤¸à¤®à¤¾à¤œà¥€ होने के बावज़ूद उनका दरà¥à¤¶à¤¨ à¤à¤• अकेले वà¥à¤¯à¤•à¥à¤¤à¤¿ को समरà¥à¤ªà¤¿à¤¤ रहा। चाहे उनकी ज़à¥à¤¯à¤¾à¤¦à¤¾à¤¤à¤° रचनाà¤à¤‚ बांगà¥à¤²à¤¾ में लिखी हà¥à¤ˆ हों। वह à¤à¤• à¤à¤¸à¥‡ लोक कवि थे जिनका केनà¥à¤¦à¥à¤°à¥€à¤¯ ततà¥à¤¤à¥à¤µ अंतिम आदमी की à¤à¤¾à¤µà¤¨à¤¾à¤“ं का परिषà¥à¤•ार करना था। वह मनà¥à¤·à¥à¤¯ मातà¥à¤° के सà¥à¤ªà¤¨à¥à¤¦à¤¨ के कवि थे। à¤à¤• à¤à¤¸à¥‡ कलाकार जिनकी रगों में शाशà¥à¤µà¤¤ पà¥à¤°à¥‡à¤® की गहरी अनà¥à¤à¥‚ति है, à¤à¤• à¤à¤¸à¤¾ नाटककार जिसके रंगमंच पर सिरà¥à¤«à¤¼ ‘टà¥à¤°à¥‡à¤œà¤¡à¥€â€™ ही ज़िंदा नहीं है, मनà¥à¤·à¥à¤¯ की गहरी जिजीविषा à¤à¥€ है। à¤à¤• à¤à¤¸à¤¾ कथाकार जो अपने आस-पास से कथालोक चà¥à¤¨à¤¤à¤¾ है, बà¥à¤¨à¤¤à¤¾ है, सिरà¥à¤«à¤¼ इसलिठनहीं कि घनीà¤à¥‚त पीड़ा के आवृतà¥à¤¤à¤¿ करे या उसे ही अनावृतà¥à¤¤ करे, बलà¥à¤•ि उस कथालोक में वह आदमी के अंतिम गंतवà¥à¤¯ की तलाश à¤à¥€ करता है।
सरà¥à¤µà¤¶à¥à¤°à¥‡à¤·à¥à¤ कहानियाà¤
सियालदह और शजादपà¥à¤° सà¥à¤¥à¤¿à¤¤ अपनी ख़ानदानी जायदाद के पà¥à¤°à¤¬à¤‚धन के लिठ1891 में टैगोर ने 10 वरà¥à¤· तक पूरà¥à¤µà¥€ बंगाल (वरà¥à¤¤à¤®à¤¾à¤¨ बांगला देश) में रहे, वहाठवह अकà¥à¤¸à¤° पदà¥à¤®à¤¾ नदी (गंगा नदी) पर à¤à¤• हाउस बोट में गà¥à¤°à¤¾à¤®à¥€à¤£à¥‹à¤‚ के निकट संपरà¥à¤• में रहते थे और उन गà¥à¤°à¤¾à¤®à¥€à¤£à¥‹à¤‚ की निरà¥à¤§à¤¨à¤¤à¤¾ व पिछड़ेपन के पà¥à¤°à¤¤à¤¿ टैगोर की संवेदना उनकी बाद की रचनाओं का मूल सà¥à¤µà¤° बनी। उनकी सरà¥à¤µà¤¶à¥à¤°à¥‡à¤·à¥à¤ कहानियाà¤, जिनमें ‘दीन-हीनों’ का जीवन और उनके छोटे-मोटे दà¥à¤–’ वरà¥à¤£à¤¿à¤¤ हैं, 1890 के बाद की हैं और उनकी मारà¥à¤®à¤¿à¤•ता में हलà¥à¤•ा सा विडंबना का पà¥à¤Ÿ है। जो टैगोर की निजी विशेषता है तथा जिसे निरà¥à¤¦à¥‡à¤¶à¤• सतà¥à¤¯à¤œà¤¿à¤¤ राय अपनी बाद की फ़िलà¥à¤®à¥‹à¤‚ में कà¥à¤¶à¤²à¤¤à¤¾à¤ªà¥‚रà¥à¤µà¤• पकड़ पाठहैं।
गलà¥à¤ªà¤—à¥à¤šà¥à¤› की तीन जिलà¥à¤¦à¥‹à¤‚ में उनकी सारी चौरासी कहानियाठसंगृहीत हैं, जिनमें से केवल दस पà¥à¤°à¤¤à¤¿à¤¨à¤¿à¤§à¤¿ कहानियाठचà¥à¤¨à¤¨à¤¾ टेढ़ी खीर है। 1891 से 1895 के बीच का पाà¤à¤š वरà¥à¤·à¥‹à¤‚ का समय रवीनà¥à¤¦à¥à¤°à¤¨à¤¾à¤¥ की साधना का महान काल था। वे अपनी कहानियाठसबà¥à¤œ पतà¥à¤° (हरे पतà¥à¤¤à¥‡) में छपाते थे। आज à¤à¥€ पाठकों को उनकी कहानियों में ‘हरे पतà¥à¤¤à¥‡â€™ और ‘हरे गाछ’ मिल सकते हैं। उनकी कहानियों में सूरà¥à¤¯, वरà¥à¤·à¤¾, नदियाठऔर नदी किनारे के सरकंडे, वरà¥à¤·à¤¾ ऋतॠका आकाश, छायादार गाà¤à¤µ, वरà¥à¤·à¤¾ से à¤à¤°à¥‡ अनाज के पà¥à¤°à¤¸à¤¨à¥à¤¨ खेत मिलते हैं। उनके साधारण लोग कहानी खतà¥à¤® होते-होते असाधारण मनà¥à¤·à¥à¤¯à¥‹à¤‚ में बदल जाते हैं। महानता की पराकाषà¥à¤ ा छू आते हैं। उनकी मूक पीड़ा की करà¥à¤£à¤¾ हमारे हृदय को अà¤à¤¿à¤à¥‚त कर लेती है।
उनकी कहानी पोसà¥à¤Ÿà¤®à¤¾à¤¸à¥à¤Ÿà¤° इस बात का सजीव उदाहरण है कि à¤à¤• सचà¥à¤šà¤¾ कलाकार साधारण उपकरणों से कैसी अदà¥à¤à¥à¤¤ सृषà¥à¤Ÿà¤¿ कर सकता है। कहानी में केवल दो सजीव साधारण-से पातà¥à¤° हैं। बहà¥à¤¤ कम घटनाओं से à¤à¥€ वे अपनी कहानी का महल खड़ा कर देते हैं। à¤à¤• छोटी लड़की कैसे बड़े-बड़े इंसानों को अपने सà¥à¤¨à¥‡à¤¹-पाश में बाà¤à¤§ देती हैं। ‘क़ाबà¥à¤²à¥€à¤µà¤¾à¤²à¤¾â€™ à¤à¥€ इस बात का जीता-जागता उदाहरण है। रवीनà¥à¤¦à¥à¤°à¤¨à¤¾à¤¥ ने पहली बार अपनी कहानियों में साधारण की महिमा का बखान किया।
रवीनà¥à¤¦à¥à¤°à¤¨à¤¾à¤¥ की कहानियों में अपढ़ ‘क़ाबà¥à¤²à¥€à¤µà¤¾à¤²à¤¾â€™ और सà¥à¤¸à¤‚सà¥à¤•ृत बंगाली à¤à¥‚त à¤à¤¾à¤µà¤¨à¤¾à¤“ं में à¤à¤• समान हैं। उनकी क़ाबà¥à¤²à¥€à¤µà¤¾à¤²à¤¾, मासà¥à¤Ÿà¤° साहब और ‘पोसà¥à¤Ÿà¤®à¤¾à¤¸à¥à¤Ÿà¤°â€™ कहानियाठआज à¤à¥€ लोकपà¥à¤°à¤¿à¤¯ कहानियाठहैं-लोकपà¥à¤°à¤¿à¤¯ और सरà¥à¤µà¤¶à¥à¤°à¥‡à¤·à¥à¤ à¤à¥€ और बनी रहेंगी। उनकी कहानियाठसरà¥à¤µà¤¶à¥à¤°à¥‡à¤·à¥à¤ होते हà¥à¤ à¤à¥€ लोकपà¥à¤°à¤¿à¤¯ हैं और लोकपà¥à¤°à¤¿à¤¯ होते हà¥à¤ à¤à¥€ सरà¥à¤µà¤¶à¥à¤°à¥‡à¤·à¥à¤ हैं।
अपनी कलà¥à¤ªà¤¨à¤¾ के पातà¥à¤°à¥‹à¤‚ के साथ रवीनà¥à¤¦à¥à¤°à¤¨à¤¾à¤¥ की अदà¥à¤à¥à¤¤ सहानà¥à¤à¥‚तिपूरà¥à¤£ à¤à¤•ातà¥à¤®à¤•ता और उसके चितà¥à¤°à¤£ का अतीव सौंदरà¥à¤¯ उनकी कहानी को सरà¥à¤µà¤¶à¥à¤°à¥‡à¤·à¥à¤ बना देते हैं जिसे पढ़कर दà¥à¤°à¤µà¤¿à¤¤ हà¥à¤ बिना नहीं रहा जा सकता। उनकी कहानियाठफ़ौलाद को मोम बनाने की कà¥à¤·à¤®à¤¤à¤¾ रखती हैं।
अतिथि का तारापद रवीनà¥à¤¦à¥à¤°à¤¨à¤¾à¤¥ की अविसà¥à¤®à¤°à¤£à¥€à¤¯ सृषà¥à¤Ÿà¤¿à¤¯à¥‹à¤‚ में है। इसका नायक कहीं बà¤à¤§à¤•र नहीं रह पाता। आजीवन ‘अतिथि’ ही रहता है। कà¥à¤·à¥à¤§à¤¿à¤¤ पाषाण, आधी रात में (निशीथे) तथा ‘मासà¥à¤Ÿà¤° साहब’ पà¥à¤°à¤¸à¥à¤¤à¥à¤¤ संगà¥à¤°à¤¹ की इन तीन कहानियों में दैवी ततà¥à¤¤à¥à¤µ का सà¥à¤ªà¤°à¥à¤¶ मिलता है। इनमें पहली ‘कà¥à¤·à¥à¤§à¤¿à¤¤ पाषाण’ में कलाकार की कलà¥à¤ªà¤¨à¤¾ अपने सà¥à¤‚दरतम रूप में वà¥à¤¯à¤•à¥à¤¤ हà¥à¤ˆ है। यहाठअतीत वरà¥à¤¤à¤®à¤¾à¤¨ के साथ वारà¥à¤¤à¤¾à¤²à¤¾à¤ª करता है-रंगीन पà¥à¤°à¤à¤¾à¤®à¤¯ अतीत के साथ नीरस वरà¥à¤¤à¤®à¤¾à¤¨à¥¤ समाज में महिलाओं का सà¥à¤¥à¤¾à¤¨ तथा नारी जीवन की विशेषताà¤à¤ उनके लिठगंà¤à¥€à¤° चिंता के विषय थे और इस विषय में à¤à¥€ उनà¥à¤¹à¥‹à¤‚ने गहरी अंतरà¥à¤¦à¥ƒà¤·à¥à¤Ÿà¤¿ का परिचय दिया है।
संगीत
राषà¥â€à¤Ÿà¥à¤°à¤—ान (जन गण मन) के रचयिता टैगोर को बंगाल के गà¥à¤°à¤¾à¤®à¥à¤¯à¤¾à¤‚चल से पà¥à¤°à¥‡à¤® था और इनमें à¤à¥€ पदà¥à¤®à¤¾ नदी उनà¥à¤¹à¥‡à¤‚ सबसे अधिक पà¥à¤°à¤¿à¤¯ थी। जिसकी छवि उनकी कविताओं में बार-बार उà¤à¤°à¤¤à¥€ है। उन वरà¥à¤·à¥‹à¤‚ में उनके कई कविता संगà¥à¤°à¤¹ और नाटक आà¤, जिनमें सोनार तरी (1894; सà¥à¤¨à¤¹à¤°à¥€ नाव) तथा चितà¥à¤°à¤¾à¤‚गदा (1892) उलà¥à¤²à¥‡à¤–नीय है। वासà¥à¤¤à¤µ में टैगोर की कविताओं का अनà¥à¤µà¤¾à¤¦ लगà¤à¤— असंà¤à¤µ है और बांगà¥à¤²à¤¾ समाज के सà¤à¥€ वरà¥à¤—ों में आज तक जनपà¥à¤°à¤¿à¤¯ उनके 2,000 से अधिक गीतों, जो ‘रबींदà¥à¤° संगीत’ के नाम से जाने जाते हैं, पर à¤à¥€ यह लागू होता है।
चितà¥à¤°à¤•ला
साठके दशक के उतà¥à¤¤à¤°à¤¾à¤°à¥à¤¦à¥à¤§ में टैगोर की चितà¥à¤°à¤•ला यातà¥à¤°à¤¾ शà¥à¤°à¥‚ हà¥à¤ˆà¥¤ यह उनके कवितà¥à¤¯ सजगता का विसà¥à¤¤à¤¾à¤° था। हालांकि उनà¥à¤¹à¥‡à¤‚ कला की कोई औपचारिक शिकà¥à¤·à¤¾ नहीं मिली थी उनà¥à¤¹à¥‹à¤‚ने à¤à¤• सशकà¥à¤¤ à¤à¤µà¤‚ सहज दृशà¥à¤¯ शबà¥à¤¦à¤•ोष का विकास कर लिया था। शà¥à¤°à¥€ टैगोर की इस उपलबà¥à¤§à¤¿ के पीछे आधà¥à¤¨à¤¿à¤• पाशà¥à¤šà¤¾à¤¤à¥à¤¯, पà¥à¤°à¤¾à¤¤à¤¨ à¤à¤µà¤‚ बालà¥à¤¯ कला जैसे दृशà¥à¤¯ कला के विà¤à¤¿à¤¨à¥à¤¨ सà¥à¤µà¤°à¥‚पों की उनकी गहरी समठथी। à¤à¤• अवचेतन पà¥à¤°à¤•à¥à¤°à¤¿à¤¯à¤¾ के रूप में आरंठटैगोर की पांडà¥à¤²à¤¿à¤ªà¤¿à¤¯à¥‹à¤‚ में उà¤à¤°à¤¤à¥€ और मिटती रेखाà¤à¤‚ ख़ास सà¥à¤µà¤°à¥‚प लेने लगीं। धीरे-धीरे टैगोर ने कई चितà¥à¤°à¥‹à¤‚ को उकेरा जिनमें कई बेहद कालà¥à¤ªà¤¨à¤¿à¤• à¤à¤µà¤‚ विचितà¥à¤° जानवरों, मà¥à¤–ौटों, रहसà¥à¤¯à¤®à¤¯à¥€ मानवीय चेहरों, गूढ़ à¤à¥‚-परिदृशà¥à¤¯à¥‹à¤‚, चिड़ियों à¤à¤µà¤‚ फूलों के चितà¥à¤° थे। उनकी कृतियों में फंतासी, लयातà¥à¤®à¤•ता à¤à¤µà¤‚ जीवंतता का अदà¥à¤à¥à¤¤ संगम दिखता है। कलà¥à¤ªà¤¨à¤¾ की शकà¥à¤¤à¤¿ ने उनकी कला को जो विचितà¥à¤°à¤¤à¤¾ पà¥à¤°à¤¦à¤¾à¤¨ की उसकी वà¥à¤¯à¤¾à¤–à¥à¤¯à¤¾ शबà¥à¤¦à¥‹à¤‚ में संà¤à¤µ नहीं है। कà¤à¥€-कà¤à¥€ तो ये अपà¥à¤°à¤¾à¤•ृतिक रूप से रहसà¥à¤¯à¤®à¤¯à¥€ और कà¥à¤› धà¥à¤‚धली याद दिलाते हैं। तकनीकी रूप में टैगोर ने सरà¥à¤œà¤¨à¤¾à¤¤à¥à¤®à¤• सà¥à¤µà¤¤à¤‚तà¥à¤°à¤¤à¤¾ का आनंद लिया। उनके पास कई उदà¥à¤µà¥‡à¤²à¤¿à¤¤ करने वाले विषय थे जिनको लेकर बेशक कैनवस पर रंगीन रोशनाई से लिपा-पà¥à¤¤à¤¾ चितà¥à¤° बनाने में à¤à¥€ उनà¥à¤¹à¥‡à¤‚ हिचक नहीं हà¥à¤ˆà¥¤ रोशनाई से बने उनके चितà¥à¤° में à¤à¤• सà¥à¤µà¤šà¥à¤›à¤‚दता दिखती है जिसके तहत कूची, कपड़ा, रूई के फाहों, और यहाठतक कि अंगà¥à¤²à¤¿à¤¯à¥‹à¤‚ के बख़ूबी इसà¥à¤¤à¥‡à¤®à¤¾à¤² किठगठहैं। टैगोर के लिठकला मनà¥à¤·à¥à¤¯ को दà¥à¤¨à¤¿à¤¯à¤¾ से जोड़ने का माधà¥à¤¯à¤® है। आधà¥à¤¨à¤¿à¤•वादी होने के नाते टैगोर विशेष कर कला के कà¥à¤·à¥‡à¤¤à¥à¤° में पूरी तरह समकालीन थे।
राषà¥à¤Ÿà¥à¤°à¤—ान (जन गण मन) के रचयिता टैगोर को बंगाल के गà¥à¤°à¤¾à¤®à¥à¤¯à¤¾à¤‚चल से पà¥à¤°à¥‡à¤® था और इनमें à¤à¥€ पदà¥à¤®à¤¾ नदी उनà¥à¤¹à¥‡à¤‚ सबसे अधिक पà¥à¤°à¤¿à¤¯ थी। जिसकी छवि उनकी कविताओं में बार-बार उà¤à¤°à¤¤à¥€ है। उन वरà¥à¤·à¥‹à¤‚ में उनके कई कविता संगà¥à¤°à¤¹ और नाटक आà¤, जिनमें सोनार तरी (1894; सà¥à¤¨à¤¹à¤°à¥€ नाव) तथा चितà¥à¤°à¤¾à¤‚गदा (1892) उलà¥à¤²à¥‡à¤–नीय है।
टैगोर की कविताओं की पांडà¥à¤²à¤¿à¤ªà¤¿ को सबसे पहले विलियम रोथेनसà¥à¤Ÿà¤¾à¤‡à¤¨ ने पढ़ा था और वे इतने मà¥à¤—à¥à¤§ हो गठकि उनà¥à¤¹à¥‹à¤‚ने अà¤à¤—à¥à¤°à¥‡à¤œà¤¼à¥€ कवि यीटà¥à¤¸ से संपरà¥à¤• किया और पशà¥à¤šà¤¿à¤®à¥€ जगत के लेखकों, कवियों, चितà¥à¤°à¤•ारों और चिंतकों से टैगोर का परिचय कराया। उनà¥à¤¹à¥‹à¤‚ने ही इंडिया सोसायटी से इसके पà¥à¤°à¤•ाशन की वà¥à¤¯à¤µà¤¸à¥à¤¥à¤¾ की। शà¥à¤°à¥‚ में 750 पà¥à¤°à¤¤à¤¿à¤¯à¤¾à¤ छापी गईं, जिनमें से सिरà¥à¤«à¤¼ 250 पà¥à¤°à¤¤à¤¿à¤¯à¤¾à¤ ही बिकà¥à¤°à¥€ के लिठथीं। बाद में मारà¥à¤š 1913 में मेकमिलन à¤à¤‚ड कंपनी लंदन ने इसे पà¥à¤°à¤•ाशित किया और 13 नवंबर 1913 को नोबेल पà¥à¤°à¤¸à¥à¤•ार की घोषणा से पहले इसके दस संसà¥à¤•रण छापने पड़े। यीटà¥à¤¸ ने टैगोर के अà¤à¤—à¥à¤°à¥‡à¤œà¤¼à¥€ अनà¥à¤µà¤¾à¤¦à¥‹à¤‚ का चयन करके उनमें कà¥à¤› सà¥à¤§à¤¾à¤° किठऔर अंतिम सà¥à¤µà¥€à¤•ृति के लिठउनà¥à¤¹à¥‡à¤‚ टैगोर के पास à¤à¥‡à¤œà¤¾ और लिखाः ‘हम इन कविताओं में निहित अजनबीपन से उतने पà¥à¤°à¤à¤¾à¤µà¤¿à¤¤ नहीं हà¥à¤, जितना कि यह देखकर कि इनमें तो हमारी ही छवि नज़र आ रही है।’ बाद में यीटà¥à¤¸ ने ही अà¤à¤—à¥à¤°à¥‡à¤œà¤¼à¥€ अनà¥à¤µà¤¾à¤¦ की à¤à¥‚मिका लिखी। उनà¥à¤¹à¥‹à¤‚ने लिखा कि कई दिनों तक इन कविताओं का अनà¥à¤µà¤¾à¤¦ लिठमैं रेलों, बसों और रेसà¥à¤¤à¤°à¤¾à¤“ं में घूमा हूठऔर मà¥à¤à¥‡ बार-बार इन कविताओं को इस डर से पढ़ना बंद करना पड़ा है कि कहीं कोई मà¥à¤à¥‡ रोते-सिसकते हà¥à¤ न देख ले। अपनी à¤à¥‚मिका में यीटà¥à¤¸ ने लिखा कि हम लोग लंबी-लंबी किताबें लिखते हैं जिनमें शायद à¤à¤• à¤à¥€ पनà¥à¤¨à¤¾ लिखने का à¤à¤¸à¤¾ आनंद नहीं देता है। बाद में गीतांजलि का जरà¥à¤®à¤¨, फà¥à¤°à¥ˆà¤‚च, जापानी, रूसी आदि विशà¥à¤µ की सà¤à¥€ पà¥à¤°à¤®à¥à¤– à¤à¤¾à¤·à¤¾à¤“ं में अनà¥à¤µà¤¾à¤¦ हà¥à¤† और टैगोर की खà¥à¤¯à¤¾à¤¤à¤¿ दà¥à¤¨à¤¿à¤¯à¤¾ के कोने-कोने में फैल गई।
शांतिनिकेतन
1901 में टैगोर ने पशà¥à¤šà¤¿à¤® बंगाल के गà¥à¤°à¤¾à¤®à¥€à¤£ कà¥à¤·à¥‡à¤¤à¥à¤° में सà¥à¤¥à¤¿à¤¤ शांतिनिकेतन में à¤à¤• पà¥à¤°à¤¾à¤¯à¥‹à¤—िक विदà¥à¤¯à¤¾à¤²à¤¯ की सà¥à¤¥à¤¾à¤ªà¤¨à¤¾ की। जहाठउनà¥à¤¹à¥‹à¤‚ने à¤à¤¾à¤°à¤¤ और पशà¥à¤šà¤¿à¤®à¥€ परंपराओं के सरà¥à¤µà¤¶à¥à¤°à¥‡à¤·à¥à¤ को मिलाने का पà¥à¤°à¤¯à¤¾à¤¸ किया। वह विदà¥à¤¯à¤¾à¤²à¤¯ में ही सà¥à¤¥à¤¾à¤¯à¥€ रूप से रहने लगे और 1921 में यह विशà¥à¤µ à¤à¤¾à¤°à¤¤à¥€ विशà¥à¤µà¤µà¤¿à¤¦à¥à¤¯à¤¾à¤²à¤¯ बन गया। 1902 तथा 1907 के बीच उनकी पतà¥à¤¨à¥€ तथा दो बचà¥à¤šà¥‹à¤‚ की मृतà¥à¤¯à¥ से उपजा गहरा दà¥à¤– उनकी बाद की कविताओं में परिलकà¥à¤·à¤¿à¤¤ होता है, जो पशà¥à¤šà¤¿à¤®à¥€ जगत में गीतांजली, साà¤à¤— ऑफ़रिंगà¥à¤¸ (1912) के रूप में पहà¥à¤à¤šà¤¾à¥¤ शांति निकेतन में उनका जो समà¥à¤®à¤¾à¤¨ समारोह हà¥à¤† था उसका सचितà¥à¤° समाचार à¤à¥€ कà¥à¤› बà¥à¤°à¤¿à¤Ÿà¤¿à¤¶ समाचार पतà¥à¤°à¥‹à¤‚ में छपा था। 1908 में कोलकाता में हà¥à¤ कांगà¥à¤°à¥‡à¤¸ अधिवेशन के सà¤à¤¾à¤ªà¤¤à¤¿ और बाद में बà¥à¤°à¤¿à¤Ÿà¥‡à¤¨ के पà¥à¤°à¤¥à¤® लेबर पà¥à¤°à¤§à¤¾à¤¨à¤®à¤‚तà¥à¤°à¥€ रेमà¥à¤œà¥‡ मेकà¥à¤¡à¥‹à¤¨à¤¾à¤²à¥à¤¡ 1914 में à¤à¤• दिन के लिठशांति निकेतन गठथे। उनà¥à¤¹à¥‹à¤‚ने शांति निकेतन के संबंध में पारà¥à¤²à¤¿à¤¯à¤¾à¤®à¥‡à¤‚ट के à¤à¤• लेबर सदसà¥à¤¯ के रूप में जो कà¥à¤› कहा वह à¤à¥€ बà¥à¤°à¤¿à¤Ÿà¤¿à¤¶ समाचार पतà¥à¤°à¥‹à¤‚ में छपा। उनà¥à¤¹à¥‹à¤‚ने शांति निकेतन के संबंध में सरकारी नीति की à¤à¤°à¥à¤¤à¥à¤¸à¤¨à¤¾ करते हà¥à¤ इस बात पर चिंता वà¥à¤¯à¤•à¥à¤¤ की थी कि शांति निकेतन को सरकारी सहायता मिलना बंद हो गई है। पà¥à¤²à¤¿à¤¸ की बà¥à¤²à¥‡à¤• लिसà¥à¤Ÿ में उसका नाम आ गया है और वहाठपढ़ने वाले छातà¥à¤°à¥‹à¤‚ के माता-पिता को धमकी à¤à¤°à¥‡ पतà¥à¤° मिल रहे हैं। पर बà¥à¤°à¤¿à¤Ÿà¤¿à¤¶ समाचार पतà¥à¤° बराबर रवीनà¥à¤¦à¥à¤°à¤¨à¤¾à¤¥ ठाकà¥à¤° के इस पà¥à¤°à¤•ार पà¥à¤°à¤¶à¤‚सक नहीं रहे।
बà¥à¤°à¤¿à¤Ÿà¥‡à¤¨ में गà¥à¤°à¥à¤¦à¥‡à¤µ
रवीनà¥à¤¦à¥à¤°à¤¨à¤¾à¤¥ ठाकà¥à¤° 1878 से लेकर 1930 के बीच सात बार इंगà¥à¤²à¥ˆà¤‚ड गà¤à¥¤ 1878 और 1890 की उनकी पहली दो यातà¥à¤°à¤¾à¤“ं के संबंध में बà¥à¤°à¤¿à¤Ÿà¥‡à¤¨ के समाचार पतà¥à¤°à¥‹à¤‚ में कà¥à¤› à¤à¥€ नहीं छपा कà¥à¤¯à¥‹à¤‚कि तब तक उनà¥à¤¹à¥‡à¤‚ वह खà¥à¤¯à¤¾à¤¤à¤¿ नहीं मिली थी कि उनकी ओर किसी विदेशी समाचार पतà¥à¤° का धà¥à¤¯à¤¾à¤¨ जाता। उस समय तो वे à¤à¤• विदà¥à¤¯à¤¾à¤°à¥à¤¥à¥€ ही थे।
पहली पà¥à¤¸à¥à¤¤à¤• का पà¥à¤°à¤•ाशन
जब वे तीसरी बार 1912 में लंदन गठतब तक उनकी कविताओं की पहली पà¥à¤¸à¥à¤¤à¤• का अंगà¥à¤°à¥‡à¤œà¤¼à¥€ में अनà¥à¤µà¤¾à¤¦ पà¥à¤°à¤•ाशित हो चà¥à¤•ा था, अत: उनकी ओर बà¥à¤°à¤¿à¤Ÿà¥‡à¤¨ के समाचार पतà¥à¤°à¥‹à¤‚ का धà¥à¤¯à¤¾à¤¨ गया। उनकी यह तीसरी बà¥à¤°à¤¿à¤Ÿà¥‡à¤¨ यातà¥à¤°à¤¾ वसà¥à¤¤à¥à¤¤: उनके पà¥à¤°à¤¶à¤‚सक à¤à¤µà¤‚ मितà¥à¤° बृजेनà¥à¤¦à¥à¤°à¤¨à¤¾à¤¥ सील के सà¥à¤à¤¾à¤µ à¤à¤µà¤‚ अनà¥à¤°à¥‹à¤§ पर की गई थी और इस यातà¥à¤°à¤¾ के आधार पर पहली बार वहाठके पà¥à¤°à¤®à¥à¤– समाचार पतà¥à¤° ‘द टाइमà¥à¤¸â€™ में उनके समà¥à¤®à¤¾à¤¨ में दी गई à¤à¤• पारà¥à¤Ÿà¥€ का समाचार छपा जिसमें बà¥à¤°à¤¿à¤Ÿà¥‡à¤¨ के कई पà¥à¤°à¤®à¥à¤– साहितà¥à¤¯à¤•ार यथा डबà¥à¤²à¥à¤¯à¥‚.बी.यीटà¥à¤¸, à¤à¤š.जी.वेलà¥à¤¸, जे.डी. à¤à¤£à¥à¤¡à¤°à¤¸à¤¨ और डबà¥à¤²à¥à¤¯à¥‚.रोबेनà¥à¤¸à¤Ÿà¤¾à¤‡à¤¨ आदि उपसà¥à¤¥à¤¿à¤¤ थे।
इसके कà¥à¤› दिन बाद ‘द टाइमà¥à¤¸â€™ में ही उनके कावà¥à¤¯ की पà¥à¤°à¤¶à¤‚सा में तीन पैरागà¥à¤°à¤¾à¤« लमà¥à¤¬à¤¾ à¤à¤• समाचार à¤à¥€ छपा और फिर उनकी मृतà¥à¤¯à¥ के समय तक बà¥à¤°à¤¿à¤Ÿà¥‡à¤¨ के समाचार पतà¥à¤°à¥‹à¤‚ में उनके जीवन और कृतितà¥à¤µ के संबंध में कà¥à¤›-न-कà¥à¤› बराबर ही छपता रहा। इस पà¥à¤¸à¥à¤¤à¤• से यह à¤à¥€ पता चलता है कि किस पà¥à¤°à¤•ार परमà¥à¤ªà¤°à¤¾à¤—त रूप से à¤à¤¾à¤°à¤¤ विरोधी समाचार पतà¥à¤° उनके संबंध में चà¥à¤ªà¥à¤ªà¥€ ही लगाठरहे पर निषà¥à¤ªà¤•à¥à¤· और à¤à¤¾à¤°à¤¤ के पà¥à¤°à¤¤à¤¿ सहानà¥à¤à¥‚ति रखने वाले समाचार पतà¥à¤°à¥‹à¤‚ ने बड़ी उदारता से उनके संबंध में समाचार, लेख आदि पà¥à¤°à¤•ाशित किà¤à¥¤ उदाहरणत: बà¥à¤°à¤¿à¤Ÿà¥‡à¤¨ के कटà¥à¤Ÿà¤° रà¥à¤¢à¤¼à¤¿à¤µà¤¾à¤¦à¥€ कंजरवेटिव समाचार पतà¥à¤° ‘डेली टेलीगà¥à¤°à¤¾à¤«â€™ ने उनà¥à¤¹à¥‡à¤‚ नोबेल पà¥à¤°à¤¸à¥à¤•ार मिलने की सूचना तक पà¥à¤°à¤•ाशित करना उचित नहीं समà¤à¤¾ जबकि उस दिन के अनà¥à¤¯ सà¤à¥€ समाचार पतà¥à¤°à¥‹à¤‚ में इस सूचना के साथ ही पà¥à¤°à¤¸à¥à¤•ृत कृति ‘गीतांजलि’ के संबंध में वहाठके समीकà¥à¤·à¤•ों की समà¥à¤®à¤¤à¤¿ à¤à¥€ पà¥à¤°à¤•ाशित हà¥à¤ˆà¥¤
गीतांजलि का अंगà¥à¤°à¥‡à¤œà¤¼à¥€ अनà¥à¤µà¤¾à¤¦

गीतांजलि’ का अंगà¥à¤°à¥‡à¤œà¤¼à¥€ अनà¥à¤µà¤¾à¤¦ पà¥à¤°à¤•ाशित होने के à¤à¤• सपà¥à¤¤à¤¾à¤¹ के अंदर लंदन से पà¥à¤°à¤•ाशित होने वाले पà¥à¤°à¤¸à¤¿à¤¦à¥à¤§ सापà¥à¤¤à¤¾à¤¹à¤¿à¤• ‘टाइमà¥à¤¸ लिटरेरी सपà¥à¤²à¥€à¤®à¥‡à¤‚ट’ में उसकी समीकà¥à¤·à¤¾ पà¥à¤°à¤•ाशित हà¥à¤ˆ थी और बाद में आगामी तीन माह के अंदर तीन समाचार पतà¥à¤°à¥‹à¤‚ में à¤à¥€ उसकी समीकà¥à¤·à¤¾ पà¥à¤°à¤•ाशित हà¥à¤ˆà¥¤ रवीनà¥à¤¦à¥à¤°à¤¨à¤¾à¤¥ ठाकà¥à¤° को नोबेल पà¥à¤°à¤¸à¥à¤•ार मिलने के संबंध में बà¥à¤°à¤¿à¤Ÿà¤¿à¤¶ समाचार पतà¥à¤°à¥‹à¤‚ में मिशà¥à¤°à¤¿à¤¤ पà¥à¤°à¤¤à¤¿à¤•à¥à¤°à¤¿à¤¯à¤¾ हà¥à¤ˆà¥¤ इस संबंध में ‘द टाइमà¥à¤¸â€™ ने लिखा था कि ‘सà¥à¤µà¥€à¤¡à¤¿à¤¶ à¤à¤•ेडेमी’ के इस अपà¥à¤°à¤¤à¥à¤¯à¤¾à¤¶à¤¿à¤¤ निरà¥à¤£à¤¯ पर कà¥à¤› समाचार पतà¥à¤°à¥‹à¤‚ में आशà¥à¤šà¤°à¥à¤¯ वà¥à¤¯à¤•à¥à¤¤ किया गया है’ पर इस पतà¥à¤° के सà¥à¤Ÿà¤¾à¤•होम सà¥à¤¥à¤¿à¤¤ संवाददाता ने अपने डिसà¥à¤ªà¥‡à¤š में लिखा था कि सà¥à¤µà¥€à¤¡à¤¨ के पà¥à¤°à¤®à¥à¤– कवियों और लेखकों ने सà¥à¤µà¥€à¤¡à¤¿à¤¶ कमेटी के सदसà¥à¤¯à¥‹à¤‚ की हैसियत से नोबेल कमेटी के इस निरà¥à¤£à¤¯ पर पूरà¥à¤£ संतोष वà¥à¤¯à¤•à¥à¤¤ किया है। इसी संबंध में बà¥à¤°à¤¿à¤Ÿà¥‡à¤¨ के पà¥à¤°à¤¤à¤¿à¤·à¥à¤ ित समाचार पतà¥à¤° ‘मेनà¥à¤šà¥‡à¤¸à¥à¤Ÿà¤° गारà¥à¤¡à¤¿à¤¯à¤¨â€™ ने लिखा था कि रवीनà¥à¤¦à¥à¤°à¤¨à¤¾à¤¥ टैगोर को नोबेल पà¥à¤°à¤¸à¥à¤•ार मिलने की सूचना पर कà¥à¤› लोगों को आशà¥à¤šà¤°à¥à¤¯ अवशà¥à¤¯ हà¥à¤† पर असंतोष नहीं। टैगोर à¤à¤• पà¥à¤°à¤¤à¤¿à¤à¤¾à¤¶à¤¾à¤²à¥€ कवि हैं। बाद में ‘द केरसेणà¥à¤Ÿ मून’ की समीकà¥à¤·à¤¾ करते हà¥à¤ à¤à¤• समाचार पतà¥à¤° ने लिखा था कि इस बंगाली (यानी रवीनà¥à¤¦à¥à¤°à¤¨à¤¾à¤¥ ठाकà¥à¤°) का अंगà¥à¤°à¥‡à¤œà¤¼à¥€ à¤à¤¾à¤·à¤¾ पर जैसा अधिकार है वैसा बहà¥à¤¤ कम अंगà¥à¤°à¥‡à¤œà¤¼à¥‹à¤‚ का होता है।
जलियाà¤à¤µà¤¾à¤²à¤¾ काà¤à¤¡ की निंदा
1919 में हà¥à¤ जलियाà¤à¤µà¤¾à¤²à¤¾ काà¤à¤¡ की जब रवीनà¥à¤¦à¥à¤°à¤¨à¤¾à¤¥ ठाकà¥à¤° ने निंदा की तो बà¥à¤°à¤¿à¤Ÿà¤¿à¤¶ समाचार पतà¥à¤°à¥‹à¤‚ का रà¥à¤– à¤à¤•ाà¤à¤• बदल गया। रवीनà¥à¤¦à¥à¤°à¤¨à¤¾à¤¥ ठाकà¥à¤° ने जलियाà¤à¤µà¤¾à¤²à¤¾ काणà¥à¤¡ के विरोध सà¥à¤µà¤°à¥‚प अपना ‘सर’ का खिताब लौटाते हà¥à¤ वाइसराय को जो पतà¥à¤° लिखा वह à¤à¥€ बà¥à¤°à¤¿à¤Ÿà¤¿à¤¶ समाचार पतà¥à¤°à¥‹à¤‚ ने छापना उचित नहीं समà¤à¤¾à¥¤ पर लॉरà¥à¤¡ माणà¥à¤Ÿà¥‡à¤—à¥à¤¯à¥‚ ने पारà¥à¤²à¤¿à¤¯à¤¾à¤®à¥‡à¤‚ट में जब घोषणा की कि ‘सर रवीनà¥à¤¦à¥à¤°à¤¨à¤¾à¤¥ को दिया गया खिताब वापिस नहीं लिया गया है’ तो यह समाचार बà¥à¤°à¤¿à¤Ÿà¤¿à¤¶ समाचार पतà¥à¤°à¥‹à¤‚ में अवशà¥à¤¯ छपा। ‘डेली टेलीगà¥à¤°à¤¾à¤«â€™ ने तो वà¥à¤¯à¤‚गà¥à¤¯à¤ªà¥‚रà¥à¤µà¤• यह à¤à¥€ लिखा कि रवीनà¥à¤¦à¥à¤°à¤¨à¤¾à¤¥ ठाकà¥à¤° के अंगà¥à¤°à¥‡à¤œà¤¼à¥€ पà¥à¤°à¤•ाशक मेकमिलनà¥à¤¸ उनके नाम के साथ अà¤à¥€ à¤à¥€ ‘सर’ छाप रहे हैं। 1941 में रवीनà¥à¤¦à¥à¤°à¤¨à¤¾à¤¥ ठाकà¥à¤° की मृतà¥à¤¯à¥ पर बà¥à¤°à¤¿à¤Ÿà¤¿à¤¶ समाचार पतà¥à¤°à¥‹à¤‚ ने जो कà¥à¤› लिखा उससे जान पड़ता है मानो उनके सिर पर से à¤à¤• बहà¥à¤¤ बड़ा à¤à¤¾à¤°à¥€ बोठहट गया है। à¤à¤• समाचार पतà¥à¤° ने उनके मृतà¥à¤¯à¥ लेख में लिखा कि रवीनà¥à¤¦à¥à¤°à¤¨à¤¾à¤¥ ठाकà¥à¤° को इस बात के लिठमनाने की कोशिश की गई थी कि वे अपने ‘सर’ के खिताब को वापिस करने के निरà¥à¤£à¤¯ पर पà¥à¤¨à¤°à¥à¤µà¤¿à¤šà¤¾à¤° करें।
‘द टाइमà¥à¤¸â€™ ने हाउस ऑफ़ कॉमनà¥à¤¸ की कारà¥à¤¯à¤µà¤¾à¤¹à¥€ का उलà¥à¤²à¥‡à¤– करते हà¥à¤ लिखा कि अंडर सेकà¥à¤°à¥‡à¤Ÿà¤°à¥€ फ़ॉर इंडिया ने यह माना था कि उनकी पà¥à¤¸à¥à¤¤à¤• ‘रूस के पतà¥à¤°â€™ के अनà¥à¤µà¤¾à¤¦ में à¤à¤• पूरे परिचà¥à¤›à¥‡à¤¦ में तथà¥à¤¯à¥‹à¤‚ को जानबूà¤à¤•र तोड़ा-मरोड़ा गया था जिससे à¤à¤¾à¤°à¤¤ में बà¥à¤°à¤¿à¤Ÿà¤¿à¤¶ शासन की निंदा हो। इस पà¥à¤°à¤•ार तथà¥à¤¯à¥‹à¤‚ को तोड़े-मरोड़े जाने और तरह-तरह के आरोपों के बावज़ूद अधिकांश समाचार पतà¥à¤°à¥‹à¤‚ में रवीनà¥à¤¦à¥à¤°à¤¨à¤¾à¤¥ ठाकà¥à¤° के संबंध में पà¥à¤°à¤¾à¤¯: पà¥à¤°à¤¶à¤‚सातà¥à¤®à¤• लेख ही छपते रहे। 1921 में छपे à¤à¤• समाचार से पता चलता है कि रवीनà¥à¤¦à¥à¤°à¤¨à¤¾à¤¥ ठाकà¥à¤° की लंदन से पेरिस की पहली हवाई यातà¥à¤°à¤¾ का पूरा खरà¥à¤š चेकोसà¥à¤²à¤¾à¤µà¤¾à¤•िया की सरकार ने दिया था।
जनसंहार की पà¥à¤°à¤¤à¤¿à¤•à¥à¤°à¤¿à¤¯à¤¾à¤à¤
रबीनà¥à¤¦à¥à¤°à¤¨à¤¾à¤¥ ठाकà¥à¤° ने इस हतà¥à¤¯à¤¾à¤•ाणà¥à¤¡ के मà¥à¤–र विरोध किया और विरोध सà¥à¤µà¤°à¥‚प अपनी ‘नाइटहà¥à¤¡â€™ की उपाधि को वापस कर दिया था। आज़ादी का सपना à¤à¤¸à¥€ à¤à¤¯à¤¾à¤µà¤¹ घटना के बाद à¤à¥€ पसà¥à¤¤ नहीं हà¥à¤†à¥¤ इस घटना के बाद आज़ादी हासिल करने की इचà¥à¤›à¤¾ और ज़ोर से उफन पड़ी। यदà¥à¤¯à¤ªà¤¿ उन दिनों संचार के साधन कम थे, फिर à¤à¥€ यह समाचार पूरे देश में आग की तरह फैल गया। ‘आज़ादी का सपना’ पंजाब ही नहीं, पूरे देश के बचà¥à¤šà¥‡-बचà¥à¤šà¥‡ के सिर पर चढ़ कर बोलने लगा। उस दौरान हज़ारों à¤à¤¾à¤°à¤¤à¥€à¤¯à¥‹à¤‚ ने जलियांवाला बाग़ की मिटà¥à¤Ÿà¥€ से माथे पर तिलक लगाकर देश को आज़ाद कराने का दृढ़ संकलà¥à¤ª लिया।
समà¥à¤®à¤¾à¤¨
टैगोर के गीतांजली (1910) समेत बांगà¥à¤²à¤¾ कावà¥à¤¯ संगà¥à¤°à¤¹à¤¾à¤²à¤¯à¥‹à¤‚ से ली गई कविताओं के अंगà¥à¤°à¥‡à¤œà¤¼à¥€ गदà¥à¤¯à¤¾à¤¨à¥à¤µà¤¾à¤¦ की इस पà¥à¤¸à¥à¤¤à¤• की डबà¥à¤²à¥à¤¯à¥‚.बी.यीटà¥à¤¸ और आंदà¥à¤°à¥‡ जीद ने पà¥à¤°à¤¶à¤‚सा की और इसके लिठटैगोर को 1913 में नोबेल पà¥à¤°à¤¸à¥à¤•ार पà¥à¤°à¤¦à¤¾à¤¨ किया गया।
विदेशी यातà¥à¤°à¤¾
1912 में टैगोर ने लंबी अवधि à¤à¤¾à¤°à¤¤ से बाहर बिताई, वह यूरोप, अमेरिका और पूरà¥à¤µà¥€ à¤à¤¶à¤¿à¤¯à¤¾ के देशों में वà¥à¤¯à¤¾à¤–à¥à¤¯à¤¾à¤¨ देते व कावà¥à¤¯ पाठकरते रहे और à¤à¤¾à¤°à¤¤ की सà¥à¤µà¤¤à¤‚तà¥à¤°à¤¤à¤¾ के मà¥à¤–र पà¥à¤°à¤µà¤•à¥à¤¤à¤¾ बन गà¤à¥¤ हालांकि टैगोर के उपनà¥à¤¯à¤¾à¤¸ उनकी कविताओं और कहानियों जैसे असाधारण नहीं हैं, लेकिन वह à¤à¥€ उलà¥à¤²à¥‡à¤–नीय है। इनमें सबसे ज़à¥à¤¯à¤¾à¤¦à¤¾ लोकपà¥à¤°à¤¿à¤¯ है गोरा (1990) और घरे-बाइरे (1916; घर और बाहर), 1920 के दशक के उतà¥à¤¤à¤°à¤¾à¤°à¥à¤¦à¥à¤§ में टैगोर ने चितà¥à¤°à¤•ारी शà¥à¤°à¥‚ की और कà¥à¤› ऎसे चितà¥à¤° बनाà¤, जिनà¥à¤¹à¥‹à¤‚ने उनà¥à¤¹à¥‡à¤‚ समकालीन अगà¥à¤°à¤£à¥€ à¤à¤¾à¤°à¤¤à¥€à¤¯ कलाकारों में सà¥à¤¥à¤¾à¤ªà¤¿à¤¤ कर दिया।
मृतà¥à¤¯à¥
à¤à¤¾à¤°à¤¤ के राषà¥à¤Ÿà¥à¤°à¤—ान के पà¥à¤°à¤¸à¤¿à¤¦à¥à¤§ रचयिता रबीनà¥à¤¦à¥à¤°à¤¨à¤¾à¤¥ ठाकà¥à¤° की मृतà¥à¤¯à¥ 7 अगसà¥à¤¤, 1941 को कलकतà¥à¤¤à¤¾ में हà¥à¤ˆ थी।
गौतम बà¥à¤¦à¥à¤§
19 September 2013
गौतम बà¥à¤¦à¥à¤§ बौदà¥à¤§ धरà¥à¤® के पà¥à¤°à¤µà¤°à¥à¤¤à¤• थे। राजकà¥à¤®à¤¾à¤° सिदà¥à¤§à¤¾à¤°à¥à¤¥ के रूप में उनका जनà¥à¤® ४८३ ईसà¥à¤µà¥€ पूरà¥à¤µ तथा मृतà¥à¤¯à¥ ५६३ ईसà¥à¤µà¥€ पूरà¥à¤µ मे हà¥à¤†à¥¤ उनको इस विशà¥à¤µ के सबसे महान पथ पà¥à¤°à¤¦à¤°à¥à¤¶à¤•ों में गिना जाता है। गौतम गोतà¥à¤° में जनà¥à¤®à¥‡ बà¥à¤¦à¥à¤§ का वासà¥à¤¤à¤µà¤¿à¤• नाम सिदà¥à¤§à¤¾à¤°à¥à¤¥ था। उनका जनà¥à¤® शाकà¥à¤¯ गणराजà¥à¤¯ की राजधानी कपिलवसà¥à¤¤à¥ के निकट लà¥à¤‚बिनी में हà¥à¤†à¥¤ शाकà¥à¤¯à¥‹à¤‚ के राजा शà¥à¤¦à¥à¤§à¥‹à¤§à¤¨ सिदà¥à¤§à¤¾à¤°à¥à¤¥ के पिता थे। परंपरागत कथा के अनà¥à¤¸à¤¾à¤°, सिदà¥à¤§à¤¾à¤°à¥à¤¥ की माता मायादेवी जो कोली वनà¥à¤¶ की थी का उनके जनà¥à¤® के सात दिन बाद निधन हो गया था। उनका पालन पोषण शà¥à¤¦à¥à¤¦à¥‹à¤§à¤¨ की दूसरी रानी महापà¥à¤°à¤œà¤¾à¤µà¤¤à¥€ ने किया। शिशॠका नाम सिदà¥à¤§à¤¾à¤°à¥à¤¥ दिया गया, जिसका अरà¥à¤¥ है "वह जो सिदà¥à¤§à¥€ पà¥à¤°à¤¾à¤ªà¥à¤¤à¤¿ के लिठजनà¥à¤®à¤¾ हो"। जनà¥à¤® समारोह के दौरान, साधॠदà¥à¤°à¤·à¥à¤Ÿà¤¾ आसित ने अपने पहाड़ के निवास से घोषणा की- बचà¥à¤šà¤¾ या तो à¤à¤• महान राजा या à¤à¤• महान पवितà¥à¤° पथ पà¥à¤°à¤¦à¤°à¥à¤¶à¤• बनेगा। शà¥à¤¦à¥à¤¦à¥‹à¤§à¤¨ ने पांचवें दिन à¤à¤• नामकरण समारोह आयोजित किया और आठबà¥à¤°à¤¾à¤¹à¥à¤®à¤£ विदà¥à¤µà¤¾à¤¨à¥‹à¤‚ को à¤à¤µà¤¿à¤·à¥à¤¯ पढ़ने के लिठआमंतà¥à¤°à¤¿à¤¤ किया। सà¤à¥€ ने à¤à¤• सी दोहरी à¤à¤µà¤¿à¤·à¥à¤¯à¤µà¤¾à¤£à¥€ की, कि बचà¥à¤šà¤¾ या तो à¤à¤• महान राजा या à¤à¤• महान पवितà¥à¤° आदमी बनेगा। दकà¥à¤·à¤¿à¤£ मधà¥à¤¯ नेपाल में सà¥à¤¥à¤¿à¤¤ लà¥à¤‚बिनी में उस सà¥à¤¥à¤² पर महाराज अशोक ने तीसरी शताबà¥à¤¦à¥€ ईसा पूरà¥à¤µ बà¥à¤¦à¥à¤§ के जनà¥à¤® की सà¥à¤®à¥ƒà¤¤à¤¿ में à¤à¤• सà¥à¤¤à¤®à¥à¤ बनवाया था। बà¥à¤¦à¥à¤§ का जनà¥à¤® दिन वà¥à¤¯à¤¾à¤ªà¤• रूप से थà¤à¤°à¤¾à¤µà¤¦à¤¾ देशों में मनाया जाता है।
आरंà¤à¤¿à¤• जीवन में सतà¥à¤¯ की खोज
सिदà¥à¤§à¤¾à¤°à¥à¤¥ ने दो बà¥à¤°à¤¾à¤¹à¥à¤®à¤£à¥‹à¤‚ के साथ अपने पà¥à¤°à¤¶à¥à¤¨à¥‹à¤‚ के उतà¥à¤¤à¤° ढूंढने शà¥à¤°à¥‚ किये। समà¥à¤šà¤¿à¤¤ धà¥à¤¯à¤¾à¤¨ लगा पाने के बाद à¤à¥€ उनà¥à¤¹à¥‡à¤‚ इन पà¥à¤°à¤¶à¥à¤¨à¥‹à¤‚ के उतà¥à¤¤à¤° नहीं मिले। फ़िर उनà¥à¤¹à¥‹à¤¨à¥‡ तपसà¥à¤¯à¤¾ की परंतॠउनà¥à¤¹à¥‡ अपने पà¥à¤°à¤¶à¥à¤¨à¥‹à¤‚ के उतà¥à¤¤à¤° फ़िर à¤à¥€ नहीं मिले। फिर उनà¥à¤¹à¥‹à¤¨à¥‡ कà¥à¤› साथी इकठà¥à¤ े किये और चल दिये अधिक कठोर तपसà¥à¤¯à¤¾ करने। à¤à¤¸à¥‡ करते करते छः वरà¥à¤· बाद, à¤à¥‚ख के कारण मरने के करीब-करीब से गà¥à¤œà¤¼à¤°à¤•र, बिना अपने पà¥à¤°à¤¶à¥à¤¨à¥‹à¤‚ के उतà¥à¤¤à¤° पाà¤à¤‚, वे फ़िर कà¥à¤› और करने के बारे में सोचने लगे। इस समय, उनà¥à¤¹à¥‡ अपने बचपन का à¤à¤• पल याद आया जब उनके पिता खेत तैयार करना शà¥à¤°à¥‚ कर रहे थे। उस समय वे à¤à¤• आनंद à¤à¤°à¥‡ धà¥à¤¯à¤¾à¤¨ में पड़ गये थे और उनà¥à¤¹à¥‡ à¤à¤¸à¤¾ महसूस हà¥à¤† कि समय सà¥à¤¥à¤¿à¤° हो गया है।
जà¥à¤žà¤¾à¤¨ पà¥à¤°à¤¾à¤ªà¥à¤¤à¤¿
कठोर तपसà¥à¤¯à¤¾ छोड़कर उनà¥à¤¹à¥‹à¤¨à¥‡ आरà¥à¤¯ अषà¥à¤Ÿà¤¾à¤‚ग मारà¥à¤— ढूंढ निकाला, जो मधà¥à¤¯à¤® मारà¥à¤— à¤à¥€ कहलाता जाता है कà¥à¤¯à¥‹à¤‚कि यह मारà¥à¤— दोनो तपसà¥à¤¯à¤¾ और असंयम की पाराकाषà¥à¤Ÿà¤¾à¤“ं के बीच में है। अपने बदन में कà¥à¤› शकà¥à¤¤à¤¿ डालने के लिये, उनà¥à¤¹à¥‹à¤¨à¥‡ à¤à¤• बरहà¥à¤®à¤¨à¤¿ से कà¥à¤› खीर ली थी। वे à¤à¤• पीपल के पेड़ (जो अब बोधि वृकà¥à¤· कहलाता है) के नीचे बैठगये पà¥à¤°à¤¤à¤¿à¤œà¥à¤žà¤¾ करके कि वे सतà¥à¤¯ जाने बिना उठेंगे नहीं। वे सारी रात बैठे और सà¥à¤¬à¤¹ उनà¥à¤¹à¥‡ पूरा जà¥à¤žà¤¾à¤¨ पà¥à¤°à¤¾à¤ªà¥à¤¤ हो गया। उनकी अविजया नषà¥à¤Ÿ हो गई और उनà¥à¤¹à¥‡ निरà¥à¤µà¤¨ यानि बोधि पà¥à¤°à¤¾à¤ªà¥à¤¤ हà¥à¤ˆ और वे ३५ की उमà¥à¤° तक बà¥à¤¦à¥à¤§ बन गये। उनका पहला धरà¥à¤®à¥‹à¤ªà¤¦à¥‡à¤¶ वाराणसी के पास सारनाथ मे था जो उनà¥à¤¹à¥‹à¤¨à¥‡ अपने पहले मितà¥à¤°à¥‹ को दिया। उनà¥à¤¹à¥‹à¤¨à¥‡ à¤à¥€ थोडे दिनो मे ही बोधि पà¥à¤°à¤¾à¤ªà¥à¤¤ कर ली। फिर गौतम बà¥à¤¦à¥à¤§ ने उनà¥à¤¹à¥‡ पà¥à¤°à¤šà¤¾à¤° करने के लिये à¤à¥‡à¤œ दिया।
महापरिनिरà¥à¤µà¤¾à¤£
पालि सिदà¥à¤§à¤¾à¤‚त के महापरिनिरà¥à¤µà¤¾à¤£ सà¥à¤¤à¥à¤¤ के अनà¥à¤¸à¤¾à¤° ८० वरà¥à¤· की आयॠमें बà¥à¤¦à¥à¤§ ने घोषणा की कि वे जलà¥à¤¦ ही परिनिरà¥à¤µà¤¾à¤£ के लिठरवाना होंगे। बà¥à¤¦à¥à¤§ ने अपना आखिरी à¤à¥‹à¤œà¤¨, जिसे उनà¥à¤¹à¥‹à¤‚ने कà¥à¤¨à¥à¤¡à¤¾ नामक à¤à¤• लोहार से à¤à¤• à¤à¥‡à¤‚ट के रूप में पà¥à¤°à¤¾à¤ªà¥à¤¤ किया था, गà¥à¤°à¤¹à¤£ लिया जिसके कारण वे गंà¤à¥€à¤° रूप से बीमार पड़ गये। बà¥à¤¦à¥à¤§ ने अपने शिषà¥à¤¯ आनंद को निरà¥à¤¦à¥‡à¤¶ दिया कि वह कà¥à¤¨à¥à¤¡à¤¾ को समà¤à¤¾à¤ कि उसने कोई गलती नहीं की है। उनà¥à¤¹à¥‹à¤¨à¥‡ कहा कि यह à¤à¥‹à¤œà¤¨ अतà¥à¤²à¥à¤¯ है।
इनà¥à¤¦à¤¿à¤°à¤¾ गांधी
19 September 2013
जीवन परिचय
सà¥à¤µà¤¤à¤‚तà¥à¤° à¤à¤¾à¤°à¤¤ की पहली महिला पà¥à¤°à¤§à¤¾à¤¨à¤®à¤‚तà¥à¤°à¥€ रही इंदिरा गांधी का जनà¥à¤® पà¥à¤°à¤¸à¤¿à¤¦à¥à¤§ नेहरू परिवार में 19 नवंबर, 1917 को इलाहाबाद में हà¥à¤† था. इंदिरा गांधी का पूरा नाम इंदिरा पà¥à¤°à¤¿à¤¯à¤¦à¤°à¥à¤¶à¤¿à¤¨à¥€ गांधी है. इनके पिता पं. जवाहर लाल नेहरू देश के पहले पà¥à¤°à¤§à¤¾à¤¨à¤®à¤‚तà¥à¤°à¥€ होने के साथ साथ वकालत के पेशे से à¤à¥€ संबंधित थे. इंदिरा गांधी का परिवार आरà¥à¤¥à¤¿à¤• रूप से संपनà¥à¤¨ होने के साथ-साथ बौदà¥à¤§à¤¿à¤• रूप से à¤à¥€ काफी सशकà¥à¤¤ था. इनके पिता और दादा (मोतीलाल नेहरू) दोनों ही सà¥à¤µà¤¤à¤‚तà¥à¤°à¤¤à¤¾ आंदोलनों में अपनी सकà¥à¤°à¤¿à¤¯ à¤à¥‚मिका निà¤à¤¾ रहे थे जिसका पà¥à¤°à¤à¤¾à¤µ इंदिरा गांधी पर à¤à¥€ पड़ा. परिवार की राजनीति और सà¥à¤µà¤¤à¤‚तà¥à¤°à¤¤à¤¾ संगà¥à¤°à¤¾à¤® में अतà¥à¤¯à¤¾à¤§à¤¿à¤• सकà¥à¤°à¤¿à¤¯à¤¤à¤¾ और मां कमला नेहरू की बीमारी की वजह से बालिका इंदिरा को शà¥à¤°à¥‚ से ही पढ़ाई के लिठअनà¥à¤•ूल माहौल उपलबà¥à¤§ नहीं हो पाया था, जिस कारण इनकी पà¥à¤°à¤¾à¤°à¤‚à¤à¤¿à¤• शिकà¥à¤·à¤¾ घर पर ही हà¥à¤ˆ. आगे की शिकà¥à¤·à¤¾ इनà¥à¤¹à¥‹à¤‚ने पशà¥à¤šà¤¿à¤® बंगाल के विशà¥à¤µà¤à¤¾à¤°à¤¤à¥€ विशà¥à¤µà¤µà¤¿à¤¦à¥à¤¯à¤¾à¤²à¤¯ और इंगलैंड के ऑकà¥à¤¸à¤«à¥‹à¤°à¥à¤¡ यूनिवरà¥à¤¸à¤¿à¤Ÿà¥€ से पà¥à¤°à¤¾à¤ªà¥à¤¤ की.
इंदिरा गांधी का वà¥à¤¯à¤•à¥à¤¤à¤¿à¤¤à¥à¤µ
पढ़ाई में à¤à¤• सामानà¥à¤¯ दरà¥à¤œà¥‡ की छातà¥à¤°à¤¾ रही इंदिरा पà¥à¤°à¤¿à¤¯à¤¦à¤°à¥à¤¶à¤¿à¤¨à¥€ गांधी को विशà¥à¤µ राजनीति में लौह-महिला के रूप में जाना जाता है. वैयकà¥à¤¤à¤¿à¤• तौर पर वह à¤à¤• दृढ़ निशà¥à¤šà¤¯à¥€ और निरà¥à¤£à¤¯ लेने में आतà¥à¤®-निरà¥à¤à¤° महिला थीं. माता की खराब सेहत और पिता की वà¥à¤¯à¤¸à¥à¤¤à¤¤à¤¾ के चलते उनका अधिकांश बचपन नौकरों के साथ बीता. à¤à¤²à¥‡ ही राजनैतिक पृषà¥à¤ à¤à¥‚मि और सà¥à¤µà¤¤à¤‚तà¥à¤°à¤¤à¤¾ आंदोलनों की वजह से उनà¥à¤¹à¥‡à¤‚ परिवार का अपेकà¥à¤·à¤¿à¤¤ दà¥à¤²à¤¾à¤° पà¥à¤°à¤¾à¤ªà¥à¤¤ नहीं हो सका, लेकिन बà¥à¤°à¤¿à¤Ÿà¤¿à¤¶ काल में à¤à¤¾à¤°à¤¤ के बिगड़ते हालातों ने उनà¥à¤¹à¥‡à¤‚ इन आंदोलनों और संपूरà¥à¤£ सà¥à¤µà¤¾à¤§à¥€à¤¨à¤¤à¤¾ की जरूरत को à¤à¤²à¥€ पà¥à¤°à¤•ार समà¤à¤¾ दिया था. इनà¥à¤¦à¤¿à¤°à¤¾ गांधी ने अपने पिता को कारà¥à¤¯à¤•ताओं को संबोधित करते हà¥à¤ सà¥à¤¨à¤¾ था. परिवार में अकेले होने के कारण उनका अधिकतर समय पिता की नकल करते हà¥à¤ ही गà¥à¤œà¤°à¤¤à¤¾ था. उनके जैसी à¤à¤¾à¤·à¤£ शैली में उनके पिता पं जवाहर नेहरू के पà¥à¤°à¤à¤¾à¤µ को महसूस किया जा सकता था. à¤à¤¸à¥€ सामाजिक और पारिवारिक परिसà¥à¤¥à¤¿à¤¤à¤¿à¤¯à¥‹à¤‚ ने उनà¥à¤¹à¥‡à¤‚ à¤à¤• मजबूत वà¥à¤¯à¤•à¥à¤¤à¤¿à¤¤à¥à¤µ पà¥à¤°à¤¦à¤¾à¤¨ किया जो आगे चलकर उनके सफल राजनैतिक जीवन का आधार बना.
इंदिरा गांधी का राजनैतिक योगदान
गà¥à¤²à¤¾à¤® à¤à¤¾à¤°à¤¤ की चिंतनीय सà¥à¤¥à¤¿à¤¤à¤¿ को इंदिरा ने बचपन में ही à¤à¤¾à¤‚प लिया था. उनको यह समठआ गया था कि किसी à¤à¥€ राषà¥à¤Ÿà¥à¤° के लिठसà¥à¤µà¤¤à¤‚तà¥à¤°à¤¤à¤¾ कितनी जरूरी है. कà¥à¤°à¤¾à¤‚तिकारियों और आंदोलनकारियों की सहायता करने के उदà¥à¤¦à¥‡à¤¶à¥à¤¯ से उनà¥à¤¹à¥‹à¤‚ने अपने हम उमà¥à¤° बचà¥à¤šà¥‹à¤‚ और कà¥à¤› मितà¥à¤°à¥‹à¤‚ के सहयोग से ‘वानर सेना’ का गठन किया जिनका उदà¥à¤¦à¥‡à¤¶à¥à¤¯ देश की आजादी के लिठलड़ रहे लोगों को गà¥à¤ªà¥à¤¤ और महतà¥à¤µà¤ªà¥‚रà¥à¤£ सूचनाà¤à¤‚ पà¥à¤°à¤¦à¤¾à¤¨ करना था. इंदिरा पà¥à¤°à¤¿à¤¯à¤¦à¤°à¥à¤¶à¤¿à¤¨à¥€ गांधी को राजनीति की समठविरासत में मिली थी, जिसकी वजह से जलà¥à¤¦à¥€ ही उनका पà¥à¤°à¤µà¥‡à¤¶ राजनीति में हो गया था. यहां तक की पं जवाहर लाल नेहरू à¤à¥€ कई मसलों पर इंदिरा गांधी की राय लेते और उसे मानते à¤à¥€ थे. उचित और तà¥à¤°à¤‚त निरà¥à¤£à¤¯ लेने की कà¥à¤·à¤®à¤¤à¤¾ ने कॉगà¥à¤°à¥‡à¤¸ सरकार में इंदिरा गांधी की महतà¥à¤¤à¤¾ और उनके कद को कई गà¥à¤£à¤¾ बना दिया था. अपने दृढ़ और संकलà¥à¤ªà¤¶à¥€à¤² आचरण की वजह से वह दो बार देश की पà¥à¤°à¤§à¤¾à¤¨à¤®à¤‚तà¥à¤°à¥€ रहीं. खलिसà¥à¤¤à¤¾à¤¨ आंदोलन को कà¥à¤šà¤²à¤¨à¥‡ और सà¥à¤µà¤¤à¤‚तà¥à¤° à¤à¤¾à¤°à¤¤ में वà¥à¤¯à¤¾à¤ªà¥à¤¤ रजवाड़ों का पà¥à¤°à¥€à¤µà¥€-परà¥à¤¸ समापà¥à¤¤ करने का शà¥à¤°à¥‡à¤¯ इंदिरा गांधी को ही जाता है. अपनी राजनैतिक जिमà¥à¤®à¥‡à¤¦à¤¾à¤°à¥€ को बखूबी निà¤à¤¾à¤¤à¥‡ हà¥à¤ उनà¥à¤¹à¥‹à¤‚ने दो दशकों तक देश को मंदी के हालातों से बचाठरखा. देश को अधिक मजबूत और सशकà¥à¤¤ बनाने के लिठइंदिरा गांधी ने कई पà¥à¤°à¤¯à¤¾à¤¸ à¤à¥€ किà¤. इसके अलावा देश में पहला परमाणॠविसà¥à¤«à¥‹à¤Ÿ करने का शà¥à¤°à¥‡à¤¯ à¤à¥€ मà¥à¤–à¥à¤¯ रूप से इंदिरा गांधी को ही जाता है.
इंदिरा गांधी की उपलबà¥à¤§à¤¿à¤¯à¤¾à¤‚
अपने राजनैतिक कारà¥à¤¯à¤•ाल में उनà¥à¤¹à¥‹à¤‚ने कई उपलबà¥à¤§à¤¿à¤¯à¥‹à¤‚ को हासिल किया जिनमें निमà¥à¤¨ पà¥à¤°à¤®à¥à¤– हैं.
- बैंकों का राषà¥à¤Ÿà¥à¤°à¥€à¤¯à¤•रण सरà¥à¤µà¤ªà¥à¤°à¤¥à¤® इंदिरा गांधी ने ही किया था.
- रजवाड़ों का पà¥à¤°à¥€à¤µà¥€-परà¥à¤¸ समापà¥à¤¤ करना उनकी à¤à¤• महतà¥à¤µà¤ªà¥‚रà¥à¤£ उपलबà¥à¤§à¤¿ है.
- ऑपà¥à¤°à¥‡à¤¶à¤¨-बà¥à¤²à¥‚ सà¥à¤Ÿà¤¾à¤° जिससे खालिसà¥à¤¤à¤¾à¤¨à¥€ आंदोलन को समापà¥à¤¤ किया गया इंदिरा गांधी के आदेशों के अंतरà¥à¤—त ही चलाया गया था.
- पांचवी पंचवरà¥à¤·à¥€à¤¯ योजना के अंतरà¥à¤—त गरीबी हटाओ का नारा दिया और देश से निरà¥à¤§à¤¨à¤¤à¤¾ समापà¥à¤¤ करने के बीस सूतà¥à¤°à¥€à¤¯ कारà¥à¤¯à¤•à¥à¤°à¤®à¥‹à¤‚ का निरà¥à¤§à¤¾à¤°à¤£ किया गया.
इंदिरा गांधी का निधन
खलिसà¥à¤¤à¤¾à¤¨ समरà¥à¤¥à¤•ों ने उनके दà¥à¤µà¤¾à¤°à¤¾ चलाठगठऑपà¥à¤°à¥‡à¤¶à¤¨ बà¥à¤²à¥‚-सà¥à¤Ÿà¤¾à¤° का बहà¥à¤¤ विरोध किया लेकिन इंदिरा ने इस ऑपरेशन को वापस नहीं लिया और उनके इस फैसले से नाराज उनके अंगरकà¥à¤·à¤•ों ने ही उनà¥à¤¹à¥‡à¤‚ 31 अकà¥à¤Ÿà¥‚बर, 1984 को गोली मार दी.
इंदिरा गांधी का राजनैतिक जीवन काफी उतार-चढ़ाव à¤à¤°à¤¾ रहा. देश पर इमरजेंसी लगा मानवाधिकारों का हनन करना हो या खलिसà¥à¤¤à¤¾à¤¨ के विरोध में चलाया गया ऑपà¥à¤°à¥‡à¤¶à¤¨ बà¥à¤²à¥‚-सà¥à¤Ÿà¤¾à¤° जैसे कदमों पर आलोचकों और समाजशासà¥à¤¤à¥à¤°à¤¿à¤¯à¥‹à¤‚ दà¥à¤µà¤¾à¤°à¤¾ उनकी आलोचनाà¤à¤‚ à¤à¥€ की जाती रहीं. आलोचकों का मानना है कि खलिसà¥à¤¤à¤¾à¤¨ के समरà¥à¤¥à¤¨ में आंदोलन पहले इंदिरा गांधी और जà¥à¤žà¤¾à¤¨à¥€ जैल सिंह ने ही शà¥à¤°à¥‚ किया था लेकिन फिर बाद में इंदिरा ने ही इस आंदोलन को समापà¥à¤¤ करने के लिठऑपà¥à¤°à¥‡à¤¶à¤¨ बà¥à¤²à¥‚-सà¥à¤Ÿà¤¾à¤° चलाया. लेकिन अपनी आलोचनाओं से वह घबराई नहीं बलà¥à¤•ि उनका सामना किया और आगे बढ़ीं. अपने फौलादी वà¥à¤¯à¤•à¥à¤¤à¤¿à¤¤à¥à¤µ और सकारातà¥à¤®à¤• दृषà¥à¤Ÿà¤¿à¤•ोण की वजह विशà¥à¤µ में उनà¥à¤¹à¥‡à¤‚ सबसे ताकतवर महिलाओं की शà¥à¤°à¥‡à¤£à¥€ में गिना जाता है. à¤à¤¾à¤°à¤¤à¥€à¤¯ राजनीति में उनके निरà¥à¤£à¤¯à¥‹à¤‚ को मिसाल के तौर पर देखा जाता है. आज à¤à¥€ कई यà¥à¤µà¤¾ जो राजनीति में अपना कॅरियर बनाना चाहते हैं इंदिरा गांधी को ही अपना आदरà¥à¤¶ मानते हैं.
अटल बिहारी वाजपेयी
19 September 2013
अटल बिहारी वाजपेयी (जनà¥à¤®: २५ दिसंबर, १९२४ गà¥à¤µà¤¾à¤²à¤¿à¤¯à¤°) à¤à¤¾à¤°à¤¤ के पूरà¥à¤µ पà¥à¤°à¤§à¤¾à¤¨ मनà¥à¤¤à¥à¤°à¥€ हैं। वे à¤à¤¾à¤°à¤¤à¥€à¤¯ जनसंघ की सà¥à¤¥à¤¾à¤ªà¤¨à¤¾ करने वालों में से à¤à¤• हैं और १९६८ से १९à¥à¥© तक उसके अधà¥à¤¯à¤•à¥à¤· à¤à¥€ रहे। वे जीवन à¤à¤° à¤à¤¾à¤°à¤¤à¥€à¤¯ राजनीति में सकà¥à¤°à¤¿à¤¯ रहे। उनà¥à¤¹à¥‹à¤¨à¥‡ लमà¥à¤¬à¥‡ समय तक राषà¥à¤Ÿà¥à¤°à¤§à¤°à¥à¤®, पांचजनà¥à¤¯ और वीर अरà¥à¤œà¥à¤¨ आदि राषà¥à¤Ÿà¥à¤°à¥€à¤¯ à¤à¤¾à¤µà¤¨à¤¾ से ओत-पà¥à¤°à¥‹à¤¤ अनेक पतà¥à¤°-पतà¥à¤°à¤¿à¤•ाओं का समà¥à¤ªà¤¾à¤¦à¤¨ à¤à¥€ किया। उनà¥à¤¹à¥‹à¤‚ने अपना जीवन राषà¥à¤Ÿà¥à¤°à¥€à¤¯ सà¥à¤µà¤¯à¤‚सेवक संघ के पà¥à¤°à¤šà¤¾à¤°à¤• के रूप में आजीवन अविवाहित रहने का संकलà¥à¤ª लेकर पà¥à¤°à¤¾à¤°à¤®à¥à¤ किया था और देश के सरà¥à¤µà¥‹à¤šà¥à¤š पद पर पहà¥à¤à¤šà¤¨à¥‡ तक उस संकलà¥à¤ª को पूरी निषà¥à¤ ा से निà¤à¤¾à¤¯à¤¾à¥¤ वाजपेयी राषà¥à¤Ÿà¥à¤°à¥€à¤¯ जनतांतà¥à¤°à¤¿à¤• गठबंधन सरकार के पहले पà¥à¤°à¤§à¤¾à¤¨à¤®à¤¨à¥à¤¤à¥à¤°à¥€ थे जिनà¥à¤¹à¥‹à¤¨à¥‡ गैर काà¤à¤—à¥à¤°à¥‡à¤¸à¥€ पà¥à¤°à¤§à¤¾à¤¨à¤®à¤¨à¥à¤¤à¥à¤°à¥€ पद के 5 साल बिना किसी समसà¥à¤¯à¤¾ के पूरे किà¤à¥¤ उनà¥à¤¹à¥‹à¤‚ने 24 दलों के गठबंधन से सरकार बनाई थी जिसमें 81 मनà¥à¤¤à¥à¤°à¥€ थे। कà¤à¥€ किसी दल ने आनाकानी नहीं की। इससे उनकी नेतृतà¥à¤µ कà¥à¤·à¤®à¤¤à¤¾ का पता चलता है।
आरमà¥à¤à¤¿à¤• जीवन
उतà¥à¤¤à¤° पà¥à¤°à¤¦à¥‡à¤¶ में आगरा जनपद के पà¥à¤°à¤¾à¤šà¥€à¤¨ सà¥à¤¥à¤¾à¤¨ बटेशà¥à¤µà¤° के मूल निवासी पणà¥à¤¡à¤¿à¤¤ कृषà¥à¤£ बिहारी वाजपेयी मधà¥à¤¯ पà¥à¤°à¤¦à¥‡à¤¶ की रियासत गà¥à¤µà¤¾à¤²à¤¿à¤¯à¤° में अधà¥à¤¯à¤¾à¤ªà¤• थे। वहीं शिनà¥à¤¦à¥‡ की छावनी में २५ दिसमà¥à¤¬à¤° १९२४ को बà¥à¤°à¤¹à¥à¤®à¤®à¥à¤¹à¥‚रà¥à¤¤ में उनकी सहधरà¥à¤®à¤¿à¤£à¥€ कृषà¥à¤£à¤¾ वाजपेयी की कोख से अटल जी का जनà¥à¤® हà¥à¤† था। पिता कृषà¥à¤£ बिहारी वाजपेयी गà¥à¤µà¤¾à¤²à¤¿à¤¯à¤° में अधà¥à¤¯à¤¾à¤ªà¤¨ कारà¥à¤¯ तो करते ही थे इसके अतिरिकà¥à¤¤ वे हिनà¥à¤¦à¥€ व बà¥à¤°à¤œ à¤à¤¾à¤·à¤¾ के सिदà¥à¤§à¤¹à¤¸à¥à¤¤ कवि à¤à¥€ थे। पà¥à¤¤à¥à¤° में कावà¥à¤¯ के गà¥à¤£ वंशानà¥à¤—त परिपाटी से पà¥à¤°à¤¾à¤ªà¥à¤¤ हà¥à¤à¥¤ महातà¥à¤®à¤¾ रामचनà¥à¤¦à¥à¤° वीर दà¥à¤µà¤¾à¤°à¤¾ रचित अमर कृति "विजय पताका" पढकर अटल जी के जीवन की दिशा ही बदल गयी। अटल जी की बी०à¤à¥¦ की शिकà¥à¤·à¤¾ गà¥à¤µà¤¾à¤²à¤¿à¤¯à¤° के विकà¥à¤Ÿà¥‹à¤°à¤¿à¤¯à¤¾ कालेज (वरà¥à¤¤à¤®à¤¾à¤¨ में लकà¥à¤·à¥à¤®à¥€à¤¬à¤¾à¤ˆ कालेज) में हà¥à¤ˆà¥¤ छातà¥à¤° जीवन से वे राषà¥à¤Ÿà¥à¤°à¥€à¤¯ सà¥à¤µà¤¯à¤‚सेवक संघ के सà¥à¤µà¤¯à¤‚सेवक बने और तà¤à¥€ से राषà¥à¤Ÿà¥à¤°à¥€à¤¯ सà¥à¤¤à¤° की वाद-विवाद पà¥à¤°à¤¤à¤¿à¤¯à¥‹à¤—िताओं में à¤à¤¾à¤— लेते रहे। कानपà¥à¤° के डी०à¤à¥¦à¤µà¥€à¥¦ कालेज से राजनीति शासà¥à¤¤à¥à¤° में à¤à¤®à¥¦à¤à¥¦ की परीकà¥à¤·à¤¾ पà¥à¤°à¤¥à¤® शà¥à¤°à¥‡à¤£à¥€ में उतà¥à¤¤à¥€à¤°à¥à¤£ की। उसके बाद उनà¥à¤¹à¥‹à¤‚ने अपने पिताजी के साथ-साथ कानपà¥à¤° में ही à¤à¤²à¥¦à¤à¤²à¥¦à¤¬à¥€à¥¦ की पढ़ाई à¤à¥€ पà¥à¤°à¤¾à¤°à¤®à¥à¤ की लेकिन उसे बीच में ही विराम देकर पूरी निषà¥à¤ ा से संघ के कारà¥à¤¯ में जà¥à¤Ÿ गये। डॉ० शà¥à¤¯à¤¾à¤®à¤¾ पà¥à¤°à¤¸à¤¾à¤¦ मà¥à¤–रà¥à¤œà¥€ और पणà¥à¤¡à¤¿à¤¤ दीनदयाल उपाधà¥à¤¯à¤¾à¤¯ के निरà¥à¤¦à¥‡à¤¶à¤¨ में राजनीति का पाठतो पढ़ा ही, साथ-साथ पाञà¥à¤šà¤œà¤¨à¥à¤¯, राषà¥à¤Ÿà¥à¤°à¤§à¤°à¥à¤®, दैनिक सà¥à¤µà¤¦à¥‡à¤¶ और वीर अरà¥à¤œà¥à¤¨ जैसे पतà¥à¤°-पतà¥à¤°à¤¿à¤•ाओं के समà¥à¤ªà¤¾à¤¦à¤¨ का कारà¥à¤¯ à¤à¥€ कà¥à¤¶à¤²à¤¤à¤¾ पूरà¥à¤µà¤• करते रहे।
राजनीतिक जीवन
वह à¤à¤¾à¤°à¤¤à¥€à¤¯ जनसंघ की सà¥à¤¥à¤¾à¤ªà¤¨à¤¾ करने वालों में से à¤à¤• हैं और सनॠ१९६८ से १९à¥à¥© तक वह उसके राषà¥à¤Ÿà¥à¤°à¥€à¤¯ अधà¥à¤¯à¤•à¥à¤· à¤à¥€ रह चà¥à¤•े हैं। सनॠ१९५५ में उनà¥à¤¹à¥‹à¤‚ने पहली बार लोकसà¤à¤¾ चà¥à¤¨à¤¾à¤µ लड़ा, परनà¥à¤¤à¥ सफलता नहीं मिली। लेकिन उनà¥à¤¹à¥‹à¤‚ने हिमà¥à¤®à¤¤ नहीं हारी और सनॠ१९५ॠमें बलरामपà¥à¤° (जिला गोणà¥à¤¡à¤¾, उतà¥à¤¤à¤° पà¥à¤°à¤¦à¥‡à¤¶) से जनसंघ के पà¥à¤°à¤¤à¥à¤¯à¤¾à¤¶à¥€ के रूप में विजयी होकर लोकसà¤à¤¾ में पहà¥à¤à¤šà¥‡à¥¤ सनॠ१९५ॠसे १९à¥à¥ तक जनता पारà¥à¤Ÿà¥€ की सà¥à¤¥à¤¾à¤ªà¤¨à¤¾ तक वे बीस वरà¥à¤· तक लगातार जनसंघ के संसदीय दल के नेता रहे। मोरारजी देसाई की सरकार में सनॠ१९à¥à¥ से १९à¥à¥¯ तक विदेश मनà¥à¤¤à¥à¤°à¥€ रहे और विदेशों में à¤à¤¾à¤°à¤¤ की छवि बनायी।
१९८० में जनता पारà¥à¤Ÿà¥€ से असनà¥à¤¤à¥à¤·à¥à¤Ÿ होकर इनà¥à¤¹à¥‹à¤‚ने जनता पारà¥à¤Ÿà¥€ छोड़ दी और à¤à¤¾à¤°à¤¤à¥€à¤¯ जनता पारà¥à¤Ÿà¥€ की सà¥à¤¥à¤¾à¤ªà¤¨à¤¾ में मदद की। ६ अपà¥à¤°à¥ˆà¤², १९८० में बनी à¤à¤¾à¤°à¤¤à¥€à¤¯ जनता पारà¥à¤Ÿà¥€ के अधà¥à¤¯à¤•à¥à¤· पद का दायितà¥à¤µ à¤à¥€ वाजपेयी को सौंपा गया। दो बार राजà¥à¤¯à¤¸à¤à¤¾ के लिये à¤à¥€ निरà¥à¤µà¤¾à¤šà¤¿à¤¤ हà¥à¤à¥¤ लोकतनà¥à¤¤à¥à¤° के सजग पà¥à¤°à¤¹à¤°à¥€ अटल बिहारी वाजपेयी ने सनॠ१९९ॠमें पà¥à¤°à¤§à¤¾à¤¨à¤®à¤¨à¥à¤¤à¥à¤°à¥€ के रूप में देश की बागडोर संà¤à¤¾à¤²à¥€à¥¤ १९ अपà¥à¤°à¥ˆà¤², १९९८ को पà¥à¤¨à¤ƒ पà¥à¤°à¤§à¤¾à¤¨à¤®à¤¨à¥à¤¤à¥à¤°à¥€ पद की शपथ ली और उनके नेतृतà¥à¤µ में १३ दलों की गठबनà¥à¤§à¤¨ सरकार ने पाà¤à¤š वरà¥à¤·à¥‹à¤‚ में देश के अनà¥à¤¦à¤° पà¥à¤°à¤—ति के अनेक आयाम छà¥à¤à¥¤
सनॠ२००४ में कारà¥à¤¯à¤•ाल पूरा होने से पहले à¤à¤¯à¤‚कर गरà¥à¤®à¥€ में समà¥à¤ªà¤¨à¥à¤¨ कराये गये लोकसà¤à¤¾ चà¥à¤¨à¤¾à¤µà¥‹à¤‚ में à¤à¤¾à¥¦à¤œà¥¦à¤ªà¤¾à¥¦ के नेतृतà¥à¤µ वाले राषà¥à¤Ÿà¥à¤°à¥€à¤¯ जनतांतà¥à¤°à¤¿à¤• गठबनà¥à¤§à¤¨ (à¤à¤¨à¥¦à¤¡à¥€à¥¦à¤à¥¦) ने वाजपेयी के नेतृतà¥à¤µ में चà¥à¤¨à¤¾à¤µ लड़ा और à¤à¤¾à¤°à¤¤ उदय (अंगà¥à¤°à¥‡à¤œà¥€ में इणà¥à¤¡à¤¿à¤¯à¤¾ शाइनिंग) का नारा दिया। इस चà¥à¤¨à¤¾à¤µ में किसी à¤à¥€ पारà¥à¤Ÿà¥€ को बहà¥à¤®à¤¤ नहीं मिला। à¤à¤¸à¥€ सà¥à¤¥à¤¿à¤¤à¤¿ में वामपंथी दलों के समरà¥à¤¥à¤¨ से काà¤à¤—à¥à¤°à¥‡à¤¸ ने à¤à¤¾à¤°à¤¤ की केनà¥à¤¦à¥à¤°à¥€à¤¯ सरकार पर कायम होने में सफलता पà¥à¤°à¤¾à¤ªà¥à¤¤ की और à¤à¤¾à¥¦à¤œà¥¦à¤ªà¤¾à¥¦ विपकà¥à¤· में बैठने को मजबूर हà¥à¤ˆà¥¤ समà¥à¤ªà¥à¤°à¤¤à¤¿ वे राजनीति से सनà¥à¤¯à¤¾à¤¸ ले चà¥à¤•े हैं और नई दिलà¥à¤²à¥€ में ६-ठकृषà¥à¤£à¤¾à¤®à¥‡à¤¨à¤¨ नारà¥à¤— सà¥à¤¥à¤¿à¤¤ सरकारी आवास में रहते हैं।
कवि के रूप में अटल
अटल बिहारी वाजपेयी राजनीतिजà¥à¤ž होने के साथ-साथ à¤à¤• कवि à¤à¥€ हैं। मेरी इकà¥à¤¯à¤¾à¤µà¤¨ कविताà¤à¤ अटल जी का पà¥à¤°à¤¸à¤¿à¤¦à¥à¤§ कावà¥à¤¯à¤¸à¤‚गà¥à¤°à¤¹ है। वाजपेयी जी को कावà¥à¤¯ रचनाशीलता à¤à¤µà¤‚ रसासà¥à¤µà¤¾à¤¦ के गà¥à¤£ विरासत में मिले हैं। उनके पिता कृषà¥à¤£ बिहारी वाजपेयी गà¥à¤µà¤¾à¤²à¤¿à¤¯à¤° रियासत में अपने समय के जाने-माने कवि थे। वे बà¥à¤°à¤œà¤à¤¾à¤·à¤¾ और खड़ी बोली में कावà¥à¤¯ रचना करते थे। पारिवारिक वातावरण साहितà¥à¤¯à¤¿à¤• à¤à¤µà¤‚ कावà¥à¤¯à¤®à¤¯ होने के कारण उनकी रगों में कावà¥à¤¯ रकà¥à¤¤-रस अनवरत घूमता रहा है। उनकी सरà¥à¤µ पà¥à¤°à¤¥à¤® कविता ताजमहल थी। इसमें ऋंगार रस के पà¥à¤°à¥‡à¤® पà¥à¤°à¤¸à¥‚न न चढ़ाकर "यक शहनà¥à¤¶à¤¾à¤¹ ने बनवा के हसीं ताजमहल, हम हसीनों की मोहबà¥à¤¬à¤¤ का उड़ाया है मजाक" की तरह उनका à¤à¥€ धà¥à¤¯à¤¾à¤¨ ताजमहल के कारीगरों के शोषण पर ही गया। वासà¥à¤¤à¤µ में कोई à¤à¥€ कवि हृदय कà¤à¥€ कविता से वंचित नहीं रह सकता। राजनीति के साथ-साथ समषà¥à¤Ÿà¤¿ à¤à¤µà¤‚ राषà¥à¤Ÿà¥à¤° के पà¥à¤°à¤¤à¤¿ उनकी वैयकà¥à¤¤à¤¿à¤• संवेदनशीलता आदà¥à¤¯à¥‹à¤ªà¤¾à¤¨à¥à¤¤ पà¥à¤°à¤•ट होती ही रही है। उनके संघरà¥à¤·à¤®à¤¯ जीवन, परिवरà¥à¤¤à¤¨à¤¶à¥€à¤² परिसà¥à¤¥à¤¿à¤¤à¤¿à¤¯à¤¾à¤, राषà¥à¤Ÿà¥à¤°à¤µà¥à¤¯à¤¾à¤ªà¥€ आनà¥à¤¦à¥‹à¤²à¤¨, जेल-जीवन आदि अनेकों आयामों के पà¥à¤°à¤à¤¾à¤µ à¤à¤µà¤‚ अनà¥à¤à¥‚ति ने कावà¥à¤¯ में सदैव ही अà¤à¤¿à¤µà¥à¤¯à¤•à¥à¤¤à¤¿ पायी।
अटल जी की पà¥à¤°à¤®à¥à¤– रचनायें
उनकी कà¥à¤› पà¥à¤°à¤®à¥à¤– पà¥à¤°à¤•ाशित रचनाà¤à¤ इस पà¥à¤°à¤•ार हैं :
- मृतà¥à¤¯à¥ या हतà¥à¤¯à¤¾
- अमर बलिदान (लोक सà¤à¤¾ में अटल जी के वकà¥à¤¤à¤µà¥à¤¯à¥‹à¤‚ का संगà¥à¤°à¤¹)
- कैदी कविराय की कà¥à¤£à¥à¤¡à¤²à¤¿à¤¯à¤¾à¤
- संसद में तीन दशक
- अमर आग है
- कà¥à¤› लेख: कà¥à¤› à¤à¤¾à¤·à¤£
- सेकà¥à¤¯à¥à¤²à¤° वाद
- राजनीति की रपटीली राहें
- बिनà¥à¤¦à¥ बिनà¥à¤¦à¥ विचार, इतà¥à¤¯à¤¾à¤¦à¤¿à¥¤
पà¥à¤°à¤¸à¥à¤•ार
- १९९२: पदà¥à¤® विà¤à¥‚षण
- १९९३: डी लिट (कानपà¥à¤° विशà¥à¤µà¤µà¤¿à¤¦à¥à¤¯à¤¾à¤²à¤¯)
- १९९४: लोकमानà¥à¤¯ तिलक पà¥à¤°à¤¸à¥à¤•ार
- १९९४: शà¥à¤°à¥‡à¤·à¥à¤ सासंद पà¥à¤°à¤¸à¥à¤•ार
- १९९४: à¤à¤¾à¤°à¤¤ रतà¥à¤¨ पंडित गोविंद वलà¥à¤²à¤ पंत पà¥à¤°à¤¸à¥à¤•ार
जीवन के कà¥à¤› पà¥à¤°à¤®à¥à¤– तथà¥à¤¯
आजीवन अविवाहित रहे।
- वे à¤à¤• ओजसà¥à¤µà¥€ à¤à¤µà¤‚ पटॠवकà¥à¤¤à¤¾ (ओरेटर) à¤à¤µà¤‚ सिदà¥à¤§ हिनà¥à¤¦à¥€ कवि à¤à¥€ हैं।
- परमाणॠशकà¥à¤¤à¤¿ समà¥à¤ªà¤¨à¥à¤¨ देशों की संà¤à¤¾à¤µà¤¿à¤¤ नाराजगी से विचलित हà¥à¤ बिना उनà¥à¤¹à¥‹à¤‚ने अगà¥à¤¨à¤¿-दो और परमाणॠपरीकà¥à¤·à¤£ कर देश की सà¥à¤°à¤•à¥à¤·à¤¾ के लिये साहसी कदम à¤à¥€ उठाये।
- सनॠ१९९८ में राजसà¥à¤¥à¤¾à¤¨ के पोखरण में à¤à¤¾à¤°à¤¤ का दà¥à¤µà¤¿à¤¤à¥€à¤¯ परमाणॠपरीकà¥à¤·à¤£ किया जिसे अमेरिका की सी०आई०à¤à¥¦ को à¤à¤¨à¤• तक नहीं लगने दी।
- अटल सबसे लमà¥à¤¬à¥‡ समय तक सांसद रहे हैं और जवाहरलाल नेहरू व इंदिरा गांधी के बाद सबसे लमà¥à¤¬à¥‡ समय तक गैर कांगà¥à¤°à¥‡à¤¸à¥€ पà¥à¤°à¤§à¤¾à¤¨à¤®à¤‚तà¥à¤°à¥€ à¤à¥€à¥¤ वह पहले पà¥à¤°à¤§à¤¾à¤¨à¤®à¤‚तà¥à¤°à¥€ थे जिनà¥à¤¹à¥‹à¤‚ने गठबनà¥à¤§à¤¨ सरकार को न केवल सà¥à¤¥à¤¾à¤¯à¤¿à¤¤à¥à¤µ दिया अपितॠसफलता पूरà¥à¤µà¤• संचालित à¤à¥€ किया।
- अटल ही पहले विदेश मंतà¥à¤°à¥€ थे जिनà¥à¤¹à¥‹à¤‚ने संयà¥à¤•à¥à¤¤ राषà¥à¤Ÿà¥à¤° संघ में हिनà¥à¤¦à¥€ में à¤à¤¾à¤·à¤£ देकर à¤à¤¾à¤°à¤¤ को गौरवानà¥à¤µà¤¿à¤¤ किया था।
वाजपेयी सरकार के कारà¥à¤¯
- à¤à¤• सौ साल से à¤à¥€ जà¥à¤¯à¤¾à¤¦à¤¾ पà¥à¤°à¤¾à¤¨à¥‡ कावेरी जल विवाद को सà¥à¤²à¤à¤¾à¤¯à¤¾à¥¤
- संरचनातà¥à¤®à¤• ढाà¤à¤šà¥‡ के लिये कारà¥à¤¯à¤¦à¤², सॉफà¥à¤Ÿà¤µà¥‡à¤¯à¤° विकास के लिये सूचना à¤à¤µà¤‚ पà¥à¤°à¥Œà¤¦à¥à¤¯à¥‹à¤—िकी कारà¥à¤¯à¤¦à¤², विदà¥à¤¯à¥à¤¤à¥€à¤•रण में गति लाने के लिये केनà¥à¤¦à¥à¤°à¥€à¤¯ विदà¥à¤¯à¥à¤¤ नियामक आयोग आदि का गठन किया।
- राषà¥à¤Ÿà¥à¤°à¥€à¤¯ राजमारà¥à¤—ों à¤à¤µà¤‚ हवाई अडà¥à¤¡à¥‹à¤‚ का विकास; नई टेलीकॉम नीति तथा कोकण रेलवे की शà¥à¤°à¥à¤†à¤¤ करके बà¥à¤¨à¤¿à¤¯à¤¾à¤¦à¥€ संरचनातà¥à¤®à¤• ढाà¤à¤šà¥‡ को मजबूत करने वाले कदम उठाये।
- राषà¥à¤Ÿà¥à¤°à¥€à¤¯ सà¥à¤°à¤•à¥à¤·à¤¾ समिति, आरà¥à¤¥à¤¿à¤• सलाह समिति, वà¥à¤¯à¤¾à¤ªà¤¾à¤° à¤à¤µà¤‚ उदà¥à¤¯à¥‹à¤— समिति à¤à¥€ गठित कीं।
- आवशà¥à¤¯à¤• उपà¤à¥‹à¤•à¥à¤¤à¤¾ सामगà¥à¤°à¤¿à¤¯à¥‹à¤‚ की कीमतें नियनà¥à¤¤à¥à¤°à¤¿à¤¤ करने के लिये मà¥à¤–à¥à¤¯à¤®à¤¨à¥à¤¤à¥à¤°à¤¿à¤¯à¥‹à¤‚ का समà¥à¤®à¥‡à¤²à¤¨ बà¥à¤²à¤¾à¤¯à¤¾à¥¤
- उड़ीसा के सरà¥à¤µà¤¾à¤§à¤¿à¤• गरीब कà¥à¤·à¥‡à¤¤à¥à¤° के लिये सात सूतà¥à¤°à¥€à¤¯ गरीबी उनà¥à¤®à¥‚लन कारà¥à¤¯à¤•à¥à¤°à¤® शà¥à¤°à¥‚ किया।
- आवास निरà¥à¤®à¤¾à¤£ को पà¥à¤°à¥‹à¤¤à¥à¤¸à¤¾à¤¹à¤¨ देने के लिठअरà¥à¤¬à¤¨ सीलिंग à¤à¤•à¥à¤Ÿ समापà¥à¤¤ किया।
- गà¥à¤°à¤¾à¤®à¥€à¤£ रोजगार सृजन à¤à¤µà¤‚ विदेशों में बसे à¤à¤¾à¤°à¤¤à¥€à¤¯ मूल के लोगों के लिये बीमा योजना शà¥à¤°à¥‚ की।
- ये सारे तथà¥à¤¯ सरकारी विजà¥à¤žà¤ªà¥à¤¤à¤¿à¤¯à¥‹à¤‚ के माधà¥à¤¯à¤® से समय समय पर पà¥à¤°à¤•ाशित होते रहे हैं।
अटल जी की टिपà¥à¤ªà¤£à¤¿à¤¯à¤¾à¤
चाहे पà¥à¤°à¤§à¤¾à¤¨ मनà¥à¤¤à¥à¤°à¥€ के पद पर रहे हों या नेता पà¥à¤°à¤¤à¤¿à¤ªà¤•à¥à¤·; बेशक देश की बात हो या कà¥à¤°à¤¾à¤¨à¥à¤¤à¤¿à¤•ारियों की, या फिर उनकी अपनी ही कविताओं की; नपी-तà¥à¤²à¥€ और बेवाक टिपà¥à¤ªà¤£à¥€ करने में अटल जी कà¤à¥€ नहीं चूके। यहाठपर उनकी कà¥à¤› टिपà¥à¤ªà¤£à¤¿à¤¯à¤¾à¤ दी जा रही हैं।
- "à¤à¤¾à¤°à¤¤ को लेकर मेरी à¤à¤• दृषà¥à¤Ÿà¤¿ है- à¤à¤¸à¤¾ à¤à¤¾à¤°à¤¤ जो à¤à¥‚ख, à¤à¤¯, निरकà¥à¤·à¤°à¤¤à¤¾ और अà¤à¤¾à¤µ से मà¥à¤•à¥à¤¤ हो।"
- "कà¥à¤°à¤¾à¤¨à¥à¤¤à¤¿à¤•ारियों के साथ हमने नà¥à¤¯à¤¾à¤¯ नहीं किया, देशवासी महान कà¥à¤°à¤¾à¤¨à¥à¤¤à¤¿à¤•ारियों को à¤à¥‚ल रहे हैं, आजादी के बाद अहिंसा के अतिरेक के कारण यह सब हà¥à¤† ।"
- "मेरी कविता जंग का à¤à¤²à¤¾à¤¨ है, पराजय की पà¥à¤°à¤¸à¥à¤¤à¤¾à¤µà¤¨à¤¾ नहीं। वह हारे हà¥à¤ सिपाही का नैराशà¥à¤¯-निनाद नहीं, जूà¤à¤¤à¥‡ योदà¥à¤§à¤¾ का जय-संकलà¥à¤ª है। वह निराशा का सà¥à¤µà¤° नहीं, आतà¥à¤®à¤µà¤¿à¤¶à¥à¤µà¤¾à¤¸ का जयघोष है
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